Real Incidents - Incident 1: The Jacket Anil Patel_Bunny द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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Real Incidents - Incident 1: The Jacket

नवलकथा के बारे में: दोस्तों हमारे आसपास या फिर हमारे साथ कई सारी घटनाएं बनती रहती है। कुछ अच्छी घटनाएं बनती है तो कुछ बुरी घटनाएं। कुछ घटनाएं आंख में आंसू ले आती है, कुछ होंठों पे मुस्कान, और कुछ ये दोनों। कुछ घटनाएं समाज को गौरव दिलाती है, तो कुछ समाज को शर्मसार कर देती है। इस नवलकथा में ऐसी ही कुछ घटनाओं को आप सभी लोगो के सामने प्रस्तुत करने की कोशिश करूँगा, जिसमें हर एपिसोड में अलग-अलग और सच्ची कहानी होंगी, सिर्फ पात्र के नाम बदल दिए जाएंगे। उम्मीद है आप सभी इस नवलकथा को जरूर पसंद करेंगे।

आभार: Matrubharti के सभी पाठक मित्रों एवं सभी दोस्त और परिवारजन को दिल से Thanks 🙏 आप लोगो के प्यार और आशीर्वाद के बदौलत ही मैं इन कहानियों को लिख पाया हूं।

Incident 1: The Jacket

“आज ठंडी बहुत है, नहीं?” अश्विन ने ऑफिस पहुँच कर अपनी सहकर्मी दोस्त दर्शिता से कहा।
“हां यार,” दर्शिता ने अश्विन की ओर मुड़ते हुए कहा, “अरे वाह! क्या बात है! हैंडसम लग रहे हो।”
“कौन मैं? तू मुझसे बात कर रही है?” अश्विन ने आश्चर्य से कहा।
“हां, तुझसे ही बात कर रही हूं। इस जैकेट में काफ़ी हैंडसम लग रहा है आज तू।”
अश्विन ने अपनी जैकेट की ओर देखा फिर कहा, “ओह ये! हां। ठंडी बढ़ गई है ना इसलिए जैकेट पहनकर आना पड़ा।” कुछ देर की शांति और उसके बाद अश्विन ने कहा, “वैसे ये जैकेट 15 साल पुरानी है!”
“क्या बात कर रहा है? इतनी पुरानी जैकेट? अभी तक क्यों संभाल कर रखी है? किसी ने गिफ्ट दी थी क्या?” दर्शिता ने आंख मारते हुए कहा।
“दरअसल, हां! किसी ने गिफ्ट ही दी थी, इसीलिए इसे अभी तक संभाल कर रखे हुए हूं। जब भी ठंड की मौसम आती है, तब मैं सब से पहले यही जैकेट निकालता हूं पहनने के लिए। इस जैकेट से बहुत सारी यादें जुड़ी हुई है।” अश्विन ने भावुक हो कर ये कहा।
“ओय होय! क्या बात है! अब तो मुझे जानना ही है कि इस जैकेट के पीछे की कहानी क्या है? बताना यार, तुझे कौन मिल गई ऐसी जो तुझे गिफ्ट दे?” दर्शिता ने कहा।
“तुझे कैसे पता कि किसी लड़की ने ही गिफ्ट दी मुझे?” अश्विन ने पूछा।
“तू जो ये बोलते हुए खुश हो रहा है और साथ में भावुक भी हो रहा है, ये देख कर बस एक तुक्का लगाया कि लड़की ही होगी। हो ना हो कुछ तो स्टोरी है तुम दोनों की। चल अब बताना 10 मिनिट के बाद फिर काम भी करना है।”
अश्विन ने घड़ी की ओर देखा, फिर उसने अपने जैकेट की कहानी सुनानी प्रारंभ की,

15 साल पहले,

मैं कॉलेज के पहले साल में था। मैंने जिस दोस्त की वजह से कॉलेज में एडमिशन लिया था वो मेरा पड़ोसी था, उसका नाम मनजीत था। वो मुझसे एक साल बड़ा था। तब मेरे पास कोई वाहन नहीं था, तो मैं उसी के साथ कॉलेज जाता-आता था। मेरा कोई दोस्त नहीं था, पर उसके बहुत सारे दोस्त थे।

मुझे अभी भी याद है उस दिन जिस प्रोफ़ेसर का लेक्चर था वो उस दिन नहीं आए थे। साथ ही मनजीत के क्लास में प्रेक्टिकल कैंसिल हो गया था। अब हमारे पास फ्री के 2 से 3 घण्टे थे। मनजीत के ग्रुप ने तय किया कि आज सभी लोग मूवी देखने थिएटर में जाएंगे। अब दिक्कत ये थी कि मैं अब घर कैसे जाता? मैंने मनजीत से कहा कि मैं रिक्शा में घर चला जाऊंगा, पर उसने मुझे भी मूवी में साथ आने को कहा। मेरे पास दूसरा ऑप्शन नहीं था, वैसे भी मेरे पॉकेट में रिक्शा के किराए जितने पैसे नहीं थे।

