मृत्यु का मध्यांतर - 6 - अंतिम भाग Vijay Raval द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मृत्यु का मध्यांतर - 6 - अंतिम भाग

अंतिम अंक - छठा/६

'आदित्य, आदित्य नहीं है इसमें आदि। सबकुछ अकेले अकेले ही करना है? प्रेम भी अकेले औैर पुण्य भी अकेले ही? कही तो मुझे तुम्हारा साथी बनने दो न आदि।'

इतना बोलते ही इशिता आदित्य के गले लगकर फूटफूट कर रोने लगी और पहली बार आदित्य के आंसुओं का मज़बूत बांध भी टूट गया।

अब इशिता ने अपने मनोबल को वज्र जैसा कठोर कर दिया था। आदित्य के इतने सालों की एकलव्य जैसे एकतरफा आराधना की फलश्रुति रूप में सिर्फ़ इशिता के आंसु पर्याप्त नहीं थे। चेहरा पोंछ ते हुए इशिताने पूछा,

'आदि इतना किया है तो अब एक वचन दो कि, अबसे मैं जो बोलूंगी या करूंगी उसमे तुम कहीं भी बाधा नहीं डालोगे। औैर मैं जाे कुछ भी पूछूं उसका तुम सही सही जवाब दोगे।'

आंसु भरी आंखों से आदित्य ने जवाब दिया, 'ठीक है, तुम्हारी हर मर्ज़ी में मेरी रजामंदी है बस।'
'ऐसे नहीं। मेरे सिर पर हाथ रखकर बोलो।' इशिता आदित्य का हाथ अपने सिर पर रखकर बोली।

'अरे,, बाबा तुम जो बोलती हो सब कुबूल बस।' मंद मुस्कान के साथ इशिता के सिर पर हाथ रखते हुए आदित्य बोला।

'सबसे पहले मुझे येे बताओ कि, तुम्हारी इस बीमारी का कागज़ों पर अंतिम सत्य क्या है? एक भी शब्द स्किप या डिलीट करे बिना जो हो मुझे बता दो प्लीज़।'
आदित्य का हाथ अपने हाथ में लेकर उसकी आंखों में देखते हुए इशिता ने पूछा।
थोड़ी देर चुप रहकर आदित्य बोला,

'अंतिम रिपोर्ट्स के मुताबिक जितना हो सके उतना जल्दी लीवर ट्रांसप्लांट करवाना ही अंतिम उपाय है। पिछले एक महीने से लीवर डोनर की तलाश जारी है लेकिन... मुझे लगता है कि सांसें कम पड़ रहीं होगी इसलिए जीवनपथ लंबा हो उसके लिए किसी डोनर की ज़िन्दगी की डोर का जोड़ नहीं मिल रहा है। मेडिकल लैंग्वेज में बोले तो डोनर के ऑर्गंस मेच नहीं हो रहे हैं। पापा ने अर्थ राशि औैर आंसू दोनों पानी के जैसे बहाए लेकिन..
आदित्य की जेट स्पीड से दौड़ रही आयुष्य की गाड़ी में ईंधन नी मर्यादा खतम होने के कगार पर है, इशिता।'

'प्लीज़, शट अप, अब अपनी येे फालतू की फिल्मी फिल्मी फिलोसॉफी अपने पास ही रखोगे? और चलो खड़े होकर हीरो के माफिक बबलू जैसे होकर नीचे ड्रॉईंग रूम में आओ। आज मैं तुम्हें एक सुन्दर मज़ेदार लाइफ टाइम लॉन्ग ड्राइव पर ले जाना चाहती हूं।
औैर हां मुझे एक भी क्वेश्चन नहीं चाहिए वो समझ लो।'

ऐसा बोलकर इशिता फर्स्ट फ्लोर पर पर से नीचे ड्रॉईंग रूम में अाई, जहां आदित्य के मम्मी पापा औैर श्रुति चिंतित होकर बैठे थे। इशिता ने आदित्य के पेरेंट्स के चरण स्पर्श किए।

