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न... किसी से कम नहीं ट्रेंडी - 7

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सेठ दामोदर अपने भाई की हरकत से टूट गए थे | किसी प्रकार लेन -देन करके उन्होंने अपने भाई को कोर्ट-कचहरी और जेल जाने से तो बचा लिया किन्तु उनका मन हर समय भयभीत रहता था | वह मानसिक रूप से बीमार रहने लगे, धीरे-धीरे उनका शरीर भी कमज़ोर होता जा रहा था लेकिन वे अपने वचन से पीछे नहीं हटे | 

उन्होंने अमन और राकेश को आगे पढ़ने के लिए सदा प्रोत्साहित किया | अपने भाई को एक टाँग से चलता देखकर वे असहज हो जाते | दो वर्ष बीत गए थे और दोनों दोस्तों ने प्राइवेट बारहवीं की परीक्षा अच्छे नंबरों में पास करके दिखा दिया था कि कोई भी परिस्थिति क्यों न हो मनुष्य यदि चाहे तो क्या नहीं कर सकता | 

अब सेठ दामोदर के सबसे विश्वसनीय लोग अमन और राकेश ही थे जिनके लिए सेठ जी ने देवबंद में ही घर बनवा दिए थे | एक प्रकार से फ़ैक्ट्री की सारी सार-सँभाल इन दोनों युवकों के हाथ में ही थी | 

रमेश बहुत पछताता लेकिन बीते पलों को पकड़कर नहीं ला सकता था | उसने पूरे मन से अमन और रमेश से माफ़ी भी माँगी थी | एक प्रकार से ये नौजवान सेठ दामोदर के बेटे ही बन गए थे | रमेश ने अपने अहं के कारण इन दोनों से दुश्मनी की, अपंग हुआ, अपने भाई-भाभी को पीड़ा दी लेकिन पाया क्या ?

गन्नों की फ़सल बहुत बढ़िया हो रही थी और 'शांति शुगर मिल ' का काम खूब तेज़ी से बढ़ता जा रहा था जिसका कारण ये दोनों युवक थे | सेठ दामोदर ने शुगर-मिल अपनी स्वर्गीय माँ के नाम पर रखा था | अब उसे फलता-फूलता देखके वे बहुत संतुष्ट थे लेकिन रमेश के लिए सदा चिंता में रहते थे | 

पहले किसानों के साथ सलीके से व्यवहार नहीं किया जाता था | जो लोग इनसे बात करते वे निहायत बदतमीज़ी से उन्हें बेचारा सा मानकर जैसे गन्ने खरीदकर उन पर अहसान करते थे | वे इस नई मिल की जगह पुरानी मिलों की तरफ़ रुख करने लगे थे | 

अमन और राकेश ने वहाँ काम करने वालों का, किसानों से गन्ना लेने वालों का व्यवहार देखा तो धीरे-धीरे कोशिश करके उन्हें समझाया कि वहाँ और भी शुगर-मिल्स हैं, यदि उनसे अच्छा व्यवहार नहीं होगा तो वे दूसरी मिल्स में अपने गन्ने बेचेंगे ही | उन्होंने उन लोगों के व्यवहार पर स्वयं नज़र रखनी शुरू की, जहाँ तक होता वे कोशिश करते कि जब गन्ने की गाड़ियाँ आने का समय हो दोनों में से कोई न कोई वहाँ उपस्थित हो | 

दोनों लड़के शिक्षित तो थे ही, बुद्धिमान भी थे | वह ज़माना आज का नहीं था, उन दिनों नैट नहीं होते थे और समाचार-पत्र ही किसी विशेष सूचना के माध्यम थे | मोबाईल फ़ोन्स नहीं होते थे, लैंड-लाइन के फ़ोन से काम चलाया जाता था | 