हम लोग शायद 7 से 8 लोग थे जो थिएटर में मूवी देखने गए थे। हमने मूवी देखी, खूब एन्जॉय की, पर उसके बाद जो होने वाला था वो शायद ही मुझे अच्छा लगने वाला था। मनजीत की एक गर्लफ्रैंड थी, उन दोनों ने साथ घूमने जाने और डिनर करने का फैसला कर लिया और कबाब में हड्डी यानी कि मुझको बीच मझधार में छोड़ दिया। अब मेरे पास रिक्शा के लिए भी पैसे नहीं थे और मुझे घर भी जाना था। इस संकट से मुझे मनजीत की गर्लफ्रैंड ने निकाला। वो जिसके साथ स्कूटी में मूवी देखने आई थी, उसने मुझे उसके साथ स्कूटी में बैठकर घर जाने को कहा। चूंकि हमारे घर पास में नहीं थे तो उस स्कूटी वाली लड़की ने कहा कि वो मुझे घर तक तो नहीं पर बीच रास्ते तक छोड़ देगी। पहले तो मैं हिचकिचाया, क्योंकि मैं कभी लड़की की स्कूटी में लड़की के साथ नहीं बैठा था। उस स्कूटी वाली लड़की ने मेरी हिचकिचाहट दूर की और उसने मुझे बिंदास हो कर पीछे वाली सीट पर बैठने को कहा। उस लड़की का नाम था, ज्योतिका।

“तुझे घर जाने की जल्दी तो नहीं है ना? मुझे थोड़ी सी शॉपिंग करनी है।” ज्योतिका ने स्कूटी चलाते हुए पूछा। मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था, सिवाय उसके साथ जाने के। मैंने उसे शॉपिंग की परमिशन दे दी। उसने एक कपड़े की शॉप पर स्कूटी खड़ी की। उसने मुझे भी साथ आने को कहा, पर मैंने कहा कि मैं बाहर ही रुकूँगा।

“तू कितना बोरिंग है यार। साथ चलने में तुझे क्या प्रॉब्लम है? कुछ अच्छा लगे तो खरीदी भी कर लेना।” ज्योतिका ने कहा, और मैं सोचने लगा कि मेरे पास रिक्शा के किराए के पैसे तक नहीं थे तो मैं कपड़ों के लिए पैसे कहां से निकालूंगा। फिर सोचा मुझे कहा यहां पर शॉपिंग करनी है? ज्योतिका को शॉपिंग करते हुए देखने के पैसे थोड़े लगने थे, इसलिए मैं उसके साथ शॉप में गया। शॉप बहुत बड़ा था। उस शॉप में सभी लोगो के लिए सभी प्रकार के कपड़े थे।

ज्योतिका अपनी शॉपिंग करने में बिज़ी हो गई, बीच-बीच में वो मुझसे पूछ लेती थी कि ये कैसा है? वो कैसा है? मैं बोर हो रहा था, फिर सोचा मैं भी अपने लिए कुछ कपड़े देखु, देखने के कौन से पैसे लगने थे! कुछ हफ़्तों बाद ठंडी आने वाली थी तो मैं गर्म कपड़ों के विभाग में गया। मुझे वहां पर एक जैकेट दिखी जो मुझे एक नज़र में पसंद आ गई। फिर किसी भी आम आदमी की तरह मैंने उस जैकेट के प्राइज़ टैग को देखा, उस पर लिखी हुई प्राइज़ थी, 350 रुपए। मेरा मन वहीं मर गया, तभी वहां पर ज्योतिका आई।

“कहां खो गए हीरो? कुछ पसंद आया? मैंने तो अपनी शॉपिंग कर ली। तुझे कुछ लेना है?” ज्योतिका ने कहा।
“नहीं, आप की शॉपिंग हो गई हो तो चलते है।” मैंने कहा।
“ओ हेल्लो! आप-आप क्या लगा रखा है? मैं इतनी भी बुज़ुर्ग नहीं हूं। और रही बात घर चलने की तो चले जाना घर, पर अब यहां पर आ ही गया है तो अब कुछ खरीदी ही कर ले। वैसे तेरा नाम क्या कहा?” ज्योतिका ने पूछा।
“अश्विन!” मैंने कहा।
“हां, तो अश्विन तू ये जैकेट देख रहा था। पसंद आई तुझे?” ज्योतिका ने पूछा।
“हां पसंद तो आई, पर…”
“पैसे नहीं है तेरे पास।” उसने बोला और हँसने लगी, फिर उसने कहा, “कोई नहीं ट्राय कर के देख ले। पसंद आए तो ले लेना।”

पहली बार ऐसे किसी लड़की के सामने मेरी बेइज्जती हुई थी, ऐसा नहीं था। मुझे आदत थी बेइज्जती सहन करने की। मैं बिना कुछ बोले अंदर ट्रायल रूम में वो जैकेट पहनने जाने लगा। ज्योतिका ने मुझे रोककर वहीं जैकेट पहनने के लिए कहा। मैंने वैसा ही किया।

