चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 48 Suraj Prakash द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 48

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

48

भरा हुआ कमरा एक दम शांत हो गया। और जैसे ही महात्मा के चेहरे पर मेरी बात का इंतज़ार करने वाले भाव आये, मुझे लगा कि पूरा भारत मेरे शब्दों का इंतज़ार कर रहा है। इसलिए मैंने अपना गला खखारा।

"स्वाभाविक रूप से मैं आज़ादी के लिए भारत की आकांक्षाओं और संघर्ष का हिमायती हूं," मैंने कहा,"इसके बावज़ूद, मशीनरी के इस्तेमाल को ले कर आपके विरोध से मैं थोड़ा भ्रम में पड़ गया हूं।"

मैं जैसे जैसे अपनी बात कहता गया, महात्मा सिर हिलाते रहे और मुस्कुराते रहे। "कुछ भी हो, मशीनरी अगर नि:स्वार्थ भाव से इस्तेमाल में लायी जाती है तो इससे इन्सान को गुलामी के बंधन से मुक्त करने में मदद मिलनी चाहिये और इससे उसे कम घंटों तक काम करना पड़ेगा और वह अपना मस्तिष्क विकसित करने और ज़िंदगी का आनंद उठाने के लिए ज्यादा समय बचा पायेगा।"

"मैं समझता हूं," वे शांत स्वर में अपनी बात कहते हुए बोले, "लेकिन इससे पहले कि भारत इन लक्ष्यों को प्राप्त कर सके, भारत को अपने आपको अंग्रेजी शासन से मुक्त कराना है। इससे पहले मशीनरी ने हमें इंगलैंड पर निर्भर बना दिया था, और उस निर्भरता से अपने आपको मुक्त कराने का हमारे पास एक ही तरीका है कि हम मशीनरी द्वारा बनाये गये सभी सामानों का बहिष्कार करें। यही कारण है कि हमने प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह देशभक्तिपूर्ण कर्तव्य बना दिया है कि वह अपना स्वयं का सूत काते और अपने स्वयं के लिए कपड़ा बुने। ये इंगलैंड जैसे अत्यंत शक्तिशली राष्ट्र से लड़ने का हमारा अपना तरीका है और हां, और भी कारण हैं। भारत का मौसम इंगलैंड के मौसम से अलग होता है और भारत की आदतें और ज़रूरतें अलग हैं। इंगलैंड के सर्दी के मौसम के कारण ये ज़रूरी हो जाता है कि आपके पास तेज उद्योग हो और इसमें अर्थव्यवस्था शामिल है। आपको खाना खाने के बर्तनों के लिए उद्योग की ज़रूरत होती है। हम अपनी उंगलियों से ही खाना खा लेते हैं। और इस तरह से देखें तो कई किस्म के फर्क सामने आते हैं।"

मुझे भारत की आज़ादी के लिए सामरिक जोड़ तोड़ में लचीलेपन का वस्तुपरक पाठ मिल गया था और विरोधाभास की बात ये थी कि इसके लिए प्रेरणा एक यथार्थवादी, एक ऐसे युग दृष्टा से मिल रही थी जिसमें इस काम को पूरा करने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति थी। उन्होंने मुझे ये भी बताया कि सर्वोच्च स्वंतत्रता वह होती है कि आप अपने आपको अनावश्यक वस्तुओं से मुक्त कर डालें और कि हिंसा अंतत: स्वयं को ही नष्ट कर देती है।

जब कमरा खाली हो गया तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं वहीं रह कर उन्हें प्रार्थना करते हुए देखना चाहूंगा। महात्मा फर्श पर चौकड़ी मार कर बैठ गये और उनके आस पास घेरा बना कर पांच अन्य लोग बैठ गये। ये एक देखने योग्य दृष्य था। लंदन के झोपड़ पट्टी वाले इलाके के बीचों बीच एक छोटे से कमरे के फर्श पर छ: मूर्तियां पद्मासन में बैठी हुईं। लाल सूर्य छतों के पीछे से तेजी से अस्त हो रहा था और मैं खुद सोफे पर बैठा उन्हें नीचे देख रहा था। वे विनम्रता पूर्वक अपनी प्रार्थनाएंं कर रहे थे। क्या विरोधाभास है, मैंने सोचा, मैं इस अत्यंत यथार्थवादी व्यक्ति को, तेज कानूनी दिमाग और राजनैतिक वास्तविकता का गहरा बोध रखने वाले इस शख्स को देख रहा था। ये सब आरोह अवरोह रहित बातचीत में विलीन हो रहा प्रतीत हो रहा था।

