मोबाइल में गाँव - 1 Sudha Adesh द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मोबाइल में गाँव - 1




ट्रेन का सफर-1

सुनयना को जैसे ही उसके ममा-पापा ने बताया कि इस बार क्रिसमस की छुट्टियों में उसके दादाजी के पास ट्रेन से गाँव जायेंगे, उसकी खुशी का ठिकाना न रहा । जबसे स्कूल के एजुकेशन ट्रिप पर गाँव घूमकर आई उसके अपार्टमेंट में रहने वाली उसकी बेस्ट फ्रेंड श्रेया ने उसे गाँवों के बारे में बताया था तबसे उसकी गाँव घूमने जाने की इच्छा थी । आखिर पापा ने उसकी गाँव जाने तथा ट्रेन में बैठने की इच्छा पूरी कर ही दी ।

उसके ममा-पापा जब भी कहीं जाते, समय बचाने के लिये हवाई जहाज से ही जाते थे किंतु इस बार सुनयना की इच्छा का मान रखते हुये उसके ममा-पापा ने दिल्ली जाने के लिये संपर्क क्रांति एक्सप्रेस ट्रेन से रिजर्वेशन करा लिया था । गाँव घूमने की खुशी के साथ ट्रेन की यात्रा तथा रोहन से मिलने की खुशी, उसके उत्साह को दुगणित कर रही थीं । पिछली बार जब वह गाँव गई थी तब रोहन छोटा था, ठीक से बोल भी नहीं पाता था । पिछले महीने वह छह वर्ष का हो गया है । इस बार वह उसके साथ बात भी करेगा और खेलेगा भी ।

पिछली बार जब वह गाँव गई थी तब छोटी थी, उसे ज्यादा कुछ याद नहीं है । इस बार ममा ने उसे उसके सामान के लिये एक अलग सूटकेस दिया है । अपना अलग सूटकेस पाकर सुनयना इतनी खुश हुई कि उसने अपनी पैकिंग भी स्वयं की । अपने बैक पैक में उसने ट्रेन में पढ़ने के लिये कहानी की कुछ किताबें, पेन, डायरी, फोटो खींचने का अपना शौक पूरा करने के लिये पापा का पुराना मोबाइल, बाइनोकुलर तथा रोहन के लिये ढेर सारी चाकलेट भी रख लीं ।

आखिर वह दिन भी आ गया जब उन्हें चलना था । उनका टू टायर ए.सी. में रिजर्वेशन था । उन्हें ट्रेन में बिठाकर पापा पानी लेने के लिये ट्रेन से नीचे उतर गये । दरअसल मम्मी पानी की बोतल रखना भूल गई थीं । सुनयना ट्रेन के शीशे से स्टेशन की चहल-पहल देखने लगी...उनकी ट्रेन के सामने दूसरे प्लेटफार्म पर दूसरी ट्रेन खड़ी थी । ट्रेन के चलने के इंतजार में कुछ लोग खड़े थे । चाय, फल तथा मैगजीन के स्टाल लगे हुये थे । अपनी आवश्यकता की चीजें खरीदकर कोई ट्रेन में चढ़ रहा था तो कोई वहीं खड़े-खड़े खा रहा था । अभी वह प्लेटफार्म की चहल-पहल देख ही रही थी कि अचानक उसने कहा…

‘ माँ हमारी ट्रेन चल दी है । पापा अभी तक नहीं आये ।’

‘ क्या...? ’ नलिनी ने चौंककर दूसरी ओर ट्रेन के शीशे से बाहर की ओर देखा ।

‘ बेटा, हमारी ट्रेन नहीं वरन् सामने वाली ट्रेन जा रही है । बाहर देखो सामने खड़ी ट्रेन चली गई है और हमारी ट्रेन रूकी हुई है ।’ सुनयना को परेशान देखकर नलिनी ने उसे समझाते हुए कहा ।

सुनयना ने ममा के कहने पर बाहर देखा । सचमुच ट्रेन जाने के कारण प्लेटफार्म खाली था । आश्चर्य से उसने पूछा, ‘ ममा, फिर मुझे ऐसा क्यों लगा ? ’

