चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 47 Suraj Prakash द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 47

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

47

दस बरस के बाद मैं इस बात को ले कर भावुक था कि लंदन में मेरा स्वागत कैसा होगा। काश, मैं बिना किसी टीम-टाम के चुपचाप लंदन पहुंच पाता। लेकिन मैं सिटी लाइट्स के प्रीमियर में शामिल होने के लिए आया था और इसका मतलब था पिक्चर के लिए प्रचार। अलबत्ता, अपने स्वागत के लिए जुट आयी भीड़ के आकार को देख कर मैं निराश भी नहीं हुआ।

इस बार मैं कार्लटन में ठहरा। कारण ये था कि ये रिट्ज की तुलना में लंदन का पुराना लैंडमार्क था और इसके ज़रिये लंदन मेरे लिए ज्यादा पहचाना हुआ लगता था। मेरा सुइट अति उत्तम था। मैं सबसे ज्यादा उदास करने वाली जिस बात की कल्पना कर सकता हूं वह ये है कि विलासिता की आदत कैसे डाली जाये। हर दिन मैं कार्लटन में कदम रखता तो ऐसा महसूस होता मानो सोने के स्वर्ग में प्रवेश कर रहा होऊं। लंदन में अमीर हो कर रहने से ज़िंदगी हर पल उत्तेजना पूर्ण रोमांच की तरह हो गयी थी। दुनिया आवभगत का ही नाम हो गया था।

इस प्रदर्शन की सबसे पहली कड़ी सुबह से ही शुरू हो गयी।

मैंने अपने कमरे की खिड़की से बाहर झांका तो मुझे नीचे गली में कई प्लेकार्ड नज़र आये। एक पर लिखा था: "चार्ली अभी भी उनका चहेता है।" मैं इसके अर्थ को सोच कर मुस्कुराया। प्रेस मेरे प्रति बहुत अच्छी तरह से पेश आ रही थी। इसकी वज़ह ये हुई कि एक साक्षात्कार में जब किसी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं एल्स्ट्री जाऊंगा तो मैंने अच्छी खासी भूल कर दी। "ये कहां है?" मैंने भोलेपन से पूछा। वे एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराये। तब उन्होंने मुझे बताया कि ये इंगलिश फिल्म उद्योग का केन्द्र है। मेरी 'शर्मिंदगी इतनी वास्तविक थी कि उन्होंने इस बात का बुरा नहीं माना।

ये दूसरा दौरा पहले दौरे की ही तरह आत्मा को झकझोर देने वाला और उत्तेजनापूर्ण था और इसमें कोई शक नहीं कि ये ज्यादा रोचक था। ये वजह भी रही कि मुझे और अधिक रोचक लोगों से मिलने का सौभाग्य मिला।

सर फिलिप सैसून ने फोन किया और मुझे और राल्फ को पार्क लेन स्थित अपने शहर वाले घर पर तथा लिम्पने वाले कन्ट्री हाउस में कई डिनर पार्टियों में आमंत्रित किया। हमने उनके साथ हाउस ऑफ कॉमंस में भी खाना खाया। वहां पर हमारी मुलाकात लॉबी में लेडी एस्टर से हुई। एकाध दिन के बाद उन्होंने भी हमें नम्बर 1 सेंट जेम्स स्ट्रीट पर दोपहर के खाने पर बुलाया।

जैसे ही हम स्वागत कक्ष में पहुंचे, ऐसा लगा मानो हम मैडम टुसैड के हॉल ऑफ फेम में जा पहुंचे हैं। वहां पर बहुत-सी बड़ी हस्तियां मौजूद थीं। हमारा सामना बर्नार्ड शॉ, जॉन मेनार्ड कीन्स, लॉयड जॉर्ज और दूसरे कई लोगों से हुआ लेकिन ये लोग मैडम टुसैड के हॉल ऑफ फेम की तरह मोम के पुतले नहीं, हाड़ मांस के जीते जागते इन्सान थे। लेडी एस्टर ने अपनी अथक सूझबूझ के साथ बातचीत को तब तक जीवंत बनाये रखा जब तक उनके लिए अचानक बुलावा नहीं आ गया। और इसके बाद मौन पसर गया। फिर बागडोर संभाली बर्नार्ड शॉ ने और उन्होंने डीन इंगे के बारे में एक रोचक किस्सा सुनाया। डीन इंगे ने सेंट पॉल के उपदेशों के प्रति अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा था,"सेंट पॉल ने हमारे परम पिता परमेश्वर के उपदेशों को इतना विकृत कर दिया था कि यीशु को एक तरह से सिर के बल सूली पर चढ़ा दिया था।" बातचीत को जीवंत बनाये रखने में मदद करने में बर्नार्ड शॉ ने जो दयालुता और विनम्रता दिखायी, वह उनमें बेहद मनभावन और आकर्षक थी।