सिटी लाइट्स के मुहूर्त पर मूसलाधार बारिश हुई। लेकिन वहां पर भीड़ अच्छी खासी संख्या में जुट आयी थी और पिक्चर अच्छी चल गयी। मैंने बॉक्स में बर्नार्ड शॉ के साथ वाली सीट ली जिसकी वज़ह से खूब हँसी मज़ाक हुआ और ठहाके लगे। हम दोनों को खड़ा होना और झुकना पड़ा। इसके एक बार फिर हँसी गूंजी।

चर्चिल प्रीमियर पर और बाद में होने वाली दावत में आये। उन्होंने इस आशय का भाषण दिया कि वे उस शख्स के लिए जाम पेश करना, टोस्ट करना चाहते हैं जिसने नदी के दूसरी तरफ से एक लड़के के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की थी और उसने पूरी दुनिया का प्यार पाया है - और वह लड़का है चार्ली चैप्लिन! ये अप्रत्याशित था और मैं इससे थोड़ा सा चने के झाड़ पर चढ़ा दिया गया महसूस करने लगा। खासकर, तब जब उन्होंने अपनी बात कहने से पहले,"माय लॉर्ड्स, लेडीज़ एंड जेंटिलमेन" कहा। अलबत्ता, दूसरी बातों के अलावा, मौके की नज़ाकत से बंधे होने के कारण मैंने भी इसी तरीके से अपनी बात कही, "माय लॉर्ड्स, लेडीज़ एंड जेंटिलमेन, जैसा कि मेरे मित्र, स्वर्गीय वित्त मंत्री," मैं अपनी बात पूरी नहीं कर पाया, अच्छा खासा शोर शराबा हो गया। और मुझे बार बार जोरदार आवाज़ सुनायी देने लगी, "स्वर्गीय, स्वर्गीय, हमें अच्छा लगा स्वर्गीय!!" बेशक ये चर्चिल की आवाज़ थी। जब मैंने अपने आपको संभाला तो मैंने जुमला कसा, "दरअसल, भूतपूर्व वित्त मंत्री कहना ज़रा अटपटा लग रहा था।"

लेबर प्रधान मंत्री रैमसे मैक्डोनाल्ड के बेटे मैल्कोम मैकडोनाल्ड ने राल्फ और मुझे आमंत्रित किया कि हम उनके पिता से मिलें और रात वहीं उनके घर पर गुज़ारें। हम प्रधान मंत्री से उस वक्त मिले जब वे अपनी चार चीज़ों, अपने स्कार्फ, अपनी कैप, अपने पाइप और छड़ी के साथ अपनी संवैधानिक चहलकदमी कर रहे थे। उस वक्त वे अपने भदेस बाने में थे और बिल्कुल नहीं लगता था कि वे लेबर पार्टी के नेता हैं। महान गरिमा, अपने नेतृत्व के बोझ के प्रति बेहद सतर्क और गरिमामय सज्जन पुरुष की पहली छवि बिना हास्य के नहीं थी।

शाम का पहला हिस्सा कुछ खिंचा खिंचा सा था। लेकिन डिनर के बाद हम प्रसिद्ध ऐतिहासिक लाँग रूम में कॉफी पीने के लिए गये और वहां पर मूल क्रोमवेलियन सज़ाए मौत के मुखौटे तथा दूसरी ऐतिहासिक चीज़ें देखने के बाद फुर्सत से बतियाने बैठ गये। मैंने उन्हें बताया कि अपनी पहली यात्रा के बाद से मैंने यहां पर बहुत से परिवर्तन देखे हैं और ये परिवर्तन बेहतरी दर्शाते हैं। 1921 में मैं लंदन आया था तो यहां बहुत गरीबी देखी थी, सफेद बालों वाली बूढ़ी औरतें टेम्स नदी के किनारे पर सो रही होती थीं, अब वे औरतें कहीं नज़र नहीं आतीं। दुकानें सामान से भरी भरी नज़र आती हैं और बच्चों के पेट भी भरे हुए लगते हैं और निश्चित रूप से इन सबके लिए लेबर पार्टी की सरकार को श्रेय दिया जाना चाहिये।