‘ बेटा, ऐसा सापेक्ष गति ( relative velocity ) के कारण होता है ।’

‘ सापेक्ष गति...यह क्या होता है माँ ।’

‘ बेटा, हम अपनी जगह पर बैठे-बैठे अगर किसी चलती वस्तु को लगातार देखते रहें तो कुछ क्षण के लिये हमें लगेगा कि हम चल रहे हैं जबकि ऐसा नहीं होता । ऐसा हमें उस वस्तु के चलने के कारण लगता है ।’

‘ ऐसा क्यों ? ’

‘ यह भ्रम हमें सापेक्ष गति के सिद्धान्त के कारण होता है । जिसकी गति ज्यादा होगी वह हमसे आगे बढ़ती जायेगी और हम पीछे होते जायेंगे जिसके कारण हमें अपने चलने का आभास होगा ।’

‘ क्या हुआ ?’ अभय ने आकर पूछा ।

‘ पापा, माँ मुझे सापेक्ष गति के बारे में बता रही थीं जिसके कारण मुझे अपनी ट्रेन रूकी होने के बावजूद चलती नजर आ रही थी । ’

‘ ट्रेन में भी पढ़ाई...। ’ अभय ने नलिनी की ओर देखते हुये कहा ।

‘ मैं तो सुनयना के प्रश्न का उत्तर दे रही थी । अब यह हर चीज जानना और समझना चाहती है तो क्या उसे बताना गलत है ? ’ ममा ने खीजते हुये कहा ।

‘ अरे, तुम तो नाराज हो गईं । वह तो मैंने ऐसे ही कह दिया है । बच्चों की हर जिज्ञासा को हल करना हमारा कर्तव्य है । वैसे भी सुनयना की यह विशेषता ही तो इसे अन्य बच्चों से विशेष बनाती है ।’ पापा ने कहा ।

‘ पापा, सामने प्लेटफार्म पर खड़ी ट्रेन को चलते देखकर मुझे लगा कि हमारी ट्रेन चल पड़ी है । आप नहीं आये थे । मैं बहुत घबरा गई थी पापा । जब मम्मी को मैंने अपनी बात बताई तब माँ ने मुझे बताया मुझे ऐसा सापेक्ष गति के कारण महसूस हो रहा था ।’ पापा की बात समाप्त होते ही सुनयना ने कहा ।

‘ मेरी बेटी, मुझसे इतना प्यार करती है, मुझे पता ही नहीं था ।’

‘ आई लव यू टू मच पापा ।’

‘ आई लव यू टू बेटा ।’ कहते हुये पापा ने उसे कुछ बाल पत्रिकाओं के साथ चाकलेट एवं ममा के लिये लाई कुछ मैगजीन उन्हें देते हुये कहा ।

‘ थैंक यू पापा ।’ चाकलेट और पत्रिकायें सुनयना ने अपने बैग में रखते हुये कहा ।
‘ लो अपनी ट्रेन भी चल दी ।’ ममा ने उन दोनों की ओर देखते हुये कहा ।

ममा के कहने पर सुनयना ने खिड़की के बाहर देखा । इस बार उनकी ट्रेन सचमुच चल दी थी । सुनयना खिड़की के शीशे से बाहर देखने लगी । प्लेटफार्म पर खड़े लोग, मैगजीन, चाय, फल के स्टाल पीछे छूटते जा रहे थे । धीरे-धीरे ट्रेन प्लेटफार्म छोड़कर आगे बढने लगी । घर, हरे-हरे पेड़, सबको पीछे छोड़कर ट्रेन लगातार आगे बढ़ रही थी । वह विंडो सीट पर बैठी थी क्योंकि खिड़की से बाहर का दृश्य देखना उसे बेहद अच्छा लग रहा था ।

‘ चाय...।’