हाँ, ग्राहमबेल का टेलिफ़ोनिक अविष्कार कुछ कदम और आगे बढ़ चुका था | अब बाज़ार में ऐसा फ़ोन आ चुका था जिसे साथ में ले जाया जा सकता था यानि उसके बड़े से डिब्बे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता था | अमन और राकेश की सलाह पर सेठ दामोदर जी ने फ़ैक्ट्री के नाम से कई कनेक्शंस ले लिए जिससे उन सबको व फ़ैक्ट्री के महत्वपूर्ण पदाधिकारियों को इस सुविधा का लाभ मिल सके, आवश्यकता पड़ने पर एक-दूसरे से कॉन्टेक्ट करने में कोई परेशानी न हो | उनके घरों में भी कनेक्शंस ले लिए गए | काम करने में और सुविधा होने लगी | 

सेठ जी व सेठानी दोनों रमेश की चिंता में बीमार रहने लगे थे, उन्हें उसके भविष्य की चिंता भी थी | वह फ़ैक्ट्री के काम में अब रूचि तो लेने लगा था लेकिन अपनी अपंगता के कारण अधिक समय तक एक स्थान पर नहीं बैठ पाता था | अमन व राकेश उसकी सहायता करते और उसका खोया हुआ विश्वास उसमें फिर से भरने की चेष्टा करते | 

अब अमन और राकेश को फ़ैक्ट्री में काम करते हुए लगभग पाँच वर्ष हो गए थे | उनकी काम के प्रति इतनी तन्मयता थी कि सेठ जी को अधिक ध्यान देने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी | 

राकेश की दो बहनों का अच्छे घर में विवाह हो चुका था और अब राकेश के विवाह की बात चल रही थी | उधर गौरी भी अपने बेटे अमन के लिए एक अच्छी लड़की ढूँढ चुकी थी | 

"सेठ जी ! माँ ने रमेश भाई के विवाह के लिए एक लड़की सुझाई है | "

"यह तो बहुत अच्छी बात है --मैं आता हूँ गौरी बहन से मिलने ---" वो खुश हो गए थे | रमेश के नकली टाँग तो लग चुकी थी लेकिन वह स्टिक लेकर भी लंगड़ाकर चलता था | कहीं बात बनती तो लड़की मना कर देती | वो उसी दिन सपत्नीक अमन की माँ के पास पहुँच गए | अमन की माँ को वो अपनी बहन मानने लगे थे और राखी पर उनके पास ज़रूर जाते थे | वह कई बार गौरी से कहते थे ;

"गौरी बहन, इतने साल हो गए अमन अभी तक मुझे मामा जी नहीं कहता है --" वह मुस्कुराकर चुप ही रहतीं | 

उस दिन अमन के घर पर पहुँचते ही दामोदर ने कहा ;

"लगता है, बहन ने मेरी इतनी बड़ी परेशानी भी दूर कर दी है ---"

" भाई जी, लड़की तो बहुत अच्छी है लेकिन मेरे जैसा ही हाल है उसका --"गौरी ने उन्हें बताया | 

"मतलब ---अगर वह तुम्हारे जैसी है तो दिक्क्त ही क्या है ? क्या ब्राह्मण है ?"

"ब्राह्मण तो है ही लेकिन अपनी सौतेली माँ की सताई हुई है, गरीब घर से है | पढ़ना चाहकर भी बड़ी मुश्किल से दसवीं कर पाई है ---"

"बहन ! हमें तो कोई ऐतराज़ नहीं है --अब ज़माना बदल रहा है | हम बनिए हैं और रमेश के बारे में तो तुम्हें सब पता ही है --हाँ, लड़की और उसके घरवालों को सब कुछ खुलकर बताना बहुत ज़रूरी है --कोई बात छिपी नहीं रहनी चाहिए --कोई भी नहीं --यह भी कि उसने पढ़ाई क्यों नहीं की और यह भी कि ----" वह उस बारे में बात करना चाहते थे कि अमन और राकेश के साथ उसने क्या किया था | 