लंच के दौरान मैंने कीन्स से बात की और उन्हें बताया कि मैंने एक अंग्रेजी पत्रिका में बैंक ऑफ इंगलैंड में कर्ज के कामकाज के बारे में पढ़ा था। उस वक्त ये बैंक निजी कार्पोरेशन हुआ करता था। यह कि युद्ध के दौरान बैंक के स्वर्ण भंडार सूख गये थे और इसके पास केवल 400,000,000 डॉलर की ही विदेशी प्रतिभूतियां बची थीं और कि जिस वक्त सरकार ने बैंक से 500,000,000 डॉलर का कर्ज लेना चाहा तो बैंक ने सिर्फ अपनी प्रतिभूतियां बाहर निकालीं, उन्हें देखा और वापिस वाल्ट में रख दिया और सरकार को कर्ज जारी कर दिया। और यही लेनदेन कई कई बार दोहराया गया। .

कीन्स ने सिर हिलाया और कहा,"ये वो बात है जो घटी थी।"

लेकिन मैंने विनम्रता से पूछा,"लेकिन ये कर्ज चुकाये कैसे गये थे?"

"उसी विश्वास के धन के साथ।" कीन्स ने बताया।

लंच के खत्म होने से कुछ पहले लेडी एस्टर ने अपने चेहरे पर मज़ाकिया नकली दांत लगा लिये। इससे उनके असली दांत छुप गये। उन्होंने तब विक्टोरियाई युग की एक महिला की नकल करके दिखायी जो घुड़सवारों के एक क्लब में बोल रही है। इन दांतों से उनका चेहरा विकृत हो गया और उस पर ठिठोली करने वाले भाव आ गये। उन्होंने उत्साह से कहा,"हमारे ज़माने में हम ब्रिटिश महिलाएं विधिवत महिलाओं के से फैशन में शिकारी कुत्तों का पीछा करती थीं न कि पश्चिम की उन अमेरिकी पश्चिमी छिनालों की तरह अश्लील ढंग से टांगें मोड़ कर। हम एक तरफ वाली गद्दी पर ही बैठा करती थीं और इसमें स्त्रियोचित गरिमा होती थी।"

लेडी एस्टर बहुत ही शानदार अभिनेत्री बन सकती थीं। वे बहुत ही भली मेज़बान थीं और मैं उनका कई शानदार पार्टियों के लिए आभार मानता हूं। इन पार्टियों में मुझे इंगलैंड की कई महान विभूतियों के दर्शन करने के मौके मिले।

लंच के बाद सभी लोग बिखर गये। लॉर्ड एस्टर हमें मुनिंग्स द्वारा बनाया गया अपना पोट्रेट दिखाने ले गये। जिस वक्त हम स्टूडियो पर पहुंचे तो मुनिंग्स हमें तब तक भीतर आने देने के लिए बहुत इच्छुक नहीं थे जब तक लॉर्ड एस्टर ने जिद करके हमें भीतर आने देने के लिए उन्हें नहीं मना लिया। लॉर्ड एस्टर का पोर्ट्रेट हंटर पर था और वे हाउंड कुत्तों के झुंड से घिरे हुए थे। मैंने मुनिंग्स के साथ एक शरारत की। मैंने उनकी कई शुरुआती जल्दबाजी वाले अध्ययनों की तारीफ की जो उन्होंने कुत्तों की गति और अंतिम रूप से तैयार पोर्ट्रेट में दिखाये थे। "गति ही संगीत है।" कहा मैंने। मुनिंग्स का चेहरा खिल गया और उन्होंने मुझे कई दूसरे क्विक स्कैच दिखाये।

एकाध दिन बाद हमने बर्नार्ड शॉ के यहां खाना खाया। इसके बाद जी बी मुझे अपने पुस्तकालय में ले कर गये। वहां सिर्फ हम दो ही थे। लेडी एस्टर और बाकी दूसरे मेहमान बैठक में ही थे। पुस्तकालय खूब खुला खुला और खुशरंग कमरे में था और उसके सामने टेम्स नदी नज़र आती थी। और, जिगर थाम के, मेरे सामने एक आतिशदान पर रखी थीं बर्नार्ड शॉ की किताबें और मैं एक ठहरा मूरख, शॉ को बहुत कम पढ़ रखा था मैंने। मैं उनकी किताबों तक गया और हैरानी के से भाव लाते हुए बोला," आहा! ये सब आपका काम है!" तब मुझे सूझा कि वे शायद ये सुनहरी अवसर इसी लिये लाये होंगे कि अपनी किताबों के बारे में मुझसे चर्चा करके मेरे दिमाग की थाह ले सकें। मैंने कल्पना की कि हम दोनों बातचीत में इतने डूबे हुए हैं कि बैठक में बैठे बाकी मेहमान भीतर आ गये और हमारी बातचीत को भंग किया। काश, ऐसा होता तो कितना अच्छा होता। लेकिन हुआ कुछ और ही। हम दोनों के बीच मौन के पल आये, मैं मुस्कुराया और कमरे में चारों तरफ देखा और कमरे के इतने खुशनुमा होने के बारे में एकाध चलताऊ सा जुमला कहा। तब हम बाकी मेहमानों के बीच आ बैठे।

उसके बाद भी मैं मिसेज शॉ से कई बार मिला। मुझे याद है कि मैंने उनके साथ शॉ के नाटक एप्पल कार्ट के बारे में चर्चा की थी। इस नाटक को उदासीनता भरी समीक्षाएं मिली थीं। मिसेज शॉ नाराज़ थीं। कहा उन्होंने,"मैंने शॉ से कहा था कि और नाटक लिखना बंद कर दो। जनता और समीक्षक इनके लायक नहीं हैं।"

अगले तीन दिन तक हमारे पास न्यौतों का तांता लगा रहा। एक निमंत्रण प्रधान मंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड की तरफ से था। दूसरा विंस्टन चर्चिल की तरफ से तथा अन्य निमंत्रण लेडी एस्टर, सिर फिलिप ससून और इसी तरह से राजसी लोगों की तरफ से थे।

विंस्टन चर्चिल से मैं पहली बार मैरियन डेविस के बीच हाउस पर मिला था। वहां पर बाल रूम तथा स्वागत वाले कमरे के बीच लगभग पचास मेहमान एक दूसरे के कंधे से कंधा भिड़ाते घूम रहे थे। तभी दरवाजे में हर्स्ट के साथ चर्चिल नज़र आये। वे नेपोलियन की तरह अपना हाथ वेस्टकोट में डाले खड़े थे और नृत्य देख रहे थे। वे अपने आप में खोये खोये और असंगत लग रहे थे। डब्ल्यू आर ने मुझे देखा और मुझे आगे करके और हम दोनों का परिचय कराया गया।

चर्चिल का तौर तरीका आत्मीय होने के बावजूद झटके वाला था। हर्स्ट ने हम दोनों को अकेला छोड़ दिया और हम दोनों खड़े खड़े आपस में इधर उधर की बातें करने लगे। हमारे चारों तरफ लोगों की भीड़ जुट आयी थी। जब तक मैंने उनसे इंगलिश लेबर सरकार की बात नहीं की, उनके चेहरे पर रौनक नहीं आयी।

"एक बात मैं समझ नहीं पाता," मैंने कहा,"कि इंगलैंड में समाजवादी सरकार का चुनाव राजा और रानी की हैसियत नहीं बदलता।"

उन्होंने मेरी तरफ तेज़ निगाहों से देखा और मज़ाक में चुनौती दी,"बेशक नहीं," कहा उन्होंने।

"मैं सोचता था कि समाजवादी राजशाही के खिलाफ होते हैं।"

वे हँसे,"अगर आप इंगलैंड में होते तो इस जुमले के लिए आपका सर कलम कर दिया जाता।"

एक या दो दिन बाद की बात है, उन्होंने होटल में अपने सुइट में मुझे डिनर के लिए आमंत्रित किया। वहां पर दो मेहमान और थे। उनका लड़का रैन्डोल्फ भी वहीं पर था। वह सोलह बरस का खूबसूरत किशोर था जो बौद्धिक तर्क करने के लिए उतावला था और उसमें असहनीय जवानी वाली आलोचना थी। मैं देख पा रहा था कि चर्चिल को उस पर बहुत गर्व था। ये एक बहुत ही शानदार शाम थी जिसमें बाप बेटे बेसिलसिलेवार चीज़ों के बारे में शेखियां बघार रहे थे। उसके बाद उनके इंगलैंड लौटने से पहले हम कई बार मैरियन के बीच हाउस पर मिले।

