मृत्यु का मध्यांतर - 4 Vijay Raval द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मृत्यु का मध्यांतर - 4

अंक - चौथा/४

दो दिन बाद सुबह करीब दस बजे के आसपास घर का सब काम निपटाकर इशिता ने कॉल लगाया आदित्य को। लेकिन कॉल रिसीव नहीं हुआ। फिर से कोशिश की, फिर से वही परिणाम। इसलिए इशिता ने मैसेज छोड़ दिया। उसके बाद अपने काम में लग गई। फिर भी मन तो आदित्य के कॉल की प्रतीक्षा में था। करीब एक घण्टे बाद भी आदित्य का कॉल नहीं आया तो इशिता को आश्चर्य हुआ। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। इसलिए नंबर रिडायल किया। कॉल रिसीव हुआ।

'हेल्लो.. इशिता एक अर्जेंट मीटिंग में हूं। काम खतम करके कॉल करता हूं।' इतना बोलकर आदित्य ने कॉल कट कर दिया।

इतनी बात में इशिता को आश्चर्य इस बात का हुआ कि आदित्य के टोन में बहुत फ़र्क महसूस हुआ। एकदम दूर से आती हुई दबी हुई आवाज़ लगी। उसके बाद इशिता के दिमाग में तरह तरह के तर्क वितर्क आने लगे।

ड्रॉईंग रूम में सब्ज़ी काट रही इशिता की मम्मी सावित्री बहन ने पास के सोफ़ा पर बैठकर न्यूज़ पेपर पढ़ रहे इशिता के पापा बाबूराव को हाथ पकड़कर इशारा किया तो बाबूराव बोले,

'बेटा इशिता ज़रा यहां आना तो।' अपने रूम में से जवाब देते हुए इशिता बोली,

'दो मिनट में आती हूं पापा।'

सावित्री बहन बाबूराव को इशरा करके कुछ समझा रही थी, तभी इशिता आकार सावित्री बहन के पास आकर बैठते हुए बोली, 'जी पापा बोलिए, क्या कह रहे हैं?'

'दो दिन से कहां इतनी बिज़ी हाय गई हाे कि अपने रुम में से बाहर ही नहीं निकल रही हो।'
'पापा ट्रांसलेटिंग जॉब वर्क की एक बिग डील साइन करी है। इतना ज़्यादा काम है कि कम से कम डेइली आठ से दस घण्टे काम करूंगी तो भी दो साल तो लग ही जायेंगे ऐसा समझ लीजिए।'

'ओहह.. येे चमत्कार कब हुआ?'

'जस्ट, दो दिन पहले ही। आप दोनों को येे खुशखबर देने के लिए इसलिए राह देख रही थी कि, एक वीक में फाइनल टच देकर ट्रायल कॉपी पब्लिशर को भेज दूं तो एग्रीमेंट अमाउंट के टोकन के रूप में मुझे ५०,००० रुपए का फर्स्ट चेक मिल जाय उसके बाद आपको सरप्राइज देना था।'

इशिता की बात सुनकर सावित्री बहन औैर बाबूराव दोनों आनंद के साथ आश्चर्य भाव के साथ एक दूसरे की ओर देखकर खुश होने का दिखावा करते रहे।

'तुमने तो बेटा बहुत बड़ी छलांग लगाई है।'
सावित्री बहन बोली।
'लेकिन, बेटा इतना बड़ा काम तुम्हें मिला किस तरह? किसी के रेफरेंस से?'बाबूराव ने पूछा

'पार्श्वनाथ पब्लिकेशन के ओनर हर्षदभाई ने सोशियल मीडिया सर्च किया तो मेरा संपर्क मिला। बहुत ही सरल और सीधे आदमी है।'

सावित्री बहन ने इशारे से कहा,

'लेकिन, आपको कया काम था इशिता से अब वाे तो बोलिए?'

'अरे, हा देखो याद आया, इशिता अजीत कैसा है? पिछले आठ दस दिनों से तुमने अजीत की कोर्इ खबर नहीं दी। ऑल इज़ वेल?'

अचानक से अजीत का उल्लेख होते ही एक क्षण के लिए थोड़ी हिचकिचाई फिर एकदम से उत्तर देते हुए इशिता बोली,

'अरे, हां पापा, देखिए मैं आपको बताना ही भूल गई कि....'

'अजीत ने शादी कर ली है येे बात आपको बताना भूल गई ऐसा?'

