शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 19 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 19

लिफ्ट

यह आवाज कैप्टन किशन की थी। कार की पिछली सीट से कैप्टन किशन ने उतरते हुए पूछा, “यहां क्या कर रहे हो इतनी रात को, और यह जंगलियों का सा लिबास क्यों पहन रखा है?”

“मैं शिकार खेलने गया था। वहां जंगलियों ने मुझे अपना राजा बना लिया। आने ही नहीं दे रहे थे। बड़ी मुश्किल से भाग कर आया हूं।” सार्जेंट सलीम ने पूरी गंभीरता से जवाब दिया।

अचानक कैप्टन किशन की नजर श्रेया पर पड़ गई। उसने धीरे से कहा, “ओह तो आप भी हैं!”

उसने यह बात इतने धीरे से कही थी कि सार्जेंट सलीम सुन नहीं सका।

“कहां जाना है?” कैप्टन किशन ने पूछा।

“जहां आप ले चलें।” सार्जेंट सलीम ने अधिकारपूर्ण ढंग से कहा।

“मैं तो शोलागढ़ जा रहा हूं।” कैप्टन किशन ने जवाब दिया।

“हमें भी ले चलिए।” सार्जेंट सलीम ने बेहिचक कहा।

“आप लोग पीछे की सीट पर बैठ जाइए। मैं आगे बैठ जाता हूं।” कैप्टन किशन आगे की सीट पर बैठते हुए बोला।

सलीम ने श्रेया को सहारा देकर पीछे की सीट पर बैठा दिया और खुद भी उसकी बगल में बैठ गया। कार एक झटके से आगे बढ़ गई।

कैप्टन किशन और सार्जेंट सलीम में जो भी बातें हुई थीं, श्रेया कुछ भी नहीं सुन सकी थी। वह कैप्टन किशन को पहचान भी नहीं पाई थी, क्योंकि थकान और कमजोरी की वजह से वह नीम बेहोशी की हालत में थी। कार में बैठते ही वह तुंरत सो गई।

“आप शोलागढ़ क्या करने जा रहे हैं?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए।” कैप्टन किशन ने जवाब दिया।

“आपने तो कहा था कि शेयाली के बिना फिल्म डिब्बा बंद हो गई है!” सार्जेंट सलीम ने उसे याद दिलाया।

“फिल्म बंद करने से मेरा काफी नुकसान हो रहा था... इसलिए उसे पूरी करना ही पड़ेगा।” कैप्टन किशन बोला।

सार्जेंट सलीम ने फिर सवाल किया, “शेयाली वाला हिस्सा पूरा हो गया है क्या फिल्म का?” उसे जाने क्यों दिलचस्पी पैदा हो गई थी।

“यह शैलेष जी अलंकार ही बता पाएंगे।” कैप्टन किशन ने टालने वाले लहजे में कहा।

“मुझे कपड़े तो मिल जाएंगे न वहां?” सलीम ने बात बदलते हुए कहा। उसने महसूस कर लिया था कि कैप्टन किशन फिल्म और शेयाली पर बात नहीं करना चाहता है।

कैप्टन किशन ने जवाब दिया, “जरूर मिल जाएंगे... लेकिन नए कपड़े मिलना थोड़ा मुश्किल होगा।”

“जैसे भी हों.... कौन सा मुझे दूल्हा बनना है।” सलीम ने कहा।

इसके बाद खामोशी छा गई। सलीम को बहुत तेज नींद आ रही थी, लेकिन वह सोना नहीं चाहता था। इसकी वजह यह थी कि वह कैप्टन किशन की तरफ से मुतमइन नहीं था।

कुछ देर बाद कैप्टन किशन ने उससे पूछा, “आप मेरे साथ होटल में ठहरना पसंद करेंगे या फिर शूटिंग साइट वाली कोठी में।”

“मैं समझा नहीं।” सार्जेंट सलीम ने जवाब दिया।

“मैं होटल में ठहरूंगा, लेकिन आपका वहां इस हालत में जाना मुनासिब नहीं है। बेहतर है कि पहले हम शूटिंग साइट पर ही चलें। वहां आपको कपड़े दिलाता हूं, उसके बाद आप चाहें तो कोठी के ही किसी बेडरूम में सो रहिएगा या फिर मेरे साथ होटल चलिएगा। वहां कई कमरे बुक हैं।”

