चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 51 Suraj Prakash द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 51

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

51

अगले दिन उसने मुझे फोन किया कि क्या मैं उसे लंच कराऊंगा। मैंने मना कर दिया। लेकिन जैसे ही मेरा दोस्त और मैं होटल से बाहर निकले, वह बाहर ही खड़ी थी और उसने फर के कपड़े और न जाने क्या क्या पहना हुआ था। इसलिए हम तीनों ने एक साथ लंच लिया और उसके बाद हम मालमाइसन गये जहां पर नेपोलियन द्वारा तलाक दिये जाने के बाद जोसेफाइन रही थी और बाद में वहीं मरी थी। ये एक खूबसूरत घर था जिसमें जोसेफाइन ने आठ आठ आंसू बहाये थे। ये एक अंधियारा, पतझड़ का दिन था जो हमारी परिस्थिति की उदासी से मेल खाता था। अचानक मैंने पाया कि मेरी महिला मित्र गायब है; तब मैंने देखा कि वह पार्क में पत्थर की बेंच पर बैठी रोये जा रही है - ऐसा लगा कि पूरे माहौल ने उस पर असर डाल दिया था। अगर ये सब मेरी वज़ह से हुआ होता तो मुझे अफसोस हुआ होता लेकिन मैं उसके इजिप्शियन प्रेमी को नहीं भूल पाया। इस तरह से हम पेरिस में जुदा हो गये और मैं लंदन के लिए चल दिया।

लंदन वापिस आने के बाद मैं प्रिंस ऑफ वेल्स से कई बार मिला। पहली बार उनसे मेरी मुलाकात मेरी एक मित्र लेडी फर्नेस की मार्फत बियारिट्ज में हुई। कोचेट, टेनिस खिलाड़ी, दो अन्य मित्र और मैं एक लोकप्रिय रेस्तरां में बैठे थे जब प्रिंस और लेडी फर्नेस आये।

लेडी फर्नेस ने हमारी मेज पर एक पर्ची भेजी और जानना चाहा कि क्या हम बाद में रशियन क्लब में उनसे मिलना चाहेंगे।

मेरा ख्याल है, ये एक छोटी सी औपचारिक मुलाकात थी। जब हमारा परिचय करा दिया गया, महामहिम प्रिंस ने ड्रिंक्स का आर्डर दिया। तब वे खड़े हो गये और लेडी फर्नेस के साथ नृत्य करने लगे। जब प्रिंस मेज़ पर वापिस आये, तो मेरी बगल में बैठे और क्लास लेने लगे:

"आप बेशक अमेरिकी हैं न" उन्होंने पूछा।

"नहीं, मैं अंग्रेज़ हूं।"

वे हैरान नज़र आये, "आपको अमेरिका में रहते कितना अरसा हो गया है?"

"1910 से।"

"ओह" उन्होंने सोचते हुए सिर हिलाया, "युद्ध से पहले से?"

"मेरा ख्याल है।"

वे हँसे।

उस रात बातचीत के दौरान मैंने उनसे कहा कि चालियापिन मेरे सम्मान में एक पार्टी दे रहे हैं। एकदम लड़कपन के तरीके से प्रिंस ने कहा कि वे भी उस पार्टी में आना चाहेंगे।

"ज़रूर, महाशय" मैंने कहा,"चालियापिन आपको अपने बीच पाकर गौरव अनुभव करेंगे और प्रसन्न होंगे।" मैंने उनसे अनुमति मांगी कि इसकी व्यवस्था कर लूं।

उस शाम प्रिंस ने उस वक्त मेरा दिल जीत लिया जब वे चालियापिन की मां के साथ बैठे। वे अस्सी पार कर चुकी बुढ़िया थीं। मां जी के चले जाने तक वे उनके पास ही बैठे रहे। बाद में वे हमसे आ मिले और मौज मस्ती करने लगे।

और अब प्रिंस ऑफ वेल्स लंदन में थे और उन्होंने मुझे देहात में अपने घर फोर्ट बेल्डेवियर में आमंत्रित किया था। ये एक पुराना सा किला था जिसे नया रूप दिया गया था और यूं कहें कि साधारण रुचि से सजाया गया था। लेकिन खाना पीना उत्कृष्ट था और प्रिंस बहुत ही प्यारे मेजबान थे। उन्होंने मुझे अपना घर दिखाया; उनका बेडरूम साधारण था और उसमें आधुनिक लाल रेशम के पर्दे और चादरें वगैरह थे। बिस्तर पर सिर की तरफ राजसी प्रतीक बना हुआ था। दूसरा बेडरूम देखकर मैं हैरान रह गया। चार स्तंम्भ वाले बिस्तर पर गुलाबी और सफेद आकृतां बनी थीं और हरेक स्तम्भ के ऊपर तीन गुलाबी पंख बने हुए थे। तब मुझे याद आया; बेशक, ये पंख प्रिंस के राजसी कोट की बांह पर भी थे।