इशिता की बात काटते हुए बाबूरावने, ईश्वर के सजाए हुए सेट पर जानते हुए सब एक दूसरे से अनजान बनने की एक्टिंग से ऊबकर धमाके से एक झटके में पर्दा गिरा दिया।

इतने शब्द सुनते ही इशिता के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। मम्मी पापा पर क्या बीतेगी? उस डर से दबा के रखे हुए दर्द का बांध टूट गया। बाबूराव औैर सावित्री बहन की भरी हुई आंखें देखकर आदित्य के भरोसे किए हुए दृढ़ औैर मजबूत मन का महल तास के पत्तों की तरह फिसलकर गिर जाए वैसे ही एक हल्की चीख के साथ इशिता

'पापाआआआआ.......' कहकर बाबूराव के सीने से लगाकर हिचकियां लेकर रोने लगी।

'बेटा, इधर देखो मेरी ओर..' सावित्री बहन के इतना बोलते ही इशिता ने अपना सिर उनकी गोद में डाल दिया।

थोड़ी देर तक दोनों ने इशिता को रोने दिया

बाद में बाबूराव बोले,

'बेटा, किसी असंस्कारी की खुली हुई नंगी औैर ओछी हरकत के लिए तुम स्वयं को अपराधी मानकर मन ही मन दुःखी होकर क्यूं औैर कौनसी भूल की सज़ा अपने आप को दे रही है? तुम्हें कौनसी बात से ऐसा लगा कि हम तुम्हें नहीं समझ पायेंगे? बस, हम सब संजोग के शिकार हैं। इस पूरी घटना में तुम्हारा रत्तीभर भी दोष नहीं है। औैर वैसे भी जो हुआ वाे अच्छे के लिए हुआ। शादी के बाद ऐसी परिस्थिति खड़ी हुई होती तो? औैर दुनिया की ऐसी कौन सी व्यक्ति है जिससे गलती नहीं हुई हो?'
सावित्री बहन ने पानी का ग्लास दिया, पानी पीने के बाद इशिता ने पूछा,

'लेकिन इस बात की आपको...'

'परसों अजीत के पापा, मनोहर का कॉल आया था कि अजीत की मम्मी उषा बहन कुछ महत्वपूर्ण बात कहना चाहती है तो आप दोनों घर आ जाइए।'

'महत्वपूर्ण बात औैर घर पर बुला रहे हैं? मैं औैर तुम्हारी मम्मी दोनों टेंशन में आ गए कि ऐसी तो कौनसी बात होगी? फटाफट हम दोनों वहां पहुंचे। उस समय आदित्य भी वहां हाज़िर था।'

'आदित्य, वहां था?'
थोड़ी सी आंखें बड़ी करके अति आश्चर्य के साथ इशिता ने पूछा।

'जी, हां, आदित्य। औैर बाद में बात करते हुए पता चला कि.. आदित्य के कहने पर ही हम दोनों को बुलाया गया था।'

'क्या बात कर रहे हैं आप पापा? आदित्य के कहने के कहने पर? आई कांट बिलीव धिस।'

'जी, तुमसे बात करी उसके दूसरे ही दिन आदित्य अपनी मर्ज़ी से उनके घर गया था। अभी आदित्य कुछ पूछे या कहे उससे पहले ही मनोहर और उषा बहन दोनों ज़ार ज़ार रोने लगे थे। बाद में आदित्य ने पूछा कि अजीत की इस शर्मनाक हरकत से इशिता या उसके परिवार का क्या दोष? अजीत की येे किसी भी हालत में माफ़ न हो सके ऐसी बदतर भूल से इसी घड़ी इशिता के परिवार पर आई हुई इस अचानक विपदा में से उन्हें बचाने की पूरी जिम्मेदारी आप के सिर पर है।'

हम दोनों जैसे ही अंदर दाखिल हुए तभी उषा बहन तुम्हारी मम्मी के गले लगकर रोने लगी। मैं अभी कुछ समझू उससे पहले ही मनोहर मेरे पांव में गिरने लगे। बाद में आदित्य ने बड़ी मुश्किल से दोनों को शांत किया। पानी पिलाया और मनोहर रोते रोते टूटे फूटे शब्दों में बात करते गए और तुम्हारी मम्मी भी रोती रही। हम दोनों से हाथ जोड़कर बहुत मिन्नतें करके अंत तक माफ़ी मांगते रहे।
उनकी हालत देखकर मेरे तो दिल ही कांप उठा कि ऐसे देवता जैसे दंपत्ति के यहां इस दानव ने कहां जनम लिया? उन दोनों ने कहा कि हमने आज से अजीत को मरा हुआ समझ लिया है।'

अंत में अलग होते समय सब के मन में एक ही सवाल था कि.. इशिता को येे बात कौन बतायेगा औैर कैसे? इशिता येे आघात किस तरह सहन करेगी? मनोहर बोले,

'हम दोनों किस मुंह से इशिता की माफ़ी मागेंगे?'