“यही सही रहेगा।” सलीम ने कहा।

कैप्टन किशन ने ड्राइवर को समझाते हुए कहा, “पहले कोठी पर ही चलो।”

कुछ देर बाद उनकी कार एक बड़ी सी कोठी के सामने लॉन में खड़ी थी। ड्राइवर ने उतर कर पहले कैप्टन किशन की तरफ का गेट खोला और उसके बाद सार्जेंट सलीम की तरफ का गेट खोल दिया।

सलीम कार से उतर आया। वह कोठी को बड़े ध्यान से देख रहा था। यह तकरीबन 500 मीटर एरिया में फैली हुई बहुत बड़ी कोठी थी। आधे हिस्से में कोठी बनी थी और आधा हिस्से में उसका लॉन फैला हुआ था। लॉन में जगह-जगह पुराने अंदाज के लोहे के खंभों पर लैंप जगमगा रहे थे।

लॉन में एक तरफ कई सारी कुर्सियां और बड़ी सी मेज रखी हुई थी। पास ही फव्वारा चल रहा था। लान को मेहंदी की बाड़ से दो हिस्सों में बांट दिया गया था। हालांकि बीच-बीच में दोनों हिस्सों को जोड़ने के लिए रास्ता भी था। हर तरफ लाइट जगमगा रही थी, लेकिन इसके बावजूद पूरी कोठी सहस्यमय लग रही थी।

सार्जेंट सलीम ने कोठी और लॉन का जायजा लेने के बाद कहा, “शानदार!”

“फिल्म की शूटिंग इसी कोठी में होनी है।” कैप्टन किशन ने उसके करीब आते हुए कहा।

“कब से होगी शूटिंग।”

“कल रात से। यहां एक भूतिया मंजर शूट किया जाना है।” कैप्टन किशन ने कहा, “आइए उधर बैठते हैं।”

“मेरे ख्याल से इन्हें अभी कार में ही सोने देते हैं।” उसने श्रेया की तरफ इशारा करते हुए कहा। उसके बाद उसने ड्राइवर से कहा, “आप यहीं रुकिए और इनका ख्याल रखिएगा।”

कैप्टन किशन उसे लेकर लान में पड़ी कुर्सियों पर आकर बैठ गया। इसके बाद वह किसी का नंबर डायल करने लगा। कुछ देर बाद उधर से फोन रिसीव होते ही उसने फोन पिक करने वाले को लॉन में आने के लिए कहा।

कुछ देर बाद ही एक नौकर भागा हुआ चला आ रहा था। उसने आते ही कैप्टन किशन को सलाम किया। अचानक उसकी नजर सार्जेंट सलीम पर पड़ी तो वह वहीं ठहर कर रह गई। वह बड़ी अजीब नजरों से सलीम को देख रहा था। उसको इस तरह अपनी तरफ देखता पाकर सलीम गुस्से से भर गया। उसका मन हो रहा था कि वह उसकी गर्दन मरोड़ दे।

“साहब के लिए कपड़ों का इंतजाम करो। नये मिल जाएं तो बेहतर है।” कैप्टन किशन ने नौकर से डपटने के से अंदाज में कहा। उसे भी सलीम को इस तरह से देखा जाना अच्छा नहीं लगा था।

नौकर जाने लगा तो कैप्टन किशन ने उसे रोकते हुए कहा, “रसोइये से कहो नाश्ता तैयार करे और साथ में काफी भी। सब कुछ बहुत जल्दी होना चाहिए।”

“यह एक कस्बाई इलाका है। यहां के उस छोटे से होटल में इस वक्त नाश्ता मिल पाना बहुत मुश्किल होगा, इसलिए यहां से नाश्ता करके निकलते हैं। आपको भूख भी लग रही होगी।”

“भूख तो यकीनन लगी है।” सार्जेंट सलीम ने ईमानदाराना अंदाज में जवाब दिया।

“अगर भूख ज्यादा हो तो पराठे बनवा देते हैं।” कैप्टन किशन ने उससे पूछा।

“नहीं नाश्ता ही काफी होगा।”