और अब चूंकि हम लंदन में थे, मिस्टर चर्चिल ने सप्ताहांत बिताने के लिए मुझे और रैल्फ को चार्टवैल में आमंत्रित किया। वहां तक हमें ठंड में और मुश्किल ड्राइव करनी पड़ी। चार्टवैल एक पुराना-सा प्यार-सा घर है जिसे सादगी से लेकिन सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाया गया है। यहां पर आ कर घर जैसी भावना मिलती है। लंदन में अपनी दूसरी यात्रा के बाद ही यह संभव हो सका था कि मैं चर्चिल को ढंग से जान पाया। इस दौरान वे हाउस ऑफ कामंस में पीछे की सीटों पर बैठा करते थे।

मेरी कल्पना शक्ति ये कहती है कि सर विंस्टन में हम सब से अधिक मज़ाक का माद्दा था। अपनी ज़िंदगी के मंच पर उन्होंने कई भूमिकाएं बहादुरी, ऊर्जा और उल्लेखनीय उत्साह के साथ अदा की हैं। इस दुनिया में बहुत कम ऐसे आनंद होंगे जो उन्होंने न भोगे हों। वे भरपूर जीवन जीए और भरपूर खेले - उन्होंने खेल में सबसे बड़ी बाजियां लगायीं और जीते भी। उन्होंने सत्ता का सुख भोगा लेकिन उसके मोह में नहीं पड़े। अपने व्यस्त जीवन में से भी उन्होंने ईंटें बनाने, घुड़दौड़ और चित्रकारी के लिए अपने शौक पूरे करने के लिए वक्त निकाल ही लिया। डाइनिंग रूम में मैंने आतिशदान के ऊपर एक स्टिल लाइफ पेंटिंग देखी। विन्स्टन ने ताड़ लिया कि मैं उसमें गहरी रुचि ले रहा हूं।

"ये मैंने बनायी है।"

"लेकिन कितनी शानदार है!' मैंने उत्साहपूर्वक कहा।

"ये तो कुछ भी नहीं है। मैंने दक्षिणी फ्रांस में एक आदमी को लैंडस्केप बनाते हुए देखा और कहा, 'मैं भी ये कर सकता हूं।' "

अगले दिन उन्होंने मुझे चार्टवैल के चारों तरफ बनायी गयी वह दीवार दिखायी जो उन्होंने खुद बनायी थी। मैं हैरान हुआ था और इस आशय की कोई बात कही थी कि ईंटें बनाना उतना आसान नहीं होता जितना लगता है।

"मैं आपको बताता हूं कि कैसे बनती हैं ईंटें और आप पांच मिनट में बनाना सीख जायेंगे।"

पहली रात डिनर के समय कई युवा संसद सदस्य सचमुच ही उनके कदमों में बैठे। इनमें थे मिस्टर बूथबाय, अब लॉर्ड बूथबाय, और स्वर्गीय ब्रैन्डेन ब्रैकेन जो बाद में चल कर लार्ड ब्रैकने बने। दोनों ही प्यारे और अच्छी तरह से बातचीत करने वाले लोग थे। मैंने उन्हें बताया कि मैं गांधी जी से मिलने जा रहा हूं जो इन दिनों लंदन में हैं।

"हमने इस व्यक्ति को बहुत झेल लिया है। ब्रैकेन ने कहा,"भूख हड़ताल हो या न हो, उन्हें चाहिये कि वे इन्हें जेल में ही रखें। नहीं तो ये बात पक्की है कि हम भारत को खो बैठेंगे।"

"गांधी को जेल में डालना सबसे आसान हल होगा, अगर ये हर काम करे तो" मैंने टोका,"लेकिन अगर आप एक गांधी को जेल में डालते हैं तो दूसरा गांधी उठ खड़ा होगा और जब तक उन्हें वह मिल नहीं जाता जो वे चाहते हैं वे एक गांधी के बाद दूसरा गांधी पैदा करते रहेंगे।"

चर्चिल मेरी तरफ मुड़े और मुस्कुराये,"आप तो अच्छे खासे लेबर सदस्य बन सकते हैं।"

चर्चिल का आकर्षण इसी बात में था कि वे दूसरों की राय के प्रति भी सहनशक्ति और सम्मान की भावना रखते थे। वे उनके प्रति भी कोई दुर्भावना नहीं रखते थे जो उनसे असहमत होते थे।

