अनैतिक - २३ suraj sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अनैतिक - २३

पापा भी घर आ चुके थे, हम सब ने खाना खाया और मै अपने रूम में आ गया.. हाँ मुझे बुरा लगा था निकेत को ऐसे कशिश का हात पकड़ कर बात कटे हुए, पर वो पति था उसका और मै सिर्फ एक दोस्त, वो भी ४ महीने पहले मीला हुआ. २ दिन से नींद नहीं हुई थी, जैसे ही बेड पर लेता आँखे बंद होने लगी, रीना का मेसेज आया पर मै अभी कुछ बात करने की हालत में नहीं था, मैंने फ़ोन साइड में रखा और सो गया, जब सबेरे उठा तो कई सारे कॉल्स और मेसेज आये हुए थे रीना के और कशिश के थे पर ना जाने क्यूँ अब मेरा मन नहीं था की मै उस से बात करू इसीलिए मैंने बिना कुछ रिप्लाई किए अपने काम में लग गया, आज शनिवार था..सोचा कही घूम कर आते है पर बाहर जाने में तो खतरा था कोरोना से ज्यादा तो पुलिस वालो का डर था, और हो भी क्यों ना रोज पुलिस की गाडी घुमती और कहती,

बाहर निकले तो तोड़ देगे तुम्हारे शरीर का कोना कोना,

पर होने न देंगे तुमको कोरोना ..

भला ऐसे भी कोई डरता है क्या, मैंने अपने दोस्त केशव को कॉल किया, और हम दोनों ने कही जाने का प्लान बनाये, मै घर से निकलते वक़्त ही कह दिया था की आने में देर होगी, इसीलिए कोई टेंशन नहीं था.

वो मेरे घर आ गया था, मैंने पापा की कार ली और हम सिटी के बाहर वाले जंगल में घुमने चले गये, हमारी किस्मत अच्छी थी की रास्ते में एक भी पुलिस वाला नहीं मिला पर मुझे डर था की वापस घर जाते वक़्त अगर कोई पुलिस वाले ने देख लिया तो मुश्किल हो जायेगी, इसीलिए पूरा दिन हम बहोत घुमे और बाते करनेe बिता दिया, इतने दिनों बाद जो मिले थे।। हमने खाने का बंदोबस्त कर लिया था...मै शाम होने की राह देख रहा था ताकि रात के अँधेरे में घर के लिए निकलू, जंगल बड़ा और शहर से बाहर होने के कारन फ़ोन का नेटवर्क नहीं आता था, हम शाम के ७ बजे तक निकले और घर आते आते रात के ९ बज गये थे, एक बार फिर किस्मत ने मेरा साथ दिया कोई पुलिस वाला नहीं था, मैंने पहले केशव को उसके घर छोड़ा और धीरे धीरे अपने घर जाने अलग

जैसे ही घर पहोचा, माँ, पापा, अंकल, आंटी, रीना सब बाहर बाते कर रहे थे.. अक्सर वीकेंड पर हमारी और रीना की फॅमिली ऐसी ही ठंडी हवा में घर के सामने बैठ कर बाते करते रहते, कशिश को वील चेयर पर लेकर निकेत उसके पीछे खड़ा था, मुझे उसे देख कर गुस्सा तो बहोत आ रहा था पर मुझे लगा शायद उसे उसकी गलती का एहसास हो गया है, अब वो कशिश को खुश रखेगा पर कहते है ना हर चमकती हुइ चीज हिरा नहीं होती. मै गाडी पार्क कर रहा था सबकी नज़रे मुझ पर ही थी, रीना मेरे गाड़ी के पीछे आकर मेरे गाडी से बहार आने का वेट कर रही थी और शायद कशिश भी।। उसकी भी नज़रे मुझे देख रही थी पर मैंने गाडी पार्क की और तभी मुझे जर्मनी से मेरी फ्रेंड लीझा का कॉल आ गया.

मै भूल ही गया था आज उसका जन्मदिन था, वो सारे फ्रेंडस उसका बर्थडे मना रहे थे, लीझा ने मुझे विडियो कॉल लगाया था, मै गाड़ी से उतरते हुए उस से बाते करने लगा, अभी भी सब मुझे ही देख रहे थे...

"हे रोन,आफ्टर लॉन्ग टाइम? हाउ आर यू? यू फॉरगॉट माय बर्थडे?

सॉरी फॉर थ्याथ, ऍम बिजी विथ सम वर्क..

और मै बात करते हुए घर में आ गया, मैंने कार की चाबी टेबल पर रखी और सीधा रूम में आ गया, थोड़े देर बार सब अन्दर आ गये, आज मुझे याद है माँ ने कहा था की शाम में रीना की फॅमिली खाने पर आएगी..

मै हॉल में जा ही रहा था की रीना मेरे रूम के दरवाज़े पर आ गयी ..

अब तक नाराज़ है?

मैंने कहा, नहीं..

तो तू बात क्यूँ नहीं कर रहा, मैंने इतने मेसेगे भेजे, कॉल किये तूने ना कॉल का जवाब दिया ना ही मेसेज का

ऐसा कुछ नहीं बस २ दिन से नींद नहीं थी तो जल्दी सो गया और फिर आज थोडा बाहर जान था, सबेरे जल्दी निकल गया...चल खाना खाते है

हम सब टेबल पर बैठ गये, निकेत नहीं था शायद उसे किसी काम से बहार जाना पड़ा या फिर उसे अपने किये हुए काण्ड पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी