चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 50 Suraj Prakash द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 50

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

50

ये सच है लेकिन उस वक्त मैं नहीं चाहता था कि मेरी निजी राय को इस तरह से प्रेस की तरफ से सार्वजनिक किया जाये। सच तो ये है कि मैं देशभक्त नहीं हूं। नैतिक या बौद्धिक कारणों की वजह से ही नहीं - लेकिन इसका कारण ये भी है कि मुझे देश के लिए कोई भावना नहीं है। कोई व्यक्ति देशभक्ति को किस तरह से स्वीकार कर सकता है जब देशभक्ति के ही नाम पर साठ लाख यहूदियों का कत्ल किया जा रहा है। कोई यह बात कह सकता है कि वे जर्मनी में हो रहा है; इसके बावजूद, उस तरह के मौत का खेल दिखाने वाली कोठरियां हरेक देश में मौजूद हैं।

मैं राष्ट्रीय गौरव को ले कर हो हल्ला नहीं मचा सकता। यदि कोई व्यक्ति पारिवारिक परम्पराओं में, घर और बगीचे में, अपने सुखी बचपन में परिवार में, दोस्तों में व्यस्त हो तो मैं उसकी इस भावना को समझ सकता हूं लेकिन मेरे पास इस तरह की पृष्ठभूमि नहीं है। मेरे लिए सर्वोत्तम राष्ट्रभक्ति यही है जो स्थानीय आदतों के रूप में विकसित हुई। घुड़दौड़, शिकार करना, यॉकशायर पुडिंग, अमेरिकी हैम वर्गर और कोका कोला, लेकिन आज इस तरह की देशी चीजें भी पूरी दुनिया में फैल चुकी हैं। स्वाभाविक रूप से, जिस देश में मैं रहता हूं, यदि उस पर हमला होता है तो मैं, हममें से अधिकांश लोगों की तरह, मुझे विश्वास है कि मैं परम त्याग का कोई भी कार्य करने में सक्षम होऊंगा। लेकिन मैं मातृभूमि के लिए दिखावे का प्यार दिखाने के काबिल नहीं हूं। क्योंकि इस प्यार ने केवल नाज़ी पैदा किये हैं और मैं बिना किसी अफसोस के ये कहना चाहूंगा कि जो कुछ मैंने देखा समझा है, नाज़ियों की कोठरियां, हालांकि इस वक्त बंद पड़ी है, किसी भी देश में तेजी से सक्रिय बनायी जा सकती है, इसलिए, मैं किसी राजनैतिक कारण के लिए तब तक कोई त्याग करने के लिए तैयार नहीं हूं जब तक मेरा उसमें व्यक्तिगत रूप से विश्वास न हो। मैं राष्ट्रपिता के लिए शहीद होने वालों में से नहीं हूं न और न ही मैं राष्ट्रपति के लिए, प्रधानमंत्री या किसी तानाशाह के लिए मरने के लिए ही इच्छुक हूं।

एकाध दिन बाद सर फिलिप सैसून मुझे कॉन्सुएलो वैन्डरबिल्ट बालसन के घर पर लंच के लिए गये। दक्षिणी फ्रांस में ये एक बहुत ही खूबसूरत जगह थी। वहां पर एक मेहमान अलग ही नज़र आ रहा था - लम्बा, दुबला व्यक्ति, जिनके बाल गहरे काले थे, और कतरी हुई मूंछें थीं। खुशमिजाज और बांध लेने वाला व्यक्तित्व। मैंने पाया कि लंच के वक्त मैं अपनी बातचीत में उसे संबोधित कर रहा हूं। मैं मेजर डगलस की किताब इकॉनामिक डेमोक्रेसी की बात कर रहा था। मैंने कहा कि उनकी ऋण थ्योरी कितने शानदार तरीके से मौजूदा विश्वव्यापी संकट को हल कर सकती है।

कॉन्सुऐलो बालसन ने उस दोपहर के बारे में लिखा, "मैंने पाया कि चैप्लिन बातचीत में बहुत दिलचस्प हैं और मैंने उनमें मजबूत समाजवादी प्रवृत्तियां पायीं।

मैंने ज़रूर ऐसा कुछ कहा होगा जो उस लम्बे व्यक्ति को खास तौर पर अच्छा लगा होगा क्योंकि उसका चेहरा खिल उठा और उसकी आंखें इतनी चौड़ी हो गयीं कि मुझे उन आंखों की सफेदी तक नज़र आने लगी। मैं जो कुछ भी कह रहा था, वह उसका समर्थन करता जा रहा था और तभी मैं अपनी धारणाओं के क्लाइमेक्स तक जा पहुंचा, जो निश्चित ही उसकी स्वयं की धारणाओं की विपरीत दिशा में चला गया होगा। उसके चेहरे पर निराशा झलकने लगी।

मैं सर ओस्वाल्ड मेस्ले से बात कर रहा था और मुझे इस बात का ज़रा भी गुमान नहीं था कि ये व्यक्ति इंगलैंड की ब्लैक शर्ट्स का भावी प्रमुख बनेगा - लेकिन उसकी बड़ी बड़ी आंखों की नज़र आती पुतलियां और खुली-खुली मुस्कराहट वाला चेहरा मेरी स्मृति में - ख्ा़ास तौर की अभिव्यक्ति के रूप में अभी भी बना हुआ है - उसमें डर कहीं नहीं था।

दक्षिणी फ्रांस में मैं एमिल लुडविग से भी मिला। उन्होंने नेपोलियन, बिस्मार्क, बालज़ाक और अन्य विभूतियों की मोटी मोटी जीवनियां लिखी हैं। उन्होंने नेपोलियन के बारे में बहुत रोचक तरीके से लिखा था। लेकिन उन्होंने कथा वाचन की दिलचस्पी से विमुख करने की हद तक मनोविश्लेषण का कुछ ज्यादा ही छोंका लगा दिया था।

उन्होंने मुझे एक तार भेजा कि उन्हें सिटी लाइट्स कितनी पसन्द आयी थी और कि वे मुझसे मिलना चाहेंगे। मैंने जिस रूप में उनकी कल्पना की थी, वे उससे बिल्कुल अलग थे। वे परिष्कृत ऑस्कर वाइल्ड की तरह लग रहे थे। उनके बाल थोड़े लम्बे थे और उनका लम्बोतरा भरा हुआ चेहरा औरतों जैसे कटाव लिये हुए था। मेरे होटल में हम दोनों मिले। उन्होंने वहां पर खुद को कुछ हद तक भड़कीले, ड्रामाई तरीके से पेश किया। मुझे एक तेजपात की पत्ती भेंट करते हुए उन्होंने कहा, "जब रोमन ने महानता हासिल की तो उन्हें तेजपात की पत्तियों से बनाया गया कल्प वृक्ष ताज भेंट किया गया था। इसलिए मैं आपको एक पत्ती भेट करता हूं।"

इस तरह की असंगत बातों के कारण उनसे तालमेल बिठाने में एक पल लगा; तब मुझे महसूस हुआ कि वे अपनी झेंप छुपा रहे थे। जब वे सहज हुए तो वे एक बहुत ही चतुर और रोचक आदमी के रूप में मुझसे मिले। मैंने उनसे पूछा कि जीवनी लिखने में उन्हें सबसे ज्यादा ज़रूरी बात क्या लगती है। उन्होंने कहा कि नज़रिया।

"तब तो जीवनी पूर्वाग्रहपूर्ण और नपा तुला लेख हो जाती है।" मैंने कहा।

"पैंसठ प्रतिशत कहानी तो कभी कही ही नहीं जाती," उन्होंने जवाब दिया,"क्योंकि उस पैंसठ प्रतिशत में दूसरे लोग शामिल होते हैं।"

डिनर के दौरान उन्होंने पूछा कि अब तक मैंने सर्वाधिक सुन्दर दृश्य कौन सा देखा है। मैं यूं ही कह दिया कि हेलेन विल्स को टेनिस खेलते हुए देखना: इसमें गरिमा और एक्शन की किफायत तो है ही, सैक्स के लिए स्वस्थ अपील भी है। दूसरा दृश्य था एक न्यूजरील का। युद्ध विराम के तुरंत बाद, फ्लैंडर्स नाम की जगह में खेत जोतता हुआ किसान, जहां हज़ारों लोग मरे थे। लुडविग ने फ्लोरिडा समुद्र तट के सूर्यास्त, तट पर खरामा खरामा चली जाती एक स्पोर्ट्स कार, जिसमें बेदिंग सूट पहने खूबसूरत लड़कियां लदी पड़ी हों और एक लड़की पीछे बोनट बैठी हो, उसकी टांगें झूल रही हों और पैर के तलुए रेत को छू रहे हों और जैसे जैसे कार चल रही हो, उसकी ऐड़ी से रेत पर एक लकीर बनती चली जा रही हो।

उसके बाद से मैं कई दूसरे सुन्दर नज़ारों को याद कर सकता हूं। फ्लोरेंस में पिआज़ा डेला सिग्नोरिया में बेनवेनुतो सेलिनी का `परसेउस' नाटक। रात का वक्त था। चौराहा रौशनी से नहाया हुआ था और मुझे वहां माइकलेजेलो की डेविड की आकृति खींच ले गयी थी, लेकिन जैसे ही मैंने परसेउस देखा, सब कुछ गौण हो गया था। मैं उसकी गरिमा और रूप के अछूते सौन्दर्य को देख कर ठगा रह गया था। ये उदासी की साक्षात प्रतिमा लग रही थी और इसने मुझे ऑस्कर वाइल्ड की रहस्यपूर्ण पंक्ति की याद दिला दी,"इसके बावजूद आदमी उसे मार डालता है जिसे वह चाहता है।" उस शाश्वत रहस्य, अच्छे और बुरे के संघर्ष में उसका कारण खो गया था।

मुझे ड्यूक ऑफ आल्बा से एक तार मिला जिसमें उन्होंने मुझे स्पेन में आमंत्रित किया था। लेकिन अगले ही दिन सभी अखबारों में बड़ी-बड़ी हैडलाइनें नज़र आयीं,"स्पेन में क्रांति"। इसलिए मैं स्पेन के बजाये विएना चला गया - उदास, संवेदनशील विएना। उसकी सबसे खास स्मृति जो मेरे पास है, वह है एक खूबसूरत लड़की के साथ रोमांस की। ये किसी विक्टोरियाई उपन्यास के अंतिम अध्याय की तरह था; हमने प्यार में जीने मरने की कसमें खायीं और विदा के चुम्बन लिये दिये। हम जानते थे कि दोबारा फिर कभी मिलना नहीं होगा।

विएना के बाद, मैं वेनिस चला गया। ये पतझड़ के दिन थे और ये जगह पूरी जगह सुनसान थी। मैं उसे उस वक्त ज्यादा पसन्द करता जब ये पर्यटकों से भरा रहता, क्योंकि पर्यटक किसी भी ऐसी जगह को ऊष्मा और जीवन्तता प्रदान करते हैं, जो उनके बिना आसानी से उनके लिए किसी कब्रिस्तान सरीखी हो सकती है। दरअसल, मैं घुमक्कड़ी करने वालों को पसन्द करता हूं क्योंकि लोग बाग किसी जगह छुट्टियां मनाते ज्यादा सही नज़र आते हैं बजाये किसी दफ्तर की इमारत में घूमते दरवाजों से टकराते हुए।

हालांकि वेनिस खूबसूरत था लेकिन उतना ही उदास भी था; मैं वहां पर सिर्फ दो रातों के लिए ठहरा; वहां मेरे पास करने धरने को कुछ नहीं था, बस फोनोग्राम रिकार्ड सुनते रहो और वो भी छुप कर, क्योंकि मुसोलिनी ने रविवार के दिन नाचने या रिकार्ड बजाने पर पाबंदी लगा रखी थी।

मुझे विएना लौटना अच्छा लगता ताकि वहां पर अपनी प्रेमिका से प्रेम प्रसंग को आगे बढ़ा सकूं लेकिन पेरिस में मुझे एक व्यक्ति से मिलना था और मैं इस मुलाकात से चूकना नहीं चाहता था। मुझे एरिस्टाइड ब्रायंड के साथ लंच करना था। वे युनाइटेड स्टेट्स ऑफ यूरोप के विचार का अमली जामा पहनाने वाले और उसके संरक्षक थे। जिस वक्त मैं मिस्टर ब्रायंड से मिला, उनका स्वास्थ्य नाज़ुक चल रहा था और वे दिग्भ्रमित और ज़माने भर के सताये हुए लग रहे थे। लंच का आयोजन ले'इन्ट्रासिजिएन के प्रकाशक मिस्टर बाल्बी के यहां था और ये बेहद मज़ेदार आयोजन रहा, भले ही मैं फ्रांसीसी भाषा नहीं बोला, काउन्टेस दे नोआइलेस, स्मार्ट, पंछी की तरह नन्हीं सी महिला ने अंग्रेजी में बात की। वे बेहद मज़ाकिया और आकर्षक थीं। मिस्टर ब्रायंड ने यह कहते हुए उनका स्वागत किया,"आजकल आपके तो दर्शन ही दुर्लभ हो गये हैं, आपकी मौजूदगी उतनी ही विरल होती जा रही है जितनी कि किसी की छोड़ी हुई रखैल की हो जाती है।" लंच के बाद मुझे राज प्रासाद एलिसी ले जाया गया और मुझे लीजन द' ऑनर का सम्मान दिया गया।

मैं उस बेइन्तहा भीड़ के पागलपन भरे उत्साह का यहां पर ज़िक्र नहीं करूंगा जो बर्लिन में मेरे दूसरी बार आने पर जुट आयी थी - हालांकि उसका बयान करने से मैं अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूं।

प्रसंग आया है तो मुझे मैरी और डगलस द्वारा उनकी विदेश यात्रा पर रिकार्ड की गयी फिल्म का प्रदर्शन याद आ रहा है। मैं एक रोचक यात्रा वृतांत का मज़ा लेने के लिए पूरी तरह से तैयार था। फिल्म शुरू हुई मैरी और डगलस के लंदन पहुंचने के दृश्य से। स्टेशन पर अपार भीड़ जुटी हुई है और होटल के बाहर भी उतनी ही उत्साही भीड़ का कोई ओर छोर नहीं है। होटल की बाहरी सज्जा और लंदन, पेरिस, मॉस्को, विएना और बूदापेस्ट के रेल स्टेशन को दिखाये जाने के बाद मैंने मासूमियत से पूछा,"हम छोटे शहर और गांव देहात कब देखेंगे?" वे दानों हँसे। मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मैं अपने खुद के स्वागत के लिए जुटी भीड़ का बयान करने में विनम्र नहीं रहा हूं।

बर्लिन में मैं लोकतांत्रिक सरकार का मेहमान था और एक बेहद आकर्षक जर्मन युवती काउन्टेस यार्क को मेरी अताशे के रूप में नियुक्त किया गया था। ये 1931 का बरस था और कुछ ही अरसा पहले नाज़ियों ने रीचस्टैग में सत्ता हथिया ली थी और मैं इस बात से वाकिफ़ नहीं था कि आधी प्रेस मेरे खिलाफ है। उनका आरोप था कि मैं विदेशी हूं और कि जर्मन इस तरह के सनक भरे प्रदर्शन के जरिये खुद का मज़ाक उड़वा रहे हैं। बेशक, ये नाज़ी प्रेस थी और मैं मासूमियत से इन सारी बातों को जानते हुए भी अनज़ान बना रहा और खूब शानदार वक्त बिताया मैंने।

