तहखाने का राज़ Neerja Pandey द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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तहखाने का राज़

बचपन में तहखाने कि कई कहानियां सुनी थी। साथ ही उनसे जुड़े रहस्य के बारे में भी। किसी तहखाने का कोई रहस्य तो किसी का कोई। मन में इसे लेकर कई विचार थे। कुछ डरावने तो कुछ जिज्ञासु। दिल में एक ख्वाहिश थी कि काश...! कभी मौका मिलता तहखाना देखने का उसमें जाने का।
मेरे एक कजिन मौसी की शादी पड़ गई। उसमे हम सभी को बहुत आग्रह से बुलाया गया था। मै जाने के लिए कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी कि सुना था उनके घर में तहखाना है।
शादी के एक दिन पहले हम गए। वहां गहमागहमी का माहौल था। सभी तैयारियो में व्यस्त थे। मैं मौका ढूंढ रही थी कि पता लगा लगाऊं आखिर तहखाना है कहां? मैंने उन मौसी जी से पूछा, "मौसी आपके घर में तहखाना है, मम्मी बता रही थी।"
मौसी हसने लगी और बोली, "हां.. है ना..उसमे शैतान बच्चों को बंद कर देते है। तुम शैतानी मत करना वरना तुम्हें भी बंद कर देंगे। " इशारा करके अपने कमरे में लगे छोटे से खिड़की नुमा दरवाजे को दिखाया।
अब मैं एक मिनट के लिए भी उस कमरे से बाहर नहीं जाती। मौके की प्रतीक्षा में रहती की कब मुझे एकांत मिले और मै देखूं की वहां क्या है?
बस कुछ ही घंटे बाद मौका लग गया। मौसी जी को सभी औरते नहलाने के लिए ले गई। मौसी मुझे हिदायत देकर की कमरे का ध्यान रखना चली गई।
क्योंकि कमरे में शादी का ढेर सारा कीमती समान भी रखा था।
मौसी के जाते ही मैं अपनी जासूसी में लग गई। धीरे से कमरे का दरवाजा चिपकाया और परदे के पीछे बने छोटे से दरवाजे की सांकल खोलने का प्रयत्न करने लगी। बड़ी कोशिश के बाद वो खुला। खुलते ही नीचे जाती सीढ़ियां दिखने लगी। मैं हिम्मत करके पास लगे स्विच को ऑन किया। ऑन करते ही उजाला फैल गया और दर छू मंतर हो गया। अब मैं आराम से सीढ़ियां उतरते हुए नीचे कमरे में आ गई।
ढेर सारा सामान तहखाने में रक्खा था। कई पुरानी नक्काशीदार आलमारियां रक्खी थी। सुंदर सा खुला भी रक्खा था। मै उस पर बैठ गई, और धीरे - धीरे
झूलने लगी। पुराना झूला ची ची की आवाज के साथ हिलने लगा।
मैं आश्वस्त हो गई की तहखाना भी आम कमरे जैसा ही एक कमरा होता है।
मैं अपनी इस खोज पर खुश थी कि अब अपने सब दोस्तों से बताऊंगी कि तहखाने में कुछ भी डरने जैसा नहीं होता है।
पर मेरे आनंद का ये पल बहुत ही छोटा था। अभी कुछ ही देर हुई थी कि
लाइट चली गई। बल्ब के बंद होते ही कमरे में घुप्प अंधेरा छा गया।
अंधेरा होते ही मेरे होश हवास गुम हो गए। मैं डर के मारे घबरा गई की अब क्या करूं ? अपने आप पर कुछ काबू कर धीरे से उठी और सीढ़ियों कि और जाने लगी। तभी वहां दो चमकती आंखों ने मेरे सारे हौसले को ध्वस्त कर दिया। मुझे तहखाने की सारी डरावनी कहानियां सच लगने लगी। झूले की चूं- चूं (बिल्ली जो कमरे में दुबक कर बैठी थी मेरे पीछे पीछे वो भी आ गई थी) उसकी चमकती आंख और घुप्प अंधेरा।
मैं डर से पूरी ताक़त से चीख मार कर गिर पड़ी और बेहोश ही गई। मेरी चीख सुन कर कमरे के पास से गुजर रहे मामा जी दौड़ कर आए। कमरे में ना देख तहखाने में टार्च लेकर मुझे ढूंढते हुए आए। मै बेहोश थी। मुझे गोदी में लेकर ऊपर कमरे में आए। पानी के छिटो से मुझे होश आया तो मै मां से लिपट कर रोने लगी।
मां ने मुझे चुप कराया। मौसी ने मुझे बहुत समझाया कि डरावना कुछ भी नहीं। फिर मुझे तहखाने में ले जाकर हर चीज दिखाई। तब मेरा डर गया मन से। फिर मैं तहखाने से मुझे कभी भय नहीं लगा।