“आपकी उन साथी को भी कपड़े चाहिए होंगे?” कैप्टन किशन ने सार्जेंट सलीम से पूछा।

“हां मंगा ही लीजिए। हालांकि जंगल का राजा मैं ही बना था। वह तो पूरे कपड़ों में हैं।” सलीम की आवाज में गंभीरता थी।

उसकी इस बात पर कैप्टन किशन उसे अजीब सी नजरों से देखने लगा। तभी नौकर सलीम के लिए कुर्ता और पाजामा लेकर आ गया। उसने कपड़ों को सामने पड़ी बड़ी सी मेज पर रख दिया।

“एक लेडीज सूट भी चाहिए।” कैप्टन किशन ने उससे कहा।

नौकर फिर चला गया।

“मेरे ख्याल से मैं अपनी साथी को भी यहीं ले आता हूं।” सलीम ने कहा और वह उठ कर कार की तरफ चला गया। उसने कार का दरवाजा खोल कर श्रेया को जगा दिया।

“यह हम कहां आ गए हैं?” उसने जागते ही सलीम से पूछा।

“बाहर आओ बताता हूं।”

श्रेया बड़ी मुश्किल से बाहर आ पाई। सार्जेंट सलीम उसे सहारा देकर कुर्सियों की तरफ ले जाने लगा। श्रेया लंगड़ा रही थी।

वहां पहुंचते ही सबसे पहले उसकी नजरें कैप्टन किशन से मिलीं। उसे देखते ही श्रेया का चेहरा पीला पड़ गया। कैप्टन किशन के चेहरे पर भी एक रंग आ कर गुजर गया। सलीम ने श्रेया को एक कुर्सी पर बैठा दिया।

इतनी देर में रसोइया नाश्ता और कॉफी लेकर आ गया। नाश्ते में भुने हुए काजू और कुछ कुकीज थे। वह नाश्ता सजा कर चला गया।

“आप लोग नाश्ता कीजिए मैं अभी आता हूं।” कैप्टन किशन ने उठते हुए कहा।

“मैंने पूछा था आपसे कि यह कौन सी जगह है?” कैप्टन किशन के जाते ही श्रेया ने फिर पूछा।

“हमें कैप्टन किशन ने अपनी कार में लिफ्ट दी है। वह हमें इस कोठी में ले आए। अभी नाश्ता करो, फिर तय करते हैं कि आगे क्या करना है।” सार्जेंट सलीम ने कहा और कॉफी बनाने लगा।

“चीनी कितनी लोगी?”

“जितनी मर्जी हो डाल दो।” श्रेया ने गुस्से से कहा। जाने क्यों उसका मूड उखड़ गया था।

सार्जेंट सलीम ने उसके गुस्से को नोटिस नहीं किया। उसे काफी देने के बाद उसने अपने लिए काफी बनाई और मजे से सिप लेने लगा। वह पूरी तरह से बेफिक्र नजर आ रहा था।

नौकर श्रेया के लिए भी कपड़े लेकर आ गया और कपड़े रख कर कुछ दूरी पर चुपचाप खड़ा हो गया।

सार्जेंट सलीम ने कॉफी खत्म करने के बाद अपने लिए एक और कॉफी बना ली। कैप्टन किशन वापस आ गया था।

सार्जेंट सलीम के कॉफी खत्म करने के बाद कैप्टन किशन ने कहा, “आप दोनों लोग पहले कपड़े चेंज कर लीजिए, फिर होटल चलते हैं।”

“मेरे ख्याल से रात का काफी हिस्सा गुजर चुका है। अगर हमें यहीं कोई रूम मिल जाता तो हम कुछ वक्त यहीं आराम करना चाहेंगे।” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“जैसी आपकी मर्जी।” कैप्टन किशन ने कहा। इसके बाद उसने पास खड़े नौकर को बुलाकर कहा, “साहब को मेरा वाला रूम दे दो।”