कैसर के एक कज़िन ने कृपापूर्वक मुझे पौट्सडैम और सैन्स सौसी महलों की सैर करायी। मेरे लिए सारे के सारे महल नकली ज़िदगी के स्मारक होते हैं। कुरुचिपूण और भोग विलास के भौंडे प्रदर्शन। उनकी ऐतिहासिक दिलचस्पी के बावजूद जब मैं वर्साइलेस, क्रेमलिन, पौट्सडैम, बकिंघम पैलेस और इस तरह के दूसरे महलों को देखता हूं तो मुझे लगता है कि ज़रूर उन्हें फूल कर कुप्पा हो गये अहंवादियों ने बनवाया होगा। कैसर के कजिन ने मुझे बताया कि सैन्स सौसी फिर भी सुरुचिपूर्ण है, छोटा और अधिक मानवीय है; लेकिन मेरे लिए ये शृंगारदान की तरह था और मेरे भीतर उसे देखकर कोई भावना नहीं उपजी।

सबसे ज्यादा डराने वाली और हताश करने वाली जगह थी - बर्लिन का पुलिस संग्रहालय, जहां मैं गया था। कत्ल के शिकार लोगों की, आत्महत्याओं, अमानवीय यंत्रणाओं, और हर तरह की मानवीय विकृतियों की तस्वीरें। मुझे इमारत से बाहर आकर और खुली हवा में सांस लेकर बहुत राहत मिली।

डॉक्टर वौन फुलमुलर, द मिरैकल के लेखक ने अपने घर पर मेरी अगवानी की। वहां मैं कला और थियेटर के जर्मन प्रतिनिधि से मिला। एक और शाम मैंने आइन्सटीन दम्पत्ति के साथ उनके छोटे से अपार्टमेंट में गुजारी। इस बात की व्यवस्था की गयी थी कि मैं जनरल वौन हिडंनबर्ग के साथ खाना खाऊं लेकिन अंतिम पलों में वे बीमार हो गये, इसलिए मैं एक बार फिर दक्षिणी फ्रांस चला गया।

मैंने अन्यत्र कहीं कहा है कि सैक्स का ज़िक्र तो होगा लेकिन उस पर ज़ोर नहीं डाला जायेगा, क्योंकि इस विषय पर मेरे पास नया कहने के लिए कुछ भी नहीं है। अलबत्ता, प्रजनन क्रिया प्रकृति का प्रमुख कारोबार है, और हर व्यक्ति, चाहे वह युवा हो या बूढ़ा, जब किसी औरत से मिलता है तो वह दोनों के बीच सैक्स की संभावनाओं की तलाश करता है। इसी तरह की स्थितियां मेरे साथ हमेशा होती रही हैं।

काम के दौरान, औरतें कभी भी मेरी रुचि नहीं जगातीं; यह दो फिल्मों के बीच के अरसे के दौरान ही होता कि मेरे पास करने के लिए कुछ भी न होता और मैं कमज़ोर पड़ जाता। जैसा कि एच जी वेल्स ने कहा है, "दिन में एक ऐसा पल आता है जब आपने सुबह के वक्त अपने पत्र लिख लिये हैं, दोपहर के वक्त अपनी डाक वगैरह निपटा ली है और उसके बाद आपके पास करने के लिए कुछ भी नहीं होता। तब वह घड़ी आती है जब आप बोर हो जाते हैं; यही वक्त सैक्स के लिए होता है।"