चाय वाले की आवाज ने उसके विचारों को रोका । पापा ने दो चाय लीं । उनके साथ ही सामने वाले अंकल ने भी चाय ली । सब चाय पीने लगे । उसे माँ ने बैग से निकालकर फ्रूटी का पैकेट दे दिया तथा अपने लिये बिस्कुट का पैकेट निकाल लिया । चाय पीकर माँ-पापा ने चाय के कपों को बैग से निकाली एक थैली में रख दिया । सुनयना ने भी जूस पीकर खाली पैकेट को उसी थैली में डाल दिया । थोड़ी देर पश्चात् सुनयना ने देखा कि सामने वाले अंकल ने चाय पीकर चाय का खाली कप सीट के नीचे रख दिया । सुनयना से रहा न गया उसने उठकर उनके खाली कप को उठा लिया…

‘ अरे, क्या कर रही हो बेटी ?’ उसे ऐसा करते देखकर सामने बैठे अंकल ने कहा ।

‘ अंकल मैं इसे डस्टबिन में डालकर आती हूँ ।’ सुनयना ने कहा ।

‘ रहने दो बेटी, खाना खाने के बाद मैं सारा कचरा एक साथ डस्टबिन में डाल दूँगा ।’ अंकल ने उसे रोकते हुये कहा ।

‘ खाना खाने में तो अभी बहुत समय है अंकल, अगर कप गिर गया तो बची चाय हमारे कैबिन को गंदा कर देगी ।’ सुनयना ने उत्तर दिया ।

‘ आजकल बच्चे स्वच्छता के प्रति हमसे ज्यादा जागरूक हो गये हैं । बेटी, कप को इसमें डाल दे ।’ सहयात्री को शर्मिंदगी से बचाने की कोशिश करते हुये माँ ने अपना डस्टबिन वाला बैग आगे कर दिया ।

बाहर अँधेरा होने लगा था किन्तु पूरे डिब्बे में चहल-पहल थी । वह ममा को कहकर फ्रेश होने के लिये जाने लगी । ममा ने कहा मैं चलूँ तो उसने मना कर दिया क्योंकि ट्रेन में चढ़ते समय ही उसने टायलेट लिखा देख लिया था । उसने गैलरी में खड़े होकर दोनों ओर देखा । प्रवेश द्वार के ऊपर एक तरफ दो रेड लाइट जल रही थीं वहीं एक तरफ एक रेड लाइट थी तो एक ग्रीन । इसका अर्थ है इस तरफ एक टायलेट खाली है वह उधर ही चल दी । उसका सोचना ठीक था वह फ्रेश होकर आई तो देखा कोई ताश खेल रहा है तो कोई पढ़ रहा है । कोई मोबाइल पर गेम खेल रहा है तो कोई अपने लैपटॉप में मूवी देख रहा है । तभी उसकी निगाह एक लड़की पर पड़ी । वह उसकी ही उम्र की थी वह आई पैड पर वीडियो देख रही थी । पता नहीं उसे क्या हुआ वह उसके पास खड़ी होकर उस वीडियो को देखने लगी । उस वीडियो में कागज के गुलाब के फूल बनाना सिखाया जा रहा था । उसे अच्छा लग रहा था, वह उसे वहीं खड़े-खड़े देखने लगी ।

‘ क्या नाम है तुम्हारा ?’ उसे वीडियो देखते देखकर उस लड़की के पास बैठी औरत ने पूछा ।

‘ जी, सुनयना ।’ उसने सकपकाकर कहा ।

‘ बैठकर देख लो बेटा । मनीषा इसे भी अपने पास बिठा लो ।’ मनीषा की ममा ने मनीषा से कहा ।

‘ थैंक यू आँटी...।’

उसे लगा कि अब उसे डाँट पड़ेगी । शायद आँटी का उसका ऐसे खड़े होना पसंद नहीं है पर उन्होंने तो बड़े प्यार से उसे बैठने के लिये कहा । अपनी ममा की बात मानकर मनीषा ने भी थोड़ा खिसककर उसे बैठने की जगह दे दी । वह बैठकर वीडियो देखने लगी । वीडियो समाप्त होने पर सुनयना ने पूछा, ‘ क्या तुमने कभी कागज के फूल बनाये हैं ?’

