चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 32 Suraj Prakash द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 32

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

32

किसी ने सुझाया कि मैं कोशिश करूं और किसी और बच्चे को तलाश करूं। हो सके तो नीग्रो बच्चा। लेकिन मैंने संदेह से अपना सिर हिलाया। जैकी जैसे व्यक्तित्व वाला दूसरा बच्चा खोज पाना असंभव है।

साढ़े ग्यारह बजे के करीब कार्ललिस्ले रॉबिनसन, हमारे प्रचार प्रबंधक लपकते हुए मंच पर आये। उनकी सांस उखड़ी हुई थी और वे बेहद उत्साहित थे,"वो जैकी कूगन नहीं है जिसे ऑरबक्कल ने अनुबंधित किया है। उसने तो पिता जैक कूगन को अनुबंधित किया है।"

मैं अपनी कुर्सी से जैसे कूद पड़ा,"जल्दी, जल्दी, पिता को फोन पर बुलवाओ और उससे कहो कि उसका यहां तुरंत आना एकदम ज़रूरी है। बेहद ज़रूरी है।"

खबर ने हम सब में बिजली भर दी। कलाकार लोग इतने अधिक उत्साहित थे कि उनमें से कुछ लोग आये और मेरी पीठ थपथपाने लगे। जब ऑफिस स्टाफ ने इसके बारे में सुना तो वे स्टेज पर ही चले आये और मुझे बधाई देने लगे। लेकिन मैंने जैकी को अब तक अनुबंधित नहीं किया था, अभी भी इस बात की संभावना थी कि ऑरबक्कल को भी अचानक ही इसी तरह का इहलाम हो जाये। इसलिए मैंने रॉबिनसन से कहा कि वह फोन पर जो कुछ भी कहे, चौकस रहे और बच्चे के बारे में किसी को कुछ भी न बताये। "जब तक पिता यहां न आ जाये, उससे भी कुछ न कहा जाये। उससे सिर्फ यही कहा जाये कि यहां तुरंत आना है, कि वह हमारे पास आधे घंटे के भीतर कैसे भी करके पहुंच जाये। लेकिन अगर उसका पता नहीं चलता तो उसके स्टूडियो में जाओ लेकिन जब तक वह यहां न आ जाये, उसे कुछ भी न बताया जाये।" उन लोगों को पिता को तलाशने में खासी परेशानी हुई। वह स्टूडियो में नहीं था, और दो घंटे तक मैं मानो दमघोंटू रहस्य में पड़ा रहा।

आखिरकार, हैरान और परेशान जैकी के पिता ने अपना चेहरा दिखाया। मैंने उसे बाहों से थाम लिया,"वो बहुत बड़ा चमत्कार होगा। इतनी बड़ी घटना आज तक नहीं घटी है। उसे, बस यही करना है कि एक फिल्म में काम करे।" और मैं इसी तरह से अनाप शनाप बकता रहा। उसने ज़रूर यही सोचा होगा कि मैं पगला गया हूं,"इसकी कहानी आपके बेटे को उसकी ज़िंदगी का बेहरतीन मौका देगी।"

"मेरा बेटा?"

"हां हां, आपका बेटा। अगर आप मुझे बस, उसे एक फिल्म में काम कराने दें।"

"अरे, इसमें क्या है? आप ज़रूर उस आफत के परकाले को ले सकते हैं।" कहा उसने।

कहावत है कि बच्चे और कुत्ते फिल्मों में बेहतरीन अदाकार होते हैं। बारह महीने के बच्चे को साबुन की टिकिया के साथ बाथटब में डाल दीजिये और जिस वक्त वह साबुन को पकड़ने की कोशिश करेगा तो वह सबको हँसा हँसा कर पागल कर देगा। सभी बच्चे किसी न किसी रूप में जीनियस होते ही हैं। तरकीब यही है कि उसे बाहर लाया जाये। जैकी के साथ ये सब बहुत आसान था। मूक अभिनय, पैंटोमाइम के कुछ मूल भूत सिद्धांत सीखने भर की ज़रूरत थी और जैकी ने इसमें जल्द ही महरात हासिल कर ली। वह एक्शन में संवेदनाएं और संवेदनाओं में एक्शन डाल सकता था और इसे बार बार दोहरा भी सकता था और कमाल ये था कि उसकी सहजता का असर कहीं कम नहीं होता था।

