वैज्ञानिक अविष्कारों ने दुनिया के सामने एक मायावी संसार खड़ा कर दिया है. अनेक रहस्यों पर से शनैः शनैः पर्दा उठता जा रहा है. कई कल्पनाएं आकार ले चुकी हैं. कितने ही सपने साकार हो चुके हैं. विधाता की बनाई दुनिया के वर्तमान स्वरूप को देखकर ईश्वर की अनुपम कृति इंसान स्वयं को विधाता के समतुल्य मानने के भ्रम में है.
विश्वविख्यात वैज्ञानिक डॉ. परिमेय जैव जगत के अपने अविष्कारों को देखकर खुद ही अचंभित हैं. उनका बचपन बहुत अभावों में बीता. माता पिता के अलगाव से वे इतने व्यथित रहे कि विवाह नामक संस्था से उनका विश्वास खत्म हो गया. यह उनका भाग्य कहें या दुर्भाग्य कि उनका जन्म भारत देश में हुआ, जिसकी सनातन सांस्कृतिक धरोहर में नैतिक मूल्य का स्थान सर्वोपरि रहा. यहाँ विवाह के बिना सन्तान को जन्म देना कानून और समाज दोनों की दृष्टि में एक गुनाह रहा. परिस्थितिवश कोई एकल माता या पिता का दायित्व वहन करे, विधवा या विधुर रहते हुए सन्तान का लालन पालन करे, यह उसकी अपनी इच्छा या मजबूरी तक सीमित रहा. परिमेय बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के रहे और मेहनत के बल पर उच्च शिक्षण संस्थान में स्कॉलरशिप लेकर अपनी पढ़ाई पूरी कर शोधकार्य में लग गए. जेनेटिक इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनके शोध ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. रिसर्च स्कॉलर डॉ. परिधि के साथ कार्य करते हुए वे उसकी ओर आकर्षित हुए. मानव कितना भी आगे बढ़ जाए, किन्तु प्रकृति अपना कार्य करती है. शरीर के रसायन अपनी प्रकृति नहीं भूलते, दिल और दिमाग की जंग चलती रहे, किन्तु देह की अपनी जरूरतें होती हैं. परिमेय जब भी परिधि के बारे में सोचते, उनके दिल, दिमाग और देह में एक केमिकल लोचा सा होने लगता. परिधि भी उनकी ओर आकृष्ट थी. अब प्रयोगशाला के बाहर भी मेल मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. मन में कुछ सपने पलने लगे थे. परिमेय और परिधि दोनों को एक दूसरे का साथ लुभाता था. परिमेय अतिमहत्वाकांक्षी थे और विवाह करने के खिलाफ, जबकि परिधि स्त्री-सुलभ भावनाओं से लबालब... परिमेय के साथ घर बसाने का सपना देख रही थी.
उस दिन परिमेय बहुत खुश थे, जब उन्होंने एक मानव क्लोन बनाया था. एक अरबपति ने हूबहू अपने जैसा बेटा चाहा था और परिमेय ने उनके और उनकी पत्नी के गुणसूत्र मिलाकर मानव भ्रूण उनकी पत्नी के गर्भ में प्रत्यारोपित किया था. इसके बाद तो उनकी लैब के आगे लाइन लग गई थी. कुरूप व्यक्ति सुंदर सन्तान चाहता, तो अनपढ़ एक कुशाग्र बुद्धि का बेटा, कोई खिलाड़ी चाहता, तो कोई कलाकार. किसी को चित्रकार चाहिए था, तो किसी को गीतकार. अलग अलग गुणों से युक्त सन्तान के लिए रेट्स भी अलग अलग थे. इतना सब होने के बाद भी उन्होंने खुद कभी विवाह करने के बारे में नहीं सोचा था. वे जब भी परिधि को देखते, उसकी सुंदरता पर मुग्ध हो कल्पना करते उसके समान सुंदर उसकी बेटी का क्लोन बनाने की.
उस दिन यकायक ही बहुत तेज़ बारिश हुई थी. बारिश रुकने के बाद हल्की हल्की धूप खिल गई थी. परिमेय और परिधि लांग ड्राइव के लिए निकल पड़े. शहर से बाहर पहाड़ियों के बीच सर्पीली सड़क पर उनकी महँगी कार दौड़ रही थी. रास्ते के दोनों और हरियाली भी थी और रंग बिरंगे फूल भी. इंद्रधनुष भी दिखाई दे रहा था. वातावरण इतना रोमांटिक था कि परिमेय अपने आप को ज़ब्त न कर सके. उनकी प्रेमिल भावनाएँ नर्म दिल से बहना चाह रही थीं, लेकिन सख्त दिमाग उन्हें रोक रहा था. उन्होंने एक झील के किनारे कार रोक दी. बेंच पर बैठकर वे दोनों सूर्यास्त देखने लगे. अचानक परिमेय ने परिधि का हाथ पकड़ा. आज परिधि को स्पर्श कुछ अलग सा लगा. परिमेय का यह रूप वह पहली बार देख रही थी. उसने हौले से उनका हाथ हटा दिया. वे विचलित हो गए और उसे बाहुपाश में जकड़ लिया. परिधि ने छूटने की कोशिश करते हुए कहा... "अभी नहीं..."
