दस रुपये की अंगूठी Jyoti Prajapati द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दस रुपये की अंगूठी

चलो भई, दुल्हन तो तैयार है...बस हाथ में एक अच्छी सी अंगूठी ओर पहना दो !! जैसे ही किसी ने कहा, मैंने झट से ड्रॉर में से एक रिंग निकाल कर पहन ली। भाई आया रूम में ओर बोला,"इसको बाहर बुला रहे हैं ! फिर उसने मेरे हाथ मे वो अंगूठी देखी तो उसे निकालते हुए बोला,"ये क्या दस रुपये की अंगूठी पहन रखी है। अब तो सोने की अनूठी पहनने का समय है !" भाई नही जानता था, मेरे लिए उस अंगूठी की क्या वैल्यू है। किसने मुझे वो अंगूठी पहनाई थी..? कितना खास शख्स है वो मेरी ज़िन्दगी का!!

महेश्वर गए थे हम सब फ्रेंड्स घूमने के लिए। नर्मदा किनारे अहिल्या घाट पर बैठे हुए फोटोज़ क्लिक कर रहे थे। धीरे-धीरे, एक-एक करके सारे दोस्त इधर-उधर चले गए। सिर्फ हम दोनों रह गए थे। उसने मेरा हाथ पकड़ा और एक रिंग...जो उसने वहीं लोकल शॉप से खरीदी, मेरी उंगली में पहना दी। ये सब इतनी जल्दी हुआ कि मुझे कुछ समझ ही नही आया। मैं आवक थी, स्तब्ध थी...कभी उंगली में पहनी रिंग को देखती तो कभी उसे। मैंने कुछ बोलना चाहा, उसके पहले वो बोल उठा,"ये फौजी तुझे अपनी फोजन बनाना चाहता है !! बन जा !!"
उसने ये बात इतनी सख्ती से कही, समझ नही आया..प्रपोज कर रहा है या आदेश दे रहा है!! मैंने उसे अपने दोस्त से ज़्यादा कभी कुछ माना ही नही। ना ही ऐसा कुछ कभी सोचा ही। अब क्या कहूँ इससे..? लड़का बुरा तो नही है ! पहले सोचा,थोड़ा समय मांग लेती हूँ !! फिर कोई जवाब दूँगी...!!मगर जब हॉं कह ही नही सकती तो उसे उलझाकर रखने का क्या औचित्य?? ओर मुझे ये भी मालूम था, मेरे घरवाले किसी कीमत पर नही मानेंगे!!
एक तो कास्ट का लफड़ा, दूसरा लड़का फौज में है...उससे शादी मतलब भविष्य में लड़की के लिए रिस्क!! ओर तीसरा सबसे मुख्य...लड़की ने खुद ही लड़का पसन्द कर लिया। मतलब लव मैरिज !!"
मैं अपनी दोस्ती उससे तोड़ना नही चाहती थी...लेकिन ये भी जानती थी कि दोस्ती में अब अंतर तो आएगा ही। फिर भी पूरी विनम्रता से मैंने उससे मना कर दिया। उसने कई तरह से समझाया..मगर मैं अडिग रही। फिर थककर वो ही बोला,"अच्छा ठीक है। तू घरवालों से डर रही है ना..!!मेरे पापा-मम्मी उनसे बात कर लेंगे !!" मैंने मना कर दिया। जानती थी, उसके घरवाले अगर मेरे घर पहुंच गए तो कितना बवाल मचेगा?? हम लोग वापस घर के लिए निकल लिए। पूरी ट्रिप मेरे लिए कुछ ज़्यादा ही यादगार ओर सदमा देने वाली बन गयी थी।
मैंने जैसे ही घर के अंदर कदम रखा, उसके पापा-मम्मी को घर मे बैठे देख मेरे हाथ पैर फूल गए।
"मर गयी मैं !!" यही लाइन कही थी मन मे। इतना गम्भीर माहौल था घर का..जिससे मैं समझ गयी कि उसके पापा-मम्मी घर में बात कर चुके हैं। मुझे डर लगा, कहीं मेरे घरवाले उसके पैरेंट्स के साथ कोई दुर्व्यवहार ना कर दे। घरवाले बहुत अच्छे हैं...लेकिन ऐसा शॉक मिले तो कोई नॉर्मल बिहेव भी कैसे कर सकता है..?" पैर आगे बढ़ ही नही रहे थे। दिल तो ऐसे धड़क रहा था जैसे अभी ब्लास्ट हो जाएगा !! बिना गलती के भी ऐसे लग रहा था जैसे कोई गम्भीर अपराध करके आई हूँ मैं।
पापा ने उठकर मेरे पास आते हुए पूछा,"तू भी पसन्द करती है उसे..?" मैंने झट से ना में सिर घुमाया। झूठ थोड़े ही कहा था..दोस्त ही समझा था उसे हमेशा। ओर वो मेरा दोस्त थोड़े ही था, भैया का दोस्त का। हम दोनों थे एक क्लास में, लेकिन फिर भी वो भाई का ही दोस्त ज़्यादा था। मेरी हालत इतनी खराब हो रही थी उस समय...डर रही थी मैं। उसके पापा-मम्मी के जाने के बाद मेरी क्लास लगने वाली है। अब क्या होगा मेरा? कॉलेज बन्द, घर से बाहर निकलना बंद, कहीं आना-जाना बंद, मोबाइल छीन लेंगे, जल्दी से शादी करवा देंगे अब तो घरवाले। घरवालों की चिंता भी गलत नही थी, उनका डर भी अपनी जगह जायज़ था।
मुझे गुस्सा आने लगा उसपर,"इतनी क्या जल्दी थी अपने घरवालों से बात करने की?? डायरेक्ट मेरे घर ही भेज दिया। ये लड़के समझते क्यों नही हैं किसी लड़की की हालत..? मतलब घरवाले नही मानते तो भाग जाओ, शादी कर लो। हुह..इतना आसाम होता है क्या?? ऐसे शादी में नब्बे प्रतिशत लड़को के घरवाले तो शादी स्वीकार कर लेते हैं, चाहे बाद में बहु का जीना मुहाल कर दे। लेकिन सिर्फ दस प्रतिशत लड़की के घरवाले ही शादी स्वीकार कर पाते हैं। अधिकांश तो अपनी बेटी को मरा हुआ मान लेते हैं!! लड़कियां ना मायके की रह जाती हैं और ना ससुराल वालों की हो पाती है ! हालांकि एक बात तो समझ आ गयी थी कि इसके पेरेंट्स उससे बहुत प्यार करते हैं, तभी तो आ गए !! मेरे घरवाले भी मुझसे कम प्यार नही करते, तभी तो डर रहे हैं मेरे लिए….कल को कुछ अनिष्ट हो गया तो?? इतनी कम उम्र में..कैसे क्या करेगी ये..?"
पापा ने मुझे अंदर जाने को कहा। कमरे में आकर भी मैं इधर-उधर चक्कर ही काट रही थी। फिर खुद को तैयार करने लगी, अब उसके पेरेंट्स के जाने के बाद मैं सबका सामना कैसे करूँगी..?? हिम्मत बढ़ा रही थी खुद की ही !!
उसके पेरेंट्स चले गए। उनके जाने के बाद सबका व्यवहार नार्मल ही रहा मेरे साथ...! जो कि मेरे लिए बिल्कुल सामान्य नही था !! ऐसा लग रहा था जैसे तूफान के आने के पहले की शांति है !!