द किड में एक दृश्य है जिसमें बच्चा एक खिड़की पर पत्थर, बस, फेंकने ही वाला है। एक पुलिसवाला चुपके से उसक पीछे आ खड़ा होता है और जैसे ही बच्चा पत्थर फेंकने के लिए हाथ पीछे करता है, उसका हाथ पुलिसवाले के कोट को छूता है। वह सिर उठा कर पुलिस वाले की तरफ देखता है और खेल खेल में पत्थर उछालता है और वापिस पकड़ता है और फिर मासूमियत से पत्थर फेंक देता है और अचानक ही बगटुट दौड़ना शुरू कर देता है।

इस दृश्य की सारी बारीकियां तय कर लेने के बाद मैंने बिंदुओं पर ज़ोर देते हुए जैकी से कहा कि वह मुझे देखता रहे: "तुम्हारे हाथ में पत्थर है, और फिर तुम खिड़की की तरफ देखते हो। और तब तुम पत्थर फेंकने की तैयारी करते हो। तुम अपने हाथ को पीछे लाते हो, लेकिन तुम पुलिसवाले का कोट महसूस करते हो। तुम उसके बटनों को महसूस करते हो। तब तुम सिर उठा कर ऊपर देखते हो और पाते हो कि ये तो पुलिस वाला है। तुम खेल खेले में पत्थर हवा में उछालते हो और फिर पत्थर फेंक देते हो और यूं ही वहां से चल देते हो और अचानक ही तुम सरपट दौड़ने लगते हो।"

उसने तीन या चार बार दृश्य की रिहर्सल की। आखिरकार पूरे दृश्य की बनावट के बारे में उसे इतना यकीन हो गया कि संवेदनाएं खुद ब खुद दृश्य में चली आयीं। दूसरे शब्दों में दृश्य की बनावट ने संवेदनाओं के लिए जगह बनायी। ये दृश्य जैकी के बेहतरीन द्वश्यों में से एक था और इसकी गिनती फिल्म के महत्त्वपूर्ण दृश्यों में थी।

हां, ये ज़रूर था कि फिल्म के सारे के सारे दृश्य इतनी आसानी से फिल्माये नहीं जा सके थे। जो दृश्य आसान लगते थे, वे उसे अक्सर उलझन में डालते जैसा कि आम तौर पर आसान दृश्यों के साथ हुआ करता है। एक बार मैं चाहता था कि वह स्वाभाविक तौर पर दरवाजे पर झूले लेकिन चूंकि उसके दिमाग में कुछ भी नहीं था, वह अपने बारे में सतर्क हो गया इसलिए हमें ये सीन छोड़ देना पड़ा।

अगर आपके दिमाग में कोई गतिविधि न चल रही हो तो स्वाभाविक रूप से अभिनय करना बहुत मुश्किल होता है। स्टेज पर सुनना मुश्किल होता है। जो शौकिया कलाकार होते हैं, वे ज़रूरत से ज्यादा ध्यान देने लगते हैं। जब तक जैकी के दिमाग में कुछ न कुछ चलता रहा था, वह बेहतरीन अदाकार रहता।

ऑरबक्कल के साथ जैकी के पिता का करार जल्द ही खत्म हो गया इसलिए अब उसके लिए ये संभव हो गया था कि हमारे स्टूडियो में अपने बेटे के साथ ज्यादा समय तक रह सके और बाद में उसने फ्लापहाउस वाले दृश्य में जेबकतरे की भूमिका भी निभायी थी। कई बार वह बहुत मददगार साबित होता। फिल्म में एक ऐसा दृश्य था जब यतीमखाने के दो अधिकारी उसे मुझसे ले जाते हैं तो उस दृश्य में हम चाहते थे कि जैकी सचमुच रोये धोये। मैंने उसे हर तरह की डरावनी कहानियां सुनायीं। लेकिन जनाब जैकी बहुत ही अच्छे और शरारतभरे मूड में थे। एक घंटे तक इंतज़ार करने के बाद पिता ने कहा,"लाओ, मैं इसे रुलाता हूं।"