‘ दूसरे तो बनाये हैं पर ये वाला नहीं । अब घर जाकर बनाऊँगी ।’ मनीषा ने कहा ।

‘ और क्या-क्या बनाती हो ?’ सुनयना ने पूछा ।
‘ मैं पेंटिंग बनाती हूँ ।’ कहते हुये वह आई पैड की कैमरा गैलरी खोलकर उसे अपनी बनाई पेंटिंग दिखाने लगी ।

‘ वाह ! बहुत सुंदर ...तुमने किससे सीखीं ?’ सुनयना ने कृष्णजी, राधा कृष्ण तथा पेंसिल से बने अन्य स्केचों को देखकर कहा ।

‘ मैं गुगल में सर्च कर कोई भी अच्छी पेंटिंग ढूँढती हूँ फिर उसे बनाने की कोशिश करती हूँ । अगर मुझे कोई कठिनाई आती है तो ममा से हैल्प लेती हूँ...वह बहुत अच्छी पेंटिंग बनातीं हैं ।’ कहते हुये उसकी आँखों में चमक थी ।

‘ मेरी ममा भी कंप्यूटर इंजीनियर हैं । उनकी वजह से ही मेरे कंप्यूटर में अच्छे नंबर आते हैं । पर वह मुझे मोबाइल बहुत कम देतीं हैं । वह कहतीं हैं ज्यादा आई पैड या मोबाइल की जगह पढ़ने की आदत डालो...जितना तुम पढ़ोगी उतनी तुम्हारी भाषा अच्छी होगी । भाषा अच्छी होगी तो तुम हर विषय में अच्छा करोगी । अतः मैं मोबाइल कम यूज करती हूँ । ’ सुनयना ने कहा ।

‘ मनीषा कुछ सीखो, मैं भी तो यही कहतीं हूँ पर तुम सुनती ही नहीं हो ।’ मनीषा की ममा जो उनकी बात सुन रही थीं उन्होंने सुनयना की बात सुनकर कहा ।

‘ ममा मैं इसमें देखकर कुछ सीखती ही हूँ । सीखना तो बुरा नहीं है । वैसे भी आप दिन में सिर्फ एक या डेढ़ घंटे ही तो मुझे आई पैड या मोबाइल देतीं हैं ।’ मनीषा ने रूआंसे स्वर में कहा ।

‘ ओ.के...। बेटा तुम किस क्लास में पढ़ती हो ?’

‘ सिक्थ क्लास में...।’

‘ अरे वाह ! मैं भी सिक्थ क्लास में पढ़ती हूँ ।’ मनीषा ने उसकी ओर देखते हुये कहा
‘ तुम्हारी क्या हॉबी है ?’ मनीषा की ममा ने पुनः पूछा ।

‘ आँटी, मुझे कहानी पढ़ना और सुनाना अच्छा लगता है । कभी-कभी स्टोरी वाले वीडियो भी इसलिये देखती हूँजिससे स्टोरी सुनाते हुये कभी अपना वीडियो बनाऊँ । एक दो बार ट्राइ किया पर उस जैसा नहीं बन पाया ।‘ आँटी इसके अलावा मुझे फोटो खींचने का भी बहुत शौक है । इसलिए पापा ने मुझे अपना पुराना मोबाइल भी दे दिया है । ‘ मायूस स्वर में सुनयना ने कहा ।

‘ बेटा, बहुत अच्छी हॉबी है । कोशिश करती रहो । एक दिन जैसा तुम चाहती हो वैसा हो जायेगा ।’

‘ ममा मैं भी फूल बनाते हुये वीडियो बनाने की कोशिश करूँगी । मेरी सहेली नमिता ने गाने का एक वीडियो यू टियूब में अपलोड किया है । उसे अब तक 540 लोग देख चुके हैं ।’

‘ अच्छा तुम यहाँ बैठी हो, मैं तो घबरा ही गई थी ।’ सुनयना की ममा ने उसे देखकर कहा ।

‘ बच्चों को भी अपनी कंपनी चाहिये, मनीषा को देखकर आपकी बेटी सुनयना भी यहीं बैठ गई ।’ मनीषा की मम्मी ने उसकी मम्मी से कहा ।

‘ आप ठीक कह रही हैं । मेरा नाम नलिनी है और आप ?’

