भेद - 2 Pragati Gupta द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भेद - 2

2.

एक रात जब सृष्टि नींद न आने की वज़ह से दादी के बगल में लेटी हुई करवटें ले रही थी| तो दादी का उस पर लाड़ उमड़ पड़ा और उन्होंने पूछा...

"सृष्टि! क्या हुआ बेटा?..नींद नही आ रही। सब ठीक तो है| गरम दूध लेकर आऊँ तेरे लिए....दूध पीकर जल्द नींद आ जाएगी|”

“दादी! मैं दूध पी चुकी हूँ| माँ ने बनाकर दिया था|”...सृष्टि ने ज़वाब दिया|

“आज तेरे कॉलेज में सब ठीक तो था न| तेरे इम्तहान कब से हैं? ख़ूब मन लगा कर पढ़ना.... ख़ूब मेहनत करना| तू कहती है न...‘दादी मैं बहुत बड़ी वकील बनना चाहती हूँ....बिल्कुल पापा की तरह|”

“हाँ दादी बनना तो चाहती हूँ| पर माँ-पापा को देखती हूँ तो मन ख़राब हो जाता है| आप भी कुछ नहीं बोलती| जबकि आप दोनों को बहुत प्यार करती हैं|”…

सृष्टि की हर बात को दादी समझती थी| पर शायद उनको भी विनीता की तरह  लगता था....सृष्टि को अभी अपना दिमाग़ सिर्फ़ पढ़ने में लगाना चाहिए| तभी उन्होंने सृष्टि का मन बदली करने के लिए कहा....

“सृष्टि! चल आज तुझे तेरे दादा जी के परिवार के बारे में बताऊँ| तेरा भी मन बहल जाएगा|"

दादी कि बात सुनकर सृष्टि को लगा शायद आज उसकी मुराद भी पूरी हो जाए| आज दादी ने दादाजी के परिवार के बारे में बताने से बात शुरू की है ....तो हो सकता है बातों-बातों में वह मां-पापा के आपसी रिश्तों में कड़वाहट की वज़ह भी बता दे| सृष्टि ने दादी को लाड़ करते हुए कहा...

"हाँ दादी प्लीज़ आप बताओं न|.... दादाजी के खानदान के बारे में, आप आपने किश्तों में कुछ-कुछ बातें पहले भी बताई है| हमारे दादाजी बहुत दबंग और नामी वकील थे न दादी। उनके पास कई ज़मीनें भी थी?"

"हाँ बेटा। तेरे दादाजी दो भाई थे हरी प्रकाश और विजय प्रकाश। तेरे दोनों दादा जी वकील थे। पर तेरे बड़े दादा हरफ़नमौला थे| उनका काम-काज़ में मन कम रमता था| घर में पुश्तैनी ज़मीन-ज़ायदाद,ख़ानदानी रुपया-पैसा और नौकर-चाकर  ख़ूब थे। किसी को भी खाने-पीने जैसी कोई कमी नही थी।"

"दादी! आपने मुझे पहले भी बताया था कि दादाजी कोर्ट जाते थे| घर में बाहर वाले कमरे में एक बैठक होती थी| जहाँ उनके क्लाइंट आते थे|....क्या बड़े दादाजी भी वकालत करते थे? और उनके भी क्लाइंट्स आते थे?"...सृष्टि ने बीच में ही दादी को टोककर पूछा।

"तेरे बड़े दादाजी सिर्फ़ आराम करते थे| उन्होंने जीवन में कभी, कोई केस नहीं लड़ा| उनको बढ़िया खाना-पीना और आराम करना अच्छा लगता था| तेरे पड़ दादा बहुत अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे| तभी उनके दोनों बेटे पढ़-लिख गए| पर बेटा प्राय: हर खानदान में ऐसा एक व्यक्ति ज़रूर होता है...जो दूसरों की मेहनत पर ऐश करता है|.... कुछ ऐसा ही तेरे बड़े दादाजी के साथ था| काम करने के नाम से उनको चिढ़ थी|

