न... किसी से कम नहीं ट्रेंडी - 2 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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न... किसी से कम नहीं ट्रेंडी - 2

2-

प्रो. अशोक चटर्जी उन तीन शुरूआती छात्रों में थे जिन तीनों को संस्थान ने 'पास-आउट' होने के बाद संस्थान में फ़ैकल्टी के रूप में बड़े सम्मान के साथ शिक्षण-कार्य के लिए चुना गया था | यहाँ फ़ैकल्टी के लिए उम्र की कोई सीमा न थी | हाँ, रिटायरमेंट एक फॉर्मेलिटी थी जिसके बाद भी फ़ैकल्टी अपनी इच्छा व स्वास्थ्य के अनुसार काम कर सकती थी | कोई न कोई 'प्रोजेक्ट' चलता ही रहता | 

कैम्पस में बॉयज़ और गर्ल्स हॉस्टल्स की बिल्डिंग्स के अतिरिक्त फैकल्टीज़ के लिए भी क्वॉर्टर्स बने थे | खेलने-कूदने का लंबा-चौड़ा ग्राउंड, कैंटीन, पीयून्स, ड्राइवर्स के लिए एक अलग बिल्डिंग और भी न जाने क्या-क्या ताम-झाम था | 

प्रो. चटर्जी को विशेष साधन मुहैया थे | वे संस्थान के उन तीन मूल छात्रों में से एकमात्र छात्र थे जो अपने रिटायरमेंट के पश्चात भी वहीं अपनी सेवाएँ देते रहे थे | उनकी विद्वत्ता के अनुरूप उन्हें देश-विदेश से बुलाया गया, वे गए भी किन्तु केवल लैक्चर देने अन्यथा वे ताउम्र वहीं अपने प्यारे संस्थान में ही टिककर रहे थे | 

संस्थान के व उनके गौरव के अनुरूप उन्हें कैम्पस में एक छोटा सा सुंदर बँगला बनाकर दे दिया गया था | कला के प्रेम में डूबे प्रो.चटर्जी ताउम्र अविवाहित रहे, जैसे उन्होंने संस्थान से ही विवाह कर लिया था | पहले उनकी माँ साथ में रहती थीं, उनकी मृत्यु के बाद वे अकेले उसी बँगले में रहने लगे| लेकिन वो कहाँ कभी अकेले थे ?संस्थान के जिज्ञासु उत्साहित छात्रों व फ़ैकल्टी की भीड़ उन्हें घेरे रहती | वो बड़े प्यार व आनंद से अपने जीवन का सदुपयोग कर रहे थे | 

आज सुगंधा को उनके और वर्तमान डायरेक्टर के बीच वाले स्थान पर बैठना था इसीलिए उसे असहज लग रहा था | स्टेज पर भी जाकर वह कुछ सेकेंड्स खड़ी रही ;

"प्लीज़ बी सीटेड --सुगंधा ---"

"यस --सर ---"उसके मुख से निकला और वह संकोच के साथ कुर्सी खिसकाकर अपने नियत स्थान पर बैठ गई| 

"व्हाट सर--? आय एम प्रवीर --आज ये सर कहाँ से ---?"डायरेक्टर ने मुस्कुराते हुए सुगंधा को धीरे से तुरंत टोका| 

सुगंधा चुप होकर रह गई | किस कल्चर से सुगंधा किस कल्चर में आई थी लेकिन अभी भी अपनी सभ्यता व संस्कृति को भूलकर वह पूरी तरह से यहाँ की विदेशी कल्चर को अपना नहीं पाई थी | यहाँ कोई छोटा-बड़ा न था | शुरु -शुरु में सुगंधा को आश्चर्य होता था कि विशेष मीटिंग्स में भी सब फैकल्टी व छात्र सबको नाम से पुकारते थे | यहाँ तक कि ड्राईवर व छात्र/छात्राएँ भी ---किन्तु एक अनुशासन था कि जब कोई भी पदाधिकारी कुछ बोल रहा होता, उसके बीच में किसी का भी हस्तक्षेप किसी भी प्रकार से मंज़ूर नहीं किया जा सकता था | पहले उनकी बात समाप्त हो जाए उसके बाद एक के बाद एक प्रश्न पूछे जा सकते थे | वहाँ किसीको भी सब्ज़ी बाज़ार बनाने की अनुमति नहीं थी | 

कार्यक्रम चलता रहा, सुगंधा की उपलब्धियों की चर्चा होती रही | दो वर्ष में सुगंधा ने अपने संस्थान को वह स्थान दिलवा दिया था जो पिछले कई वर्षों से कितना प्रयास करने पर भी विदेशी विश्वविद्यालय की आकांक्षा के अनुरूप नहीं हो पाया था | 

इंग्लैंड की इस यूनिवर्सिटी ने संस्थान को यह फ़ाइनल ऑफ़र दी थी और सुगंधा स्वयं आश्चर्य में थी कि विदेश में जाकर वह उस काम को केवल तीन माह में कैसे पूरा कर सकी थी ? जब कि संस्थान में उसके साथ कितनी उठा-पटक की गई थी, कितने पंगे लिए गए थे| बहुत से लोग उसे तोड़ने का प्रयास करते रहे थे किन्तु वे सफ़ल नहीं हो सके थे | 

उसके विपरीत उसका परिणाम बहुत सुखद रहा था | उसका 'लोगो' न केवल पसंद किया गया था वरन उसकी प्रशंसा के झंडे गाड़कर उसे पलकों पर बिठा लिया गया था | इसका प्रभाव उस पर, उसके कैरियर पर पड़ना स्वाभाविक था किन्तु बड़ी बात यह थी कि संस्थान की प्रतिभाओं को नए अवसर मिलने की एक सुंदर शुरुआत हो गई थी | यह भी सुनने में आ रहा था कि इंग्लैण्ड की व अन्य कई देशों की कई यूनिवर्सिटीज़ से संस्थान को कई ऑफ़र्स प्राप्त हो रही थीं |