मातृभारती परिवार के दोस्तों आज मैं आपके लिए एक ऐसी गरीब और विधवा मां और बेटे की कहानी लेकर आया हूं इस कहानी को आप अंत तक पड़ेंगे तभी शीर्षक की यथार्थता समझ पाएंगे। आइए अब कहानी शुरू करते हैं और चलिए दोस्तों आप पढ़ना शुरू कीजिए ।
छोटे से गांव सूरजपुर में आज शहनाई की गूंज हवाओं में गुल रही है, गांव का माहौल कुछ ऐसा लग रहा है जैसे किसी लड़की की शादी हो और बारात आने वाली है। पूरा गांव दुल्हन की तरह सजा सजा सा लग रहा है। गांव की सभी छोटे बड़े बुजुर्ग के चेहरों पर खुशी और उमंग के भाव दिख रहे हैं। अरे क्यों ना खुश हो गांव के ग़रीब पर स्वमानी एवं खुद्दार मनोहर भाई की इकलौती बेटी सुंदरी का आज विवाह होने वाला है।
सुंदरी संस्कारी सुशील एवं शालीन उन्नीस साल की लड़की है। सबके साथ घुलमिल जाने वाली सुंदरी का आज हरिपुर के निवासी श्याम प्रसाद के सुपुत्र उपेंद्र सिंह से विवाह हों रहा है।यु तो श्याम प्रसाद जी गरीब खेत मजदूर ही है, परंतु संस्कारी एवं स्वमानी जरूर है। विवाह संपन्न हुआ और बारात दुल्हन को लेकर हरिपुर के लिए रवाना हो गई।
उपेन्द्र सिंह एवं सुंदरी का घर संसार हंसी खुशी से गुजर ने लगा। उपेन्द्र सिंह पूरा दिन खेतों में मजदूरी कर मेहनत की कमाई से अपना एवं पत्नी सुंदरी का पेट पाल रहा था। यूं तो तन से गरीब जरूरत थे पर दिल से खुशी और आनंद की उमंगों की अमीरी छाईं हैं। ऐसे हंसी खुशी के दिन गुजर रहे थे। और सुंदरी गर्भवती होने से उपेंद्र सिंह जैसी दुनिया का सबसे बड़ा सुख उसकी झोली में आया हो ऐसे खुश हो रहा था। समय बीतता गया और सुंदरी ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम मानव रखा पति पत्नी मानव को देख अपने सारी गरीबी दुख दर्द भूल ही जाते।
वक्त गुजरता गया और मानव करीब एक साल का हुआ होगा, और अचानक अकारण ही उपेंद्र सिंह नींद से सुबह जागा ही नहीं। सूरज सिर पर चढ़ाने पर भी उपेंद्र सिंह के ना जागने के कारण पत्नी सुंदरी को कुछ अजीब सा लगा।पता चला कि अब उपेंद्र इस दुनिया में नहीं रहा, सुंदरी के तो जैसे भाग फ़ूटे, बींस साल की जवान उम्र में विधवा हो गई। सबने कहा यह बच्चा मनहूस है,इसे छोड़ दे तू और नहीं शादी रचा कर अपना नया संसार शुरू कर। परंतु सुंदरी ने अपने बच्चे को ही अपना जीवन और उपेंद्र का अन्स मान कर दूसरी शादी से इनकार कर दिया।
मानव पढ़ लिख कर बड़ा हो चुका था और अच्छा बिजनेस कर आर्थिक रूप से सुखी संपन्न भी हों रहा।
मानव रोज ऑफिस जाने से पहले मां के पांव छूता और सुंदरी अपने बेटे मानव को कंकू का तिलक लगाकर आशीर्वाद देती। ऐसे ही सिलसिला चलता रहा मानव दिन-ब-दिन बिजनेस में प्रगति करता ही जा रहा था। पर सब दिन एक समान तो अभी नहीं होते। अचानक से मानव के दिन बदलने लगे, और बिजनेस में कुछ घाटा भी होने लगा। अब तक जो मानव मां के पैर छूकर कंकू का तिलक लगाता था ।अब वह बिना मां के पैर छुए एवं तिलक लगाए ऑफिस जाने लगा। सुंदरी के पूछने पर मानव ने बताया कि तू विधवा है , तेरा मुंह देखने से मेरे बिजनेस में अब घाटा हो रहा है। इसलिए आप मेरे ऑफिस जाने के समय मेरे सामने मत आया करो क्योंकि मां तुम मुझे मनहूस लग रही हो।
मानव के यह शब्द सुन सुंदरी के दिल पर जैसे वज्र्ह सा आघात लगा। उसने पूरी जवानी जिस बेटे के लिए कुर्बान की थी वही बेटा आज उसे मनहूस कह रहा है। फिर कुछ संभल कर मानव से बोली। बेटा जब तू 1 साल का था तब तेरे पिता इस दुनिया को छोड़ कर चले गए तब सभी रिश्तेदारों ने मुझे यह कहा था कि तू इस बच्चे को छोड़ यह बच्चा मनहूस है। और दूसरी शादी करके अपना नया जीवन शुरू करें। इस बच्चे के लिए अपनी जवानी अपना जीवन कुर्बान मत कर। जिसका मुंह कोई देखना नहीं चाहता था बेटा तेरे लिए तेरा मुंह देख देख कर लोगों के खेतों में मजदूरी कर तेरा पेट पाल कर बड़ा किया। इतनी सारी तकलीफ उलझने जमाने के ताने सुने तुझको मैंने मनहूस नहीं समझा।
और आज तेरे बिजनेस में कुछ घाटा होने पर मुझे मनहूस कह रहा है। जबकि मैंने तो पूरा जीवन अपना पति सब कुछ गवाया सिर्फ तेरे लिए। तेरा चेहरा देखकर जीने के लिए खुद को मजबूर करती रही।
अब बताओ बेटे मनहूस कौन है ......?
जो पैदा होते ही अपने बाप को गवा बैठा और मैं अपना पति। या फिर तेरे बिजनेस में हुआं घाटा जिसकी वजह तुम मुझे कह रहा है बता तू ही अब बता, कौन मनहूस हैं,.....?
( इस कहानी में सभी पात्र एवं जगह के नाम काल्पनिक है किसी व्यक्ति विशेष या स्थल से साम्यता सिर्फ संयोग माना जाएगा)
{ ✍️मनिष कुमार "मित्र" 🙏}