उनके चेहरे पर भेद न खोलने वाले भाव आये और उन्होंने मुझे बिना रुके बात पूरी करने दी। मैंने पूछा कि लेबर सरकार जिसे मैं समाजवादी सरकार समझता आया हूं, क्या देश के मूल संविधान को बदलने की ताकत रखती है। उन्होंने आंखें झपकायीं और हँसते हुए बोले," होनी तो चाहिये लेकिन ब्रिटिश राजनीति की यही विडम्बना है। जैसे ही किसी के हाथ में सत्ता आती है वह नपुंसक हो जाता है।" वे एक पल के लिए रुके फिर वह किस्सा बताया कि जब प्रधान मंत्री के रूप में चुने जाने पर उन्हें पहली बार बकिंघम पैलेस में बुलाया गया।

उनका हार्दिक स्वागत करने के बाद महामहिम ने उनसे कहा, "अच्छी बात है, आप समाजवादी लोग मेरे बारे में क्या करने जा रहे हैं?"

प्रधान मंत्री हँसे और बोले,"कुछ नहीं, बस इस बात की कोशिश करेंगे कि महामहिम के और देश के सर्वोत्तम हित में काम कर सकें।"

चुनाव के दौरान लेडी एस्टर ने राल्फ और मुझे प्लायमाउथ में अपने घर पर वीक एंड मनाने और टी ई लॉरेंस से मिलने के लिए आमंत्रित किया। लॉरेंस भी अपना वीक एंड वहीं मनाने वाले थे। लेकिन, किसी वज़ह से लॉरेंस नहीं आ पाये। अलबत्ता, लेडी एस्टर ने हमें अपने चुनाव क्षेत्र में और डॉक साइड में एक बैठक में आमंत्रित किया। वहां पर उन्हें मछुआरों के सामने भाषण देना था। मोहतरमा ने पूछा कि क्या मैं दो शब्द कहना चाहूंगा। मैंने उन्हें चेताया कि मैं लेबर पार्टी के पक्ष का आदमी हूं और सच तो ये है कि मैं उनकी राजनीति का समर्थन नहीं करता।

"इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।" वे बोलीं,"बात सिर्फ इतनी सी है कि वे लोग आपको देखना चाहेंगे, बस!!"

ये खुले मैदान वाली चुनाव सभा थी और हम एक बड़े से ट्रक से बोल रहे थे। उनके चुनाव क्षेत्र के बिशप भी वहीं थे और कुछ कुछ नाराज़ मूड में लग रहे थे। मुझे लगा, उन्होंने चलताऊ ढंग से हमसे दुआ-सलाम की। लेडी एस्टर के संक्षिप्त शुरुआती भाषण के बाद मैं ट्रक पर चढ़ा।

"कैसे हैं आप लोग?" मैंने कहा,"हम सब करोड़पतियों के लिए ये कितना अच्छा होता है आप लोगों से कहना कि वोट कैसे डालें लेकिन हम लोगों की परिस्थितियां आप लोगों की परिस्थितियों से काफी अलग होती हैं।"

अचानक मैंने बिशप की खुशी के मारे चीखने की आवाज़ सुनी,"शाबाश!" वे चिल्लाये।

मैंने अपनी बात जारी रखी,"लेडी एस्टर में और आप लोगों में कुछ बातें एक समान हो सकती हैं जिनके बारे में मैं नहीं जानता। मेरा ख्याल है उनके बारे में आप मुझसे बेहतर तरीके से जानते हैं।"