'अब वो चिंता आप मत कीजिए.. क्योंकि ऑलरेडी इशिता को येे बात पता चल चुकी है।'

इतने शब्द सुनते ही हम चारों सकते मेें आकार स्थिर हो गए। सब के मुंह खुले के खुले रह गए। आंखें भीगती रही। तुम्हारी मम्मी को बड़ी मुश्किल से संभाला लेकिन मेरी छाती गज गज फूल गई, बेटा। अजीत का बदला लेने जैसा ज़हर का घूंट तुम अकेली पी गई? इतनी बड़ी हो गई है बेटा?'

इतना बोलते ही बाबूराव की आंखों से भी अश्रुधारा बह निकलते ही इशिता को गले लगा लिया।

'लेकिन पापा येे बात आदित्य ने मुझे क्यूं नहीं बताई? आज मैंने उसे दो बार कॉल भी किया, लेकिन व्यस्त है एसा जवाब देकर मेरी बात सुने बिना ही मुझे टाल दिया। अब आने दो उसका कॉल, क्लास लेकर ही रहूंगी।'

इशिता के सिर पर हाथ फेरते हुए सावित्री बहन बोली,

'अब जाे हुआ वाे कोर्इ गंभीर अकस्मात में से बच गए ऐसा सकारात्मक सोचकर सब भूल जाओ। इसमें भी कोर्इ ईश्वर का शुभ संकेत होगा।'

उसके बाद एकदम शाम को पांच बजे आदित्य का इशिता पर कॉल आया,
कॉल उठाते ही थोड़े गुस्से के टोन में इशिता बोली,
'बोल।'

'सॉरी आज सुबह से ही पापा के साथ था औैर वर्कलोड भी ज्यादा था तो ठीक से बात नहीं कर सका, बोल।'

'दो दिन से तुम कहां गायब हो? औैर येे तुम्हारी आवाज़ क्यूं इतनी धीमी हो गई है? आर यू ओ. के.?'

'अरे हां हंड्रेड परसेंट। मुझे क्या होना था? तुम बोलो, क्यूं याद किया?'

'येे क्या है आदि? तुमने ही मुझे मना किया था मम्मी पापा को बात करने के लिए औैर तुमने खुद ही...'

बीच में से इशिता की बट काटते हुए आदित्य बोला..

'इशिता.. इशिता... पहले तुम शांति से सुनो.. तुमसे बात की, उस रात मैंने बहुत सोचा कि... अजीत की इस रहस्यकथा जैसी लाइफ़ में आए हुए अप्रत्याशित ट्विस्ट में उसके पेरेंट्स की पर्दे के पीछे कोई भूमिका तो नहीं है न? इसलिए मैं एकदम अंजान बनकर अजीत के घर जाकर सिर्फ़ इतना ही पूछा कि पिछले दस दिनों से अजीत से कोर्इ संपर्क नहीं हुआ तो...

अभी मेरा वाक्य पूरा हो उससे पहले तो पेरेंट्स का रोना शुरू हो गया। दोनों बहुत ही शर्मिंदा थे। बाद में मैंने सोचा कि यही सही समय है। तुम्हारे मम्मी, पापा को समझाकर, पूरी घटना से वाकिफ करके सहमत करने का। इसलिए मैंने समय नष्ट किए बगैर तुरन्त ही तुम्हारे मम्मी, पापा को वहां बुला लिया था।'

'हां.. आदि पापा ने मुझे सब बातें करी। आदि अजीत ने बेशरम होकर जो कर दिखाया उस विचार मात्र से मैं सिहर जाती हूं। आदि मुझे अपने आप पर एक ही बात का आश्चर्य हाे रहा है कि, मैंने उस व्यक्ति मेें निर्दोष औैर निःस्वार्थ प्रेम का अंश देखा?'

अजीत की अर्थहीन बातों को काटते हुए आदि ने पूछा,

'लेकिन तुम्हें काम क्या था वाे तो बताओ?'
'आदि, मैंने तुम्हें कहा था कि तुम्हें समय मिले तब मुझे इतना बड़ा काम मिला है तो महादेव की मेहरबानी मानने के लिए मंदिर जाना है।'
थोड़ी देर सोचने के बाद आदित्य बोला,
'सॉरी इशिता आज तो पॉसिबल नहीं है, औैर शायद...'
'क्यूं क्या हुआ? क्यूं रूक गए.. शायद.. आगे बोलो।'
'मैं आज रत को जा रहा हूं, पूना औैर नासिक। करीब एक महीने की टूर के लिए। पापा की तबियत थोड़ी ठीक नहीं है तो बिज़नेस रिलेटेड मीटिंग्स औैर डील के लिए मुझे ही जाना पड़ेगा ऐसा है। तो....'
'लेकिन ऐसे अचानक.. तो अब मुंबई कब आओगे?'
आश्चर्य के साथ इशिता ने पूछा।
एक महीना तो लग ही जायेगा। क्योंकि एक नए प्रोजेक्ट पर काम शुरू करना है। औैर पापा को आराम देना भी जरूरी है इसलिए ऑलमोस्ट सब काम मुझे ही हैंडल करना पड़ेगा।'

