चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 34 Suraj Prakash द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 34

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

34

ब्रुकलिन के साथ एक कॉमेडी कलाकार था जो, ये की जगह जे, स की जगह श, और श की जगह स का उच्चारण किया करता था, ने बर्टन की किताब एनाटमी ऑफ मैलनकली की सिफारिश की और बताया कि सेक्सपीयर पर उसका असर था और सैम जॉनसन पर भी उसका प्रभाव रहा,"हां, आप लेटिन को छोड़ सकते हैं।"

उनमें से जो बाकी थे, उनके लिए मैं एक बौद्धिक सहयात्री था। रंगारंग कलाकारी के अपने दिनों से मैंने बहुत कुछ पढ़ा था लेकिन ये पढ़ना सिलसिलेवार नहीं था। धीमी गति का पाठक होने के कारण मैं सिर्फ पन्ने पलटता था। एक बार मुझे लेखक की विचारधारा और शैली का पता भर चल जाये तो तय था कि किताब में मेरी दिलचस्पी खत्म हो जायेगी। मैंने प्लूटार्च के लाइव्स के पांचों खंडों का एक एक अक्षर पढ़ा है। लेकिन मुझे ये लगा कि मैंने उन्हें पढ़ने में जितनी मेहनत की है, दरअसल वे उस लायक थे नहीं। मैं विवेकपूर्ण तरीके से पढ़ता हूं। कई किताबें तो बार-बार पढ़ता हूं। पिछले बरसों के दौरान मैंने प्लेटो, लोके, कांट, बर्टन की एनाटॉमी ऑफ मैलनकली के पन्ने पलटे हैं और इस टुकड़ा-टुकड़ा पठन से मैंने उतना हासिल कर लिया है जितना मैं चाहता था।

ग्रिनविच विलेज में मैं निबंधकार, इतिहासकार और उपन्यासकार वाल्डो फ्रैंक से मिला। मेरी मुलाकात कवि हार्ट क्रेन से हुई। मॉसेस के संपादक मैक्स ईस्टमैन, बेहतरीन वकील और न्यू यार्क के पत्तन के नियंत्रक फील्ड मालोन और नारी मताधिकार के लिए काम करने वाली उनकी पत्नी मार्गरेट फोस्टर से भी मिला। मैंने क्रिस्टीन रेस्तरां में भोजन भी किया और वहां पर मैं प्राविंसटाउन प्लेयर्स के कई सदस्यों से मिला। वे लोग युवा नाटककार यूजीन ओ'नील (बाद में मेरे ससुर) द्वारा लिखित नाटक एम्परर जोन्स की रिहर्सलों के दौरान लंच करने के लिए आया करते थे। मुझे उनका थियेटर दिखाया गया था जो कि छ: घोड़ों के अस्तबल जितनी खलिहान जैसी जगह थी।

मुझे वाल्डो फ्रैंक के बारे में 1919 में प्रकाशित उनकी निबंधों की किताब ऑवर अमेरिका के जरिये पता चला। मार्क ट्वेन के बारे में एक निबंध मनुष्य का गहरा, बेधक विश्लेषण है: संयोग से वाल्डो ही वे पहले शख्स थे जिन्होंने सबसे पहले मेरे बारे में गम्भीरता से लिखा था। इसलिए स्वाभाविक ही था कि हम अच्छे दोस्त बन गये। वाल्डो रहस्यवाद और इतिहास के मिश्रण हैं और उनकी दृष्टि उत्तरी और दक्षिणी, दोनों अमेरिका की आत्मा में गहरे तक उतरी है।

ग्रिनविच विलेज में हम लोगों की शामें बहुत अच्छी गुज़रतीं। वाल्डो के जरिये मैं हार्ट क्रेन से मिला और हमने विलेज में वाल्डो के छोटे से फ्लैट में खाना खाया और हम अगली सुबह तक बातें करते रहे। हमारी वे गप्प गोष्ठियां बहुत उत्तेजनापूर्ण होतीं। हम तीनों अपने विचारों की बारीक परिभाषाएं करने के लिए मानसिक रूप से भिड़ते रहते।

