बेनाम शायरी - 6 Er.Bhargav Joshi અડિયલ द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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बेनाम शायरी - 6


"बेनाम शायरी"


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सुबह को शाम और शाम को रात लिख देता है।
वो खुदा जिंदगी को बेवफाओं नाम लिख देता है।।

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खुशनुमा चहेरे अक्सर खामोश रहते है।
दर्द के कारनामें को गुमशुदा ही सहते है।।

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नजाकत कुछ इस कदर रखते है वो अपनी आंखो पे।
झुकाकर अपनी पलके हमारी सांसे छीन ले जाते है।।

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उनकी नशीली आंखो से शाही रूआब झलकता है।
फिर सामने खड़ा हर शख्स पानी पानी सा लगता है।।

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कुछ इस कदर आपके लफ्ज़ चुभते है दिलमे।
मुस्कुराती दिखे है आंखे, कई सदमे है दिल में।।

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ख्वाबों के आगे भी एक जहान मिलता है।
ऊंचे होंसलो से ही तो आसमान मिलता है।।

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ये उमड़े हुए आंसुओ को सैलाब न समझो, बेनाम।
ये आग का जलजला है हस्तियां मिटा के जाएगा।।

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जब जब खुला है दिल बस दर्द ही पाया है।
किसने देखी है जन्नत ये सब मोह माया है।।

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एक रूह से दूसरी रूह का ऐहसास दोस्ती।
मुश्किलों घड़ी में हिम्मत की सांस दोस्ती।।

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ऐ जिंदगी कुछ तहरीरें अब उस नाम की दे।
या पूरा वक्त उसके साथ दे या सारी शाम दे।।

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ये सर से सरकती चुनरी भी कमाल है।
देखकर न जाने कितने दिल बेहाल है।।

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मौत हर किसी को नहीं मारती है जनाब।
कत्ल तो अक्षर खामोशियां कर जाती है।।

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वो तोड़ते गए हमें बहलने के लिए।
हम सहते गए बस संभलने के लिए।।

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जाहिर कर दिया हमारा नाम आंखो ने।
मुंह तो आज भी चुनरी के तले ढंका रहा।।

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मशरुफी का आलम ना ही पूछो साहब।
उनकी यादों में खोए है खुली आंखो से।।

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तकदीर देखिए जनाब मेरे तसव्वुर की।
नींद भी उनकी यादों के भरोसे पर है।।

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कमबख्त रोकलो ये हंसी को सामने से।
आज भी दिल हमारा बेकाबू हो जाता है।।

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कुछ लफ्जो से इजहार कर लिया करो।
ये नैनों का झुकना हमें तड़पा जाता है।।

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नाम आज सौदागरों में लिखा जाता है।
एक वक्त था जब हम दिलो के राजा थे।।

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मैंने कभी उन्हें बेवक्त आजमाया नहीं।
उन्हे लगा कि मुझे उन्होंने पाया नहीं।।

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लफ़्ज़ों को तो फिर भी सुलझा लेते हम।
इन आंखों में कहानियां हजार निकली।।

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दौर ऐ शिकायत अब गुजर चुका है जनाब।
उन्हे वक्त नहीं मेरे लिए, मैं उनमें मसरूफ हूं।।

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By : Er.Bhargav Joshi "Benaam"

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[क्रमशः]