‘ मैं केतकी...हम मुंबई में बांद्रा में रहते हैं और आप...।’

‘ हम भी बांद्रा में रहते हैं । छुट्टियों में अलीगढ़ सुनयना के दादा-दादी के पास जा रहे हैं ।’

‘ अलीगढ़...अलीगढ़ से मेरी बहुत यादें जुड़ी हुई हैं । मेरे नानाजी का अलीगढ़ में ताले का व्यवसाय था पर उनके जाने के बाद वहाँ से नाता ही टूट गया । ’ केतकी ने दुखी स्वर में कहा ।

‘ ताले का व्यवसाय...अलीगढ़ तो ताले के लिये ही प्रसिद्ध है ।’ नलिनी ने कहा ।

‘ आप ठीक कह रही हैं । अलीगढ़ जैसे मजबूत ताले आज भी कहीं नहीं मिलेंगे ।’ केतकी ने कहा ।

‘ आप कहाँ जा रही हैं ?’ नलिनी ने पूछा ।

‘ हम मेरठ जा रहे हैं । मनीषा के नाना-नानी के पास । एक यही समय मिलता है कहीं आने जाने के लिये जब मौसम अच्छा होता है वरना गर्मी में तो कहीं आना जाना ही संभव नहीं है ।’ केतकी ने उत्तर दिया ।

‘ अरे, मैं आई थी सुनयना को ढूँढने के लिये...किन्तु स्वयं भी यहीं बैठ गई । ये भी सोच रहे होंगे, माँ बेटी पता नहीं कहाँ चली गईं । सुनयना मैं चलती हूँ , तुम आ जाना । बाय केतकी...। ’

‘ जी ममा ।’ कहकर सुनयना मनीषा से बातें करने लग गई ।

सुनयना और मनीषा ने स्कूल की पढ़ाई से लेकर, अपने दोस्तों के बारे में बातें की । कुछ देर अंताक्षरी खेली फिर आई पैड खोलकर उसमें सुडोको गेम खेलने लगीं । तभी कोच में खाना परोसा जाने लगा । यह देखकर सुनयना ने देखकर कहा,‘ अब चलती हूँ । ममा इंतजार कर रही होंगी । ’

‘ ओ.के...तुमसे मिलकर अच्छा लगा । अपना कान्टेक्ट नम्बर दे दो जिससे हम फिर कभी मन हो तो बात कर सकें ।’

फोन नम्बरों के आदान प्रदान के पश्चात् सुनयना अपनी सीट पर लौट आई । ममा मैगजीन पढ़ रही थीं वहीं पापा चाचा से बात कर रहे थे । वह अपने बैग से ‘ पंचतंत्र की कहानी ’ निकालकर पढ़ने लगी । उसी समय टिकिट चेकर अंकल आकर टिकिट चैक करने लगे ।

टिकिट चेकर अंकल के जाने के बाद पापा और सामने वाले अंकल बातें करने लगे । दूसरे कैबिन से भी लोगों के बात करने की आवाजें आ रही थीं । धीरे-धीरे खाने का समय हो गया । ममा को खाना बैग से निकालते देखकर उसने पढ़ना बंद कर दिया । उसे खाने की प्लेट पकड़ाने से पहले ममा ने उसे सैनीटाइजर की शीशी देते हुये हाथ सैनीटाइज करने के लिये कहा । ममा ने उसे प्रारंभ से ही हाथ धोकर खाने की शिक्षा दी है । बाहर निकलने पर कहीं हाथ धोने की सुविधा मिलती है कहीं नहीं अतः ममा सैनीटाइजर की बोतल न केवल अपने बैग में रखतीं हैं वरन् उसके स्कूल बैग में भी रख देतीं हैं ।