"बच्चे को डराना या मारना वारना नहीं," मैंने अपराधबोध के साथ कहा।

"अरे नहीं, नहीं,ऐसा कुछ नहीं होगा।" पिता ने कहा।

जैकी इतने शानदार मूड में था कि मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि स्टेज पर रुक पाऊं और देखूं कि उसका पिता क्या करता है इसलिए मैं ड्रेसिंग रूम में चला आया। कुछ ही पलों बाद मैंने सुना कि जैकी ज़ार ज़ार रोये जा रहा है।

"तैयार है ये," कहा पिता ने।

यह वह दृश्य था जिसमें मैं बच्चे को यतीमखाने के अधिकारियों से छुड़वाता हूं और जब वह रो रहा था, मैं उसे गले लगाता हूं और पुचकारता हूं। जब सीन पूरा हो गया तो मैंने पिता से पूछा कि उसने ये किया कैसे?

"मैंने उसे सिर्फ यही कहा कि अगर वह ये सीन नहीं करेगा तो तो हम उसे स्टूडियो से ले जायेंगे और सचमुच उसे यतीमखाने में छोड़ आयेंगे।"

मैं जैकी की तरफ मुड़ा और सान्त्वना देने की नियत से उसे अपनी बाहों में उठा लिया। उसके गाल अभी भी आंसुंओं की वजह से गीले थे,"वे तुम्हें कहीं नहीं ले जा रहे हैं।" मैंने कहा।

"मुझे पता है," वह मेरे कानों में फुसफुसाया,"पापा तो बस, मुझे बुद्धू बना रहे थे।"

गॉवेरनियोर, लेखक और कथाकार, जिन्होंने कई फिल्मों की पटकथा लिखी थी, अक्सर मुझे अपने घर पर बुलवा भेजते।

गुवी, जैसा कि मैं उन्हें पुकारा करता था, बेहद आकर्षक, सहानुभूति रखने वाले व्यक्ति थे। जब मैंने उन्हें द किड के बारे में बताया और कहा कि ये फिल्म किस तरह की शेप ले रही है, प्रहसन के साथ संवेदनाओं का मिश्रण, तो वे बोले,"ये नहीं चलेगा। जो भी रूप अपनाया जाये, शुद्ध होना चाहिये। या तो प्रहसन या फिर ड्रामा। आप दोनों को मिला नहीं सकते नहीं तो कहानी का एक तत्व खो जायेगा।"

हम दोनों के बीच इस बारे में तर्कपूर्ण बहस हुई। मेरा कहना था कि प्रहसन से संवेदनाओं की तरफ मुड़ना महसूस करने और परिस्थितियों को व्यवस्थित करने के विवेक की बात है। मैंने तर्क दिया कि रूप या फार्म तभी आता है जब आदमी कुछ सृजन कर लेता है और यदि कलाकार दुनिया के बारे में सोचता है और ईमानदारी से उस पर विश्वास करता है तो चाहे जो भी मसाला तैयार हो, वह विश्वसनीय लगेगा। हां, ये ज़रूर था कि अपनी इस थ्योरी के पक्ष में मेरे पास कोई आधार नहीं थे, सिर्फ भीतरी संवेग ही थे। अब तक व्यंग्य, स्वांग, यथार्थवाद, प्रकृतिवाद, सुखांत नाटक और फैंटेसी ही चले आ रहे थे, लेकिन कच्चे प्रहसन और संवेदनाएं, जो कि द किड का केन्द्र बिन्दु था, एक तरह का नयापन था।