इसलिए, जब कोटे द'अजूर पर मेरे पास जब करने के लिए कुछ भी नहीं था तो मेरे सौभाग्य से मेरा परिचय एक बहुत ही कमनीय लड़की से कराया गया जो बोरियत के घंटों को परे करने के लिए सारी ज़रूरतें पूरी करती थी। वह भी मेरी तरह छड़ी छांट थी और हम दोनों ने एक दूसरे को पहली ही बार, जो जैसा है, के आधार पर पसंद कर लिया। उसने मुझसे अपना रहस्य बांटा कि वह अभी अभी ही एक युवा इजिप्ट लड़के से अपने दुखद प्रेम प्रसंग से उबरी है। हालांकि हमने अपने संबंधों के बारे में चर्चा नहीं की थी, फिर भी हम समझते थे, उसे पता था कि मैं आखिरकार अमेरिका लौट जाऊंगा। मैं उसे साप्ताहिक भत्ता दिया करता और हम एक साथ कैसिनो में, रेस्तराओं में और मेले ठेलों में जाते। एक साथ खाना खाते, नाचते और अमूमन ऐसे मौकों पर की जाने वाली सभी मस्तियां करते। लेकिन मैं उसके सौन्दर्य के जाल में फंसता चला गया और अनहोनी हो गयी; मैं भावनात्मक रूप से उससे जुड़ गया और अमेरिका वापिस जाने के बारे में सोचने लगा। मैं पक्के तौर पर फैसला नहीं कर पा रहा था कि उसे पीछे छोड़ कर जाऊं या नहीं। उसे छोड़ने के ख्याल मात्र से मैं बेचारगी महसूस करने लगता; वह हंसमुख, आकर्षक और सहानुभुति से भरी थी। इसके बावजूद, बीच-बीच में ऐसे मौके आते, जब अविश्वास सिर उठाने लगता।

एक दोपहरी, द' दासां में एक कैसीनो में उसने अचानक मेरा हाथ थाम लिया। वहां पर एस़ था। उसका ईजिप्शियन प्रेमी, जिसके बारे में उसने मुझे बहुत कुछ बताया था। मैं हक्का बक्का। अलबत्ता, कुछ ही पल बाद हम वहां से चले गये। जैसे ही हम होटल के नज़दीक पहुंचे, उसने अचानक पाया कि वह अपने दस्ताने वहीं छोड़ आयी है और उसे उन दस्तानों को वापिस लाने के लिए जाना ही पड़ेगा। उसने मुझसे कहा कि मैं आगे चलूं। उसका बहाना एकदम साफ था। मैंने उसे बिल्कुल भी नहीं रोका और न ही कोई टिप्पणी ही की। मैं सीधा अपने होटल में चला आया। जब वह दो घंटे बाद भी वापिस नहीं आयी तो मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मामला दस्तानों से कुछ ज्यादा ही का था। उस शाम मैंने कुछ दोस्तों को डिनर पर बुला रखा था। डिनर का समय नज़दीक आ रहा था और वह अभी भी गायब थी। जिस वक्त मैं उसके बिना कमरे से निकल रहा था तो उसने अपना चेहरा दिखाया। वह पीली और अस्त व्यस्त दिखायी दे रही थी।

"तुम इतनी देर से आयी हो कि डिनर के लिए जाने का समय ही नहीं बचा" मैंने कहा, "इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम अपने गर्म गुदगुदे बिस्तर में लौट जाओ।"

उसने मना किया, गिड़गिड़ायी, हाथ पैर जोड़े लेकिन इतने लम्बे समय तक गैरहाज़िर रहने के पीछे कोई विश्वसनीय कारण नहीं दे पायी। मुझे यकीन हो चला था कि वह अपने इजिप्शियन प्रेमी के साथ ही थी औरउसकी लंतरानियां सुनने के बाद मैं उसके बिना ही चला गया।