हार्ट क्रेन बेहद गरीब थे। उनके पिता, जो कैंडी के अरबपति कारोबारी थे, चाहते थे कि हार्ट उनके कारोबार में आ जाये और उन्होंने अपने बेटे को कविता करने से विमुख करने के लिए उन्हें वित्तीय रूप से बेदखल तक कर दिया था। हालांकि मैं न तो आधुनिक कविता का अच्छा श्रोता हूं और न ही गुण ग्राहक ही, लेकिन इस किताब को लिखते हुए मैं हार्ट की द ब्रिज पढ़ रहा हूं। ये किताब संवेदनापूर्ण अभिव्यक्ति है, अनजानी और ड्रामाई, जो बेधने वाले आक्रोश और हीरे सरीखी धारदार कल्पनाशीलता से भरी हुई है। ये मेरे लिए कुछ ज्यादा ही तीखी है। लेकिन शायद ये तीखापन खुद हार्ट क्रेन में था। इसके बावजूद उनमें विनम्र मिठास थी।

हमने कविता के प्रयोजन पर चर्चा की। मैंने कहा कि कविता दुनिया के नाम एक प्रेम पत्र है। "एक बहुत ही छोटी दुनिया" हार्ट ने तिक्तता से कहा। उन्होंने मेरे काम के बारे में यह कहा कि ये ग्रीक कॉमेडी की परम्परा में आता है। मैंने बताया कि मैंने अरिस्टोफेन्स के अंग्रेजी अनुवाद पढ़ने की कोशिश की थी लेकिन उसे कभी पूरा नहीं कर पाया।

बाद में हार्ट को गगेनहेम फैलोशिप दी गयी थी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बरसों की मुफलिसी और उपेक्षा की वजह से वे शराबखोरी और हताशा की तरफ मुड़ गये थे और एक यात्री नाव में मैक्सिको से स्टेट्स लौटते समय उन्होंने समुद्र में छलांग लगा ली थी।

खुदकुशी करने से कुछ बरस पहले उन्होंने बोनी एंड लिवराइट द्वारा प्रकाशित अपनी छोटी कविताओं की व्हाइट बिल्डिंग्स नाम की एक किताब भेजी थी। किताब के भीतरी कवर पर उन्होंने लिखा था, "द किड की याद में हार्ट क्रेन की तरफ से चार्ल्स चैप्लिन को। 20 जनवरी, 1928"

एक कविता का शीर्षक था "चैप्लिनेस्क्यू।"

जीवन में हम विवश समझौते कर

अर्थहीन दिलासाओं से स्वयं को बेमानी संतोष से ऐसे भर लेते हैं

जैसे जेबों में फिसलती हवा एकत्र हो कर उन्हें विशालकाय बना

भरे होने का अहसास कराती है।

फिर भी हम जीवन से लगाव रखते हैं

इसके मायाजाल में बंधे रहते हैं

कभी पैड़ी पर पसरे बिल्ली के नन्हें भुखमरे बच्चे को

भीड़ भरी सड़क के आवेश से दूर

एक शांत विश्रांति स्थल दे देते हैं

तो कभी किसी घायल कुहनी को सहला कर आराम देते हैं।

कभी हम यूं ही, यूं ही बचकानी मुसकान ओढ़े

'होनी' को नकारते हैं

उस परम शक्ति के विधान से खिलवाड़ पर

आमादा होते हैं

अपरिहार्य नियति से निरर्थक ही खेलने का प्रयास करते हैं

जो आहिस्ता आहिस्ता अपनी झुर्री भरी, बल पड़ी, तर्जनी को

खींच कर हमारी ओर उठाता है

हमारी गलतियों की तरफ इशारा करने वाले

उस नियंता की 'तिर्यक दृष्टि' का

तब हम कभी हम भोलेपन, कभी सादगी और कभी अचरज से सामना करते हैं, खेलते हैं;

और जीवन का स्पष्ट नज़र आता ये पल पल ढहना

असत्य नहीं है

लचीली बेंत के रफ्तार से अधिक

घिन्नी देने वाला कठोर सत्य है

हम महसूस करते हैं जीवन के उत्साहहीन

पलों को

हम जानते हैं कि हर दिन हर पल

हम अंतिम यात्रा के पथ पर

निरंतर अग्रसर हैं

हम तुम्हें, उसे और सबको वंचित कर सकते हैं-

बच सकते हैं, टाल सकते हैं,

पर दिल को नहीं

यदि दिल अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ

जीवंत बना रहता है तो

इसमें हमारा क्या दोष?