उस शाम किसी ने एक ऐसे खेल के बारे में बताया जो अमेरिका में प्रचलित था। इसे दो टूक अनुमान अर्थात "फ्रैंक एस्टीमेशन" कहते थे। प्रत्येक मेहमान को एक कार्ड दे दिया जाता जिस पर दस गुण लिखे होते: आकर्षण, बौद्धिकता, व्यक्तित्व, सेक्स अपील, अच्छा चेहरा-मोहरा, ईमानदारी, हास्य बोध, परिस्थिति के अनुरूप खुद को ढालने की क्षमता और इसी तरह से दूसरे गुण। मेहमान को कमरे में से जाना होता और उससे पहले अपनी विशेषताओं के बारे में दो टूक अनुमान अपने कार्ड पर दर्ज करना होता और अपने प्रत्येक गुण के लिए अधिकतम एक से दस तक अंक देने होते। मिसाल के तौर पर मैंने अपने आपको हास्य बोध के लिए सात, सेक्स अपील के लिए छ:, अच्छे चेहरे के लिए छ:, खुद को परिस्थिति के अनुसार ढालने की क्षमता के लिए आठ, ईमानदारी के लिए चार अंक दिये। इस बीच, हरेक मेहमान उस व्यक्ति के बारे में अपना मूल्यांकन देता जो कमरे से बाहर गया होता और गुप्त रूप से उसके कार्ड पर अंक दर्ज करता। तब अमुक व्यक्ति भीतर वापिस आता और वह अंक पढ़ता जो उसने स्वयं को दिये होते, और एक प्रवक्ता वे सारे अंक ज़ोर से पढ़ कर सुनाता जो मेहमानों ने उसे दिये होते और इस तरह देखा जाता कि दोनों तरह के अंकों में कितना फर्क है।

जब प्रिंस का नम्बर आया तो उन्होंने बताया कि उन्होंने सैक्स अपील के लिए तीन, दिये हैं, मेहमानों ने उन्हें चार के औसत से अंक दिये थे। मैंने पांच दिये थे, किसी किसी के कार्ड पर उन्हें सेक्स अपील के लिए सिर्फ दो अंक दिये गये थे। अच्छे चेहरे के लिए प्रिंस ने खुद को छ: दिये थे, मेहमानों का औसत आठ का था और मैंने उन्हें सात दिये थे। आकर्षण के लिए उनके खुद के अंक पांच थे, मेहमानों ने आठ दिये थे और मैंने भी उन्हें आठ ही अंक दिये थे। ईमानदारी के लिए प्रिंस ने अपने आपको अधिकतम दस अंकों से नवाजा था, मेहमानों का औसत साढ़े तीन का था और मैंने उन्हें चार अंक दिये थे। प्रिंस नाराज़ हो गये; "मेरा ख्याल है, मेरे पास मेरा सबसे अच्छा गुण ईमानदारी ही है," वे बोले।

अपने बचपन के दिनों में मैं मैनचेस्टर में कई महीने रहा था। और अब चूंकि मेरे पास करने को कोई काम नहीं था, मैंने सोचा, जल्दी से एक ट्रिप मानचेस्टर का लगा लिया जाये और उन जगहों को देखा जाये। मनहूसियत के बावजूद मानचेस्टर के लिए मेरे मन में रूमानी अपील थी; कोहरे और बरसात की धुंधली रौशनी की तरह कुछ; शायद ये लंकाशायर की किचन की आग की स्मृति बची रही हो या शायद वहां के लोगों की भावना काम कर रही हो। इसलिए मैंने एक लिमोज़िन किराये पर ली और उत्तर की तरफ चल पड़ा।

मॉनचेस्टर जाते समय मैं रास्ते में स्ट्रैटफोर्ड-ऑन-एवॉन में रुका। इस जगह मैं कभी नहीं आया था। मैं शनिवार की रात देर से पहुंचा था और खाना खाने के बाद यूं ही टहलने के लिए निकला। मैं उम्मीद कर रहा था कि शेक्सपीयर की कुटिया खोज लूंगा। काली अंधियारी रात थी लेकिन मैं अन्तर्प्रेरणा से एक गली में मुड़ा और एक घर के बाहर रुक गया, माचिस की तीली जलायी और बोर्ड देखा,"शेक्सपीयर कॉटेज"! इसमें कोई शक नहीं कि किसी दयालु आत्मा ने, शायद महाकवि की ही आत्मा ने मुझे रास्ता दिखाया था।

