यादों के साये में.... Jyoti Prajapati द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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यादों के साये में....

अपनी शादी की एल्बम में फ़ोटो देखते हुए दिव्या ने अपने पति की फोटोफ्रेम को हाथ मे उठाया और बोली,

"सूनो..!याद है तुम्हे अपनी वो पहली मुलाकात जब तुम मुझे देखने मेरे घर आये थे..!!तुम्हे अंदाज़ा भी नही होगा कितनी तेज़ बढ़ी हुई थी मेरी धड़कने...!"
"वो पहली छुअन का अहसास जब तुमने सगाई की अंगूठी पहनाने के लिए मेरा हाथ थामा था।पूरे शरीर मे सिहरन सी दौड़ गयी थी मेरे..!"
"जब तुम बारात लेकर आये मेरे घर....जैसे-जैसे बारात घर के नज़दीक आ रही थी मेरी धड़कने बेतहाशा भागे जा रही थी।मेरी बहने, भाभियाँ, सहेलियां सब मुझे छेड़ने लगी हुई थी।और मैं थी कि बस शरमाये जा रही थी, मुस्कुराए जा रही थी।"
"वरमाला के लिए मुझे स्टेज पर ले जाया जा रहा था तब मैंने हौले से अपनी नज़र उठाकर तुम्हे देखा था, तो तुम्हे अपनी ओर देखता पाकर मैंने फिर अपनी नज़रें झुका ली थी।"

"हमारी वरमाला के समय जब मैं तुम्हारे गले मे वरमाला डालने के लिए आगे बढ़ी, तब पीछे से किसी ने तुमसे कहा था, "जवान झुकना मत.." और सब लोग खिलखिला उठे।"

"हम दोनों को फिर स्टेज से मंडप में बिठाया गया। वहां हर रस्म के साथ मेरा तुमसे रिश्ता जुड़ता गया मेरा।सात फेरों के सातों वचन में तुमने कसकर मेरा हाथ थामा हुआ था। मेरी मांग में सिंदूर भरते ही जन्म-जन्मांतर का रिश्ता जुड़ गया था हमारा।"
तुम्हे याद है, हमारे मिलन की वो रात...!जब तुम कमरे में आये।अपने आप मे ही सिमटी जा रही थी मैं। तुम मेरे बगल में बैठे और मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर बोले, "कल वापस लौटना है मुझे अपने कर्तव्य स्थल पर..!!"मैंने चेहरे से तुरंत अपना घूंघट हटाया और हैरानी से आपकी ओर देखने लगी।एक कुटिल मुस्कान थी आपके होंठों पर।
आपकी मुस्कान देख मैंने अपने सिर अपना हाथ दे मारा।याद आया मुझे तभी की शादी से पहले जब अपनी बात होती थी तब शर्त लगी थी दोनो में।तुमने कहा था," मैं खुद अपना चेहरा दिखाउंगी.!और मैंने कहा था, "आप जब मुझे एक अनोखा उपहार देंगे तब ही मैं अपना चेहरा दिखाउंगी आपको..!!"
"लेकिन मैं तो वो शर्त भूल गयी थी। पर आपने याद रखी। अपने होठों पर विजयी मुस्कान लिए आपने मेरे हाथों को पकड़ा और मीना जड़ी सोने की अंगूठी मेरी अंगुली में फंसा दी।"
उस रात तुमने मुझसे एक वादा लिया था।
तुमने कहा था, "वैसे तो मुझे तुम्हे कुछ देना चाहिए लेकिन मुझे कुछ मांगना भी है तुमसे दिव्या..!!
"क्या..?"
"वचन चाहिए तुमसे..!" कहते हुए तुमने हथेलियां आगे की थी। जैसे ही मैंने तुम्हारी। हथेलियों पर अपना हाथ रखना चाहा तुमने अपना हाथ पीछे खींच लिया। मैंने जब तुम्हारी तरफ हैरानी से देखा तो तुमने कहा,
"पहले वचन सुन लो...फिर.!!!"
मैंने सहमति में अपना सिर हिलाया।
"दिव्या बीच मे रोकना-टोकना मत शांति से सुनना और समझना।
"पहला वचन ये चाहिए कि जब तुम्हे मेरे ना रहने की खबर मिले तो तुम खुद को संभालोगी,पूरे परिवार को संभालोगी।"
दूसरा वचन ये की, मैं इस घर का इकलौता बेटा हूँ, अगर मुझे कुछ हो जाये तो तुम मेरी जगह लेकर इस घर को चलाओगी, संभालोगी, अपनी और मेरी दोनो की जिम्मेदारियां निभाओगी..!
बोलो मंज़ूर है मेरी शर्तें...!!"
मेरी आँखों मे आंसू की धार लग गयी थी। जानती थी एक फौजी से शादी की है लेकिन फौजी इतना समझदार......।बहुत गर्व हुआ मुझे तुम पर उस समय।
मैंने बिना देरी किये तुम्हारे हाथ पर अपना हाथ रख दिया।तब तुमने कहा था, "तुम्हे लग रहा होगा ना कितना महत्वकांक्षी सैनिक है।सिर्फ अपने और परिवार के बारे में सोच रहा है।लेकिन दिव्या मेरी ये जान मैंने अपनी भारत माँ को सौंप दी है।अपनी जान पर अब मेरा कोई अधिकार नही है।इसलिए ये अधिकार मैं तुम्हे नही दे पाऊंगा।बहुत हिम्मत वाली हो तुम दिव्या जो ये जानते हुए भी मुझसे शादी की, कि मैं बॉर्डर पर पदस्थ हूँ।समय का कोई भरोसा नही..!"

