शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 23 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 23

स्टूडियो


उसी रात। काले रंग की दो बड़ी कारें डे स्ट्रीट रोड पर सन्नाटे को चीरती हुई तेजी से आगे बढ़ रहीं थीं। टायरों की चरचराहट रात के सन्नाटे में अजीब सी लग रही थीं। ऐसा लग रहा था कई सारे चमगादड़ चिचिया रहे हों। इस रोड पर गाड़ियों का आना-जाना आम सी बात थी। रात का आखिरी पहर था। दोनों ही कार में ड्राइवर को मिलाकर तीन-तीन आदमी मौजूद थे।

दोनों ही कारों की रफ्तार बहुत ज्यादा नहीं थी। कुछ दूर जाने के बाद एक बड़ी सी इमारत के सामने दोनों ही कारें रुक गईं। कार रुकते देख कर बिल्डिंग का गार्ड चौकन्ना होकर बैठ गया। दोनों कारों के ड्राइवर उतर कर गार्ड के पास पहुंचे और उससे बातें करने लगे। बात एक पता पूछने से शुरू हुई और फिर दोनों ने गार्ड को बातों में इस तरह से उलझा लिया, जैसे इनकी काफी दिनों से सनाशाई हो। इस बीच बाकी चारों लिफ्ट के जरिए ऊपर चले गए।

लिफ्ट थर्ड फ्लोर पर जाकर रुकी थी। लिफ्ट से निकल कर चारों दबे कदमों से आगे बढ़ने लगे। गलियारे में सन्नाटा पसरा हुआ था। चारों एक फ्लैट के सामने जाकर रुक गए। फ्लैट के दरवाजे पर ताला लटक रहा था। उनमें से एक ने जेब से चाबी का एक गुच्छा निकाला और एक-एक करके कई चाबियां ताले में डाल कर उसे खोलने की कोशिश करने लगे। आखिरकार उन्हें कामयाबी मिल ही गई। एक चाबी को अंदर डाल कर हिलाने-डुलाने पर ताला खटके के साथ खुल गया। चारों बड़े आराम से अंदर दाखिल हो गए।

उनमें से एक ने जेब से मोबाइल निकालकर उसकी रोशनी में स्विच बोर्ड तलाशा और लाइट जला दी। दूसरे ने दरवाजे को अंदर से बंद कर दिया। यह एक बड़ा सा हालनुमा कमरा था। यहां चारों तरफ पेंटिंग ही पेंटिंग थीं। चारों खड़े उन पेंटिंगों को कुछ देर देखते रहे। उसके बाद पेंटिंग बड़ी तेजी से उलटी-पलटी जाने लगीं।

कुछ देर बाद पूरा हाल ही तहस नहस हो गया। वहां का काम निपटा कर दोनों लॉबी से होते हुए बगल वाले कमरे में चले गए। लाइट जलाकर कमरे का जायजा लेने लगे। वह बेड रूम था। वहां भी दीवारों पर तीन पेंटिंग लटक रही थीं। उन्होंने बड़े ध्यान से उन पेंटिंगों को देखा, लेकिन शायद उन्हें अपनी पसंद की पेंटिंग नहीं मिली थी। वह दोनों लाइट बुझाकर बाहर आ गए।

लौटकर उन दोनों ने हाल में खड़े बाकी दोनों से वापस चलने के लिए कहा। उन्होंने यहां की भी लाइट बुझा दी और बाहर निकल कर दरवाजा बंद किया और ताले को लटका कर चले गए। जबरन खोला गया ताला दोबारा बंद हो जाए यह बहुत मुश्किल है। यही वजह है कि उन्होंने ताला बंद करने की कोई कोशिश नहीं की थी।

लिफ्ट से नीचे आकर वह चारों बड़ी सावधानी से कार में बैठ गए और उनमें से एक ने ड्राइवर को मिस कॉल मारी। नतीजे में दोनों ड्राइवर ने गार्ड का शुक्रिया अदा किया और आकर कार में बैठ गए। कार तेजी से आगे बढ़ गई।