आदित्य की मम्मी गौरी बहन इशिता को गले लगाकर रोने लगी तो इशिता बोली,

'अरे.. आंटी क्यूं रो रहे हो? कुछ नहीं होगा आदित्य को। हम दोनों जब से एक दूसरे के परिचय में आए हैं तब से हमें याद नहीं कि हमने किसी भी समस्या का हल नहीं ढूंढा हाे। औैर मैं तो ऐसा कहूंगी कि आदित्य के पिताजी जितने रुपए कमाएं है उससे ज्यादा तो आदित्य ने दुआएं कमाई है। वाे उसके दीर्घायु के लिए इनफ है। आदित्य को कुछ भी नहीं होगा उसका भरोसा मैं आपको देती हूं बस। आदित्य ने अपनी परोपकारी भावना से जिन्दगी में इतना पुण्य जमा किया है कि ईश्वर को ओवरड्राफ्ट दे सकता है, समझे।'
आज बहुत दिनों बाद ठीक से तैयार होकर उसे नीचे आते देखकर सब की आंखें भीग गई।
'मम्मी मैं आ रहा हूं थोड़ी देर में, येे इशिता मुझे लेकर जा रही है।'
'लेकिन बेटा तुम कार ड्राइव मत करना प्लीज़।'आदित्य के पिताजी शरदभाई बोले।
'अंकल आप बिलकुल भी चिन्ता मत कीजिए, आदित्य को मैं बिलकुल भी थकान महसूस नहीं होने दूंगी।'
इतना बोलते ही इशिता ने कार ड्राइव करी औैर दोनों बाहर गए।

'आदि, तुम्हें कौनसे अधिकार से मेरे नाम पर ऐसा वसीयतनामा बनाने की कुबुद्धि कहां से अाई? मुझे क्या समझा है तुमने? नो डाउट अभी इस हालत में भी तुम्हें मेरी चिंता ज़्यादा है। लेकिन आदि रुपयों से किसी व्यक्ति की रिक्तता की पूर्ति मुमकिन है? जागृत या निंद्रावस्था मेें भी इशिता की हर एक बात के लिए तुम्हारी बुद्धि और मुंह दोनों चटर पटर चलने लगते हैं तो येे मेरे लिए हिमालय जैसी अनुभूति के लिए दो शब्द बोलने में कौनसा पहाड़ तोड़ने जैसा था?

इतने करीबी औैर गहरे संबंध होते हुए भी इशिता को आदित्य के एक तरफी अप्रतिम प्यार के अंश का पता नहीं चलने के अपने अनजाने पन को फटकार के रूप में आदित्य के सामने जताते हुए इशिता बोलती रही।

आदित्य खामोश ही रहा।

नियमित आते थे उसे महादेव के मंदिर के सामने कार पार्क करते हुए इशिता बोली, 'दो मिनट वैट करो आदि, मैं अभी अाई।'
'जी।' आदित्य बोला।

आदित्य अपने मोबाइल के इनबॉक्स में पेंडिंग मैसेजेस चेक करते हुए इम्पोर्टेंट मैसेजेस के रिप्लाइ देने मेें थोड़ी देर व्यस्त रहा इतने में इशिता मंदिर की ओर से आते हुए बोली।

'चलो आदि।'
धीरे से इशिता के हाथ का सहारा लेकर धीरे धीरे मंदिर की बीस से पच्चीस सीढ़ियां चढ़ते हुए आदित्य की सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी।

थोड़ी देर बेंच पर बैठने के बाद मंदिर के मध्य में जाकर खड़े होते ही एक पंडितजी ने आकर दोनों के मस्तक पर तिलक करके बैठने को कहा,
'येे कौनसी पूजा विधि है इशिता? आश्चर्य के साथ पूछा।
'इस विधि से विधि का विधान झुठला सकते है। आदि मेरे पास पंद्रह करोड़ तो नहीं है लेकिन एक पंद्रह सेंटीमीटर का सेंटीमेंटल दिल है जिसमे मैं तुम्हारे पुण्यानुबंध का ऋण चुकाने के लिए तुम्हें पति परमेश्वर का स्थान दे सकती हूं।'

'इशिता...... येे तुम क्या..' आदित्य अभी एक शब्द भी आगे बोले उससे पहले आदित्य के होठों पर अपनी उंगलियां रखकर भीगी हुई आंखों से ईशीता बोली।

'बस.. बस.. बस आदि बस.. तुमने मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे वचन दिया है, अव तुम एक भी शब्द नहीं बोलोगे। आदित्य ने बहुत प्यार किया अब थोड़ा इशिता को भी करने दो न?'