ब्रैकेन और बूथबाय पहली रात हमसे विदा हो गये और अगली रात मैंने चर्चिल को अपने परिवार के साथ अंतरंग पलों में देखा। ये राजनैतिक रूप से उतार चढ़ाव का दिन था। लॉर्ड बीवरब्रूक सारा दिन चार्टवैल में टेलीफोन करते रहे और विंस्टन चर्चिल को डिनर के दौरान कई बार उठना पड़ा। ये चुनाव के बीच की बात है और देश आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहा था।

मुझे खाना खाने के वक्त मज़ा आ रहा था। कारण ये था कि चर्चिल खाने की मेज़ पर राजनैतिक व्याख्याएं कर रहे थे जबकि उनका परिवार बिना प्रभावित हुए खाना खा रहा था। सामने वाले को यही लगता कि ये रोज़ाना की बात है और वे लोग इसके आदी हैं।

"मंत्रालय अपनी मुश्किलें गिनवा रहा है जो उन्हें बजट का संतुलन बिठाने में आ रही हैं," चर्चिल ने पहले अपने परिवार की तरफ कनखियों से देखा फिर मेरी तरफ देखा, "क्योंकि वे अपनी निधियों की आखिरी सीमा तक पहुंच गये हैं, अब उनके सामने कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर टैक्स लगा सकें, जबकि इंगलैंड अपनी चाय को श्रबत की तरह हिला रहा है।" वे इस बात का असर देखने के लिए रुके।

"क्या ये संभव है कि चाय पर अतिरिक्त टैक्स लगा कर आपके बजट को संतुलित कर लिया जाये?" मैंने पूछा।

वे मेरी तरफ देखने लगे और हिचकिचाये,"हां," वे कहने लगे, लेकिन मेरा ख्याल है इस कहने में प्रतिबद्धता नहीं थी।

मैं चार्टवैल की सादगी और कुछ हद तक सादगीपूर्ण रुचि के कारण उसका दीवाना हो गया था। उनका सोने का कमरा उनके पुस्तकालय से जुड़ा हुआ ही था और उसमें चारों तरफ किताबों के ऊपर से नीचे अम्बार लगे थे। एक तरफ की दीवार पूरी तरह से हैन्सार्ड की संसदीय रिपोर्टों को समर्पित थी।

वहां पर नेपोलियन पर भी कई खंड थे।

"हां," उन्होंने बताया,"मैं नेपोलियन का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं।"

"मैंने सुना है कि आप नेपोलियन पर फिल्म बनाने के बारे में सोच रहे हैं!" कहा उन्होंने,"आपको से फिल्म ज़रूर बनानी चाहिये। उसमें कॉमेडी की बहुत अधिक संभावनाएंं हैं: नेपोलियन स्नान कर रहे हैं। उनका भाई जेरोम सोने की कसीदाकारी की हुई यूनिफार्म पहन कर उनके बाथरूम में घुसा चला आता है, ताकि इस पल में अपने भाई को परेशान कर सके और उसे अपनी मांगें मनवाने के लिए मज़बूर कर सके। लेकिन नेपोलियन जान बूझ कर बाथटब में सरक जाता है और पानी के छींटे भाई की यूनिफार्म पर उछालता है और उसे दफा हो जाने के लिए कहता है। भाई कलंकित हो कर चला जाता है। कितना शानदार कॉमेडी सीन है!"

मुझे याद है मिस्टर और मिसेज चर्चिल क्वाग्लिनो रेस्तरां में खाना खा रहे थे। विन्स्टन बच्चों की तरह मुंह फुलाये बैठे थे। मैं उनसे दुआ सलाम करने के लिए उनकी मेज़ तक गया।

"ऐसा लगता है मानो आपने पूरी दुनिया का व़ज़न निगल लिया हो?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

उन्होंने बताया कि वे अभी अभी हाउस ऑफ कामंस से एक बहस से उठ कर आ रहे हैं और उन्हें वे सब बातें पसंद नहीं आयीं जो जर्मनी के बारे में की जा रही हैं। मैंने ऐसा ही कोई हल्का फुल्का जुमला उछाला, लेकिन उन्होंने सिर हिलाया, "ओह नहीं, मामला बहुत ही गम्भीर है, सचमुच बहुत ही गम्भीर।"

