सेहत के लिए योग आवश्यक-8
सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से उसकी आँखें खुल गईं । यह तो नित्य का उसका कृत्य बन गया था । खिड़की से अपने बाइनोकुलर से चिड़िया के बच्चों को देखना, फोटो खींचना । सात आठ दिन में ही वे बड़े लगने लगे थे । वे घोंसले में ही फुदक रहे थे पर पर अभी उड़ नहीं पा रहे हैं । तभी उसे याद आया कि आज चाचा ने उसे ट्रैक्टर की सैर कराने के लिये कहा था पर वह उनसे समय पूछना तो भूल ही गई । वह जल्दी से नीचे आई । दादी सदा की तरह पूजा कर रहीं थीं जबकि चाचा बरामदे में योगा मैट बिछाकर सूर्य नमस्कार कर रहे थे । साथ में कुछ बोल भी रहे थे । वह उन्हें देखती रही । सूर्य नमस्कार उसके स्कूल में भी सब बच्चों को कराया जाता है । उसकी योगा टीचर कहतीं हैं केवल यही आसन कोई दिन में पंद्रह बीस बार कर ले तो वह बीमार नहीं पड़ेगा । वह भी कभी-कभी सूर्य नमस्कार करती है पर हमेशा नहीं कर पाती । चाचा को अपने योगा टीचर की तरह सूर्य नमस्कार करते देखकर उसे बहुत अच्छा लग रहा था ।
चाचाजी सूर्य नमस्कार करके अपनी चटाई उठाकर नियत स्थान पर रख ही रहे थे कि सुनयना ने कहा, ‘ चाचाजी मैं भी करूँ ?’
‘ करो...मैं तुम्हें सिखाता हूँ ।’
‘ चाचाजी मुझे मेरी योगा टीचर ने सिखाया है, आप देखिये कि मैं ठीक कर रही हूँ या नहीं ।’ सुनयना ने सूर्य नमस्कार करते हुये कहा ।
‘ वेरी नाइस बेटा...बस पीठ को पीछे की ओर और झुकाने की कोशिश करो ।’
‘ जी चाचाजी । अब मैं रोज किया करूँगी । मेम कहतीं हैं कि रोजाना पंद्रह बीस बार सूर्य नमस्कार करने से बीमार नहीं पड़ते ।’
‘ तुम्हारी मेम ठीक कहतीं हैं बेटा, इसको रोज करने से शरीर के लचीले होने के साथ आयु, बुद्धि , बल, और तेज बढ़ता है ।’
‘ चाचाजी आप हर आसान के साथ कुछ कह रहे थे ।’
‘ हाँ बेटा, सूर्य नमस्कार करते हुये बारह मंत्र बोले जाते हैं । प्रत्येक मंत्र में सूर्य के भिन्न नाम लिये जाते हैं । हर मंत्र का एक ही अर्थ है... मेरा सूर्य भगवान को नमस्कार है ।’
‘ क्या आप मुझे वह मंत्र सिखायेंगे ?’
‘ ठीक है बेटा, एक पेज में मैं वह बारह मंत्र लिख दूँगा । तुम उन्हें याद कर लेना । ’
‘ ठीक है चाचाजी । चाचाजी टैक्टर की सैर के लिये कब जाना है ?’
‘ बेटा नाश्ता करके चलेंगे ।’
‘ ओ.के. । चाचाजी योगा मैट मैं फोल्ड करके रख दूँगी ।’
अभी वह योगा कर ही रही थी कि उसे सांभर की महक आई । क्या आज नाश्ते में दोसा बनेगा ? सोचकर उसे भूख लग आई । दोसा उसको बहुत पसंद था । वह किचन में गई देखा चाची मिक्सी में चटनी पीस रहीं हैं तथा ममा गैस पर आलू भून रही हैं वहीं दादी भी पूजा समाप्त कर बड़ी सी कढ़ाई में कुछ बना रही हैं । खुशबू भी अच्छी आ रही थी । वह उनके पास आकर पूछने लगी, ‘ दादी आप क्या बना रही हैं ?’
‘ बेटा घी निकाल रही हूँ ।’
‘ क्या कल वाले मक्खन से ?’
‘ नहीं मलाई से...तेरे पापा और चाचा को लाल मिठाई बहुत पसंद है अतः घी निकालने के पश्चात् इससे लाल मिठाई बनाऊँगी ।’
‘ मैं समझी नहीं दादी ।’
‘ बेटा जब हम मलाई से घी निकालते हैं तब घी अलग हो जाता है जबकि मलाई का कुछ भाग बच जाता है । जिसे लोनी कहते हैं । घी को छानकर अलग कर लेते हैं तथा लोनी को दूघ में डालकर पकाते हैं । जब दूध और लोनी गाढ़ी हो जाती है तो उसमें चीनी डालकर लाल मिठाई बनाते हैं ।’ दादी ने उसे समझाया था ।
सुनयना को बताते हुये दादी सोच रही थीं कि वह क्या करतीं हैं क्या बनातीं है, उससे रोहन को कोई मतलब नहीं रहता जबकि सुनयना हर चीज जानना और समझना चाहती है । कहीं यही स्त्रियोचित गुण तो नहीं...!! सुनयना को देखकर तो यही लग रहा है चाहे कोई भी काल हो, बचपन से ही लड़के और लड़कियों में स्वभावगत विभिन्नतायें होतीं हैं तभी लड़कों का ध्यान खेलने कूदने में अधिक लगता है वहीं लड़कियाँ खेल-कूद में भाग लेते हुये भी अपनी स्वभावगत विशेषताओं को नहीं छोड़ पातीं हैं ।
सुधा आदेश
क्रमशः