Real Incidents - Incident 2: Teri Bindiya Re books and stories free download online pdf in Hindi

Real Incidents - Incident 2: तेरी बिंदिया रे

Incident 2: तेरी बिंदिया रे


शाम के 6 बज गए थे। सुभाष जी अपने कार्यालय का सारा काम निपटा कर अपने घर की ओर चल दिए। आज वे बहुत खुश थे। अपनी बीवी स्नेहा के लिए आज उनको तोहफ़ा लेने जाना था। आज उनकी बीवी का जन्मदिन जो था।

सुभाष जी बाजार में खरीदी करने गए। एक छोटी सी दुकान पर जाकर वो रुके। वो दुकान सौंदर्य प्रसाधन (Cosmetic) की दुकान थी।

“आइए, सुभाष जी! मुझे पता था आप जरूर आएंगे।” दुकानदार ने खुश होते हुए कहा।
“हां, प्रसाद जी। आपको तो पता ही है आज मेरी स्नेहा का जन्मदिन है।” सुभाष जी ने कहा।
वही एक दूसरी महिला थी, जिसकी उम्र 30 के आसपास होगी, जो उसी दुकान पर अपनी सहेली के साथ खरीदी करने आई थी, उसका ध्यान उन दोनों की बातों पर गया।
“तो वही पुरानी भेंट?” प्रसाद जी ने पूछा।
“जी हां!” सुभाष जी ने कहा।
और प्रसाद जी ने माथे में लगाने वाली बिंदी का एक पैकेट सुभाष जी को दे दिया और सुभाष जी पैसे देकर अपनी घर की ओर जाने लगे।
घर जाते हुए सुभाष जी सोचने लगे कैसे वो पहली बार अपनी बीवी के लिए तोहफ़ा ले कर गए थे।


सुभाष जी की यादों में,


“आज आप मेरे लिए पहली बार कोई चीज लाए है, देखूँ तो क्या लाए?” स्नेहा जी ने बड़ी ही उत्सुकता से अपने तोहफ़े को खोलते हुए कहा, “आप बिंदी लाए है?” स्नेहा जी थोड़ा उदास होकर बोली।
“हां, आज से पहले कभी किसी को तोहफ़ा नहीं दिया इसलिए। वैसे भी मुझे पता नहीं औरतो को क्या अच्छा लगता है क्या नहीं! क्यों तुम्हें पसंद नहीं आया?” सुभाष जी ने कहा।
“जी, शादी के बाद आपका ये पहला तोहफ़ा है। हां थोड़ा सस्ता है पर आपने जो भी दिया दिल से दिया है। इसलिए मुझे ये बहुत पसंद आया।” स्नेहा जी ने कहा, ये सुनकर सुभाष जी को थोड़ी राहत हुई। कुछ देर बाद स्नेहा जी ने कहा, “वैसे जानते है एक सुहागन का पहला और आखिरी तोहफ़ा यही होता है।”
“क्या मतलब?” सुभाष जी ने पूछा।
“अगर कोई औरत सुहागन मर जाती है तो उसके अंतिम संस्कार में उस औरत का पति उसे बिंदी, सिंदूर और मंगलसूत्र लगाता है।” स्नेहा जी ने कहा।
“क्या तुम भी इतने अच्छे मौके पर मरने की बातें कर रही हो!”
“मैं तो बस आपको बता रही थी, मरने की बातें थोड़े ना कर रही थी।”
“पागल!” सुभाष जी ने कहा और दोनों हँसने लगे।
ये याद कर के सुभाष जी वर्तमान में भी हँसने लगे।

उस दिन के बाद सुभाष जी हर साल अपनी बीवी के लिए बिंदी का पैकेट ही लेकर आते थे, इसमें उनकी कंजूसी नहीं थी पर उनका प्यार था। किसी और दिन वो चाहे कुछ भी दे पर स्नेहा जी ने उन्हें बोल रखा था कि उनके जन्मदिन पर उन्हें सिर्फ बिंदी ही चाहिए।

स्नेहा जी की एक बहुत ही बुरी आदत थी और सिर्फ वही सुभाष जी को पसंद नहीं थी। स्नेहा जी अपनी बिंदी कहीं पर भी चिपका देती थी। कभी आईने में, कभी फर्श पर, कभी किचन में, कभी बेड पर, कभी तौलियों में, माथे से ज़्यादा उनकी बिंदी इधर-उधर ही पाई जाती थी। इसको लेकर सुभाष जी स्नेहा जी को कई बार टोकते भी थे।