'इशिता...' इतना तो आदित्य बड़ी मुश्किल से बोल सका औैर इशिता के कंधे पर सिर रखकर रोने लगा।

'आदि मेरा फेवरेट सॉन्ग आ रहा है, यार...
ज़िन्दगी को बहुत बहुत प्यार हमने दिया.. मौत से भी मोहब्बत निभायेंगे हम...
आदि अजीत की रखैल बनने से, तुम्हारी विधवा के नाम से जानी जाऊं, वो मेटे लिए ज्यादा गर्व की बात होगी। चलिए.. पंडितजी, शादी की विधि शुरू कीजिए।'इशिता बोली।

आदित्य अभी भी इशिता के इस अनोखे अप्रत्याशित रूप के साथ त्वरित निर्णय को समझे उससे पहले पंडितजी ने उच्चारित वैदिक मंत्रोच्चार के साथ आदित्य के मुरझाए हुए प्राणों में भी जोश उतर आया। आदित्य की निराशा से घिरी हुई सुषुप्त ऊर्जा में भी इशिता के मौत के सामने लड़ने के लिए बजाए हुए आत्मविश्वास के शंखनाद से एक नया प्राणवायु भर आया। जीने की आशा ऊर्जा आदित्य की आंखों में दिखने लगी।

दोनों के गले में वरमाला औैर माथे पर रोली चावल के तिलक के साथ आदित्य के बंगलो में दाखिल होते दोनों को देखकर उनके मम्मी, पापा औैर श्रुति सबकी आश्चर्य की अधिकता से आंखें मैक्सिमम साइज तक फटी की फटी रह गई। आयुष्य मर्यादा के अंतिम पडाव पर खड़े हुए व्यक्ति के साथ शादी के फेरे? सामने से वैधव्य को गले लगाने का येे कैसा उन्माद?

अभी कोई कुछ बोले उससे पहले ही इशिता औैर आदित्य प्यार से आशीर्वाद लेने के लिए माता पिता के चरणों को छुआ। बाद में दोनों हाथ जोड़कर खड़े रहे तब आदित्य बोला,

'मम्मी, पापा हम दोनों ने जितने भी महीने, दिन, घंटे या पल जितना भी मेरा आयुष्य होगा हम दोनों साथ रहेंगे। मुझे भी इशिता के इस निर्णय के बारे में जब शादी की विधि शुरू हुई तभी पता चला। उसके लिए मैं आपकी माफ़ी मांगता हूं।'

उसके बाद इशिता बोली,
'मम्मी, अब तो आपको ऐसा नहीं लगेगा कि मैं सिर्फ़ बोलकर ही आपकी झूठी तसल्ली दे रही हूं?'

इतना सुनते ही सब की आंखें भीग गई। उसके बाद सब के सामने हाथ जोड़कर इशिता आगे बोली,

'अभी आप सबको मुझ पर एक उपकार करना पड़ेगा।'
'अरे बेटा, ऐसा क्यूं बोल रही हो?' शरद भाई बोले।
'सब को मेरे साथ मेरे घर आना पड़ेगा। क्योंकि मेरे इस अप्रत्याशित इतने बड़ा फ़ैसला लेने का उचित कारण मम्मी, पापा को समझना होगा.. औैर एक बात, आदित्य की बात का गलती से भी ज़िक्र न हो उसका खास ध्यान रखना है, बस।'

उसके बाद सब इशिता के घर गए। आदित्य के मम्मी पापा ने सर्व सम्मति से बनाई हुई बात मज़ेदार तरीके से बताई, औैर उसके बाद इशिता औैर आदित्य दोनों ने घर में सरप्राइज़ एण्ट्री ली, इसलिए आघात स्वरूप घटना खुशहाली में बदल गई।

अकल्पित आनंदातिरेक उमंग, उल्लास का अनूठा उत्सव मनाना देर रात तक चलता रहा।

सबसे ज्यादा खुश था, आदित्य। आदित्य को ऐसा लगा कि थोड़े घण्टों में तो जैसे सात जनम जी लिए हो। इस जानलेवा बीमारी के आघात से इतना आहत हो गया था कि इस जनम में तो ऐसा कोई दिन देखेगा ऐसी तो उसे उम्मीद भी नहीं थी।

अब इशिता का एक ही लक्ष्य था, अपनी जान देकर भी आदित्य को चिरंजीविता बक्शने का। दूसरे ही दिन से जितने हो सके उतने कॉन्टैक्ट्स को फ़ोन कॉल्स, आमने सामने मिलकर जहां से एक भी आशा का एक किरण दिखता वहां दौड़ जाती। येे सब देखकर आदित्य बोला,

'इशिता, येे सबकुछ पापा के साथ साथ पिछले एक महीने से हम सब कर चुके हैं। एक ही उपाय है, मेरी बॉडी को सपोर्ट ऐसा कोई डोनर, बस।'