जीवन का ये सारा खेल हमें

मुस्कुराने के लिए विवश करता है

जीवन के अंत की तरह

'खाली और खोखली'

मुस्कुराहट

फिर भी हम इस शून्य जीवन के

उस भरे पूरे सौन्दर्य को

नज़रअंदाज नहीं कर सकते

जो चांद द्वारा सूनी गलियों में

राख के बर्तन जैसी

साधारण चीख को रूपहली ढक दिये जाने पर

आनंद और उत्फुल्लता की अनुभूति देता है

इस जीवन में सुख, दुख, रुदन और हास

हमें

प्रतिपल अपने पाश में आबद्ध करता है

कभी आमोद प्रमोद हमें खींचता है

तो कभी सन्नाटे में नन्हें बिल्लौटे की

सहमी आवाज हमें खींचती है!!!

डुडले फील्ड मालोने ने ग्रीनविच विलेज में एक रोचक पार्टी दी और उसमें जान बोइसवेन्न, डच उद्योगपति, मैक्स ईस्टमैन और दूसरे लोगों को आमंत्रित किया। वहां एक मज़ेदार आदमी आया था, जिसका परिचय "जॉर्ज" के रूप में कराया गया था (मैं कभी भी उसका वास्तविक नाम नहीं जान पाया), बहुत नर्वस और उत्तेजित लग रहा था। बाद में किसी ने बताया कि वह बुल्गारिया के राजा का बहुत बड़ा प्रशंसक था और राजा ने सोफिया विश्वविद्यालय में उसकी पढ़ाई के लिए राशि अदा की थी लेकिन जॉर्ज ने उस संरक्षण को लात मार दी और बागी हो गया, स्टेट्स में चला आया और आइ डब्ल्यू डब्ल्यू में शामिल हो गया। बाद में उसे बीस बरस की सज़ा सुनायी गयी। उसने दो बरस की सज़ा पूरी कर ली थी और नये सिरे से मुकदमे की सुनवाई के लिए उसने अपील जीत ली थी और इस समय ज़मानत पर छूटा हुआ था।

वह चैरेड्स खेल रहा था और जब मैं उसे देख रहा था तो डुडले फील्ड मलोने मेरे कान में फुसफुसाये, "इस बात के आसार तो नहीं लगते कि वह अपील जीत पायेगा।"

जॉर्ज, जिसने अपने बदन पर मेजपोश लपेट रखा था, साराह बर्नहार्ट के अभिनय की नकल कर रहा था। हम सब हँसे, लेकिन मन ही मन, कई लोग सोच रहे थे और मैं भी सोच रहा था कि उसे और अट्ठारह बरसों के लिए सज़ा भुगतने के लिए जाना ही पड़ेगा।

ये एक बहुत ही अफरा-तफरी भरी शाम थी और जिस वक्त मैं वहां से जाने के लिए निकला तो जॉर्ज ने पीछे से पुकारा, "जल्दी क्या है चार्ली? इतनी जल्दी घर क्यों जा रहे हैं?" मैं उसे एक किनारे ले गया। यह तय कर पाना बहुत मुश्किल था कि आखिर कहा ही क्या जाये!

"क्या कुछ ऐसा है जो मैं कर सकूं?" मैं फुसफुसाया।

उसने अपना हाथ हिलाया मानो इस ख्याल को ही एक तरफ सरका रहा हो। तब उसने मेरा हाथ थामा और भावुक होते हुए कहा,"मेरे बारे में चिंता मत करो चार्ली, कुछ नहीं होगा मुझे।"

मैं न्यू यार्क में कुछ और अरसा रुकना चाहता था लेकिन मुझे कैलिफोर्निया में जा कर काम निपटाने थे। पहली बात तो मैं फर्स्ट नेशनल के साथ फटाफट अपना करार पूरा करना चाहता था क्योंकि मैं इस बात के लिए बहुत आतुर था कि युनाइटेड आर्टिस्ट्स के साथ काम शुरू करूं।

कैलिफोर्निया लौटने का मतलब अपनी आज़ादी, हल्केपन और बेहद मज़ेदार बीते समय को छोड़ आना था जो मैंने न्यूयार्क में बिताया था। फर्स्ट नेशनल के लिए दो-दो रील वाली चार कॉमेडी फिल्में पूरी करने की समस्या मेरे सिर पर तलवार की तरह लटक रही थी। कई-कई दिन तक मैं सोचने की आदत का अभ्यास करने के लिए स्टूडियो में बैठा रहता। वायलिन या पिआनो बजाने की तरह सोचने के लिए भी रोज़ाना रियाज करने की ज़रूरत होती है और अब मुझे सोचने की आदत ही नहीं रही थी।