"शानदार, बहुत अच्छे!!" बिशप ने हुंकारा लगाया।

"चूंकि उनकी राजनीति और इस इस हं" "चुनाव क्षेत्र" बिशप ने मेरा वाक्य पूरा किया, (जब भी मैं हिचकिचाता, बिशप मुझे सही शब्द बता देते), - लेडी एस्टर का रिकार्ड ज़रूर ही बहुत संतोषजनक रहा होगा-" और मैंने अपनी बात ये कहते हुए खत्म की कि मैं उन्हें एक बहुत ही नेक, भली और दयालु महिला के रूप में जानता हूं जिनकी नीयत हमेशा बहुत अच्छी होती है। जब मैं नीचे उतरा तो बिशप के चेहरा खूब दमक रहा था और उन्होंने मुस्कुराते हुए गर्मजोशी से मुझसे हाथ मिलाया।

अंग्रेजी पादरी लोगों में एक बात बहुत अच्छी होती है कि इसमें साफगोई और निष्ठा की बहुत मज़बूत भावना होती है और ये बात इंगलैंड को अपने सर्वोत्तम रूप में सामने रखती है। डॉक्टर हेवलेट जॉनसन और कैनन कॉलिंस और दूसरे कई धर्म गुरुओं के कारण ही इंगलिश चर्च को ताकत मिलती रही है।

मेरे मित्र राल्फ बर्टन का व्यवहार अजीब सा होता जा रहा था। मैंने पाया कि बैठक में लगी बिजली से चलने वाली घड़ी बंद पड़ गयी है। उसके तार काट दिये गये थे। जब मैंने राल्फ को इस बारे में बताया तो उन्होंने कहा."हां, मैंने ये तार काटे हैं। मुझे घड़ी की टिक टिक से नफरत है।" मैं हैरान हुआ और थोड़ा नाराज भी लेकिन इस मामले को मैंने राल्फ का पागलपन मान कर रफा दफा कर दिया। जब से हम न्यू यार्क से चले थे, ऐसा लगने लगा था कि राल्फ पूरी तरह से चंगे हो गये हैं। अब वे वापिस स्टेट्स जाना चाहते थे।

वापिस चलने से पहले रॉल्फ ने पूछा कि क्या मैं उनके साथ उनकी बेटी से मिलने जाऊँगा? उनकी बेटी एक वर्ष पहले ही ईसाई भिक्षुणी बनी थी और इस समय हैकने में कैथोलिक कॉन्वेंट में थी। यह उनकी पहली पत्नी से जन्मी सबसे बड़ी बेटी थी। रॉल्फ अक्सर उसके बारे में बताते रहते थे। रॉल्फ ने बताया था कि वह चौदह वर्ष की उम्र से ही नन बनने की चाह रखती थी और उन्होंने तथा उनकी पत्नी ने ऐसा करने से रोकने के लिए सारी कोशिशें करके देख ली थीं। रॉल्फ ने मुझे अपनी बिटिया की उस वक्त की फोटो दिखाई जब वह सोलह बरस की थी और मैं उसका सौंदर्य देखकर एकदम अभिभूत हो गया था : दो बड़ी बड़ी काली आँखें, संवेदनशील भरा चेहरा और बाँध लेने वाली मुस्कुराहट फोटो में से देख रहे थे।

रॉल्फ ने बताया कि वे उसे पेरिस में यह सोचकर कई डॉन्स और नाइट क्लबों में लेकर गये थे कि शायद उसे उसकी गिरजा घर संबंधी इच्छा से विमुख कर सकें। उन्होंने उसका परिचय प्रेमी से कराया था और उसे हर तरह की खुशियाँ दीं थीं। उन्हें लगा था कि वह उन सबका आनंद ले रही है। लेकिन कोई भी चीज़ उसे नन बनने से डिगा नहीं सकी। रॉल्फ ने उस 18 महीने से नहीं देखा था। अब उसने दीक्षा की परीक्षा पास कर ली थी और अब पूरी तरह से परम पिता परमात्मा की शरण में चली गयी थी।