द किड के संपादन के दौरान, सैम्युअल रेशेवस्की, सात बरस की उम्र का विश्व के बाल शतरंज खिलाड़ी, स्टूडियो में आया। उसे एथलेटिक क्लब में एक साथ बीस खिलाड़ियों के साथ खेलने का प्रदर्शन करना था और इन बीस में से एक डॉक्टर ग्रिफिथ भी थे जो कि कैलिफोर्निया के चैम्पियन थे। सैम्युअल का चेहरा दुबला सा, पीला और तना हुआ था और जब वह लोगों से मिलता था तो उसकी बड़ी बड़ी आंखें चुनौती देती सी, घूरती हुई लगती थीं। मुझे चेताया गया था कि वह बहुत तुनुकमिजाज है और वह किसी से मिलते समय शायद ही कभी हाथ मिलाता हो।

जब उसके प्रबंधक ने हम दोनों का परिचय करा दिया और कुछ शब्द बोल दिये तो वह लड़का मेरी तरफ चुपचाप घूरता खड़ा रहा। मैं अपनी फिल्म के संपादन में लगा रहा और फिल्म की स्ट्रिप्स देखता रहा।

एक पल बाद मैं उसकी तरफ मुड़ा, "तुम्हें आड़ू अच्छे लगते हैं क्या?"

"हां," उसने जवाद दिया।

"तो ऐसा करो, हमारे बगीचे में आड़ुओं से भरा हुआ एक दरख्त है। तुम पेड़ पर चढ़ जाओ और कुछेक तोड़ लो। और साथ ही साथ मेरे लिए भी एक लेते आना।ष्

उसका चेहरा दमकने लगा,"वाह, बढ़िया, कहां है वह पेड़?"

"कार्ल तुम्हें बता देगा।" मैंने अपने पब्लिसिटी प्रबंधक का जिक्र करते हुए कहा।

पन्द्रह मिनट बाद वह लौटा तो वह बहुत खुश था। उसके पास ढेरों आड़ू थे। ये हमारी दोस्ती की शुरुआत थी।

"क्या आप शतरंज खेल सकते हैं?"

मुझे स्‍वीकार करना पड़ा कि मुझे नहीं आती।

"मैं आपको सिखा दूंगा। आज रात को आना और मेरा खेल देखना। मैं एक ही वक्त में बीस आदमियों के साथ खेल रहा हूं।" उसने शेखी बघारते हुए कहा।

मैंने वायदा किया और कहा कि मैं उसे बाद में खाने पर ले चलूंगा।

"बढ़िया, मैं जल्दी ही फारिग हो जाऊंगा।"

उस शाम का ड्रामे की तारीफ करने के लिए शतरंज को जानना ज़रूरी नहीं था। अपनी अपनी शतरंज की बिसात पर सिर झुकाये अधेड़ उम्र के बीस व्यक्ति सात बरस के एक बच्चे द्वारा पसोपेश में डाल दिये गये थे और बच्चा भी कैसा, जो अपनी उम्र से भी कम का लगता था।

उसे यू के आकार की मेज़ के केन्द्र पर एक आदमी से दूसरी मेज़ पर जाते हुए देखना अपने आप में किसी ड्रामे से कम नहीं था।

इस नज़ारे में कुछ अतियथार्थवादी था कि किस तरह से तीन सौ आदमियों से भी अधिक का जमावड़ा हॉल में दोनों तरफ सीढ़ीनुमा सीटों पर बैठा हुआ एक बच्चे को बीस आदमियों के खिलाफ अपना दिमाग लड़ाता हुआ चुपचाप देख रहा था। कुछेक लोग मोनालीसा सरीखी मुस्कान लिये अध्ययन करते हुए गहरे शोक में डूबे बैठे थे।

बालक अद्भुत था फिर भी मुझे विचलित कर रहा था क्योंकि मैं देख रहा था कि वह नन्हां सा छोकरा, पूरे ध्यान से कभी एकदम लाल हो जाता और कभी उसका चेहरा निचुड़ कर एकदम सफेद हो जाता। मुझे लग रहा था कि वह अपनी सेहत की कीमत पर खेल रहा था।