वे जैसे नींद की खुमारी में चौंक उठे... "क्यों..?"
वह मुस्कुराती हुई वहाँ से उठ गई. अनमने से वे भी उसके पीछे पीछे कार में आकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गए.
"हम शादी कर लें?" परिधि के प्रश्न पर वे फिर सोच में डूब गए.
"मुझे शादी में विश्वास नहीं... हम अपना भला बुरा समझते हैं, जब तक मन चाहेगा, साथ रहेंगे, और फिर बंधनों में बंधकर हमारे प्रयोग अधूरे रह जाएंगे. मेरा जीवन का उद्देश्य शादी से परे एक नये संसार की रचना करना है. तुम चाहो तो किसी और से शादी कर सकती हो, किन्तु हमारा लक्ष्य तो एक ही है, हम समांतर साथ चलते हुए भी तो उसे पा सकते हैं. हम दोनों को एक दूसरे की जरूरत है, लेकिन हमारे साथ किए हुए कार्य और अनुसंधान की संसार को जरूरत है..." परिमेय की बात सुनकर सहमत न होते हुए भी परिधि दिल के हाथों मजबूर थी. वे दोनों लिव इन में रहने लगे.
विधाता ने जब मानव की रचना की, तब उसमें भावनाएँ भी भर दीं थी. उन्होंने विवाह भले ही न किया था, किन्तु जब घोंसलों में चहचहाते चूजों को दाना खिलाते पँछी दिखते, या कैंपस में खरगोश और बिल्ली के बच्चे, उनका मन भी अपने बच्चों की चाहत करने लगता. परिमेय को परिधि जैसी सुंदर बेटी चाहिए थी और परिधि को परिमेय जैसा कुशाग्र और स्मार्ट बेटा. उन दोनों ने कुछ नए प्रयोग किए. इनक्यूबेटर को कोख की तरह बनाकर दोनों के डीएनए से एक मेल और एक फीमेल भ्रूण तैयार किया और इंतज़ार करने लगे. प्रयोग सफल हुआ और वक़्त आने पर उनके प्रतिरूप जुड़वां बेटे अनन्त और बेटी कोशिका का निर्माण करने में वे सफल हुए. माँ की कोख से जन्म नहीं हुआ था, इसलिए इस प्रयोग ने दुनिया में तहलका मचा दिया. अभी तक तो रोबॉटिक इंजीनियर ही मशीनों से रोबोट बनाते थे, अब वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में मानव को उत्पन्न किया था. लोग उनके बड़े होने का इंतज़ार करने लगे.
आज उनके बच्चे बड़े हो चुके हैं, और वे दोनों बूढ़े. उन्होंने अभिभावक की समस्त जिम्मेदारियां निभाई और कोशिका तथा अनन्त को काबिल बनाया. वे चाहते थे कि दोनों बच्चे उनके प्रयोगों को आगे बढ़ाने के साथ बुढ़ापे में उनकी देखभाल करें.
उन्होंने बच्चों से इस सम्बन्ध में चर्चा की तो उनका दो टूक उत्तर सुन विस्मित रह गए... दोनों ने एक सुर में कहा कि... "क्या आप हमारे माता-पिता हैं? आपने हमें जन्म दिया है? नहीं न... हम तो बनाए गए हैं, बेहतर होगा कि आप अपने प्रयोगों से अपनी उम्र पर नियंत्रण रखें. हमें भी अपनी ज़िंदगी अपनी मर्ज़ी से जीने का हक है, इस प्रयोगशाला की हमें जरूरत नहीं है... हम आपकी दुनिया से दूर जा रहे हैं..."
आज परिमेय को अहसास हुआ कि प्रकृति के क्रियाकलापों में दखल देना उसकी सबसे बड़ी भूल थी. रोबोट तो मशीनी मानव हैं, उनमें संवेदनाएं नहीं होती, लेकिन निर्देशानुसार कार्य करते हैं. जैविक रूप से उत्पन्न इंसान तो निर्देश भी नहीं ग्रहण करते, माँ की कोख में नहीं रहने से सम्वेदनाएँ जागृत नहीं होती, लेकिन उन्हें हम रोबोट की तरह नष्ट भी नहीं कर सकते.
आज परिमेय और परिधि ने अपनी प्रयोगशाला के साथ ही वहाँ एक संस्कारशाला खोल ली है.
©डॉ. वन्दना गुप्ता
मौलिक
(03/01/2021)