"भाई जी, गडे मुर्दे उखाड़ने की क्या ज़रुरत है | क्यों भाभी ?"गौरी ने सेठानी से पूछा | 

"मुझे पता है, आप रमेश से नाराज़ हैं पर इसने बहुत भोग लिया है | "रमेश की भाभी उसके लिए बहुत दुखी रहतीं थीं | वह रोने लगीं | 

"अब जो हो चुका है, उसके बार-बार दोहराने से सब ठीक हो जाएगा क्या?" सेठ जी की पत्नी बहुत संवेदनशील थीं | 

"भाई जी, भाभी ठीक कह रही हैं | अब इस बारे में कोई बात नहीं होगी --बाक़ी मैंने लड़की के पिताजी और लड़की से खुलकर सब बातें कर लीं हैं ---आप कब मिलेंगे, यह सोच लीजिए | " गौरी ने अधिकारपूर्वक कहा | 

उस वर्ष तीनों लड़कों का विवाह खूब धूमधाम से हुआ | अब रमेश अमन और राकेश की सलाह से सब काम करने लगा था | 

रमेश की पत्नी कामिनी बहुत अच्छी पत्नी व बहू साबित हुई | घर में खुशियाँ छा गईं | दामोदर सेठ व सेठानी अमन व गौरी के प्रति बहुत कृतज्ञ थे | 

एक दिन कार-दुर्घटना में सेठ दामोदर व पत्नी दोनों ही परलोक सिधार गए | यह सब इतना अचानक था कि भविष्य अन्धकारम्य होने लगा लेकिन जैसे कोई अन्धकार से उजियारे का प्रकाश भर दे, ऐसे ही वकील साहब ने सेठ जी की 'विल' दिखाकर जैसे सबको पुनर्जीवित कर दिया | सेठ जी ने न जाने कब अपनी फ़ैक्ट्री तीन हिस्सों में विभाजित कर दी थी | तीनों के बराबर भाग थे और वो अमन और राकेश को रमेश का ध्यान रखने के एक पत्र व रमेश के लिए भी एक पत्र वकील साहब के कागज़ों में रखकर गए थे | 

सबके मन में शोक की लहर दौड़ गई थी किन्तु आगे का काम देखना ज़रूरी था | सबने मिल बैठकर फ़ैक्ट्री की प्रगति के लिए एक नियमावली तैयार कर ली थी और दामोदर जी की पावन इच्छानुसार फ़ैक्ट्री का काम होने लगा था | 

अमन को लगा कि विवाह के बाद वह अपनी पत्नी शीला के साथ मिलकर माँ को इतना सुख देगा कि वह अपने पिछले सब दुःख भूल जाएंगी | उसकी माँ ने उन दुखों में से निकलने के लिए पूरी उम्र समर्पित कर दी थी लेकिन ईश्वर को न कभी कोसा था और न ही किसी के आगे बेचारा बनने का प्रयास किया था | लेकिन समय को तो कुछ और ही मंज़ूर था | उसके विवाह के कुछ ही महीने बाद उसकी माँ गौरी एक दिन सोती ही रह गईं | अमन सकते में आ गया लेकिन उसके हाथ में कुछ भी न था | उसी वर्ष इन्होने तीन महत्वपूर्ण लोगों को खोया | माँ संघर्षों में साथ रहीं किन्तु जब उनके आराम का समय आया, वो बेटे के साथ नहीं थीं | क्रमश: अमन के घर तीन बेटियों ने जन्म लिया | गौरी की मृत्यु के समय अमन की पत्नी गर्भ से थी | पहली बिटिया का नाम सुगंधा रखा गया, अपनी पोती के लिए यह गौरी की कल्पना का नाम था जिसे बिना देखे ही वह इस दुनिया से चली गई थी | वही सुगंधा कला के क्षेत्र में अपने नाम की भाँति सुगंध फैला रही है | 

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