यह कॉन्वेंट हैकने के झोपड़पट्टी वाले इलाकों के बीचों बीच उदास और अंधेरी इमारत थी। जब हम वहाँ पहुँचे तो मदर सुपीरियर ने हमारा स्वागत किया और हमें छोटे से अंधेरे कमरे में ले गयी। हम वहाँ बैठे और इंतज़ार करने लगे। ऐसा लगा, इंतज़ार की यह घड़ियाँ कभी खत्म नहीं होंगी। आखिरकार रॉल्फ की बेटी आयी। मुझे तत्काल उसकी खूबसूरती ने बाँध लिया क्योंकि वह अभी भी उतनी ही सुंदर थी जितनी फोटो में दिखायी दी थी। सिर्फ़ यही फ़र्क पड़ा था कि जिस वक्त वह मुस्कुरायी, उसके किनारे वाले दो दांत गायब थे।

ये दृश्य बेतुका था। हम उस छोटे से, भुतैले कमरे में बैठे थे। सैंतीस बरस के ये सुदर्शन, शहराती पिता, टांगें मुड़ी हुई, सिगरेट पीते हुए, और उनकी बेटी, उन्नीस बरस की प्यारी सी लड़की-सामने की तरफ बैठी हुई। मैंने कोशिश की कि मैं उठकर बाहर आ जाऊं और उनका इंतज़ार करूं, लेकिन दोनों में से किसी ने भी मेरी बात नहीं मानी।

हालांकि वह होशियार और तेज थी, मैं देख रहा था कि वह जीवन से बेजार हो चुकी थी, उसके हावभाव उखड़े हुए थे और जिस वक्त वह स्कूल टीचर के रूप में अभी ड्यूटी के बारे में बता रही थी, उसके हावभाव डरे हुए और तनाव लिए हुए थे, "छोटे बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल होता है," बताया उसने, "लेकिन मुझे इसकी आदत पड़ जायेगी।"

जिस समय रॉल्स अपनी बेटी से बात कर रहे थे, तो उनकी आंखों में चमक आयी। वे सिगरेट पीते रहे, जिस तरह के वे काफिर थे, मैं यह देख पाया कि वे कुछ हद तक उसने नन बनने के विचार से खुश हुए थे।

इस मुलाकात के बारे में कुछ ऐसा था जो उदास नि:संगता थी। इस बात में कोई शक नहीं था कि वह आध्यात्मिक परीक्षणों से गुज़री थी, वह जितनी खूबसूरत और यौवन से भरी हुई थी, उतनी ही उदास और समर्पित लग रही थी। वह लंदन में हमारे स्वागत के शोशेबाजी की बातें करती रही और उसने जर्माइन टैलफर, रॉल्फ की पांचवीं पत्नी के बारे में पूछा, रॉल्फ ने बिटिया को बताया कि वे अलग हो चुके हैं।

"बेशक" बेटी ने मेरी तरफ मुड़ते हुए मज़ाक में कहा, "मैं पापा की पत्नियों का हिसाब किताब नहीं रख सकती", रॉल्फ और मैं, दोनों ही आत्म सजग हो कर हंसे।

रॉल्फ ने पूछा कि क्या उसे काफी अरसे तक हैकने में रहना पड़ेगा। उसने सोचते हुए अपना सिर हिलाया और बताया कि उसे शायद सेन्ट्रल अमेरिका की तरफ भेज दिया जाये, "लेकिन वे हमें कभी पता नहीं चलने देते कि कब और कहां।"

"ठीक है, लेकिन जब तुम वहां पहुंचो तो अपने पापा को लिख तो सकती हो", मैंने बीच में टोका।

वह हिचकिचाई, "हमसे यह उम्मीद की जाती है कि हम किसी से भी सम्पर्क न रखें।"

"अपने माता-पिता के साथ भी नहीं?" पूछा मैंने।

"नहीं" बताया उसने। वह वस्तुपरक होने की कोशिश कर रही थी। तब वह अपने पिता की तरफ देखकर मुस्कुरायी। एक पल का मौन छा गया।