मैंने न्यू यार्क की रंग बिरंगी ज़िंदगी के खूब गुलछर्रे उड़ाये थे और अब मैं उससे बाहर नहीं आ पा रहा था। इसलिए मैं अपने अंग्रेज़ दोस्त सेसिल रेनॉल्ड्स के साथ ये सोच कर निकल पड़ा कि कैटेलिना में थोड़ी बहुत मछली मारी जाये।

अगर आप मछुआरे हैं तो कैटेलिना आपके लिए स्वर्ग है। उसके उनींदे से, छोटे से गांव एवलॉन में सिर्फ दो ही छोटे होटल थे। सारा साल वहां पर मछली मारने का बढ़िया सिलसिला रहता। अगर टूना मछली वहां पर होती तो एक भी नाव किराये पर मिलने का सवाल ही नहीं उठता था। सुबह सवेरे ही कोई चिल्ला उठता, "टूना है, टूना है!" तीस से तीन सौ पौंड तक की टूना, जहां तक आंखें देख पातीं, पानी पर उछल रही होती और छपाके ले रही होती। उस उनींदे से होटल में अचानक ही हंगामा मच जाता और इतना भी समय न मिल पाता कि आदमी कपड़े ही बदल ले। और अगर आप उन खुशनसीब लोगों में से हों जिन्होंने पहले से नाव बुक करवा रखी हो तो, आप हड़बड़ाते हुए नाव में सवार होते और अभी भी अपनी पैंट के बटन ही बंद कर रहे होते।

ऐसे ही एक मौके पर मैंने और डॉक्टर ने लंच से पहले ही आठ टूना मछलियां पकड़ीं। हरेक मछली तीस पौंड से भी ज्यादा वज़न की थी। लेकिन टूना जितनी तेज़ी से नज़र आती, उतनी तेज़ी से गायब भी हो जाती और हम फिर से सामान्य किस्म के मच्छी मार अभियान में लग जाते। कई बार हम पतंग की मदद से टूना पकड़ते। पतंग को डोरी से बांध दिया जाता और इसमें कांटा लगा दिया जाता और फ्लाइंग फिश पानी की सतह पर पूंछ फटकारती रहती। इस तरह की मछली मारना बहुत उत्तेजना पूर्ण होता क्योंकि तब आप टूना को हमला करते, कांटे के चारों तरफ झाग की भंवरें बनाते और फिर सौ या दो सौ फुट दूर तक दौड़ लगाते देख सकते हैं।

कैटेरिना में पकड़ी जाने वाली तेगा मछली एक सौ पौंड से ले कर छ: सौ पौंड तक की होती हैं। इस तरह का मछली मकड़ना बहुत नाज़ुक होता है। डोरी को ढील दी गयी होती है और तेगा मछली चुपके से आ कर कांटे पर मुंह मारती है। इसमें चुग्गे के तौर पर छोटा-सा अलबाकोर या उड़न मछली होती है। तेगा मछली इसे लेती है और तकरीबन सौ गज़ तक खींचे लिये जाती है। जब मछली रुकती है और आप नाव रोकते हैं। मछली को पूरा एक मिनट देते हैं कि वह चुग्गा खा ले। आप डोरी को हौले हौले ढील दिये जाते हैं यहां तक कि डोरी कसने लगती है। तब आप दो तीन झटके दे कर उस पर प्रहार करते हैं और अब शुरू होता है तमाशा। मछली दो-तीन सौ गज की दौड़ लगाती है और आपकी घिर्री चिंघाड़ने लगती है। तभी मछली रुकती है, आप तुरंत ढीली डोरी को घिर्री पर लपेटना शुरू करते हैं नहीं तो डोरी सूत की तरह टूट जायेगी। अगर मछली दौड़ते वक्त अचानक तीखा मोड़ ले ले तो पानी के घर्षण से डोरी टूट सकती है। अब मछली पानी के ऊपर बीस से चालीस बार पानी के ऊपर कूदना शुरू कर देती है और अपना सिर बुगडॉग की तरह हिलाती है। तभी आप पाते हैं कि वह तो पानी में गोता लगा गयी। अब शुरू होता है कठिन परिश्रम। मछली को खींच कर ऊपर लाना। मेरी खुद की पकड़ी मछली एक सौ छब्बीस पौंड की थी और उसे तट तक लाने में मुझे मात्र बाइस मिनट लगे।

वे शांत दिन थे। डॉक्टर और मैं उन खूबसूरत सुबहों में नाव के पेंदे में बैठे अपनी अपनी रॉड थामे ऊंघते रहते। समुद्र में चारों तरफ धुंध छायी होती और दूर कहीं क्षितिज अनंत आकाश में मिल रहा होता। दूर-दूर तक पसरा मौन सीगल पक्षिओं के कलरव को और हमारी मोटर बोट की सुस्त घरघराहट को और मुखर कर देता।

