चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 29 Suraj Prakash द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 29

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

29

कहानी में दिखाया जाता है कि एक चार्लोट अमेरिका की तरफ जा रहा है। जहाज में वह एक लड़की और उसकी मां से मिलता है जो उसी की तरह फटेहाल हैं। जब वे न्यू यार्क में पहुंचते हैं तो दोनों बिछुड़ जाते हैं। बाद में वह उस लड़की से एक बार फिर मिलता है लेकिन इस बार लड़की अकेली है। और खुद उसकी तरह ज़िंदगी में असफल है। जिस वक्त वे बात करने के लिए बैठते हैं, वह अनजाने में काले कोने वाला रुमाल इस्तेमाल करती है जिससे वह यह संदेशा देती है कि उसकी मां मर चुकी है। और हां, आखिर में वे एक मनहूस बरसात के दिन शादी कर लेते हैं।

छोटी-छोटी, आसान-सी लगने वाली धुनों ने मुझे दूसरी हास्य फिल्मों के लिए छवियां दीं। ट्वेंटी मिनट्स ऑफ लव नाम की एक फिल्म थी। ये पार्कों में, पुलिस वाले और नर्सनुमा नौकरानियों की फालतू की और बेसिर-पैर की लतीफेबाजी से भरी हुई फिल्म थी। इस फिल्म में मैंने 1914 की एक मशहूर दो लाइनों वाली धुन टू मच मस्टर्ड पर परिस्थितियां बुनी थीं। वायोलेट्रा नाम के गीत ने सिटी लाइट्स के लिए मूड बनाने में मदद की थी जबकि गोल्ड रश के लिए मूड ऑल्ड लैंग साइन की मदद से बना था।

बहुत पहले, 1916 में फीचर फिल्मों के लिए मेरे मन में ढेरों ख्यालात थे। एक फिल्म में चंद्रमा का एक दौरा दिखाया जाता जहां पर ओलम्पिक खेलों के हंसी-मज़ाक भरे दृश्य होते और वहां गुरुत्वाकर्षण के नियमों के साथ खिलवाड़ करने की संभावनाओं का पता लगाया जाता। यह प्रगति पर एक तरह का कटाक्ष होता। मैंने खाना खिलाने वाली एक फीडिंग मशीन के बारे में भी सोचा था। एक रेडियोइलैक्ट्रिक हैट का भी ख्याल मेरे मन में था। इस हैट को लगाते ही उसमें व्यक्ति के विचार दर्ज होने शुरू हो जाते। और उस वक्त की मुसीबत के बारे में बताया जाता जब मैं इस हैट को सिर पर पहनता हूं और मेरा परिचय चंद्रमा पर रहने वाले आदमी की बेहद कमनीय बीवी से कराया जाता है। बाद में मैंने इस फीडिंग मशीन को माडर्न टाइम्स में इस्तेमाल किया था।

साक्षात्कार करने वाले मुझसे पूछते हैं कि मुझे अपनी फिल्मों के लिए विचार या आइडिया कहां से मिलता है और मैं आज दिन तक इस बात का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया हूं। बरसों के बाद मैंने यही पाया है कि विचार तभी आते हैं जब आप में विचारों के लिए उत्कट इच्छा हो। लगातार इच्छा करते रहने से आपका दिमाग ऐसी घटनाओं की तलाश में भटकने वाला बुर्ज हो जाता है जिनमें आपकी कल्पना को उत्तेजित करने का माद्दा हो। संगीत और सूर्यास्त भी विचारों को अमली जामा पहना सकते हैं।

मैं तो यही कहूंगा कि कोई भी ऐसा विषय लीजिये जो आपको उत्तेजित करे। इसे फैलाइये और इसमें रम जाइये। और अगर आप इसे और आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं तो इसे छोड़ दीजिये और दूसरे विचार पर काम करना शुरू कर दीजिये। जो कुछ आप संजोते हैं, उसमें से उलीचते रहना ही वह प्रक्रिया है जिसमें आपको वह मिल जाता है जो आप खोजना चाहते हैं।