सवेरे आर्चीबाल्ड फ्लॉवर, स्ट्रैटफोर्ड के मेयर होटल में आये और मुझे शेक्सपीयर की कॉटेज में घुमाया। मैं किसी भी तरह से इस कॉटेज से महाकवि को नहीं जोड़ पाता; कि इस तरह का मस्तिष्क कभी यहां रहा होगा या उसकी शुरुआत यहां से हुई होगी। ये बात अविश्वसनीय सी लगती है। इस बात की आसानी से कल्पना की जा सकती है कि किसी किसान का बेटा लंदन में बसने चला जाये और वहां पर एक सफल अभिनेता और थियेटर का मालिक बन जाये; लेकिन उसके लिए महाकवि और नाटककार बनना, और विदेशी न्यायालयों की, पादरियों की और राजाओं की इतनी विशद जानकारी रखना मेरे गले से नीचे से नहीं उतरता। मुझे इस बात की परवाह नहीं है कि शेक्सपीयर की रचनाएंं किसने लिखीं, बेकन ने, साउथम्पटन ने या रिचमण्ड ने, लेकिन मैं इस बात पर यकीन नहीं कर सकता कि वह स्ट्रैटफोर्ड का छोकरा था। उन रचनाओं को जिसने भी लिखा, उसका राजसी नज़रिया था। व्याकरण के लिए उसका बिल्कुल भी परवाह न करना उसके राजसी नज़रिये का, ईश्वरीय मस्तिष्क ही परिचायक हो सकता है। इसके अलावा, कॉटेज को देख लेने के बाद, उनके बेसिलसिलेवार बचपन के बारे में स्थानीय रूप के छिटपुट जानकारी पा लेने के बाद और उनके भदेस नज़रिये के बारे में पता चलने के बाद मैं इस बात पर विश्वास ही नहीं कर सकता कि उनका इस तरह से कायान्तरण हुआ होगा कि वे अब तक के सबसे बड़े कवि बन गये। कितने भी महान रचनाकार की कृतियों से आप गुज़रें, आपको उनकी विनम्र शुरुआत के चिह्न कहीं न कहीं मिल ही जाते हैं लेकिन शेक्सपीयर में उनकी ज़मीन के निशान कहीं नहीं नज़र आते।

स्ट्रैटफोर्ड से मैं मोटर में मानचेस्टर की तरफ चला और दोपहर को लगभग तीन बजे पहुंचा। रविवार का दिन था और मानचेस्टर सुनसान नज़र आ रहा था। गलियों में एक भी आदमी चलता फिरता नज़र नहीं आ रहा था। इसलिए मैं खुशी खुशी अपनी कार में वापिस आया और ब्लैकबर्न के अपने रास्ते पर चल दिया।

शरलोक होम्स नाटक के साथ एक बच्चे के रूप में यात्राएं करते हुए ब्लैकबर्न शहर मेरी पंसदीदा जगह हुआ करती थी। मैं एक छोटे से पब में रहा करता था और मुझे खाने और रहने की सुविधा चौदह शिलिंग प्रति सप्ताह की दर से मिली हुई थी। जब मैं खाली होता तो उनकी छोटी-सी बिलियर्ड मेज पर खेला करता। बिलिंगटन, इंगलैंड के जल्लाद भी अक्सर उस जगह पर आया करते और मैं ये शेखी बघारा करता था कि मैंने उनके साथ बिलियर्ड्स खेली है।

जिस वक्त हम ब्लैकबर्न में पहुंचे, हालांकि अभी पांच ही बजे थे लेकिन काफी अंधेरा हो चला था। मुझे अपना पब मिल गया और मैंने बिना पहचान में आये एक ड्रिंक लिया, पब के मालिक बदल चुके थे लेकिन मेरी पुरानी दोस्त बिलियर्ड्स की मेज अभी भी वहीं थी।

