अनैतिक - २४ suraj sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अनैतिक - २४

टेबल पर २ चेयर खाली थी एक कशिश के साइड वाली और दूसरी अंकल के साइड वाली, मै अंकल के साइड वाली चेयर पर जाकर बैठ गया, कशिश की आँखे लगातार मेरे बदले स्वभाव का पीछा कर रही थी, पर मैंने एक बार भी उसकी तरफ नहीं देखा, मै जानता था जो कुछ हुआ उसमे उसकी गलती नहीं थी पर मै निकेत को उसके इतने करीब देख कर अन्दर ही अन्दर उस पर नाराज़ होने लगा, हाँ वो पति था उसका पर....नहीं..ये पर का जवाब मेरे पास भी नहीं था... कशिश ने मुझे खाते वक़्त भी कई सारे मेसेज किये, सॉरी, क्या हुआ?, कुछ गलती हुए क्या मुझसे? पर मैंने पड़कर भी कोई जवाब नहीं दिए और मैंने टीवी लगा ली...

माँ ने मुझे देखते हुए कहा-"क्या हुआ है तुझे, ठीक तो है तू?

हाँ क्यूँ?

२ दिन से इतना खामोश हो गया है..

कुछ नहीं बस वापस जाने की तैयारी कर रहा हूँ..

क्या?कब जा रहा? फ्लाइट्स शुरू हो गयी? पापा ने पूछा..

हाँ पापा, ऑफिस से कॉल्स भी आ रहे और मुझे आकर ५ महीने भी हो गये अब जाना तो पड़ेगा।।

पर कब जा रहा?

पता नहीं टिकट देख रहा हूं शायद १५-२० दिन में निकल जाऊंगा...

ये सुनकर सब लोग एकदम चुप हो गये, आखिर अंकल ने चुप्पी तोड़ी,

एक बार फिर थैंक यू बेटा जिस तरह तूने कशिश को हॉस्पिटल ले जाने में मदद की ..

वो आगे कुछ बोल पाते मैंने ही कह दिया कोई बात नहीं अंकल

सब आराम से बाते कर के खाना खा रहे थे मैंने अपना खाना पूरा किया और रूम में आ गया।। मुझे बुरा भी बहोत लग रहा था कि मुझे कशिश के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए, उसने अपने ज़िन्दगी में पहले ही कितना कुछ साहा है, मै जैसे ही उसे मेसेज करने के लिए फोन निकाल सामने रीना और कशिश मेरे रूम की ओर आ रहे थे,..अब मै थोड़ा नॉर्मल हो गया. हमने थोड़ी बाते की फिर मैंने लूडो निकाला, हम सब लूडो खेलने लगे, कशिश के दवाई लेने का वक़्त हो गया था, रात के खाने के बाद उसे एक गोली लेनी थी, रीना उसके लिए पानी लाने गई, अब रूम में सिर्फ कशिश और मै ही थे, रीना जैसे ही कमरे से बाहर गई, मै भी बेड से उठकर थोड़ा दूर जाने लगा पर कशिश ने मेरा हात पकड़ लिया,

किस बात का गुस्सा है तुम्हे? वो पति है मेरे, मै उन्हें मना तो नहीं कर सकती।। वो जब चाहे मेरे रुम में आ सकता है, और मुझसे बात ही तो कर रहे थे वो।। पहली बार उसने मुझे सॉरी बोला, अच्छे से बात की।।वो आगे बोल पाती तब तक रीना पानी लेकर आ चुकी थी।।

कशिश की बाते मेरे दिल और दिमाग में घूमने लगी, ऐसा कैसे बोल सकती है वो, हां मुझे बुरा लगा पर उसने गलत भी तो नहीं कहा था, मै होता कौन हूं उनके बीच में बोलना वाला, शायद मै गलत था जो उसकी फिक्र कर रहा था, ये सब सोच ही रहा था कि तभी रीना ने कहा,

"तेरी बारी है खेल ना जल्दी", यार आज कल तू किसके सपनों में खो जाता है बार बार।।

हमने गेम पूरा किया, वो एक और गेम के लिए कहने लगे पर मैंने नींद आने का बहाना कर दिया वो दोनो चले गए, कशिश की बाते अब भी मेरे दिमाग में ऐसी घूम रही थी, मैंने तभी सोच लिया था कि आज के बाद उस से बिल्कुल बात नहीं करूंगा, मैंने उसका नंबर डिलीट कर दिया।। २-३ दिन उसके मेसेज आ रहे थे, पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया, शायद अब वो भी समझ गई थी कि मुझे उस से कोई बात नहीं करनी. उसके भी मेसेज आने बंद हो गए।।

बुधवार का दिन था, रोज की तरह मै अपनी एक्सरसाइज कर के छत पर से नीचे आ रहा था, ये ही कोई सबेरे के १० बजे होंगे।। तभी मैंने देखा अंकल कार बाहर निकाल रहे थे शायद कहीं जाने के लिए, पीछे कशिश, आंटी और रीना खड़े थे, मै समझ गया, वो कशिश को ड्रेसिंग कराने हॉस्पिटल ही जा रहे होगे, खैर मुझे अब कोई फर्क नहीं पड़ता था. मैंने उन्हें बिना देखे नीचे उतरने लगा तभी अंकल ने आवाज़ लगाई,

"बेटा सुन ना उस दिन के जैसा कशिश को उठाकर पीछे वाली सीट पर बिठा दे"

मै उन्हें मना तो नहीं कर सकता था इसीलिए मै गया और रीना से कहा कशिश का हात पकड़ो उसने हात पकड़ा फिर मैंने आंटी से कहा उसका पैर पकड़ो और मै सिर्फ वील चेयर पकड़ कर खड़ा था उन दोनों ने उसे धीरे से कार में लिटा दिया, कशिश मुझे देख रही थी, शायद उसने सोचा कि मै उसे उठाकर बिताऊंगा।।