“वाह! हैंडसम लग रहा है।” ज्योतिका ने कहा।
“सच में?” हालांकि मैं जानता था मैं हैंडसम नहीं हूं ना जैकेट पहनने पर लग रहा हूं फिर भी मैंने पूछा।
“हां, यार। तुझे पसंद आई?” ज्योतिका ने पूछा और मैंने हां कहा। इसके बाद उसने एक पल भी गंवाए बिना उसकी प्राइज़ देखी और काउंटर पर जाने लगी, और मेरे आश्चर्य के बीच उसने उस जैकेट के पैसे भी अपने पर्स से दिए। मैंने उसे ऐसा करते हुए रोका पर उसने मेरी एक ना सुनी। वहां पर तो मैंने कुछ नहीं बोला पर रास्ते में मैंने उससे कहा, “आपने…. तुमने मेरे लिए जैकेट क्यों ली, और उसके पैसे क्यों दिए?”
“अरे यार! तेरे पास पैसे नहीं थे, मेरे पास थे तो दे दिए। इसमें इतना सोच क्यों रहा है? जब तेरे पास पैसे होंगे तब दे देना।”
“पर इतने पैसे में तुझे जल्दी नहीं लौटा पाऊंगा। मेरी फैमिली की हालत कुछ ठीक नहीं है, और पता नहीं इस जैकेट को लेकर घर में क्या बवाल होगा?” मैंने कहा।
“चिंता मत कर यार, घर पे बोल देना एक दोस्त ने बर्थडे का गिफ्ट दिया है।”
“पर मेरा बर्थ डे तो 2 महीने बाद है!”
“तो तब तक इस जैकेट को मेरे पास रहने दे।” ज्योतिका ने कहा और मैंने उसकी बात मान ली। फिर हमारी मुलाकात और बातचीत शुरू हो गई और 2 महीने बाद जब मेरा जन्मदिन आया तब उसने मुझे वहीं जैकेट ला कर दिया, जिसे मैं कुछ हद तक भूल ही गया था।
“आज भी मेरे पास तुम्हें देने के लिए पैसे नहीं है!” मैंने कहा।
“पागल है क्या? ये तेरी गिफ्ट है, और गिफ्ट के कोई पैसे लेता है क्या? वैसे भी दोस्त से भी कोई पैसे लेता है क्या?” ज्योतिका ने कहा।
मैं उसे बस देखते रह गया, मैंने सोच लिया था कुछ भी हो जाए पर ज्योतिका से मैं अपनी दोस्ती कभी नहीं तोडूंगा, ऐसे दोस्त इस जमाने में मिलते ही कहा है?

वर्तमान में,

“वाकई, आजकल ऐसे दोस्त बहुत कम मिलते है। फिर क्या हुआ? एक मिनिट, मुझे गेस करने दे, तुम दोनों की दोस्ती पक्की हो गई और दोस्ती प्यार में बदल गई, राइट?” दर्शिता ने पूछा।
“हर दोस्ती का अंजाम प्यार नहीं होता। हां मुझे उससे प्यार था पर एक दोस्त की हैसियत से। ये जैकेट मेरे लिए बहुत खास है, जब भी इस जैकेट को देखता हूं मुझे हंमेशा ज्योतिका की याद आती है।” अश्विन ने कहा।
“तो याद आती है तो बात कर लिया कर,” दर्शिता ने कहा फिर अश्विन का मायुष चेहरा देखकर उसने कहा, “एक मिनिट, अब ये मत कहना कि तुम्हारे पास उसका नंबर नहीं है, या अब तुम दोनों दोस्त नहीं रहे, या बात नहीं करते।”
“हम दोस्त थे, दोस्त है और दोस्त रहेंगे पर मैं चाहकर भी उससे बात नहीं कर पाऊंगा, क्योंकि अब वो इस दुनिया में नहीं है।” अश्विन ने कहा और दर्शिता एकदम से आघात के साथ पूछा,
“कैसे?”
“Suicide!” अश्विन ने कहा।
“Suicide, Why?”

Incident 1 समाप्त 🙏

सच्ची घटना पर आधारित।

दोस्तों एक कहानी खत्म होती है वहीं पर दूसरी कहानी जन्म लेती है। ये Jacket की कहानी तो यहां पर खत्म हो गई पर ज्योतिका ने Suicide क्यों किया? क्या वजह थी? ये जानने के लिए मैं एक नई सीरीज़ आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत करूँगा जिसमें अलग-अलग Suicides की सच्ची घटनाएं, Suicide के पीछे की कहानी, वजह, और ऐसा ना करने की सलाह जैसे विषयों पर चर्चा करेंगे। अगली सीरीज़ का नाम है, Suicide, Why? उम्मीद है इस सीरीज़ को भी आप सभी पाठक मित्रों का प्यार मिलेगा।

Real Incidents के दूसरे एपिसोड्स भी जल्द ही प्रकाशित होंगे, उसे भी अपना प्यार और लेखन बेहतर बनाने का सुझाव अवश्य दे।

आप सभी का दिल से आभारी,

✍️ Anil Patel (Bunny)