'आदि मेरी लड़ाई ईश्वर के सामने श्रद्धा के साथ है, औैर मेरा श्रद्धा भाव इतना भारी है कि, मैंने मेरी लाइफ में सपने में भी किसी का बुरा नहीं सोचा इसलिए ईश्वर ने आंखें घुमाए बिना मेरे साथ न्याय करना ही पड़ेगा, किसी भी कीमत पर।' भरपूर आत्मविश्वास से भरा हुआ उत्तर इशिता ने दिया।

पंद्रह दिनों से हिस्पिटलाइज्ड हुए आदित्य की हेल्थ पिछले एक ही हपते में बहुत ही नाज़ुक दौर पर आ गई थी। सभी अपने अपने हिसाब से मन्नत, ताबीज़, मंत्र-तंत्र, अखंड जाप पूजा करने लगे। डॉक्टर ने भी ऑलमोस्ट हाथ ही खड़े कर दिए थे।

एक दिन शरद भाई मॉर्निंग टाइम में बंगलो से हॉस्पिटल जाने के लिए निकल ही रहे थे कि तभी उनके मोबाइल की रींग बजी। रिसीव करते हुए बोले, 'हेल्लो..'

'जी मैं सिटी हॉस्पिटल से रमणीक सोलंकी बोल रहा हूं। आप आदित्य पाटिल के संबंधी बोल रहे हैं?'
'हा, मैं उनका फादर बोल रहा हूं, जी बोलिए।'
'येे आपने जो आपने लीवर डोनर के लिए एड दी है उसके बारे में बात करनी थी तो..'
'मिन्स कि आप डोनर हाे?'शरद भाई ने पूछा।
'हा, लेकिन आप यहां सिटी हॉस्पिटल आएंगे तो आगे बात हाे सकती है।'
'जी एक घंटे मेें आपको मिलने आ रहा हूं।'

एक घण्टे बाद शरद भाई औैर रमणीक सोलंकी के बीच सिटी हॉस्पिटल के लाउंज में करीब एक घण्टे की चर्चा हुई उसके बाद डॉक्टर के साथ फर्धर स्टेप के लिए मेडिकल लैंग्वेज में डिटेल में डिस्कसन पूरा होने के बाद डोनर की शर्तो के मुताबिक पेपर प्रोसीजर पूरा किया।

डोनर को देने के पेमेंट के लिए ऐसी शर्त थी की ऑर्गन्स मॅच हाे उसके बाद ही जाे रुपए तय हो वाे रुपए कैश या बैंक एकाउंट में एझ टर्म्स एण्ड कंडीशंस फुलफील कर देने की।

तीन दिन बाद....
लीवर ट्रांसप्लांट पहले की प्राइमरी स्टेज की पूरी कार्यवाही सपन्न करने के बाद डॉक्टर की टीम ने आदित्य के पिताजी को अपने चेंबर बुलाकर ज़रूरी सूचनाओं से अवगत कराने के बाद ही इशिता को चेंबर में बुलाया और कहा कि,
'ट्रांसप्लांट के फाइनलाइजेशन के लिए हम कल बात करेंगे। धेन सी यू टुमॉरो एट नाइन ओ क्लॉक।'

नेक्स्ट डे सुबह नौ बाजे आदित्य की मम्मी, इशिता औैर श्रुति हाॅस्पिटल पहुंचे, तो पिछले दस दिनों से निरंतर इशिता के रात को रुकने के बाद आज की रात रुके हुए शरद भाई सबको विजीटर्स लाउंज में ले जाकर बैठते हुए थोड़ी देर इशिता की ओर देखकर बोले,

'बेटा, ट्रांसप्लांट सक्सेसफुली डन। ऊपर वाले सामने की जंग में तुम्हारा प्रेम औैर श्रद्धा जीत गए।'

अनुपेक्षित, अवर्णित, अमर्यादित खरबों की कीमत जैसी खुशहाली की खबर के सुखद झटके से विस्मय से सबकी आंखें आनंद वर्षा के आंसुओं से छलकती रही।

इशिता आपने चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों में रखकर मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करती हुई रोते रोते बोली,

'पापा आदित्य ठीक है न? मुझे मिलना है। कहां है? औैर क्यूं पापा अचानक.. ट्रांसप्लांट? डॉक्टर ने तो सुबाग नौ बजे का टाइम दिया था।'