कौन ऐसा होगा जो बिसूरते हुए सैक्सोफोन के शोर और नाइट क्लब के हंगामें और शोर शराबे के बीच शोर से भी ऊंची आवाज़ में बात करते हुए अचानक आ गये अकेलेपन से हताश नहीं बैठा होगा? आप दूसरों के साथ बैठे हैं, आप मेज़बानी कर रहे हैं लेकिन भीतर ही भीतर आप टूटे हुए हैं। जब मैं होटल में वापिस लौटा तो वह वहां पर नहीं थी। इस बात ने मुझे संकट में डाल दिया। क्या वह पहले ही जा चुकी है? इतनी जल्दी? मैं उसके बेडरूम में गया और ये देखकर मुझे बहुत राहत मिली कि उसके कपड़े और दूसरी चीजें अभी भी वहीं थीं। वह दस मिनट में ही आ गयी। वह खुश थी और अच्छे मूड में थी। उसने बताया कि वह एक फिल्म देखने चली गयी थी। मैंने उसे ठण्डेपन के साथ बताया कि अगले दिन मैं पेरिस के लिए निकल रहा हूं और उसके साथ सारा हिसाब किताब निपटा दूंगा और निश्चित ये हमारे संबंधों का पूर्ण विराम है। उसने इन सारी बातों को स्वीकार कर लिया, लेकिन वह इस बात से इन्कार करती रही कि वह अपने इजिप्शियन प्रेमी के साथ थी।

"जो भी दोस्ती बची है," मैंने कहा,"तुम उसे इस धोखे पर टिके रह कर खत्म कर रही हो"। तब मैंने उससे झूठ बोला और उसे बताया कि मैं उसका पीछा करता रहा था और कि जब वह कैसिनो से गयी तो अपने प्रेमी के साथ उसके होटल चली गयी थी। मुझे यह देख कर हैरानी हुई कि वह रो पड़ी और इन बात को स्वीकार किया कि हां, ये सच था। उसने कसमें खायीं और वचन दिये कि वह फिर कभी अपने प्रेमी से नहीं मिलेगी।

अगली सुबह जब मैं पैक कर रहा था और निकलने की तैयारी कर रहा था, वह हौले-हौले रोने लगी। मैं अपने एक दोस्त की कार में जा रहा था। दोस्त बताने के लिए आया कि सब कुछ तैयार है और कि वह नीचे इंतज़ार कर रहा है। लड़की ने अपनी अनामिका उंगली दांतों तले दबायी और अब जोर जोर से रोने लगी। "मुझे छोड़कर मत जाइए, प्लीज़" प्लीज़ मुझे छोड़कर मत जाइए।"

"अब तुम मुझसे क्या उम्मीद करती हो?" मैंने ठण्डेपन से पूछा।

"बस, मुझे अपने साथ पेरिस तक जाने दीजिये, उसके बाद, मैं आपसे वादा करती हूं कि आपको फिर कभी परेशान नहीं करूंगी," उसने जवाब दिया।

वह इतनी दयनीय नज़र आ रही थी कि मैं कमज़ोर पड़ गया। मैंने उसे चेताया कि ये एक दुख देने वाली यात्रा होगी और कि इस बात का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि ज्यों ही हम पेरिस में पहुंचेंगे, हम अलग हो जायेंगे। उसने सारी बाते मान लीं। उस सुबह हम तीनों अपने दोस्त की कार में पेरिस के लिए रवाना हुए।

शुरू-शुरू में यात्रा में सभी खामोश बने रहे। लड़की शांत और सहमी। मैं ठण्डा और विनम्र लेकिन इस तरह के रुख को बनाये रखना मुश्किल था। इसलिए जैसे जैसे यात्रा आगे बढ़ती रही, सांझी रुचि की कोई किसी चीज़ पर हमारी निगाह प़ड़ जाती और हमसे से कोई कुछ न कुछ कह देता। लेकिन ये सब हमारी पहले वाली अंतरंगता के दायरे से बाहर था।

हम सीधे लड़की के होटल में गये और मैंने उसे विदा के दो शब्द कहे। उसका ये दिखावा कि ये उसकी अंतिम विदाई है, दयनीय तरीके से साफ-साफ नज़र आ रहा था। मैंने उसके लिए जो कुछ भी किया था, उसके लिए उसने आभार माना, मुझसे हाथ मिलाया और फिर ड्रामाई गुडबाय के साथ अपने होटल में गायब हो गयी।