डॉक्टर रेनॉल्ड्स ब्रेन सर्जरी के जीनियस थे और उन्होंने इस क्षेत्र में जादुई नतीजे हासिल करके दिखाये थे। मैं उनके कई मामलों के इतिहास से वाकिफ था। एक बच्ची को ब्रेन ट्यूमर था। उसे एक दिन में बीस-बीस बार दौरे पड़ते और वह पागलपन की हद तक जा पहुंची थी। सिसिल की सर्जरी से वह पूरी तरह चंगी हो गयी थी और बाद में चल कर वह बहुत ही होशियार स्कॉलर बनी।

लेकिन सिसिल भी एक ही सनकी थे। उन्हें अभिनय करने की धुन थी। उनकी यह दुर्दमनीय झख उन्हें मेरे पास दोस्त की तरह लायी। "थियेटर आत्मा को जिलाये रखता है।" वे कहा करते। मैं अक्सर उनसे बहस करता कि उनका चिकित्सा का क्षेत्र भी उन्हें काफी हद तक जीवनी शक्ति देता होगा। किसी जड़ मूरख को उत्कृष्ट स्कॉलर में बदलने से ज्यादा ड्रामाई बात जीवन में और क्या हो सकती है?

"वो तो इतना जानना भर होता है कि कौन-सी नस कहां पर है।" कहा रोनाल्ड्स ने, "लेकिन अभिनय करना मानस: अनुभव होता है जो आत्मा को विस्तार देता है।"

मैंने उनसे पूछा कि उन्होंने आखिर ब्रेन सर्जरी का क्षेत्र ही क्यों चुना था।
"बस, उसके ड्रामा के लिए ही तो।" उनका जवाब था।

वे अक्सर पसाडेना में एमेचर प्लेहाउस नाम की नाटक मंडली में छोटे-मोटे रोल किया करते थे। उन्होंने मेरी कॉमेडी माडर्न टाइम्स में उस व्यक्ति की भूमिका अदा की थी जो जेल में जाता है।

जब मैं मछली मारने के अभियान से लौटा तो खबर मिली कि मां की सेहत अब बेहतर है और अब चूंकि युद्ध समाप्त हो चुका है, उन्हें सुरक्षित तरीके से कैलिफोर्निया ला सकते हैं। मैंने टॉम को इंगलैंड भेजा ताकि वह मां को नाव के जरिये लिवा लाये। मां को यात्रियों की सूची में किसी दूसरे नाम से रखा गया था।

समुद्री यात्रा के दौरान वह एकदम ठीक थी। वह हर रात मुख्य सैलून में खाना खाती और दिन के वक्त वह डेक पर खेले जाने वाले खेलों में हिस्सा लेती। न्यू यार्क में पहुंचने पर बहुत चंगी और अपने आप में संतुष्ट लग रही थी कि तभी आप्रवास विभाग के प्रमुख ने उसका अभिवादन किया, "आइये, आइये मिसेज चैप्लिन, आपको देखना कितना सुखद लग रहा है! तो आप हैं हमारे मशहूर चार्ली की मां!"

"हां" मां ने मिश्री घोलते हुए कहा, "और आप यीशू मसीह हैं?"

अधिकारी का चेहरा देखने लायक था। वह हिचकिचाया, टॉम की तरफ देखा, और विनम्रता से बोला,"मिसेज चैप्लिन, आप जरा एक मिनट के लिए एक तरफ आयेंगी?"

टॉम समझ चुका था कि वे लोग मुसीबत में फंस चुके हैं।

अलबत्ता, ढेर सारी लालफीता शाही के बाद आप्रवास कार्यालय ने इतनी दयालुता दिखायी कि मां को वर्ष-दर-वर्ष आधार पर रहने की अनुमति दे दी लेकिन शर्त लगा दी कि वह सरकार पर निर्भर नहीं रहेगी।

मैंने उसे तब से नहीं देखा था जब मैं आखिरी बार इंगलैंड में था। इस बीच दस बरस का अरसा बीत चुका था। इसलिए जब मैंने पसाडेना में बेचारी वृद्धा मां को देखा तो मुझे थोड़ा-सा झटका लगा। उसने सिडनी और मुझे तुरंत पहचान लिया और अब वह एकदम सामान्य थी।