संदिग्ध श्रेया


कुछ चाय का असर, कुछ बीड़ी का असर और कुछ सुबह की ठंडी हवाओं का खलल था कि सार्जेंट सलीम फिर से चैतन्य हो गया। उसका दिमाग काफी फुर्सी से काम करने लगा। नींद कुछ पल के लिए गायब हो गई।

उसने बीड़ी का एक गहरा कश लिया और तन कर बैठ गया। उसके बाद उसने इंस्पेक्टर सोहराब की तरफ देखते हुए कहा, “अब मैं आपको एक ऐसी खबर सुनाने जा रहा हूं कि आप उछल पड़ेंगे। इसलिए ट्रेन के इस राड को ज़रा जोर से पकड़ लीजिए।”

इंस्पेक्टर सोहराब ने घूम कर उसकी तरफ देखा, लेकिन कहा कुछ नहीं।

“शेयाली जिंदा है।” इतना कहने के बाद सार्जेंट सलीम ने इंस्पेक्टर सोहराब के चेहरे को गौर से देखा। उसे उम्मीद थी कि सोहराब उसकी इस बात पर बुरी तरह से चौंक पड़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे सलीम को निराशा हुई। कुछ देर बाद उसने कहा, “मैं जंगल में उससे मिल कर आया हूं। बस जरा सा चूक हो गई वरना मेरी उससे शादी होने वाली थी और मैं वहीं जंगल में बस जाता।” सलीम ने पूरे जोश से उसे बताया।

“पूरी बात बताइए। शुरू से आखिर तक।” सोहराब ने पूरी गंभीरता से कहा।

सार्जेंट सलीम ने उसे शुरू से आखिर तक पूरी दास्तान सुना डाली। यह भी बताया कि किस तरह से श्रेया को जंगली मार डालना चाहते थे, लेकिन उनमें से कुछ जंगलियों को उस पर रहम आ गया था और उन्होंने उसकी जान बख्श दी। उसे उन्होंने एक गुफा में छुपा दिया था। सार्जेंट सलीम ने गुफा में फंसने और फिर निकलने की बात भी उसे संक्षेप में बता डाली।

सोहराब ने उसकी बात बड़े ध्यान से सुनी, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। उसके इस व्यवहार पर सार्जेंट सलीम को आश्चर्य हुआ। उसने कहा, “लगता है आपको यक़ीन नहीं हुआ मेरी बात का। सच कह रहा हूं... श्रेया जिंदा है और जंगलियों के बीच में खुश है। शहर चल कर एक पुलिस टीम बनाकर जंगल में तलाश शुरू कराइए और केस को फिनिश कीजिए।”

“देखते हैं।” सोहराब ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।

सोहराब के इस ठंडेपन पर सलीम को बड़ा गुस्सा आया। वह खामोश होकर बैठ गया। सोहराब पीछे भागती रेल की पटरियों को देखते हुए कुछ सोच रहा था।

कुछ देर बाद सलीम ने दोबारा बात शुरू की, “आप यहां कैसे?”

“शूटिंग देखने आया था।” सोहराब ने गंभीरता से जवाब दिया।

“शूटिंग देखने। आपको तो रोल करना चाहिए था।” सलीम ने हंसते हुए कहा, तो अब वापस क्यों जा रहे हैं।”

“क्योंकि शूटिंग कैंसिल हो गई है।”

“मतलब!”

“अब इसका क्या मतलब बताऊं। मतलब शूटिंग कैंसिल हो गई है।”

“आपको कैसे पता चला, जबकि आप तो सुबह ही निकल लिए हैं।”

“मुझे शैलेष जी अलंकार की जेब से एक काग़ज़ का टुकड़ा मिला था। उस पर पूरा शूटिंग शेड्यूल लिखा हुआ था। इसलिए मैं इधर आ गया।” सोहराब ने भागती पटरियों पर नजरें जमाए हुए ही जवाब दिया।

“फिर वापस क्यों जा रहे हैं?”