हाथ सैनीटाइज करवाने के पश्चात् ममा ने उसे तथा पापा को एक-एक पैकेट देने के साथ एक पेपर नैपकिन तथा सीट पर बिछाने के लिये एक पेपर भी दिया । पैकेट खोलते ही अपनी मनपसंद चिली पनीर के साथ पूरी देखकर वह खुशी से भर उठी ।

वाउ, वेरी टेस्टी...।’ कहकर उसने अपनी खुशी जताई ।

‘ आराम से खाना, गिराना नहीं, नहीं तो सीट गंदी हो जायेगी । इसी पर हमें सोना भी है ।’ ममा ने सुनयना से कहा ।

खाना खाकर माँ, पापा तथा उसने अपनी-अपनी प्लेट डस्टबिन वाले बैग में डाल दीं । ममा उसे उठाकर ट्रेन के डस्टबिन में डालने ही जा रही थीं कि दो आदमी एक बड़ा सा डस्टबिन बैग लेकर आ गये । ममा ने अपना डस्टबिन गैग उसमें डाल दिया ।

‘ अब ट्रेन में भी सफाई रहने लगी ।’ पापा ने ममा से कहा ।

‘ सचमुच, इतनी ही देर में एक बार झाड़ू भी लगा चुका है । बाथरूम भी पहले की अपेक्षा साफ हैं । टायलेट पेपर तथा हैंडवाश भी रखा है और तो और मग के साथ हैंड स्प्रे वाश का भी आप्शन है ।’

‘ ममा क्या पहले ट्रेन में सफाई नहीं होती थी ?’ सुनयना ने पूछा ।

‘ होती थी बेटा पर लोग खाकर, खाने के रैपर इधर-उधर फेंक देते थे । अब लोग भी जागरूक हो रहे हैं इसलिये ट्रेन भी साफ रहने लगी हैं ।’ नलिनी ने उसके प्रश्न का समाधान करते हुये कहा ।

सामने वाले अंकल पहले ही खा चुके थे । सोने का समय हो ही रहा था अतः माँ-पापा ने मिलकर ट्रेन की सीट पर चादर बिछाई । ममा ने उसे पेस्ट लगाकर ब्रश दिया, ब्रश करके केबिन का पर्दा खींचकर वे अपनी-अपनी सीट पर लेट गये पर उसे नींद नहीं आ रही थी वह ऊपर की सीट पर लेटकर अपनी कहानी की किताब पढ़ने लगी ।
सोने के पहले सुनयना को लगा कि उसे बाथरूम जाना है । वह नीचे उतरी तो देखा पूरी गैलरी सुनसान है । सब सो रहे हैं । बल्ब तो जल रहा है किन्तु न जाने क्यों उसे डर लगने लगा । उसने ममा को जगाया । चलती ट्रेन की घड़घडा़हट, रात का अंधेरा...ममा का हाथ पकड़कर भी बाथरूम जाने में सुनयना को घबडाहट हो रही थी । जब वह लौट रही थी तो पर्दे पड़े होने के कारण उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि उनका कैबिन कौन सा है । उसने अपने मन की शंका ममा को बताई तो उन्होंने कहा हमारा कैबिन प्रवेश द्वार से चौथा है । ममा की बात सुनकर उसने चैन की सांस ली । उसे लग रहा था माँ को उठाकर उसने अच्छा किया वरना वह पता नहीं अपना कैबिन ढूँढ पाती या नहीं ।
.......

सुबह चाय वाले की आवाज सुनकर सुनयना की आँख खुल गई । ममा की सीट की ओर देखा । वह अपनी सीट पर नहीं थीं...शायद वाशरूम गई होंगी, सुनयना ने सोचा ।

‘ जग गई हो तो तुम भी फ्रेश हो लो । अभी बाथरूम खाली है । ‘ वाशरूम से आकर ममा ने उसे पेस्ट लगाकर टूथब्रश पकड़ाते हुए कहा ।

‘ ममा दिल्ली कब आयेगा ?’ सुनयना ने ब्रश लेते हुये पूछा ।

‘ अभी तो बहुत समय है । लगभग दो बजे हम दिल्ली पहुँचेंगे ।’