चर्चिल के पास रुकने के थोड़े ही अरसे बाद मैं गांधी से मिला। मैंने गांधी की राजनैतिक साफगोई और इस्पात जैसी दृढ़ इच्छा शक्ति के लिए हमेशा उनका सम्मान किया है और उनकी प्रशंसा की है। लेकिन मुझे ऐसा लगा कि उनका लंदन आना एक भूल थी। उनकी मिथकीय महत्ता, लंदन के परिदृश्य में हवा में ही उड़ गयी है और उनका धार्मिक प्रदर्शन भाव अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहा है। इंगलैंड के ठंडे भीगे मौसम में अपनी परम्परागत धोती, जिसे वे अपने बदन पर बेतरतीबी से लपेटे रहते हैं, में वे बेमेल लगते हैं। लंदन में उनकी इस तरह की मौजूदगी से कार्टून और कैरीकेचर बनाने वालों को मसाला ही मिला है। दूर के ढोल ही सुहावने लगते हैं। किसी भी व्यक्ति के प्रभाव का असर दूर से ही होता है। मुझसे पूछा गया था कि क्या मैं उनसे मिलना चाहूंगा। बेशक, मैं इस प्रस्ताव से ही रोमांचित था।

मैं उनसे ईस्ट इंडिया डॉक रोड के पास ही झोपड़ पट्टी जिले के छोटे से अति साधारण घर में मिला। गलियों में भीड़ भरी हुई थी और मकान की दोनों मंज़िलों पर प्रेस वाले और फोटोग्राफर ठुंसे पड़े थे। साक्षात्कार पहली मंज़िल पर लगभग बारह गुणा बारह फुट के सामने वाले कमरे में हुआ। महात्मा तब तक आये नहीं थे; और जिस वक्त मैं उनका इंतज़ार कर रहा था, मैंने ये सोचने लगा कि मैं उनसे क्या बात करूंगा। मैंने उनके जेल जाने और भूख हड़तालों तथा भारत की आज़ादी के लिए उनकी लड़ाई के बारे में सुना था और मैं इस बारे में थोड़ा बहुत जानता था कि वे मशीनों के इस्तेमाल के विरोधी हैं।

आखिरकार जिस वक्त गांधी आये, टैक्सी से उनके उतरते ही चारों तरफ हल्ला गुल्ला मच गया। उनकी जय जय कार होने लगी। गांधी अपनी धोती को बदन पर लपेट रहे थे। उस तंग भीड़ भरी झोपड़ पट्टी की गली में ये अजीब नज़ारा था। एक दुबली पतली काया एक जीर्ण शीर्ण से घर में प्रवेश कर रही थी और उनके चारों तरफ जय जयकार के नारे लग रहे थे। वे ऊपर आये और फिर खिड़की में अपना चेहरा दिखाया। तब उन्होंने मेरी तरफ इशारा किया और तब हम दोनों ने मिल कर नीचे जुट आयी भीड़ की तरफ हाथ हिलाये।

जैसे ही हम सोफे पर बैठे, चारों तरफ से अचानक ही कैमरों की फ्लैश लाइटों का हमला हो गया। मैं महात्मा की दायीं तरफ बैठा था। अब वह असहज करने वाला और डराने वाला पल आ ही पहुंचा था जब मुझे एक ऐसे विषय पर घाघ की तरह बौद्धिक तरीके से कुछ कहना था जिसके बारे में मैं बहुत कम जानता था। मेरी दायीं तरफ एक हठी युवती बैठी हुई थी जो मुझे एक अंतहीन कहानी सुना रही थी और उसका एक शब्द भी मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा था। मैं सिर्फ हां हां करते हुए सिर हिला रहा था और लगातार इस बात पर हैरान हो रहा था कि मैं उनसे कहूंगा क्या। मुझे पता था कि बात मुझे ही शुरू करनी है और ये बात तो तय ही थी कि महात्मा तो मुझे नहीं ही बताते कि उन्हें मेरी पिछली फिल्म कितनी अच्छी लगी थी और इस तरह की दूसरी बातें। और मुझे इस बात पर भी शक था कि उन्होंने कभी कोई फिल्म देखी भी होगी या नहीं। अलबत्ता, एक भारतीय महिला की आदेश देती सी आवाज़ गूंजी और उसने उस युवती की बक बक पर रोक लगा दी: "मिस, क्या आप बातचीत बंद करेंगी और मिस्टर चैप्लिन को गांधी जी से बात करने देंगी?"