तीन दिन बाद खबर मिली कि हमारे भाई साहब उनको पीट कर आये हैं !! मुझे अपने भाई पर बहुत गुस्सा आया !! उसकी चिंता हुई...पता नही कितना मारा होगा भाई ने उसे?? पहली बार उसके लिए कोई फीलिंग आई मन मे!! फिर एक ख्याल भी आया...भाई में अकेले ही उसे पीटा या किसी ओर को भी लेकर गया था??क्योंकि वो आर्मी में अफसर है और अच्छाखासा ताकतवर इंसान..! भाई अकेला तो उसे पीट ही नही सकता...ये बात मैं पूरे विश्वास से कह सकती हूँ। उल्टा वो अगर भाई में एक मुक्का जड़ देता तो भाई हॉस्पिटल पहुंचता सीधा !! दिमाग बिल्कुल सुन्न हो गया था मेरा सुबह-सुबह ऐसी खबर सुनकर !! शाम को मम्मी ने बताया,"तेरा रिश्ता पक्का कर दिया है!!" सुनकर ही मुझे रोना सा आ गया। जाने क्यों?? मैं तो उसे पसन्द नही करती थी...फिर उसके प्रपोज करते ही अचानक फीलिंग्स कैसे बदल गयी मेरी..? अब समझ आया था मुझे...क्यों तब घरवालों ने कुछ नही कहा था मुझे? उन्हें लगा होगा, अगर कुछ कहा तो भाग नही जाए घर से। आनन-फानन में सगाई कर रहे हैं मेरी। इतना भी विश्वास नही है अपनी बेटी पर !!

उस दिन सगाई थी मेरी...! हम दोनों आमने-सामने खड़े थे। मेरे भावी जीवनसाथी ने मेरी कलाई थामी ओर एक सोने की अंगूठी पहना दी !! थोड़ी देर पहले तक मेरी उंगली में वो दस रुपये वाली अंगूठी थी...लेकिन अब उसकी जगह इस सोने की अंगूठी ने ले ली ।
अंगूठी अलबत्ता दूसरी थी, लेकिन अंगूठी पहनने वाली ओर अंगूठी पहनाने वाला वही था...महेश्वर घाट वाले। मैंने नज़रें उठाकर देखा उसकी ओर, वो मुस्कुरा रहा था।

बाद में मम्मी से पता चला था, हमारा रिश्ता पक्का भाई की वजह से ही हुआ। उसी ने ये चमत्कार करवाया। घरवालों को उसी ने मनाया था। और जो इन्हें जाकर पीटा था, वो इसलिए क्योंकि दोस्त होकर दोस्त की बहन से प्रेम करने का दुस्साहस जो किया था !! और बताया भी नही उसे पहले की मैं तेरी बहन को पसन्द करता हूँ, डायरेक्ट अपने घरवालों को भेज दिया।

भाई एक बार फिर आया मुझे लेने। हम स्टेज की तरफ बढ़ रहे थे, मैं हाथ मे वरमाला लिए। वरमाला के बाद फिर एक बार रिंग सेरेमनी हुई। सगाई हो जाने के बाद भी। पहले मैंने अंगूठी पहनाई। जब उनकी बारी आई अंगूठी पहनाने की तो भाई हमदोनो के बगल में आकर खड़ा हुआ और अपनी जेब से वही अंगूठी निकालकर देते हुए बोला,"ये ही पहना दे भाई वापस !!" हमे हंसी आ गयी। मैंने तो कभी भैया को इस अंगूठी के बारे में बताया ही नही था, फिर इसे कैसे पता चला?? ज़रूर इन्होंने ही बताया होगा....ये दस रुपये की अंगूठी कितनी अनमोल है मेरे लिए।

इतिश्री