“ओके कैप्टन साहब! थैंक्यू!” सलीम ने कहा।

“माई प्लेजर!” कैप्टन किशन ने कहा।

तीनों ही अपनी सीट से उठ गए। कैप्टन किशन अपनी कार की तरफ बढ़ गया और सलीम और श्रेया नौकर के साथ चल दिए। नौकर ने सलीम और श्रेया के कपड़े उठा लिए थे।

नौकर उन्हें लेकर बैठक में आ गया। बैठक क्या थी पूरा हाल था। उसके दोनों किनारों से ऊपर की तरफ सीढ़ियां गई हुई थीं। नौकर के साथ सार्जेंट सलीम और श्रेया सीढ़ियां चढ़ने लगे। सीढ़ियां चढ़ने के बाद वह एक चौड़े से कॉरिडोर में आ गए। उसके दोनों तरफ कमरे बने हुए थे। सामने की तरफ एक बड़ा सा ओपेन एरिया भी नजर आ रहा था। वहां लगी फुलवारी से फूलों की ताजा महक उन तक भी आ रही थी। नौकर ने आगे बढ़कर बाईं तरफ के पहले कमरे का दरवाजा खोल दिया। दरवाजे से किसी भूतिया फिल्म के चर्रररर की आवाज आई थी। श्रेया को यह सब काफी अजीब लग रहा था।

नौकर ने अंदर जाकर लाइट जला दी। कई सारी ट्यूबलाइट्स के साथ ही एक बड़ा सा झूमर जल उठा। लाइट जलाने के बाद नौकर ने उन दोनों को अंदर बुला लिया।

सार्जेंट सलीम और श्रेया अंदर पहुंच गए। नौकर बेड पर दोनों के कपड़े रख कर चला गया। उसके जाते ही श्रेया ने बहुत जोर का ठहाका लगाया। सार्जेंट सलीम चौंक कर उसे देखने लगा।


रात का मुसाफ़िर


इंस्पेक्टर सोहराब पैदल ही सड़क पर चला जा रहा था। उसके पैरों में हल्की सी भचक थी। उसने दाहिना हाथ जेब में डाल रखा था। उसमें माउजर पड़ी हुई थी और उसकी मूठ पर सोहराब की ग्रिप थी। जरूरत पड़ने पर वह सेकेंडों में रिवाल्वर निकाल कर फायर कर सकता था।

चारों तरफ रात की स्याही फैली हुई थी। चांद डूब चुका था और तारों की रोशनी में पहाड़ किसी देव की तरह खड़े हुए नजर आ रहे थे। एक तरफ दूर तक पहाड़ियों का सिलसिला था और दूसरी तरफ घना जंगल था। इनके बीच शैतान की आंत की तरह काली सड़क दूर तक नजर आ रही थी।

इंस्पेक्टर सोहराब इससे पहले भी शोलागढ़ आ चुका था, लेकिन तब वह ट्रेन से आया था। यहां के छोटे से स्टेशन पर उतर कर वह टैक्सी से गीतमपुर रवाना हो गया था। रास्ते में उस पर हमला भी हुआ था (पढ़िए जासूसी उपन्यास पीला तूफ़ान)।

इंस्पेक्टर सोहराब ने आधा सफर तय कर लिया था। उसने जेब से बीड़ी निकाली और रुक कर माचिस से उसे जलाने लगा। माचिस की रोशनी में उसे कुछ दूर पर कोई आदमी खड़ा नजर आया। वह पहाड़ों की तरफ देख रहा था। इंस्पेक्टर सोहराब ने पूरे इत्मीनान से बीड़ी जलाई और दो-तीन कश लेने के बाद टहलते हुए उस आदमी के करीब पहुंच गया। उस आदमी ने पैरों की आहट पर पलट कर सोहराब की तरफ देखा। ठीक उसी वक्त सोहराब ने बीड़ी का कश लिया। इसकी वजह से हल्की सी रोशनी हुई और उसमें सोहराब उस आदमी का चेहरा देख कर बुरी तरह से चौंक गया।


*** * ***


रात के अंधेरे में सोहराब से टकराने वाला वह कौन था?
श्रेया को गुस्सा क्यों आ रहा था?
शोलागढ़ में क्या गुल खिलने वाले थे?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ का अगला भाग...