तो आदमी के पास विचार आते कैसे हैं। पागलपन की हद तक जाने के बाद अचानक ही। आदमी में तकलीफ सहने की कूव्वत होनी चाहिये और उत्साह को देर तक बरकरार रखने का माद्दा होना चाहिये। हो सकता है ऐसा कर पाना कुछ व्यक्तियों के लिए दूसरों की तुलना में आसान होता होता हो लेकिन मुझे इसमें शक है।

हां, इसमें कोई शक नहीं कि प्रत्येक संभावनाशील कॉमिक को कॉमेडी के बारे में आध्यात्मिक साधारणीकरण से हो कर गुज़रना पड़ता है। कीस्टोन में जो फिल्में बनती थीं, उनमें हर दूसरे दिन एक जुमला उछाला जाता था कि "आश्चर्य और रहस्य का तत्व होना चाहिये फिल्मों में।"

मैं मानव व्यवहार को समझाने के लिए मनोविश्लेषण की गहराइयों में उतरने की कोशिश नहीं करूंगा जो कि अपने आप ही ज़िंदगी की तरह विवेचना से परे है। सैक्स या बाल सुलभ मतिभ्रंश से भी अधिक। मेरा यह मानना है कि हमारे अधिकांश विचारशील दबाव पूर्वज अनुरूप कारणों से होते हैं। अलबत्ता, मुझे यह जानने के लिए किताबें पढ़ने की ज़रूरत नहीं है कि ज़िदंगी की थीम संघर्ष और तकलीफ है। ये सहज संवेदनाओं का ही कमाल था कि मेरा सारा जोकरपना इन्हीं पर आधारित था। कॉमेडी बुनने के मेरे साधन सरल थे। यह प्रक्रिया थी आदमियों को तकलीफों के भीतर ले जाने की और उससे बाहर ले आने की।

लेकिन हास्य थोड़ा-सा अलग और ज्यादा बारीक होता है। मैक्स ईस्टमैन ने अपनी किताब द सेंस ऑफ ह्यूमर में इसका विश्लेषण किया है। वे इसका निचोड़ इस तरह से निकालते हैं कि ये मानो खिलंदड़े दर्द में से निकाला गया हो। वे लिखते हैं कि आदमी नाम का यह प्राणी आत्मपीड़क होता है और वह दर्द का कई रूपों में आनंद उठाता है। और दर्शक भी वैसे ही दूसरे का चोला धारण करके पीड़ा भोगना पसंद करते हैं जिस तरह से बच्चे खेल-खेल में उठाते हैं। बच्चे खेल-खेल में मारा जाना और मौत की भयावहता से गुज़रना पसंद करते हैं।

मैं इस सब से सहमत हूं। लेकिन ये हास्य के बजाये ड्रामा का ज्यादा विश्लेषण है। हालांकि दोनों देखने में एक जैसे ही लगते हैं लेकिन हास्य के बारे में मेरा विश्लेषण थोड़ा अलग है। जो साधारण व्यवहार लगता है ये उससे मामूली-सा हट कर होता है। दूसरे शब्दों में, हास्य के जरिये जो तार्किक होता है, उसमें हम अतार्किक देखते हैं और जो महत्त्वपूर्ण लगता है उसमें अमहत्त्वपूर्ण देख लेते हैं। ये हमारी जीजिविषा के स्तर को भी ऊपर उठाये रहता है और हमारे होशो-हवास को बचाये रखता है। ये हास्य ही होता है जिसकी वजह से हम ज़िंदगी की बदतमीजियों को देख कर खुशी से बहुत ज्यादा खुश नहीं होते। इससे अनुपात की हमारी सोच को गति मिलती है और ये बात हमारे सामने रखता है कि गम्भीरता से कही गयी किसी बात में भी वाहियातपना छुपा होता है।