जब वहां से चलने का समय आ गया तो उसने अपने पिता का हाथ थामा और उसे देर तक और प्यार से थामे रही, मानो कोई भीतरी ताकत उससे ऐसा करवा रही थी। जिस समय वापिस आ रहे थे, रॉल्फ बुझे हुए थे हालांकि अभी उदासीन दिखने की कोशिश कर रहे थे। दो हफ्ते बाद, अपने न्यूयार्क के अपार्टमेंट में उन्होंने बिस्तर में चादर तान कर लेटे हुए ही अपने सिर पर गोली मार कर खुदकशी कर ली थी।

मैं एच.जी.बेल्स से अक्सर मिलता, उनका ब्रेकर स्ट्रीट में एक अपार्टमेंट था, जिस वक्त मैं वहां पहुंचा, उनकी चार महिला सेक्रेटरी सन्दर्भ पुस्तकों को खंगाल रही थीं, और एन्साइक्लोपीडिया, तकनीकी पुस्तकों, दस्तावेजों तथा कागजों में से कुछ जांच रही थीं।

"ये द' एनाटोमी ऑफ मनी, मेरी किताब है," उन्होंने बताया, "काफी बड़ा काम है।"

"मुझे तो ऐसा लगता है, कि ज्यादातर काम तो ये ही कर रही हैं।" मैंने मज़ाक में जुमला उछाला। उनके पुस्तकालय में ऊंचे शेल्फों पर करीने से रखे बिस्किटों के टिन लग रहे थे, उन पर लिखा था, "जीवनीपरक सामग्री", "व्यक्तिगतपत्र", "दर्शन", "वैज्ञानिक आंकड़े" और इसी तरह के लेबल उन पर लगे हुए थे।

डिनर के बाद उनके दोस्त आ गये। उनमें से एक थे प्रोफेसर लास्की। वे अभी भी एकदम युवा दिखते थे। हारोल्ड बहुत ही मेधावी भाषण करते थे। मैंने उन्हें कैलिफोर्निया में अमेरिकन बार एसोसिएशन में बोले हुए सुना था। वहां पर उन्होंने बिना किसी कागज की तरफ देखे लगातार एक घंटे तक बिना रुके और शानदार तरीके से भाषण दिया था।

उस रात एच जी वेल्स के फ्लैट में, हारोल्ड ने समाजवाद दर्शन में आश्चर्यजनक नयी खोजों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि गति में थोड़ी सी भी बढ़ोतरी का मतलब भयंकर सामाजिक अंतर होता है। एच जी वेल्स के बिस्तर पर जाने के समय तक बातचीत बहुत ही रोचक तरीके से चलती रही। वेल्स साहब ने थोड़े संकोच के साथ, मेहमानों की तरफ देखते हुए इशारा किया और फिर अपनी घड़ी की तरफ देखा, तब सब लोग विदा हो गये।

वेल्स साहब मेरे यहां कैलिफोर्निया में 1935 में आये थे। मैंने उन्हें जबरदस्ती रूस की आलेचना की बात पर ले आया। मैं उनकी रिपोर्टें पढ़ चुका था, इसलिए मैं खुद उनके मुंह से सुनना चाहता था और मैं ये देख कर हैरान हुआ कि वे इसके बारे में बहुत हद तक कड़ुवाहट से भरे हुए थे।

"लेकिन क्या इस बारे में फैसला कर लेना बहुत जल्दी नहीं है?" मैंने तर्क दिया।

"उन्हें भीतर से और बाहर से मुश्किल कामों, विपक्ष और षड़यंत्रों का सामना करना पड़ रहा है। तय है कि समय बीतने के साथ-साथ अच्छे परिणाम भी आयेंगे।"

उस समय वेल्स इस बात को लेकर बहुत उत्साहित थे, जो कुछ रूज़वेल्ट ने नये समझौते के बारे में किया था। उनकी राय थी कि अमेरिका में मरते हुए पूंजीवाद में से अर्ध समाजवाद उभर कर आयेगा। वो स्तालिन के खास तौर पर आलोचक थे। उन्होंने स्तालिन का साक्षात्कार लिया था और कहा कि उसके राज में रूस आतंकवादी तानाशाह बन चुका है।

"यदि आप, समाजवादी, यह विश्वास करते हैं कि पूंजीवाद गर्त में जा चुका है," मैंने कहा,"तो फिर अगर रूस में समाजवाद ही असफल हो जाये तो दुनिया के लिए क्या उम्मीद बचती है?"