इसके बाद मैं अंधेरे में रास्ता तलाशता हुआ बाजार के चौराहे पर पहुंचा। वहां तीन चार एकड़ का इलाका था और इसे रौशन करने के लिए तीन या चार स्ट्रीट लैम्प ही काफी होते। वहां पर कई समूहों में लोग राजनैतिक वक्ताओं को सुन रहे थे। यह वह वक्त था जब इंगलैंड में मंदी की बुरी हालत थी। मैं एक समूह से दूसरे समूह में जाता रहा और उनके भाषण सुनता रहा। कुछ वक्ता तीखेपन से और कड़ुवाहट घोलते हुए बोल रहे थे; एक वक्ता समाजवाद की बात कर रहा था, दूसरा साम्यवाद की विरुदावली गा रहा था और तीसरा डगलस योजना की बात कर रहा था जो दुर्भाग्य से इतनी जटिल थी कि औसत कामगार के पल्ले ही नहीं पड़ रही थी। बैठक के बाद जो छोटे छोटे समूह बन गये थे, उन्हें सुनते हुए मैं हैरान हुआ कि एक पुराना विक्टोरिया कालीन कन्जर्वेटिव पार्टी का आदमी अपने विचार व्यक्त कर रहा था। उसने कहा,"इंगलैंड के साथ मुसीबत ये है कि बाहरी मदद से इंगलैंड बरबाद हो रहा है।" उस अंधेरे में मैं अपनी दो कौड़ी की राय देने से अपने आपको नहीं रोक पाया, इसके लिए ज़ोर से बोल पड़ा,"बिना बाहरी मदद के इंगलैंड ही नहीं रहेगा"। मेरी बात के समर्थन में कई लोगों ने हैय, हैय करके आवाज़ उठायी।

राजनैतिक नज़रिया पागलपन से भरा था। इंगलैंड में लगभग चालीस लाख लोग बेरोजगार थे और ये संख्या बढ़ती जा रही थी। इसके बावजूद लेबर पार्टी के पास कंजर्वेटिव पार्टी से अलग हट कर देने के लिए कुछ भी नहीं था।

मैं वूलविच की तरफ निकल गया और वहां पर मिस्टर कनिंघम रीड का चुनावी भाषण सुना। वे उदारवादी प्रत्याशी की तरफ से बोल रहे थे। हालांकि वे राजनैतिक कुतर्क के बारे में बहुत कुछ बोल रहे थे, उन्होंने कोई वायदा नहीं किया और न ही उस चुनाव क्षेत्र पर कोई प्रभाव ही छोड़ा। मेरे पास ही बैठी एक युवा कॉकेनी लड़की चिल्लायी,"इस बकवास को तो आप रहने ही दीजिये। आप हमें ये बताइए कि चालीस लाख बेरोज़गारों के लिए आप क्या करने जा रहे हैं। उसके बाद ही हम तय करेंगे कि आपकी पार्टी को वोट दिया जाये या नहीं।"

अगर वह लड़की आम राजनैतिक कार्यकर्ता का उदाहरण थी तो इस बात की उम्मीद थी कि लेबर पार्टी चुनाव जीत जाती। मैंने ये सोचा लेकिन मैं गलती पर था। रेडियो पर स्नोडेन के भाषण को सुन लेने के बाद ये कन्जर्वेटिव वालों के लिए रुख बदल देने वाला मामला था और स्नोडेन के लिए अमीरों का पद। इस तरह से मैंने जब इंगलैंड छोड़ा तो कन्जर्वेटिव पार्टी आ रही थी और जब अमेरिका पहुंचा तो वहां की कन्जर्वेटिव पार्टी की सरकार बाहर का रुख कर रही थी।

छुट्टियों का सबसे बड़ा मज़ा खालीपन होता है। मैं यूरोप के रिजार्टस् पर बहुत दिनों तक भटकता रहा था। और मैं जानता था, क्यों? मेरे पास कोई मकसद नहीं था और कुंठित था। फिल्मों में आवाज़ के आ जाने के बाद मैं अपनी भावी योजनाओं के बारे में तय नहीं कर पा रहा था। हालांकि सिटी लाइट्स बहुत सफल फिल्म रही थी और उसने उस वक्त की सवाक फिल्मों की तुलना में अधिक कारोबार किया था, मैंने सोचा कि एक और मूक फिल्म बनाना अपने हाथ बांध लेने जैसा होगा और मेरे मन में यह डर भी बैठा हुआ था कि मुझ पर पुराने फैशन का होने का ठप्पा लग जायेगा। हालांकि एक अच्छी मूक फिल्म अधिक कलात्मक होती। मुझे ये बात स्वीकार करनी पड़ी कि आवाज में चरित्र अधिक जीवंत हो उठते हैं।