मिसाल के तौर पर, किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार का दृश्य है। मित्र और संबंधीगण मृतक की चिता के आस-पास सम्मान से सिर झुकाये जमा हैं। तभी कोई लेट लतीफ ठीक उसी वक्त वहां आ पहुंचता है जब कि प्रार्थनाएं, बस, शुरू होने ही वाली हैं। वह हड़बड़ी में एक खाली सीट की तरफ लपकता है जहां संवेदना प्रकट करने आया कोई व्यक्ति अपना हैट भूल गया है। अपनी हड़बड़ी में लेट लतीफ अचानक उसी हैट के ऊपर जा बैठता है। तब मूक क्षमा याचना के साथ वह मुचड़ा हुआ हैट उस व्यक्ति को सौंपता है। हैट का मालिक मूक गुस्से के साथ हैट ले लेता है और अपना ध्यान प्रार्थनाओं की तरफ लगाये रखता है। और आप देखते हैं कि उस पल की गम्भीरता हास्यास्पद हो गयी है।

******

पहले विश्व युद्ध की शुरुआत में आम राय यही बन रही थी कि ये युद्ध चार महीने से ज्यादा नहीं चलेगा क्योंकि आधुनिक युद्ध का विज्ञान मानव जीवन का इतना अधिक संहार कर बैठेगा कि मानवता इस बर्बरता को रोकने के लिए त्राहि माम त्राहि माम कर उठेगी। लेकिन हम गलती पर थे। इसलिए हम पागलपन भरे विनाश और पाश्विक नर संहार की भूल भुलइंया में घिर गये और ये सब मानवता को हैरान करते हुए चार बरस तक चलता रहा। हमने विश्व के अनुपात को तोड़ना मरोड़ना शुरू किया था और हम उसे रोक ही नहीं पाये। हज़ारों लाखों लोग आपस में लड़ मर रहे थे और लोगों ने ये सवाल पूछना शुरू कर दिया था कि आखिर ये लड़ाई क्यों और कैसे शुरू हुई थी। जो स्पष्टीकरण दिये जा रहे थे, वे बहुत स्पष्ट नहीं थे। कोई ह रहा था कि ये सब एक आर्क ड्यूक की हत्या से शुरू हुआ था, लेकिन ये इतनी बड़ी वजह नहीं थी कि जिसके कारण दुनिया में भीषण अग्नि कांड होता। लोगों को ज्यादा विश्वसनीय कारण चाहिये था। इसके बाद यह कहा गया कि ये सारी लड़ाई इसलिए हो रही थी ताकि दुनिया को लोकतंत्र के लिए और अधिक सुरक्षित बनाया जा सके। हालांकि कुछ ऐसे थे जिनके पास दूसरों की तुलना में लड़ने की कम वजहें थीं, फिर भी जितने लोग मर रहे थे वे घिनौने लोकतांत्रिक तरीके से मर रहे थे। जैसे-जैसे लाखों लोग मौत के घाट उतारे जा रहे थे, शब्द "लोकतंत्र" और अधिक उछाला जा रहा था। नतीजा यह हुआ कि तख्ते पलट दिये गये और जनतंत्र स्थापित किये गये और पूरे यूरोप का ही चेहरा बदल दिया गया।

लेकिन 1915 में अमेरिका ने ये आरोप लगाया कि "उसका आत्म सम्मान इतना ज्यादा है कि वह लड़ेगा नहीं।" इससे देश को एक नये गीत मैंने अपने बच्चे को सैनिक बनने के लिए बड़ा नहीं किया (आइ डिड नॉट रेज़ माइ बॉय टू बी सोल्जियर) के लिए सूत्र मिल गया। ये गाना आम जनता में बहुत लोकप्रिय हो गया लेकिन तब तक लूसिटानिया की हार हो गयी और इस घटना ने एक नये गीत को जनम दिया। किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी और न ही किसी चीज़ का राशन ही किया गया था। रेड क्रॉस के लिए बाग बगीचों में लगाये जाने वाले मेले-ठेले और पार्टियां आयोजित की जाती थीं और ये सामजिक मेल मिलापों के लिए एक बहाना थीं। ऐसे ही एक आयोजन में एक मोहतरमा ने एक बहुत ही भव्य डिनर में सिर्फ मेरे साथ वाली सीट पर बैठने के लिए रेड क्रॉस को बीस हज़ार डॉलर का चंदा दिया। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, युद्ध की घिनौनी सच्चाई से घर-घर वाकिफ हो चला था।