हमने उसके रहने का इंतज़ाम समुद्र के किनारे अपने आस-पास ही किया। उसके पास घर-बार का काम करने के लिए एक शादीशुदा दम्पति रखा और उसकी व्यक्तिगत देखभाल के लिए एक प्रशिक्षित नर्स रखी। सिडनी और मैं अक्सर उसके पास चले जाते और शाम के वक्त उसके साथ खेल खेलते। दिन के वक्त वह पिकनिक पर जाना पसंद करती और अपनी कार में सैर-सपाटे करती। कई बार वह स्टूडियो आ जाती तो मैं उसके लिए अपनी कॉमेडी फिल्में चला देता।

आखिरकार द किड के प्रदर्शन न्यू यार्क में शुरू हुए और फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़ दिये। और जैसा कि मैंने जैकी कूगन के पिता के सामने पहले दिन की मुलाकात में ही भविष्यवाणी की थी, उसने सनसनी पैदा कर दी थी। द किड में अपनी सफलता के बलबूते पर चालीस लाख डॉलर से भी ज्यादा का कैरियर उसने अपनी जेब में कर लिया था। हर दिन हमें हैरान कर देने वाली समीक्षाओं की कतरनें मिलतीं। द किड को क्लासिक फिल्म घोषित कर दिया गया था। लेकिन मैं कभी भी हिम्मत नहीं जुटा पाया कि न्यू यार्क जाऊं और फिल्म देखूं। मैंने यही बेहतर समझा कि कैलिफोर्निया में ही रहूं और उसके बारे में सुनता रहूं।

इस बेसिलसिलेवार आत्मकथा में फिल्म बनाने के बारे में कुछ टिप्पणियों को शामिल न करना अनुचित होगा। हालांकि इस विषय पर बहुत सारी महत्त्वपूर्ण किताबें लिखी जा चुकी हैं, मुसीबत ये है कि इनमें से ज्यादातर किताबें लेखक के सिनेमाई आस्वाद को ही लादती हैं। इस तरह की किताब तकनीकी पाठमाला से ज्यादा नहीं होनी चाहिये जिसमें आदमी को ये सिखाया जाये कि ट्रेड के जो औजार हैं, उनकी जानकारी कैसे पायी जाये। इसके आगे जा कर कल्पनाशील विद्यार्थी को ड्रामाई प्रभावों के बारे में अपनी खुद की कला ज्ञानेन्द्रिय का इस्तेमाल करना चाहिये। अगर कोई शौकिया व्यक्ति सर्जनात्मक दृष्टि से सम्पन्न है तो उसका काम कम से कम तकनीकी जानकारियों से चल जायेगा। किसी भी कलाकार के लिए परम्परा के विरुद्ध काम करने की आज़ादी ही आम तौर पर सबसे ज्यादा उत्तेजना देने वाली होती है और यही कारण है कि कई निदेशकों की पहली फिल्म ताज़गी और मौलिकता लिये हुए होती है।

लाइन और स्पेस, कम्पोजीशन, टैम्पो आदि को बौद्धिकता से भर देना, ये सारी बातें बहुत भली लगती हैं लेकिन इनका अभिनय से कुछ खास लेना-देना नहीं होता और हो सकता है ये सारी बातें शुष्क हठधर्मिता बन कर रह जायें। नज़रिये की सादगी ही हमेशा सर्वोत्तम रहती है।

व्यक्तिगत रूप से कहूं तो मुझे करतब भरे, ट्रिक वाले प्रभावों, इफेक्ट्स से कोफ्त होती है। किसी कोयले के टुकड़े के नज़रिये से फायरप्लेस के पीछे से फोटोग्राफी, या होटल के गलियारे में से होते हुए कलाकार के साथ-साथ चलना मानो आप साइकिल पर उसकी अगवानी कर रहे हों; ये दृश्य मेरे लिए सीधे और स्पष्ट होते हैं। जब तक दर्शकगण सेट से वाकिफ हैं, उन्हें क्रीन के आर-पार देखने के लिए अपनी निगाहों को दौड़ाने की ज़रूरत नहीं पड़ती कि कोई कलाकार एक सिरे से दूसरे सिरे की तरफ जा रहा है। इस तरह के भड़कीले प्रभाव, एक्शन की गति को धीमा करते हैं और ये बोर करने वाले और खीज पैदा करने वाले हो जाते हैं। सबसे बड़ी बात, इन्हीं को एक थके हुए शब्द "कला" के रूप में मान लिया जाता है।