बीच बीच में मैं सवाक फिल्म बनाने की संभावनाओं के बारे में सोचने लगता। लेकिन इस विचार से ही मुझे कोफ्त होने लगती क्योंकि मैं इस बात को जानता था कि मैं वहां पर अपनी मूक फिल्मों की उत्कृष्टता को कभी भी हासिल नहीं कर पाऊंगा। इसका मतलब ये होता कि मुझे अपने ट्रैम्प चरित्र को हमेशा के लिए छोड़ देना पड़ता। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि ट्रैम्प बात भी तो कर सकता है। इसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था, क्यों कि जहां उसने पहला शब्द बोला कि वह एकदम दूसरे व्यक्ति में परिवर्तित हो जायेगा। इसके अलावा, वह वह सांचा, वह मैट्रिक्स, जिसमें उसका जन्म हुआ था वह उतना ही चुप्पा था जिस तरह के चीथड़े वह पहनता था।

ये ही उदास करने वाले ख्याल थे कि जो मेरी छुट्टियों को बढ़ाये जा रहे थे। लेकिन मेरी अंतरात्मा मुझे लगातार कोंचती रहती थी कि "हॉलीवुड वापिस चलो और काम करो!"

उत्तरी इंगलैण्ड की अपनी ट्रिप के बाद मैं लंदन में कार्लटन में लौटा और न्यू यार्क होते हुए कैलिफोर्निया वापिस जाने के लिए आरक्षण आदि करवाने के बारे में सोचने लगा। तभी सेंट मौरिट्ज से आये डगलस फैयरबैंक्स के तार ने मेरी योजना को ही बदल डाला। तार में लिखा था,"सेंट मौरिट्ज चले आओ। हम तुम्हारे आगमन पर नये हिमपात का आदेश दे देंगे। तुम्हारा इंतज़ार रहेगा। प्यार, डगलस।"

मैंने अभी तार पढ़ा ही था कि दरवाजे पर हल्की सी ठक ठक हुई। मैंने सोचा कि वेटर होगा इसलिए कह दिया, "आ जाओ। इसके बजाये, कोटे द'अजूर वाली मेरी महिला मित्र का चेहरा नज़र आया। मैं हैरान हुआ, चिड़चिड़ाया और हार मान ली, "आ जाओ।" मैंने ठंडेपन से कहा।

हम हैरोड्स में शॉपिंग के लिए गये और स्कीइंग का साजो-सामान खरीदा। तब हम बाँड स्ट्रीट में ज्वेलरी की दुकान में गये और एक ब्रेसलेट खरीदा। ब्रेसलेट पा कर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। एक या दो दिन की देरी से हम सेंट मॉरिट्ज पहुंचे। वहां डगलस फेयरबैंक्स को देख कर मेरा सीना चौड़ा हो गया। हालांकि डगलस भी अभी तक मेरी ही तरह अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित थे, हम दोनों ने ही इस बारे में कोई बात नहीं की। वे अकेले थे। मेरा ख्याल है वे और मैरी अलग हो चुके थे। अलबत्ता, स्विट्जरलैण्ड के पहाड़ों पर मिलने में हमारी उदासी छू मंतर हो गयी।

हम एक साथ स्कीइंग करते रहे। कम से कम एक साथ स्कीइंग करना सीखा तो सही।

भूतपूर्व जर्मन राजकुमार, कैसर के पुत्र भी उसी होटल में थे लेकिन मैं उनसे कभी नहीं मिला। हालांकि अगर हम दोनों कभी एक ही लिफ्ट में होते तो मैं मुस्कुरा भर देता और मुझे अपनी कॉमेडी शोल्डर आर्म्स की याद आ जाती जिसमें राजकुमार को एक कॉमेडी चरित्र के रूप में पेश किया गया था।

सेंट मारिट्ज में ही रहते हुए मैंने अपने भाई सिडनी को भी बुलवा लिया। अब चूंकि बेवरली हिल्स लौटने की कोई हड़बड़ी नहीं थी, मैंने तय किया कि पूर्व की ओर से होते हुए कैलिफोर्निया लौटा जाये। सिडनी इस बात के लिए सहमत हो गया कि वह जापान तक मेरा साथ देगा।

हम नेपल्स के लिए चले। वहां मैंने अपनी महिला मित्र को गुडबाय कहा। अब आंसू नहीं थे। मैंने सोचा कि उसने स्थितियों को स्वीकार कर लिया था और कुछ हद तक राहत महसूस कर रही थी। क्योंकि स्विट्जरलैण्ड की यात्रा में हमारे आपसी आकर्षण के सारे रसायन अब कुछ हद तक मंद हो चुके थे और इस बात को हम दोनों ही जानते थे। इसलिए हम अच्छे दोस्तों की तरह विदा हुए। जैसे ही नाव चली, वह तटबंध पर मेरे ट्रैम्प की नकल करते हुए चल रही थी।

तभी मैंने उसे आखरी बार देखा था।