“इसलिए कि तुमने और श्रेया ने यहां आकर पूरा प्लान बिगाड़ दिया। दूसरी बात कि मैंने श्रेया का अपहरण करने वाले चार लोगों को पीट दिया था, इसलिए मेरी पहचान संदिग्ध हो चुकी है और रुकने से अब कोई फायदा नहीं है।” सोहराब ने उसे अपने आने और शैलेष अलंकार से रात के सन्नाटे में मुलाकात होने और फिर श्रेया के अपहरण की पूरी बात बता दी। उसके बाद कहा, “तुम्हारी मौजूदगी और इतने हंगामे के बाद मुझे पूरा यकीन है कि शूटिंग कैंसिल हो जाएगी।”

“तो क्या शैलेष और कैप्टन किशन भी संदिग्ध हैं!” सलीम ने आश्चर्य से पूछा।

“शेयाली से संबंध रखने वाला हर आदमी संदिग्ध है।” सोहराब ने जवाब दिया।

“लेकिन अब तो शेयाली मिल गई है न।” सलीम ने उसे फिर याद दिलाया।

सोहराब ने उसकी बात को नजरअंदाज करते हुए कहा, “यहां तक कि श्रेया भी संदिग्ध है!”

“श्रेया क्यों संदिग्ध है। उसका क्या वास्ता इस मामले से?” सलीम की आवाज में आश्चर्य का भाव था।

“शेयाली के गायब होने की शाम से लेकर आज तक वह हर जगह इस केस में मौजूद है... और सबसे बड़ी बात यह है कि अब तक तीन बार उस पर जानलेवा हमला भी हो चुका है।”

“तीन बार?” सलीम ने आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए पूछा।

“दिमाग का इस्तेमाल किया करो... सिर्फ सवाल मत पूछा करो।” इंस्पेक्टर सोहराब ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, “पहली बार उसे जंगलियों ने मारने की कोशिश की... दूसरी बार उसे कब्र में जिंदा दफनाने का प्लान था और तीसरी बार तांगे पर मारने की कोशिश की गई थी।”

“दफ्नाने की कोशिश... ?” सलीम की आंखें फैल गई थीं।

“वह चारों उसे ले जा कर एक बड़े से गड्ढे में डाल कर उसके ऊपर मनों मिट्टी डालने वाले थे। उन्होंने जंगल में एक बड़ा सा गड्डा पहले ही तैयार कर रखा था। पता भी नहीं चलता कि उसे जमीन खा गई या आसमान निगल गया। खैर रही कि मौके से मैं वहां पहुंच गया और श्रेया की जान बच गई। उस पर फिर हमला हो सकता है। यही वजह है कि मैंने टैक्सी की जगह ट्रेन से सफर करने को तरजीह दी। हमारे अलावा तुम दोनों ही निहत्थे हो। टैक्सी पर हमला होने की सूरत में हम बहुत देर टिक नहीं पाएंगे उनके सामने।”

“हमला तो ट्रेन पर भी हो सकता है?” सलीम ने कहा।

“नहीं... अब यह ट्रेन सीधे राजधानी ही पहुंचकर रुकेगी... और दूसरे ट्रेन की पटरियों के साथ पीछा करना काफी मुश्किल है।” सोहराब ने कहा।

“मान गए बॉस। मैं खामखां नाराज था कि टैक्सी से क्यों नहीं गए। कुछ देर बाद सलीम ने पूछा, “क्या तांगे वाला हमला भी श्रेया पर ही हुआ था?”