"यहां," कोई एक खिलाड़ी पुकारता और वह बाल खिलाड़ी चल कर उसके पास जाता, कुछेक पलों के लिए बिसात का अध्ययन करता, और अचानक ही एक चाल चल देता या ज़ोर ये चिल्ला उठता,"ये लो, शह और मात।" और दर्शकों के बीच हँसी की फुसफुसाहट फैल जाती। मैंने उसे एक के बाद एक आठ खिलाड़ियों को शह और मात देते हुए देखा। इससे हँसी और तारीफ का माहौल बन गया।

और अब वह डॉक्टर ग्रिफिथ की बिसात का अध्ययन कर रहा था। दर्शक गण चुप थे। अचानक ही उसने एक चाल चली, फिर मुड़ा और मेरी तरफ देखा। उसका चेहरा दमक उठा और उसने मेरी तरफ देख कर हाथ हिलाया। ये इस बात का इशारा था कि बस, अब बहुत देर नहीं लगने वाली है।

कई दूसरे खिलाड़ियों को मात देने के बाद वह डॉक्टर ग्रिफिथ की तरफ लौटा। वे अभी भी गहरे चिंतन में थे। "आपने अभी भी अपनी चाल नहीं चली? बालक ने बेसब्री से पूछा।

डॉक्टर ने अपना सिर हिलाया।

"ओह, जल्दी कीजिये, जल्दी।"

ग्रिफिथ मुस्कुराये।

बच्चे ने उन्हें घूर कर देखा,"आप मुझे नहीं हरा सकते। अगर आप ये चाल चलेंगे तो मैं यहां चाल चलूंगा। और आप ये चाल चलेंगे तो मैं वो चाल चल दूंगा।" उसने फटाफट सात आठ चालों के नाम गिना दिये,"हम यहां पर रात भर रुके रहेंगे, इसलिए बेहतर यही है कि हम ड्रा कर लें।"

डॉक्टर ने समझौता कर लिया।

हालांकि मैं मिल्ड्रेड को अब चाहने लगा था लेकिन ऐसा था कि हम एक दूजे के लिए बने ही नहीं थे। वह चरित्र की ओछी नहीं थी, लेकिन गुस्सा दिलाने की हद तक औरताना था। मैं कभी भी उसके मन की थाह नहीं लगा पाया। उसका दिमाग गुलाबी रंग के रिबनों की मूर्खता से जक़ड़ा हुआ था। वह हमेशा चंचल बनी रहती और हमेशा दूसरे ही आसमानों में विचरती रहती। जब हमारी शादी को एक बरस हो गया था तो हमारा एक बेटा हुआ था जो सिर्फ तीन दिन ही जीवित रहा। इसी बिन्दु से हमारी शादी में बिखराव शुरू हुआ। हालांकि हम एक ही छत के नीचे रहते थे, हम शायद ही एक दूजे से मिलते। कारण यह था कि वह अपने स्टूडियो में बुरी तरह से व्यस्त रहती और मैं अपने स्टूडियो में मसरूफ रहता। हमारा घर उदास घर बन चुका था। मैं घर लौटता तो पाता कि खाने की मेज़ पर एक आदमी के लिए खाना लगा हुआ है। मैं अकेले खाना खाता। अक्सर वह हफ्ते हफ्ते के लिए बाहर होती, उसने कोई खोज खबर न छोड़ी होती। और उसके न होने के बारे में मुझे उसके खाली बेडरूम के खुले दरवाजे से ही पता चलता।

कई बार रविवार के दिन जब वह घर से बाहर जा रही होती, हम अचानक ही मिल जाते और तब वह मुझे चलताऊ ढंग से बताती कि वह ये सप्ताहांत गिशेस या किन्हीं दूसरी सहेलियों के साथ गुज़ारने जा रही है और मैं फेयरबैंक्स (डगलस और मैरी अब शादीशुदा थे) के यहां चला जाता। और तभी सब कुछ टूटा। ये द किड के सम्पादन के दिनों की बात है। मैं सप्ताहांत फेयरबैंक्स के यहां गुज़ार रहा था। डगलस मेरे पास मिल्ड्रेड के बारे में कुछ अफवाहों के साथ आये,"मेरा ख्याल है तुम्हें पता होना ही चाहिये," कहा उन्होंने।