आनन्दातिरेक में इशिता ने एक साथ सवालों की झड़ी लगा दी।

'करीब रात के एक बजे के बाद आदित्य की सिचुएशन थोड़ी क्रिटिकल होते ही फटाफट डॉक्टर्स ने पल की भी देरी किए बिना तुरंत फैसला लेकर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरू कर दी। करीब सात घंटे ऑपरेशन की प्रक्रिया चली है। ऑपरेशन की सफ़लता से डॉक्टर्स भी खुश है। औैर मुझे ऐसा लगा कि इतनी सुबह में तुम सबको क्यूं परेशान करने का। इसलिए तुम सब आओ तब तक राह देखना ही उचित समझा।'
'अभी तक मैं भी आदित्य से नहीं मिला हूं। डॉक्टर ने दस बजे का समय दिया है। तब तक हमें राह देखनी ही पड़ेगी।'

इशिता ने कॉल करके सबसे पहले येे शुभ संदेश अपनी मम्मी को सुनाया।

एक एक क्षण इशिता को सदियों जैसी लगती रही।

थोड़ी देर बाद... एक के बाद एक व्यक्ति पांच मिनिट की समय अवधि के लिए आदित्य को मिल सकेेंगे ऐसी सूचना मिली तब शरद भाई ने इशिता से कहा,

'सबसे पहले तुम जाओ, बेटा'

धड़कते दिल से धीरे से एक्जीक्यूटिव सुइट का डोर ओपन करके अंदर दाखिल होते ही इशिता ने देखा कि ऑक्सीजन मास्क के साथ आंखें बंद करके बेड पर लेटे हुए आदित्य के कमज़ोर पड़ गए शरीर के साथ, इंजेक्शन मिश्रित ग्लूकोज की बॉटल औैर दूसरे ऑर्गेनस की गतिविधि की कम ज्यादा अनुपात में धीमी मात्रा की ध्वनि मेें सांख्यिकीय जानकारी दे रही उन्नत इक्विपमेंट्स के साथ ट्यूब जुडी हुई थी।

दिल को कड़ा करके धीरे से आदित्य के सिर पर हाथ रखते ही चेहरे की दिशा घुमाकर आदित्य ने इशिता की ओर देखा औैर तभी.... चार आंखें मिलते ही जैसे दोनों की आंखों से चाहत से भरकर बरसने लगी।

आदित्य ने बोलने की कोशिश करी लेकिन इशिता ने इशारे से मना कर दिया। बिना पलक झपकाए आंखों के आदान प्रदान से दोनों थोड़ी देर तक मौन की भाषा बोलते रहे।

इशिता आंसुओं से भीगी आंखों से बाहर आते ही सभी एक के बाद आदित्य को देखकर खुशी के आंसुओं तरबतर आदित्य की नई जिन्दगी के लिए ईश्वर का उपकार मानते रहे।

एक साल बाद....

आज आदित्य को देखकर कोई नहीं कह सकता कि एक समय आयुष्य मर्यादा के किनारे पर खड़ा येे व्यक्ति मृत्यु को झांसा देकर आया होगा। पिछले एक साल में इशिता औैर आदित्य ने ज़िन्दगी के हर एक पल को प्रचुर प्यार से जिया था। आदित्य के साथ वो प्रेमपंथ की मजल में इतनी दूर तक पहुंच गई थी कि वहां से उसके अतीत का अंश का बिंदु तक का अस्तित्व नज़र नहीं आ रहा था।

एक दिन डाइनिंग टेबल पर आदित्य के परिवार के सभी सदस्य अपनी मूड औैर मस्ती में तरह तरह की बातें करते हुए अपनी पसंदीदा खाने का लुत्फ उठा रहे थे लेकिन.. इशिता के चेहरे के हावभाव कुछ अलग ही दिशा निर्देश दे रहे थे। वाे बात सिर्फ़ शरद भाई ही समझ रहे थे।

डिनर खतम होते ही शरद भाई बोले,
'आदि, इशिता अपने बेडरूम में जाने से पहले मुझे मिलकर जाना।'
'जी पापा।'आदित्य बोला।

करीब साढ़े दस बजे के बाद आदित्य और इशिता आश्चर्य की आशंका के साथ शरद भाई के रूम में प्रवेश किया।

शरद भाई अपना लैपटॉप साइड में रखते हुए बोले,

'बैठो।'

तो आदित्य औैर इशिता ने सामने के सोफे पर अपना आसान जमाया।

'क्या हुआ है इशिता? आह तुम्हारे चेहरे की स्माइल क्यूं मिसिंग है?'शरद भाई ने पूछा।

इशिता को थोड़ा खटका लगा कि.. जिस बात का पूर्वसंकेत आदित्य की नज़रों में नहीं आया उसकी उसके ससुरजी ने परिकल्पना कैसे कर ली?'