“मैं इतने प्यार से तुम्हारे लिए ये बिंदी लाता हूँ और तुम अपने माथे को छोड़कर उसे हर जगह चिपका देती हों। तुम्हारी इस आदत से मैं अब परेशान हो गया हूँ। कभी कभी तो खाने की थाली में भी तुम्हारी बिंदी चिपकी होती है। क्या वो खाने की चीज़ है?”
“मेरी भूलने की आदत है, इसलिए इधर-उधर चिपका के भूल जाती हूँ। आइंदा से ऐसा नहीं होगा।”
“आजकल तुम बहुत भूलने लगी हो! किसी अच्छे से डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाती?” सुभाष जी ने गुस्से में कहा।
“माफ कर दो! ये शिकायत का मौका में आपको आगे से नहीं दूंगी। पर एक बात याद रखिएगा एक दिन आप मेरी इसी आदत को miss करेंगे।”


वर्तमान में प्रसाद जी के दुकान पर,


“कितना कंजूस आदमी था? अपनी बीवी को कोई सिर्फ बिंदी गिफ्ट में देता है?” अपनी सहेली को ये कहकर वो औरत हँसने लगी। प्रसाद जी ने उनकी बातें सुन ली और कहा,
“माफ करना बहन जी! वो कंजूस नहीं है! वो करीबन 7 साल से इसी दुकान से अपनी बीवी के लिए बिंदी का तोहफा ले जाते हैं। उनकी बीवी खुद चाहती थी कि वो उन्हें यही गिफ्ट दे। उनके लिए तोहफ़े की कीमत से ज़्यादा पति का प्यार मायने रखता था।”
“था से आपका क्या मतलब? अब मायने नहीं रखता?” उस औरत ने पूछा।
“जी उनकी बीवी 3 साल पहले ही expire हो गई है! पर उनकी याद में सुभाष जी हंमेशा उनके जन्मदिन पर बिंदी का तोहफ़ा ले जाते है!”
वो दोनों औरते एकदम से चुप हो गई उन्होंने बस इतना पूछा, “क्या हुआ था उनको?”
“उनको Brain Tumour था। ये बात उन्होंने सुभाष जी से भी छिपाकर रखी थी। मैंने लोगों से सिर्फ बातें सुनी है, उनका Tumour इतना बढ़ गया था कि उनकी मगज की सारी कोशिकाओं को नष्ट करने लगा था। वो सब बातें भूलने लगी थी। आखिर एक दिन वो अपने बेड पर मृत हालत में पाई गई। उसके बाद ही सुभाष जी को पता चला कि उनकी बीवी को tumour था। वो उनसे बहुत प्यार करते थे, बस अपने काम की वजह से उनको अपना समय नहीं दे पाते थे। स्नेहा जी ने भी कई बार सुभाष जी को ये बताने की कोशिश की पर उन्हें लगा ये सुनकर सुभाष जी जीते जी मर जाएंगे। जब उनका अग्नि संस्कार हो रहा था उस वक्त पंडित जी ने उन्हें जब बिंदी लगाने को कहा तब सुभाष जी पूरी तरह से टूट गए और फुट-फुट कर रोने लगे। भगवान करें ऐसी सज़ा किसी को ना मिले!” प्रसाद जी ने कहा और उन दोनों औरतों को भी अपने बोलने पर पछतावा हुआ।

इधर दूसरी तरफ सुभाष जी अपने घर पहुँच कर बिंदी का पैकेट खोलते हैं और उसमें से सारी बिंदियों को घर में इधर-उधर चिपकाने लगते है। सारी बिंदी ख़त्म होने के बाद वो अपनी बीवी की याद में आँसू बहाते हुए सोफे पर बैठ जाते हैं और रेडियो ऑन करते है, जिसमें मोहम्मद रफ़ी और लता जी के आवाज़ में गाया हुआ ये गीत धीमे सुर में बज रहा होता है,

तेरी बिंदिया रे,… रे आय हाय,… तेरी बिंदिया रे…

सच्ची घटना पर आधारित।
Incident 2 समाप्त 🙏

✍️ Anil Patel (Bunny)

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