"रूस में या कहीं पर भी समाजवाद असफल नहीं होगा," उन्होंने कहा, "लेकिन रूस की यह वाली गतिविधि बेशक तानाशाही की तरफ मुड़ गयी है।"

"बेशक रूस ने गलतियां की है," मैंने आगे कहा," और दूसरे राष्ट्रों की तरह रूस आगे भी गलतियां करता रहेगा। सबसे बड़ी गलती, मेरे ख्याल से, अपने विदेशी कर्जों, रूसी बाँडों वगैरह को हड़प जाना है और क्रांति के बाद ये कह दिया कि ये जार के कर्जे थे, हालांकि रूस कर्जे पटाये जाने के बारे में अपनी जगह पर सही हो सकता था, मेरा ख्याल है, वहां पर उनसे गलती हो गयी है, क्योंकि इससे पूरी दुनिया उनके खिलाफ हो गयी। बहिष्कार और सैन्य हमले शुरू हो गये। लम्बे अरसे में ये बात उसे कर्जे चुका दिये जाने की तुलना में दुगुनी महंगी पड़ेगी।

वेल्स आंशिक रूप से सहमत हो गये और कहने लगे कि मेरी टिप्पणी सिद्धंात के रूप में सही है लेकिन तथ्य रूप से नहीं, क्योंकि जार के कर्जों को हड़प लिया जाना ही उन कारणों में से एक था जिनकी वज़ह से क्रांति की भावना को शह मिली। पुराने शासन के कर्जों को अदा करने की बात से ही लोग भड़क गये होते।

"लेकिन," मैंने तर्क दिया, "रूस ने खेल खेला और कम आदर्शवादी रहा है, उसने पूंजीवादी देशों से बड़ी मात्रा में राशियां उधार ली होतीं और अपनी अर्थव्यवस्था को ज्यादा तेजी से संवारा होता। युद्ध के बाद की मुद्रास्फीति और इसी तरह की बातों के साथ उसने पूंजीवाद के दबावों के उसने अपने कर्जे आसानी से उतार दिये होते और दुनिया भर में उसकी साख भी बची रहती।"

वेल्स हँसे, "इसके लिए अब बहुत देर हो चुकी है।"

मैं अलग अलग मौकों पर एच जी वेल्स से कई बार मिला। फ्रांस के दक्षिणी इलाके में उन्होंने अपनी रूसी रखैल के लिए एक घर बनवा रखा था। वह बहुत तुनुक मिजाज महिला थी। उनके आतिशदान पर गोथिक अक्षरों में खुदा हुआ था : दो प्रमियों ने ये घर बनाया।"

"हां", जब मैंने इस पर टिप्पणी की तो वे बोले, "हमें इसे कई बार लगवाना और हटवाना पड़ा है। जब भी हममें झगड़ा होता है, मैं मिस्त्रा् को इसे हटा देने के लिए कहता हूं और जब हममें सुलह हो जाती है तो मोहतरमा मिस्त्रा् को इसे फिर लगाने के लिए कह देती हैं। इसे इतनी बार लगाया और हटाया गया है कि मिस्त्रा् ने आखिर हमारी तरफ ध्यान देना छोड़ दिया और इसे यहीं छोड़ गया है।

1931 में वेल्स साहब ने 'एनाटॉमी ऑफ मनी' पूरी की। इसमें दो वर्ष का परिश्रम लगा था और वे थके हुए नज़र आ रहे थे।

"अब आप क्या करने जा रहे हैं?" मैंने पूछा।

"दूसरी किताब लिखूंगा", वे थकी हुई हँसी हंसे।

"हे भगवान", मैं हैरान हुआ, "क्या आपको नहीं लगता कि आराम करना चाहिये या कोई और काम करना चाहिए?"

"और कुछ करने-धरने को है ही क्या?"