'हां, आपकी बात सही है पापा। मैं भी अभी बेडरूम में जाकर इसी बात का उल्लेख करने वाला था।' आदित्य का एक जैसा सुर बजते ही अब इशिता भी दुविधा में पड़ गई कि क्या उत्तर दे?'इसलिए सुविधाजनक जो बहाना सूझा वाे बोलते हुए कहा,

'अरे.. कुछ भी नहीं वाे तो ऐसे ही थोड़ा हेडेक जैसा है। इसलिए बस।'
'कितने समय से येे हेडेक? दो साल से?'शरद भाई ने पूछा।

शरद भाई अपने अनुमान से सटीक सवाल के साथ रखकर लगभग सच्ची वास्तविकता कि नज़दीक ले आए तो अब इशिता थोड़ी कुंठित हो गई।

'बेटा, जिन्दगी में एक बात हमेशा याद रखना.. भूतकाल के हिसाब का लेखाजोखा करके अंत में कभी भी उसे लिखकर नहीं रखने का कि भूलचुक माफ़। क्योंकि अतीत को एडिट करने मौका भाग्य से ही किसीको मिलता है। हाे सके तो भूतकाल धुंधला नहीं होना चाहिए। एक दिए जैसी स्पष्ट औैर गांठ बांधने जैसी बात ये है कि माफ़ करे वो महावीर। और कानों में गया हुआ ज़हर आपको न मरने देता है न जीने देता है। औैर ज़िन्दगी में कभी भी किसी के प्रायश्चित की प्रतीक्षा नहीं करने की, औैर परीक्षा भी नहीं लेने की। कभी खुद कर अहम ही खुद के पतन का कारण बन जाता है।'
इतना बोलकर अपना मोबाइल इशिता के हाथ में दिया। तो इशिता ने आश्चर्य से पूछा,

'क्यूं, येे मोबाइल किसके लिए?'
'हमेशा के लिए हेडेक दूर करने के लिए।'

इशिता औैर आदित्य परम आश्चर्य के साथ शारद भाई की ओर देखने लगे।

'मेरी कुछ समझ में नहीं आया पापा।' विस्मित होकर इशिता ने पूछा।

'आज अजीत का बर्थडे है, इशिता तुम अजीत को सिर्फ़ इंसानियत के नाते जन्मदिन शुभेच्छा देने के फ़र्ज़ में इसलिए अटकी हुई हो कि.. आदित्य क्या सोचेगा? येे दुविधा पूर्ण अवस्था येे यानि कि तुम्हारा हेडेक, अब बोलो?

पिता तुल्य ससुरजी ने जिस तरह इशिता के मन और मस्तिष्क के कोने कोने की फोटोकॉपी एक ही झटके में जिस तरह से ढेर कर दिया वाे देखकर इशिता सन्न रह गई औैर आदित्य ताज्जुब होकर बस आंखें फाड़कर देखने लगा।

'पापा.. आपको ये कैसे.. औैर..आदि, तुम्हें क्या लगता है मुझे मानवता की दृष्टि से मुझे कॉल करना चाहिए या नहीं?'

'अरे.. येे भी कोई पूछने की बात है..
उसने जाे किया उसके कर्म वो जाने। इतनी छोटी सी बात के लिए तुम इतनी अपसेट हाे? कम ऑन इशिता?'

'कर्म? अजीत ने जाे कर्म किए है उसकी सज़ा वाे पिछले एक साल से भुगत रहा है। उसकी शादी के दूसरे महीने ही उसकी पत्नी और उसके परिवार वालों ने अजीत को बहुत बुरी तरह से अपमानित करके घर औैर जॉब दोनों जगहों से निकाल फेका था। औैर कुछ समय बाद अजीत को डायवोर्स भी दे दिया था। यहां इंडिया में तो सब ने उसे मरा हुआ ही मान लिया था इस्लिए किसे बताए?
रातोरत आकाश से छूने के लिए बंध आंखों से कूदते ही जिस ऊंचाई पर से गिरा तब एक ही बात का दुःख था कि, अपनों को पराया बनाकर जाे असीमित पीड़ा पहुंचाई थी उसका प्रायश्चित किस तरह होगा? औैर वो दिन-रात, जागते-सोते, अपराधभाव का भार लेकर उसे उतार कर ऋण मुक्त होने के लिए अंत में वो इंडिया आया था..'