‘ अभी कितना बजा है ।’

‘ सात...।’

‘ ओ.के. ।’

सुनयना टॉवल लेकर वाशरूम चली गई । लौटकर आई तो देखा पापा अभी भी सो रहे हैं तथा ममा भी सोने की कोशिश कर रही हैं । वह भी अपनी सीट पर लेटकर सोने की कोशिश करने लगी ।

‘ उठो सुनयना नाश्ता कर लो ।’ ममा ने उसे उठाते हुये कहा ।

सुनयना नाश्ता कर ही रही थी कि मनीषा आ गई ।

‘ आओ बेटा, बैठो.. तुम भी नाश्ता कर लो । ’ ममा ने उसको नाश्ते का पैकेट देते हुये कहा ।

‘ थैंक यू आँटी मैं नाश्ता करके आई हूँ ।’ मनीषा ने नम्रता से कहा ।

ममा के आग्रह करने पर मनीषा ने एक सेंडविच ले ही लिया । नाश्ता करके वे दोनों ऊपर की सीट पर चली गईं तथा बातें करने लगीं । थोड़ी देर अंताक्षरी खेलकर शहरों के नाम की अंताक्षरी खेलने लगीं । उससे मन भर गया तो सुनयना ने मैगजीन निकाली तथा उसमें पहेलियाँ हल करने लगीं इस बीच दोनों ने कई फोटो भी खींची । उन दोनों को शांति से खेलते देखकर नलिनी को बहुत अच्छा लग रहा था ।

‘ मनीषा चलो खा लो, सुबह से तुमने कुछ नहीं खाया है ।’

‘ मनीषा तो कह रही थी कि मैंने नाश्ता कर लिया है ।’ नलिनी ने चौंककर कहा ।

‘ नलिनीजी, पता नहीं इसे भूख ही नहीं लगती है, ऐसे ही बहाने बनाती रहती है । बस दो पीस ब्रेड सैंडविच खाया था ।’
‘ ममा मैंने जूस भी तो पीया था...।’ मनीषा ने कहा ।

मनीषा अपनी ममा के साथ चली गई जबकि उसका जाने का मन नहीं था । केतकी की बात सुनकर नलिनी सोच रही थी कि पता नहीं क्यों कुछ माँओं को सदा यही क्यों लगता रहता है कि उसके बच्चे ने कुछ नहीं खाया है । पूरे समय उसके खाने के पीछे पड़ी रहतीं हैं । अरे ! बच्चे को भूख लगेगी तो वह खायेगा ही...। बार-बार उससे कहने से कि तुम तो कुछ खाते ही नहीं हो, क्या उसे खाने से ही वितृष्णा नहीं होती जायेगी ?

एक बजने वाला था । नलिनी ने खाना परोस दिया । खाना खाकर उन्होंने सामान की पैकिंग कर ली तथा सुनयना से भी अपना सामान ठीक से पैक करने के लिये कह दिया । उसने भी ऊपर की सीट पर जाकर अपना पूरा सामान पैक कर लिया ।

लगभग दो बजकर पंद्रह मिनट पर उनकी ट्रेन दिल्ली पहुँची । जहाँ हमारा डिब्बा रूका, उसी के सामने अजय चाचा खड़े थे । ट्रेन रूकते ही चाचा अंदर आ गये । पापा और चाचा ने मिलकर सामान उतारा । उसने अपना बैग कंधे पर टाँग लिया । उसी समय मनीषा भी अपनी ममा-पापा के साथ उतरी । उन दोनों एक दूसरे को बाय कहा तथा अपना-अपना सामान समेटने लगे । पापा और चाचा सामान लेकर चलने लगे वहीं वह ममा का हाथ पकड़कर उनके पीछे-पीछे चल रही थी । बहुत लंबा प्लेटफार्म था । अंततः वे स्टेशन से बाहर निकलकर कार पार्किग एरिया में आये ।

सुधा आदेश

क्रमशः