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दादी के मुंह से मम्मी की तारीफ़ सुनकर सृष्टि को कुछ और नया सोचने को मिला। दादी कभी माँ की बुराई नही करती थी। दरअसल उनकी आदतों में किसी की बुराई करना नही था। अभी तक दादी ने अपने अतीत से जुड़ा जो भी बताया....सृष्टि को लगा कि दादी ने परिवार के हर सदस्य के लिए बहुत दिल से किया। तभी उसने दादी से कहा...
"आप घर के बारे में बता रही थी दादी। आगे बताओ न क्या हुआ।"
"हाँ तेरे बड़े दादाजी के बारे में बता रही थी। वह अधिकतर नीम के पेड़ की छांव तले एक कोने में लेटे रहते थे। बस खाने-पीने और सैर पर जाने के लिए उठते थे| तेरे दादा जी चूंकि कमाते थे और घर चलाते थे तो वो ही घर के बड़े हो गए थे। कई बार दोनो भाइयों के बीच बंद कमरे में छोटी-मोटी लड़ाई हो जाती थी....वह भी रुपये-पैसों के लिए। पर वह आवाज़ वहीं के वहीं ख़त्म हो जाती। घर की औरतों तक कोई बात नही पहुंचती थी। कई बार मैंने पूछने की कोशिश की तो तेरे दादाजी ने मुझे ही डांट दिया| तेरे दादाजी अक़्सर बोला करते थे...
'दो भाइयों की लड़ाई में घर की औरतों का क्या काम? घर के भाड़े-कुढ़े अगर बजने और टूटने से बचाने हो तो भाइयों को अपने झगड़े अपनी बीवियों तक नही पहुंचाने चाहिए। नही तो घर घर नही रहते।'
सृष्टि की समझ में अब आने लगा था कि पहले बड़े-बड़े परिवार कैसे एक ही छत के नीचे शांति से रह लेते थे...और कितनी गुंज़ाइशें होती थी सभी के बीच। तभी सृष्टि को बड़े दादाजी से जुड़ी वह बात याद आई...जो दादी ने बग़ैर बताए छोड़ दी थी।
"दादी बड़े दादा जी के बारे में आप कुछ बता रही थी| जो आपने बताते-बताते छोड़ दिया| वो भी बताएं न प्लीज।" सृष्टि ने दादी की मनुहार करते हुए पूछा....
"तू भूलती कुछ भी नही है बेटा। ज़रूरी थोड़ी है कि तुझे सभी के बारे में सब बातें पता चले।"
"नही दादी प्लीज़...मुझे सब जानना है। बताओ न। आपने मुझे से प्रॉमिस भी लिया है|...मैं किसी को नहीं बताऊँगी| सब बातें समझने की भी कोशिश करूंगी|" सृष्टि दादी से सभी बातें निकलवाना चाहती थी।
"तेरे बड़े दादा...कोई काम नही करते थे यह तो तुझे पता ही है बेटा। पर सोच कर देख कोई भी इंसान कितनी देर घर में ख़ाली बैठा रहता। ख़ाली दिमाग़ तो शैतान का ही घर होता है न बेटा| जब तेरी बड़ी दादी के चौथी बेटी हुई, तब तेरे बड़े दादाजी की ज़िंदगी में एक और स्त्री आ चुकी थी| उनको उम्मीद थी कि नई स्त्री से उनको बेटा हो जायेगा| उन्हें बेटे की बहुत साध थी न। पर सुनते हैं ऐसा नहीं हुआ| तेरे दादाजी ने ही मुझे बताया उनके दूसरी स्त्री से,कोई संतान ही नहीं हुई|"
"बड़ी दादी को पता थी यह दूसरी स्त्री वाली बात।" सृष्टि ने पूछा|
"अरे बेटा! औरत को तो ऐसी बातें सबसे पहले पता चलती है।...स्त्री को उसका आदमी भटक जाए, तो सबसे पहले पता चलता है। तेरे दादा जी को भी सब पता था। उनको कैसे पता नही चलता। उनकी तो हर जगह पर जान-पहचान थी। ख़ैर उन्होंने अपने बड़े भाई को ख़ूब समझाने की कोशिश की| पर समय का लिखा कौन बदल पाया है। तेरे दादा जी के ज़्यादा टोकने पर,तेरे बड़े दादाजी ने धमकी दे डाली...‘अगर मेरे बीच में बोलेगा तो हिस्सा-बांट कर लेते है। मुझे इस घर में किसी के साथ नही रहना। मेरी गृहस्थी भी तू ही संभाल।"
"फिर दादी क्या हुआ।"...सृष्टि ने पूछा|
"होना क्या था? खूब झगड़े हुए। बड़े दादाजी मनमानी करके ही माने। अपना हिस्सा लेकर, घर छोड़ कर चले गए। उनके जाते ही तेरी बड़ी दादी बहुत उन्मादी हो गई...मैंने उनको बहुत संभालने की कोशिश की| उनको बेटियों का वास्ता दिया| मगर एक रात उन्होंने फांसी खा ली|....
दरअसल तेरी बड़ी दादी एक बहुत बड़े परिवार से आई थी| उन्होंने उस समय में आठवीं कक्षा पास की हुई थी| जब वह तेरे बड़े दादा जी के लक्षणों को देखती थी....तो उसको अच्छा नहीं लगता था| उन्होंने शुरू-शुरू में बड़े दादा जी को बहुत समझाने की कोशिश की| वह भी स्वभाव से बहुत जिद्दी थे| उनके हाथों में हमेशा से ही बहुत पैसा रहा| सच तो यह है कि उन्होंने रुपयों का दुरुपयोग व मनमानी की|
हालांकि तेरे दादाजी ने कभी भी मुझे यह नहीं बताया पर मुझे आस-पड़ोस की औरतों से कई बार सुनने को मिला कि वह जुआ भी खेलते थे| बाद में अपनी मनमानी करने के लिए वह जीजी पर बहुत बार हाथ उठा दिया करते थे| तेरी बड़ी दादी को उन्होंने बेटियां पैदा होने की वज़ह से काफ़ी प्रताड़ित करना शुरू कर दिया था| दोनों के बीच लगभग रोज़ ही कहा-सुनी होती|
तेरी बड़ी दादी को यह सब बातें बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती थी| तभी वह कई-कई दिनों तक उनसे अपनी बोलचाल बंद कर देती थी| पर औरत जात कब तक चुप रहती, थक हारकर अपनी बेटियों का लिहाज़ करके, वह उनसे बातचीत शुरू कर देती थी|...
वह बेचारी तो जच्चगी में भी अपनी बेटियों को संभालने के अलावा घर के कामकाज़ भी करने की कोशिश करती थी| पर तेरे बड़े दादा जी को उनके ऊपर ज़रा भी तरस नहीं आता था। दोनों को ही क्रोध में कुछ नहीं सूझता था|....