'अजीत.. इंडिया में कब?' एक झटका लगने जैसे प्रतिभाव के साथ आदित्य बोला।

'कब आया था वो तो मुझे भी पता नहीं, लेकिन आने के बाद किसी दोस्त वहां रहकर औैर वहां से उसने अपने माता पिता को अपने साथ अमेरिका में घटित घटना की किसी भी तरह की जानकारी दिए बिना सिर्फ़ इतना संदेशा भेजा कि, 'मैं इंडिया आ गया हूं।'

इसलिए उसके परिवार की ओर से सिर्फ़ इतना रिप्लाइ आया कि हमने जीते जी तुम्हारा दाह संस्कार कर दिया है। अभी भी तुम में शरम जैसा कुछ बचा हाे तो अपना मुंह हमें मत दिखाना।

अब, रही बात इशिता की, वो शरम से इतना मर गया था कि, इशिता को कॉल तो क्या, वो यहां आ गया है ऐसा कहने की भी हिम्मत उसमे नहीं थी इसलिए पश्चाताप की आग में जल रहा था।'

'लेकिन अंत में उसकी चीख का शोर सुना ऊपरवाले ने। थोड़ी देर चुप रहकर इशिता औैर आदित्य की आंखों में देखकर शरद भाई बोले,

'बेटा, इशिता जिस बाज़ी को मेरी दौलत नहीं जीत सकी, तुम्हारा प्यार नहीं जीत सका वाे बाज़ी एक हारे हुए योद्धा अजीत ने जीतकर दिखाई। आदित्य तुम्हारे लीवर का डोनर दूसरा कोई नहीं वही अजीत है, बेटा.. अजीत। हम सभी का जीवनदाता है अजीत।
तुम्हारे मृत्यु के मध्यांतर का निमित एकमात्र अजीत। जिसे हम सबने उसके कर्म पर छोड़ दिया औैर वो अपना कर्म चुपचाप निभाकर चला गया, बेटा।'

शरद भाई के बेडरूम में एक एसे धमाके जैसी शांति छा गई कि उसकी तीव्रता का अंक डेसिबल के गिनती के बाहर था़। अजीत प्यारे दुश्मन के जैसे पीठ पीछे प्यार से एक ऐसा हल्का लेकिन बड़े अदृश्य ऋण की पोटली रखकर गया था कि किसे रख भी नहीं सकते और उतार भी नहीं सकते। आदित्य और इशिता मन के चित्र में अजीत के चरित्र औैर व्यक्तित्व के प्रति जो भ्रम था वो एकदम चकनाचूर हो गया। अजीत के परदे के पीछे के येे लाइफ टाइम अचीवमेंट जैसा गूंगे किरदार के लिए विश्व के शब्दकोश में ढूंढने से भी शब्द मिलने वाले नहीं थे।

शरद भाई आगे बोले..

'उसने मेरे साथ के संपर्क में सबसे पहले अपना परिचय रमणीक सोलंकी बोलकर दिया था। एक ही शर्त पर अजीत ने लीवर डोनेट किया है कि, इस बात की ताउम्र तुम दोनों को नहीं बताना है औैर.. वो एक भी पैसा नहीं लेगा। आदित्य के ऑपरेशन के अंतिम चार दिनों तक अजीत भी वहीं उसी हॉस्पिटल में ही था। बेटा हर बार व्यक्ति खराब नहीं होता। कभी उसके हालात भी खराब हो सकते है। आदित्य को लीवर डोनेट करने के बाद तीन महीने के बाद वाे अमेरिका चला गया। मेरी वीक में दो से तीन बार उसके साथ बात होती है। मैंने उसको उसकी लाइफ़ बनाने के लिए बहुत सी ऑफर दी लेकिन मुझसे कहा, 'अंकल, अब किसीके भी एहसान का नहीं ढोना है। बस, मरने तक मुझे एक संदेशा भेजना कि इशिता ने मुझे सच्चे दिल से माफ़ कर दिया है, तो समझूंगा कि जीते जी मोक्ष मिल गया।'

अब बेटा मोबाइल पकड़ो और जल्दी से अजीत को कॉल लगाओ चलो।'

कौन किसको सांत्वना दे? कौन किसको चुप कराए? इशिता की आंखें तो अनाराधार बरस रही थी। आदित्य भी अपने आप को कोसता हुआ रो रहा था।

'ओ अजीत.. अजीत.. अजीत.. येे तुमने क्या किया? अजीत नाम है तो क्या अपने आप से भी जितने का? ओह माय गॉड, मैं नहीं बात कर पाऊंगी अजीत से।'
इतना इशिता बड़ी मुश्किल से बोली।