मैंने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि इस अफवाहों में कितनी सच्चाई है, लेकिन उनसे मुझे हताशा होती थी। मेरा जब मिल्ड्रेड से आमना सामना हुआ तो वह साफ मुकर गयी।

"जो भी हो, हम इस तरह से एक साथ नहीं रह सकते," मैंने कहा।

बीच में मौन पसर गया और मेरी तरफ ठंडी निगाहों से देखती रही,"आप क्या करना चाहते हैं?" पूछा उसने।

वह इतने नि:संग भाव से बोली कि मुझे थोड़ा झटका सा लगा।

"मेरा . .मेरा ख्याल है हमें तलाक ले लेना चाहिये।" मैंने धीरे से कहा और सोचता रहा कि उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी। उसने कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए मैंने थोड़े विराम के बाद कहा,"मेरा ख्याल है कि हम दोनों की ज्यादा खुश रह पायेंगे। तुम अभी युवा हो, तुम्हारे सामने अभी पूरी ज़िंदगी पड़ी है और इसमें कोई शक नहीं कि हम दोनों अच्छे दोस्त बने रह सकते हैं। तुम्हारा वकील मेरे वकील से मिल सकता है इसलिए तुम जो भी चाहो, उसका इंतज़ाम किया जा सकता है।"

"मैं सिर्फ इतना धन चाहती हूं कि अपनी माँ की देखभाल कर सकूं।"

"मेरा ख्याल है ये मुद्दे हम आपस में ही निपटा लें।" मैंने पांसा फेंका।

वह एक पल के लिए सोचती रही फिर उसने अपना फैसला सुनाया,"मेरा ख्याल है मैं अपने वकील से ही बात करूंगी।'

"बिल्कुल ठीक है, मैंने जवाब दिया, इस बीच तुम इसी घर में रहती रहो और मैं एथलेटिक क्लब में वापिस चला जाऊंगा।"

हम दोस्ताना ढंग से अलग हो गये। हममें यह सहमति हो गयी कि वह मानसिक अत्याचार के आधार पर तलाक मांगेगी और हम इस बारे में प्रैस को कुछ भी नहीं बतायेंगे।

अगले दिन टॉम हैरिंगटन मेरा साजो सामान एथलेटिक क्लब में ले गया। ये एक बहुत बड़ी गलती थी क्योंकि जल्दी ही यह अफवाह फैल गयी कि हम दोनों अलग हो गये हैं और प्रैस ने मिल्ड्रेड को फोन करना शुरू कर दिया। उन्होंने क्लब में भी फोन किया लेकिन न तो मैं उनसे मिला और न ही कोई बयान ही दिया। लेकिन मिल्ड्रेड ने धमाकेदार बयान दिया और अखबारों के पहले पन्ने उसके बयान से रंग गये। उसने कहा कि मैंने उसे त्याग दिया है और वह मानसिक अत्याचार के आधार पर तलाक की मांग कर रही है। आधुनिक मानकों से देखा जाये तो हमला बहुत ही मामूली था। अलबत्ता, मैंने उसे फोन किया और पूछना चाहा कि वह प्रैस से क्यों मिली? उसने बताया कि पहले तो वह इन्कार करती रही लेकिन प्रैस ने ही उसे बताया कि मैं पहले ही धमाकेदार बयान दे चुका हूं। दरअसल, प्रैसवालों ने उससे झूठ बोला था ताकि हम दोनों के बीच गलतफहमी पैदा हो जाये और मैंने मिल्ड्रेड को ये बात बतायी। मिल्ड्रेड ने वादा किया कि वह प्रैस में और कोई बयान जारी नहीं करेगी लेकिन उसने बयान दिये।

