वो आह किसकी थी मनिष कुमार मित्र" द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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वो आह किसकी थी

सुबह करीब 4:00 बजे के आसपास अचानक मेरी आंख खुल गई, क्योंकि मुझे किसी की सिसकारियां किया सुनाई दे रही थी। और कोई लंबी आहें भर रहा हूं ऐसा महसूस हो रहा था। उठकर देखा आसपास तो मेरे अलावा और कोई नहीं था। पर महसूस हुआ यह तो मेरे अंतर मन की वेदना पीड़ाड़ा इन सिसकियों में पिछले 4 साल से अनवरत प्रकट हो रही है।

चलिए आज से करीब 4 साल पहले जब इस घटना की शुरुआत हुई, वहीं सेेे कहानी की शुरुआत करतेेे हैं। ( जब पहलीीीीी बा कि केसीीीी) जब पहली बार किसी के सिसक ने की आवाज आई थी लंबी आहें सुनाई दी थी।

वो दिन था जब मेरे पिताजी 4 फरवरी 1917 स्वर्गवासी हो गए थे, और उसके दाह-संस्कार के पश्चात अस्थि फूलों को लेकर में लेकर तर्पण विधि के लिए उनके देहावसान के 11 दिन चानोद संगम तीर्थ पर गये। जहां मां नर्मदा ओरसंग और गुप्त सरस्वती जी का संगम तीर्थ है। वहीं से यह सिलसिला अनवरत चल रहा है।

14 फरवरी 2017 सुबह के करीब 8:30 बजें होंगे हम चानोद बड़े भाई के साथ पहुंचे। पंडित जी के साथ मां नर्मदा के तट पर आए। पंडित जी ने तट पर बने पंडाल में तर्पण विधि शुरू करने से पूर्व मां नर्मदा में स्नान के लिए कहने पर मैं मैं मैं मां नर्मदा की धारा को देखकर अत्यंत दुखी हुआ क्योंकि क़रीब आधा फिट ही पानी था एवं बहुत सिकुड़ी हुई छोटी सी जलधारा बह रही थी।

एक डेढ़ मील का विशाल पट वाली यह नदी आज एक छोटे से झरने से भी छोटी हो गई। मां नर्मदा की इस दयनीय हालत देखकर मेरा अंतर मन बहुत दुखी हुआ। कहां सागर सी विशाल जल राशि अपने में संजोए रखने वाली मां नर्मदा आज बूंद बूंद पानी के लिए तरस रही है।

जिस नदी के प्रवाह में 12 महीने बड़ी नाव चलती थी आज पैदल चलकर नदी पार कर दे ऐसी सिकुड़ कर रह गई है। बस मैं यही सोच कर दुखी हो रहा था, तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास कोई खड़ा है। पर आसपास नजर फैलाई मुझे वहां मेरे अलावा कोई और नहीं दिखाई दिया, पर एहसास हो रहा था कि कोई मेरे पास जरूर है।

इतने में पंडित जी ने आवाज लगाई कितनी देर है जल्दी आ जाओ, मैं धोती बांध पंडाल में गया और तर्पण विधि शुरू हुई। पर एहसास जरूर बना रहा कि मेरे पास मेरे भाई के अलावा और भी कोई भी बैठा है, वो नजर नहीं आता पर बैठा जरूर है।

तर्पण विधि तो चालू थी पर मेरा मन मां नर्मदा के अस्तित्व पर एवं वर्तमान हालत पर सोच रहा था। इतने में वह अदृश्य व्यक्ति ने मुझसे बात करना शुरू किया मैं घबराहट में था तभी उस अदृश्य आवाज ने कहा कि डरो मत तुम जहां आए हो वह मैं ही हूं मां नर्मदा। आज मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं मेरे लाल।
मेरी हालत देखो तुम इंसानों ने मुझे बांध लिया और मैं अपने अस्तित्व की लड़ाई अकेले लड़ते लड़ते थक गई हूं। मां गंगा में स्नान करने से, मां यमुना का पान करने से, और मेरा दूस से सिर्फ वंदन करने से मनुष्य को मोक्ष मिलेगा। यह विधाता का वरदान आज अभिशाप में बदल रहा है।

जो मोक्षदायिनी मुक्ति दाता थी, आज वही बांधो की वजह से बंधन में बंध गईं हैं। जो मनुष्य जाति को पाप कर्म से मुक्ति दिलाती, आज खुद ही मुक्ति की याचना हमसे करती है। इससे बड़ी विडंबना और शर्मनाक बात हमारे लिए और क्या हो सकती है। अपने निजी स्वार्थों के लिए हम इन पवित्र नदी माताओं को भी बंधन में बांध रहे हैं , प्रदूषण कर रहे हैं। कई तरह के धार्मिक विधि-विधानो की आड़ में पूजा सामग्री एवं अन्य चीजों को इन मुक्ति दाई नदियों में डाल रहे हैं।

बस इसी तरह मेरे और मां नर्मदा के बीच निशब्द बात चल रही थी। और इस बीच तर्पण विधि पूर्ण हो चुकी थी। पंडित जी ने कहा अस्थि कलश एवं पिंड को नदी में प्रवाहित कर अपने पिताजी की मोक्ष की कामना करते हुए स्नान कर वापस आओ।

मैं अस्थि कलश एवं पिंड और अन्य पूजा सामग्री लेकर मैंने मां नर्मदा की जलधारा में प्रवेश किया। एहसास तो अभी भी हो रहा था कि कोई मेरे साथ साथ चल रहा है। मैं जलधारा में खड़ा सोच रहा था, तभी मां ने कहा तुम्हें इतना कहने के बाद भी यह सब सामग्री मुझ में प्रवाहित करके मेरी बातों को अनसुना करोगें।

मैं उधेड़बुन में था और सोच रहा था, मैं क्या करूं यह सब जल में तो प्रवावित नहीं करना चाहिए, इतना तो मनमे ठान लिया था, किन्तु इस अस्थि फूलों एवं पूजा सामग्री का क्या करूं।

ज्यादा देर होने के कारण पंडित जी और भाई मेरे पास आ चुके थे। और उनके कदमों की आहट से मेरे हाथ से अस्थि कलश एवं पिंड अन्य पूजा सामग्री हाथ से छूट गए। और मां नर्मदा के कहा बेटा तू ने भी वही किया जो और लोग करते हैं। मेरी आंख से आंसू और मां की आहे दोनों एक साथ बहने लगे।
आज यह कहानी लिखते हुए मैंने यह निश्चय किया कि मेरे मरने के बाद मेरे अस्थि फूलों एवं अन्य सामग्री नदी में प्रवाहित ना करें, ये मैं लिखित कर जाऊंगा। इतना निश्चिय करने से जैसे मेरे अंतर्मन को सांत्वना सी मिली। बरसों से कानों में गूंज रही सिसकारियां एवं आहें सुनाई देना बंद हुआ।

दोस्तों मित्रों यह कहानी कैसी लगी मेरे और अंतर्मन के बीच निशब्द वार्तालाप से भरी। आपकी प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक हूं कृपया कमेंट कीजिए।

✍️ मनिष कुमार "मित्र" 08, 02, 2021🙏