दोनों ने पानी पिया। आदित्य औैर शरद भाई ने बड़ी मुश्किल से इशिता को शांत किया। शरद भाई बोले, 'आदि तुम पहले कॉल करके बात करो अजीत के साथ, प्लीज़।'

थोड़ा स्वस्थ होकर आदित्य ने कॉल लगाया।

'हेल्लो...' अजीत बोला।
'अजीत.. आदि हीयर.. आदित्य पाटिल।'
आदित्य का नाम सुनकर अजीत को झटका लगा.. सोचा कि.. कही अंकल ने..
'ओहह बिग ब्रदर बोलो बोलो कैसे हो? आफ्टर सो लॉन्ग टाईम।' अजीत बोला।
'फ्रेंड्स का बर्थडे लिस्ट स्क्रॉल करते हुए तुम्हारा नाम देखा तो.. सोचा कि विश करके पूछूं कि क्या प्लानिंग है। आज बर्थडे सेलिब्रेशन पार्टी का? ओनली बियर या वाइन?'
'अरे.. आदित्य तुम्हें तो पता ही है कि मैंने कभी भी ऐसी चीज़ों को हाथ तक नहीं लगाया यार, पीने की बात तो बहुत दूर की है।'

'अरे..हा.. हा.. वाे बात तो मैं भूल ही गया था.. इसलिए तो मुझे आश्चर्य हुआ कि.. यार मेरा लीवर क्यूं इतना प्रॉपर वर्क कर रहा है वो अब समझ में आया।'

अजीत समझ गया कि.. आखिर में अंकल ने भरोसे का भांडा तोड़ दिया है। फिर भी अनजान बनकर पूछा।

'मतलब..? कुछ समझा नहीं।'
'अरे.. यार, अजीत इतनी बड़ी गेम खेलने की? खुद को दांव पर लगाकर, हारी हुई बाज़ी के साथ इस तरह लोगों के दिल जीत लेने का? दोस्त तुम हमारी नज़रों में इतना महान हो गया है कि.. हमें अपने आप को आईने में देखने में शर्म आ रही है। ऐसा करने का? इतना बोलने तक तो आदित्य की आंखें औैर गला दोनों भीग गए।

अजीत की भी आंखें छलक गई।

आदित्य ने इशिता को फ़ोन दिया।
'हहहेल्लो.... अजीत...' इतना बोलते ही इशिता की आंखें बहने लगी।
'हार्इ, इशिता.. कैसी हो तुम?'
करीब बारह से पंद्रह महीने बाद दोनों एक दूसरे की आवाज़ सुन रहे थे।
'मैं.. ठीक.. जजजन्मदिन की बहुत बहुत बधाई अजीत... कैसे हो?'

'थैंक्स, मैं... मैं तो एकदम मस्तमौला। देखो ये तुम्हारा कॉल आ गया यानि जैसे कि मुंह में मोतीचूर का लड्डू आ गया हाे ऐसा लग रहा है।' आंसु भरी हुई आंखों से बोला।

'बस ऐसा ही करने का? हमेशा अपनी मनमानी ही करने की ऐसा?' आंसु पोंछते हुए मीठी झिड़की देते हुए इशिता बोली।

'बस, तुम्हारी बात नहीं मानने की तो सज़ा भुगत रहा हूं। लेकिन.. खुशी इस बात की है कि तुम खुश हो औैर तुम्हारे वो सारे सपने आदित्य ज़रूर पूरा करेगा। जाे तुमने मेरे साथ शेर किए थे.. लेकिन मुझे तो हमेशा ऊंचा उड़ने की,,,,,' लेकिन आज तुम्हारे दिल से दिए हुए क्लीनचिट से इतना खुश हूं कि.. इस घड़ी अगर मौत आ जाए तो भी अफ़सोस नहीं।'

इशिता से अपने रोने पर काबू नहीं रहा तो फोन आदित्य को दे दिया।

'नेक्स्ट मंथ मैं औैर इशिता दोनों आ रहे हैं अमेरिका। हेय, साले फ़िर तुम देखो इस चीटिंग की दोनों मिलकर क्या सज़ा देते हैं। आज ईश्वर के पास एक ही दुआ मांगता हूं कि सिर्फ़ अगले जनम ही नहीं लेकिन हर एक जनम में दोस्त तो अजीत ही चाहिए।'

आज अजीत, इशिता औैर आदित्य तीनों की आत्मा हल्का होकर सुकून महसूस कर रही थी... जैसे सातो जन्मों का पुण्य एक साथ बांध लिया हो।

-समाप्त....


© विजय रावल

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