समय आने पर दोनों भाइयों की शादियाँ हुई| बेटे की आस में उनके एक-एक कर चार बेटियां हुई। जिसकी वज़ह से तेरी बड़ी दादी को वो बहुत उल्टा-सीधा सुनाते थे।

'हर बार अस्पताल जाती है...एक और खर्चा बढ़ाने वाली लड़की को उठाकर ले आती है। पता नहीं मेरा वंश बढ़ाने वाला बेटा कब लाएगी....|' तेरे बड़े दादाजी की बातें सुनकर बड़ी दादी ख़ूब रोती थी| न जाने कितने व्रत करती थी....पर भगवान ने उनको बेटा नहीं दिया|”

"पर ऐसा क्यों करते थे दादाजी? लड़का होगा या लड़की यह तो आदमी की वज़ह से होता है। इसमें बड़ी दादी का क्या दोष?"

"सही कहा बेटा तूने। पर यह तो आजकल के डॉक्टर बताते है...तभी लोगों को पता चला है। पहले तो हर दोष स्त्रियों पर ही मढ़ दिया जाता था। बहुत पढ़ी-लिखी औरतें तो होती नही थी कि आवाज़ उठाती। सो जो भी औरतों पर दोष लगाया जाता था.... ख़ुद को दोषी मानकर शांत रहने की कोशिश करती और घर गृहस्थी में डूबी रहती। यही तेरी बड़ी दादी करती थी।"

"उनको बुरा नही लगता था....जब इस तरह की बातें बड़े दादाजी बोलते थे। ऐसे में आप उनको क्या कहती थी|"...सृष्टि ने पूछा।

"बुरा क्यों नही लगता था? आख़िरकार वह भी इंसान थी। वह ख़ूब रोती थी| पहले घर पर ही दाइयां बच्चों की जनने में मदद करती थी। जैसे ही उनके बेटी पैदा होती....और उनको पता चलता....रोना शुरू कर देती| उनको पता था भाई साहिब यानी तेरे बड़े दादा क्या बोलने वाले हैं।...मैं उनको संभालने की बहुत कोशिश करती थी। पर किस औरत को बार-बार इतनी कड़वी बातें सुनना अच्छा लगता है बेटा| मेरे जब महेंद्र पैदा हुआ। तब तक तो जीजी के तीन  बेटियां हो चुकी थी। महेंद्र के बाद मेरी कोई संतान नही हुई। दो बार बच्चा पेट में आया पर ख़राब हो गया।"

"दादी! ख़राब हो गया मानी?...बच्चे को क्या हुआ था?

"वो आजकल क्या कहते है....गर्भपात हो गया था। हमारे समय में उसे ख़राब होना कहते थे।"

"ओह! कहीं आपने कुछ खा-पी तो नही लिया था। एक बार आपने ही तो बताया था कि पहले वैद्य जड़ी-बूटी देते थे। ताकि बच्चा गिर जाए।"

"मैं क्यों खाती जड़ी-बूटी मेरे तो एक ही बेटा था। वो भी पहली संतान। दो चार और भी हो जाते, तो घर में कोई कमी तो थी नहीं। पर मेरी क़िस्मत में, और बच्चों का आना लिखा ही नही था....तभी बाद में पैदा हुई संतान जीवित नहीं बची।"

"फिर क्या हुआ दादी?"

दादी सभी बातें इतना मगन होकर सुनाती थी कि बातें सचित्र चलने लगती थी| सृष्टि को दादी की बातें सुनने में ख़ूब मज़ा आता था। दादी-पोती का बहुत गहरा रिश्ता था| यह सच है,बड़े-बुजुर्गों को कोई प्रेम से सुनने वाला मिल जाए तो उनको बहुत सुख देता है| कुछ ऐसा ही सृष्टि और दादी का संवाद था| दादी ने अपनी बात पुनः कहना शुरू की..