“यकीनन।” सोहराब ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

“ओह! इसीलिए आप हमारे साथ नहीं आए। कितने लोग थे वह?” सलीम ने पूछा।

“दो हमलावर थे।” सोहराब ने उसे बताया, “दोनों के ही पैरों में गोली लगी है। इसके बावजूद वह किसी तरह से वहां से अपनी कार से फरार होने में कामयाब रहे।”

“अरे... तो हमें पुलिस को सूचित करना चाहिए था। उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं कराया आपने?” सलीम ने ताज्जुब से पूछा।

“पुलिस वालों की तरह मत सोचा करो।” सोहराब ने कहा, “हमारे लिए हमला करना केस नहीं है... पूरा केस इससे कहीं ज्यादा अहम है। दो प्यादे गिरफ्तार करके आप केस साल्व नहीं कर सकते।”

सोहराब की इस बात पर सलीम खिसियाकर रह गया।

कुछ देर बाद सोहराब ने कहा, “आज दिन भर और रात भर खूब आराम कर लो। कल से काम शुरू करो।”

“जो हुक्म मेरे आका!” सलीम ने गर्दन को जरा आगे झुकाते हुए कहा।

“हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि श्रेया का इस पूरे मामले में रोल क्या है? कौन है जो उसकी जान लेने की कोशिश कर रहा है? और सबसे अहम सवाल यह है कि इन हमलों की वजह क्या है?” सोहराब ने कहा।

कुछ देर खामोशी रही। उसके बाद अचानक सलीम को कुछ याद आया और उसने फिर से बात छेड़ दी। “आप यहां सिर्फ शूटिंग देखने तो नहीं आए होंगे? और फिर एक जासूस को इतनी फुरसत कहां कि वह भेस बदल-बदल कर शूटिंग देखता फिरे।” सलीम ने आखिरी वाक्य मुस्कुराते हुए कहा था।

“तुम ने जो कपड़े पहन रखे हैं न इसमें एक दम हुड़ुकचुल्लू लग रहे हो।” सोहराब ने उसकी तरफ देखते हुए कहा।

“आपने मुझे जंगलियों के कपड़ों में नहीं देखा... तब मैं कुड़ुकचुल्लू लग रहा था।” सलीम ने पूरी गंभीरता से जवाब दिया। कुछ देर बाद उसने फिर पूछा, “आपने बताया नहीं।”

“क्या?”

“यही कि आप यहां क्या करने आए थे?”

“तुम्हारी तलाश में।” सोहराब ने कहा।

“बेवकूफ मत बनाइए।”

“आप आलरेडी हैं। बनाने की जरूरत नहीं है।”

सलीम को जम्हाई आने लगी थी। वह दरी पर लेट गया और कुछ देर बाद ही उसके खर्राटे सुनाई देने लगे।


तलाश


हाशना इस वक्त शेक्सपियर कैफे में बैठी कॉफी पी रही थी। कुछ देर बाद मजबूत जिस्म का एक नौजवान आकर उसके सामने की सीट पर बैठ गया।

“हमने काफी तलाश किया लेकिन उसका पता नहीं चल पा रहा है।” आने वाले ने हाशना से कहा, “लेकिन हम जल्द पता लगा लेंगे।”

“तुम्हें कितना समय और लगेगा?” हाशना ने पूछा।

“उम्मीद है कि आपका काम एक हफ्ते में हो जाएगा।”

“यह बात तो आपने पिछली बार भी कही थी।” इस बार हाशना का लहजा खुश्क था।

“मैडम, वक्त तो लगता ही है ऐसे कामों में। हम पूरी कोशिश कर रहे हैं।”

“दुनिया कोशिश से नहीं नतीजों से चलती है। मुझे नतीजा चाहिए।”

“बहुत जल्द आपको खुशखबरी मिलेगी। आप बेफिक्र रहिए।”

“कॉफी पियोगे?” उसके आश्वासन को नजरअंदाज करते हुए हाशना ने पूछा।

“नो थैंक्स मैम! आई एम गोइंग नाउ।” यह कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ।

हाशना लापरवाही से उसे जाते हुए देखती रही।


*** * ***


हाशना को किस चीज की तलाश है?
श्रेया का पूरे मामले में क्या रोल है?
क्या शेयाली को जंगलियों से आजाद कराया जा सका?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर का अगला भाग...