कैलिफोर्निया के समुदाय सम्पदा कानून के हिसाब से उसे कानूनी तौर पर 25,000 डॉलर मिलते लेकिन मैंने उसके आगे 100,000 डॉलर का प्रस्ताव रखा जो कि उसने पूरे समझौते के रूप में ले लेना स्वीकार कर लिया। लेकिन जब अंतिम कागजात पर हस्ताक्षर करने का समय आया तो वह बिना कोई वजह बताये अपनी बात से मुकर गयी।

मेरा वकील हैरान था। "ज़रूर कुछ न कुछ गड़बड़ है," उसने कहा और सचमुच गड़बड़ थी भी। द किड को ले कर फर्स्ट नेशनल के साथ मेरी कुछ कहा सुनी चल रही थी। ये सात रील की कॉमेडी फिल्म थी और वे चाहते थे कि दो दो रील की तीन कॉमेडी फिल्में बना कर प्रदर्शित करें। इस तरह से उन्हें मुझे द किड के लिए सिर्फ 405,000 डॉलर ही अदा करने पड़ते। चूंकि मुझे इसकी लागत पांच लाख डॉलर से कुछ अधिक ही पड़ी थी और इसमें मेरी अट्ठारह महीने की मेहनत लगी हुई थी, इसलिए मैंने उन्हें बताया कि मैं अपने हक के लिए फर्स्ट नेशनल को नाकों चने चबवा दूंगा। मुकदमे करने की धमकियां दी गयीं। कानूनी तौर पर उनके पक्ष में बहुत कम उम्मीद थी और वे इस बात को जानते थे। इसलिए उन्होंने मिल्ड्रेड के जरिये चालें खेलने का फैसला किया और द किड पर हमला करने की सोची।

चूंकि मैंने अब तक द किड के संपादन का काम पूरा नहीं किया था, मेरी छठी इंद्रीय ने मुझे चेताया कि मैं किसी और राज्य में जा कर संपादन का काम पूरा करूं। इसलिए मैं अपने स्टाफ के दो सदस्यों और 400000 फुट फिल्म के साथ सॉल्ट लेक सिटी के लिए चल पड़ा। फिल्म के पांच सौ रोल थे। हम सॉल्ट लेक होटल में ठहरे। हमने एक बेडरूम में फिल्म को एक तरह से बिछा दिया। हमने फर्नीचर की एक एक चीज इस्तेमाल में ले ली थी। मयानी, कमोड, ड्रावर ताकि फिल्म के रोल वहां पर रखे जा सकें। चूंकि होटल में कोई भी भयंकर रूप से आग पकड़ने वाली चीज होटल में रखना मना होता है, हमें अपना सारा काम गुप्त तरीके से करना पड़ा। ऐसी परिस्थितियों में हम अपनी फिल्म के संपादन में लगे रहे। हमारे पास कम से कम दो हज़ार टेक थे जिनमें से छंटनी करनी थी और हालांकि सब पर संख्याएंं डाली हुई थीं, कई बार ऐसा होता कि कोई अंश खो जाता और हमें उस खास अंश को बिस्तर पर, बिस्तर के नीचे, गुसलखाने में खोजने में घंटों लग जाते तब जा कर हमें वह मिलता। इस तरह की दिल तोड़ने वाली अड़चनों और विधिवत सुविधाओं के अभाव के साथ हमने फिल्म के संपादन का काम पूरा किया। ये सब कुछ किसी चमत्कार से ही संभव हो पाया।

और अब मेरे सामने हिमालय में से गंगा निकालने जैसा कठिन काम था। जनता के सामने इसका प्रिव्यू करना। मैंने फिल्म को एक छोटी सी संपादन मशीन के जरिये ही देखा था जिस पर फिल्म एक तौलिये पर पोस्टकार्ड के आकार के आकार फ्रेम में दिखायी जाती थी। मैं इस बात के लिए अपने आपको सौभाग्यशाली समझ रहा था कि मैंने अपने स्टूडियो में फिल्म के रशेज़ सामान्य आकार के क्रीन पर देख लिये थे। लेकिन अब मुझे हताश कर देने वाली एक भावना घेरे हुए थी कि मेरी पन्द्रह महीनों की मेहनत अभी भी अंधेरे में है।