मैं सिर्फ गौर से तुम्हे देखे जा रही थी, तुम्हारी बातें सुन जा रही थी।तभी तुमने कुछ ऐसा कहा था जो मेरे होंश ठिकाने लगाने के लिए काफी था। तुमने कहा था, "दिव्या मुझे तुमसे बच्चा चाहिए।इसी साल।"
मैं मुंह खोले आंखे फाडे तुम्हे देखे जा रही थी तो तुमने मेरे मुंह बंद किया और मेरी आँखों पर अपने हाथ रख दिये। और बोले, "ऐसे मत देखो यार पहले पूरी बात सुन लो..!"
मुझे हंसी आ गयी तो तुम भी थोड़ा सहज हो गए थे।
तुमने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "मैं ये अपने लिये नही तुम्हारे लिए और अपने परिवार के लिए कह रहा हूँ। अगर कभी मुझे कुछ हो गया तो तुम दूसरी शादी कर लेना दिव्या।मेरा बच्चा मेरे परिवार के पास मेरी कोई निशानी बनके रहेगी।उनके जीने की वजह बनकर।"
गुस्सा आ गया था मुझे आज के दिन ऐसे बातें करना जरूरी थी क्या..?मेरा गुस्सा समझते हुए तुमने कहा था, "सीमा पर जो हालात होते हैं ना दिव्या उसका यहां से अंदाजा नही लगाया जा सकता।हम ही जानते हैं वहां की वास्तविक परिस्थितियों को। इसलिए कह रहा हूँ।"
फिर भी मैं नाराज़ हो गयी थी।
क्यूंकि,
"कितनी सरलता से बोल दिया था तुमने, "मेरा परिवार, मेरा बच्चा..!सब तुम्हारा तो मेरा क्या..?"
तुम मुस्कुराते हुए बोले थे, "तुम्हारा क्या..?तुम्हारे लिए रहेंगी ना.....मेरी यादें.... !!!!जिन पर सिर्फ तुम्हारा ही अधिकार होगा।"
शायद ही कोई होगा जो अपने मिलन की रात में ऐसे बातें की होंगी।पर सही कहा था तुमने...
सिर्फ छः साल हमारा साथ रहा।लेकिन तुम्हारी यादों का साथ आजीवन रहेगा मेरे।
तुम्हारा परिवार तुम्हारी दोनो निशानियों के साथ जी रहा है और मैं तुम्हारी यादों के साये में........