'ठीक है। बट कॉन्टैक्ट में रहना। बाय।'
'बाय।' कहकर आदित्य ने कॉल कट किया।

राइटिंग टेबल पर फोन रखकर इशिता अपने रूम में आकार बेड पर लेट गई और उसकी सोच शुरू हुई। पहली बार आदित्य की बात इशिता के गले नहीं उतर रही थी। इशिता को याद नहीं था कि जब से आदित्य के परिचय में आई तब से लेकर आज तक किसी भी परिस्थिति में, किसी भी संजोग में आदित्य ने उसके पास इशिता के लिए टाइम नहीं है ऐसा बोला हो। आधी रात को भी इशिता अगर बोले तो दौड़कर आ भी जाता। लेकिन आज..? कोर्इ ताल मेल बिठाने के लिए, विचारों की भीड़ में इधर से उधर कब तक भटकती रही।

बाद के दिनों में इशिता अपने काम में लग गई।

एक हप्ते बाद.. सात दिनों में आदित्य के साथ सिर्फ़ औपचारिक बातचीत हुई होगी। अचानक बदल गए आदित्य के बिहेवियर से इशिता अपने काम में एकाग्रता और चेतना नहीं जुटा पा रही थी।

दिन बीतते बीतते अधीरता औैर उद्वेग का स्थान शंका ने ले लिया। आदित्य मेें इशिता की सोच से परे आए हुए परिवर्तन से कभी कभी दोनों बीच फोन पर की छोटी सी बातचीत में भी गुस्सा अग्रिम स्थान पर रहता। अंत में इशिता फोन रखकर रोने लगती।

एक महीने के बाद भी आदित्य से मिलने के कोर्इ आसार नहीं दिखाई दिए। आज इशिता आदित्य को लेकर बहुत ही विचलित औैर गुस्से में भी थी। अब उसकी शंका दृढ़ होने लगी थी कि कोई ऐसी बात है जाे आदित्य मुझसे छुपा रहा है?

अब इशिता की बेसब्री का अंत आ गया था। अचानक उसके दिमाग में विचार सूझा कि आदित्य की बहन श्रुति को कॉल करूं, शायद उसके पास से कोर्इ जानकारी मिल जाए।

तुरंत ही कॉल डायल किया, श्रुति को।
'हेल्लो..'
'हेल्लो.. श्रुति। इशिता.. इशिता दीक्षित। पहचाना?'
'मुंबई में दो ही दीक्षित फेमस है एक माधुरी औैर दूसरी तुम। तुम्हें सुनकर आश्चर्य के साथ आनंद भी हुआ। बोलो कैसी हो?'
'ओह्ह.. बस मैं औैर मेरा जॉब वर्क। बोलो तुम कैसी हो?'
'बस, मास्टर्स कंप्लीट किया अब पी. एच. डी. का प्रिपरेशन कर रही हूं। बाकी एज़ रूटीन। बोलो क्यूं याद किया?'

'अरे यार आदित्य तो आजकल सेलेब्रिटी बन गया है क्या? ऑलवेज बिज़ी.. बिज़ी.. एण्ड बिज़ी। कहां है कहां वो आजकल? मुंबई कब आ रहा है?'
थोड़ी देर चुप रहकर श्रुति बोली, 'इशिता, मैं तुम्हें दो मिनट में कॉल बेक करती हूं।'
'जी ठीक है।'

थोड़ी देर बाद श्रुति का कॉल आया।
'हां अब बोलो क्या पूछ रही थी तुम?'

'वही कि आदित्य मुंबई कब आ रहा है? आज एक महीना हो गया उसके आऊट ऑफ मुंबई गए हुए। औैर कॉल करती हूं तो कॉक पर भी ठीक से रिप्लाइ नहीं दे रहा इसलिए ऐसा सोचा कि....'

'आदित्य कही भी नहीं गया है। यहां मुंबई में ही है एक महीने से। औैर घर पर ही है। वो पूरी तरह से झूठ बोल रहा है तुम्हारे सामने।' श्रुति ने बदले हुए स्वर में जवाब दिया।

आगे अगले अंक में....


© विजय रावल


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