1918 के शुरू होते न होते अमेरिका ने दो लिबर्टी बांड मुहिम शुरू कीं और अब मैरी पिकफोर्ड, डगलस फेयरबैंक्स और मुझसे अनुरोध किया गया कि हम वाशिंगटन में तीसरी लिबर्टी बांड मुहिम का आधिकारिक रूप से श्रीगणेश करें।

मैं फर्स्ट नेशनल के लिए अपनी पहली पिक्चर द डॉग्स लाइफ लगभग पूरी कर चुका था और चूंकि मैं इस बात का वचन दे चुका था कि इसे बाँड के समय पर ही रिलीज करूंगा, मैं लगातार तीन दिन और तीन रात तक बैठ कर फिल्म का संपादन करता रहा। जिस समय मैंने संपादन का काम पूरा किया तो मैं थका-हारा ट्रेन में सवार हो गया और लगातार दो दिन तक सोता रहा। जब मेरी नींद खुली तो हम तीनों अपना-अपना भाषण लिखने में जुट गये। चूंकि मैंने कभी पहले कोई गम्भीर भाषण नहीं लिखा था, मैं बहुत नर्वस था, इसलिए डगलस ने सुझाव दिया कि तुम इसे रेल स्टेशनों पर हमें देखने के लिए उमड़ने वाली भीड़ पर ही क्यों न आजमाओ। किसी बीच के स्टेशन पर ट्रेन रुकनी थी और निरीक्षण वाले डिब्बे के पिछवाड़े की तरफ काफी भीड़ जमा हो गयी थी। वहीं पर डगलस ने मैरी का परिचय दिया और मैरी ने छोटा-सा भाषण दिया। तभी मेरा परिचय कराया गया। अभी मैंने भाषण देना शुरू ही किया कि ट्रेन चल पड़ी। जैसे-जैसे ट्रेन भीड़ से दूर होती जा रही थी, मैं और अधिक मुखर और ड्रामाई होता जा रहा था, जैसे जैसे भीड़ कम होती जा रही थी, मेरा आत्म विश्वास नयी ऊंचाइयां छूता जा रहा था।

वाशिंगटन की गलियों में हमने राजाओं की तरह फेरियां लगायीं और वहां से हम फुटबॉल के मैदान में पहुंचे। वहीं पर हमने अपने शुरुआती भाषण देने थे।

वक्ताओं के लिए जो मंच बनाया गया था वह कच्चे बोर्डों का था और उस पर चारों तरफ झंडे और पताकाएंं लगी थीं। थल सेना और जल सेना के जो प्रतिनिधि हमारे आस-पास खड़े थे, उनमें एक लम्बा, खूबसूरत नौजवान था। हमने आपस में बातचीत शुरू कर दी। मैंने उसे बताया कि मैंने पहले कभी भाषण नहीं दिया है और मुझे बहुत घबराहट हो रही है।

"इसमे घबराने की क्या बात!" उसने आत्मविश्वास के साथ कहा,"अपने कंधे के पीछे से उन्हें बस बता दो कि वे अपने लिबर्टी बाँड खरीदें। बस, ज्यादा मज़ाकिया बनने की कोशिश मत करना।"

"चिंता मत करो!" मैंने व्यंग्य से कहा।

मैंने जल्द ही सुना कि मेरा परिचय दिया जा रहा है। मैं फेयरबैंक्स की-सी अदा के साथ मंच की तरफ बढ़ा और इससे पहले कि एक मक्खी भी उड़ सके, मैंने धूंआधार गोले बरसाना शुरू कर दिया। मैं सांस लेने के लिए भी नहीं रुक रहा था,"जर्मन आपके दरवाजे पर हैं। हमें उन्हें रोकना ही होगा और अगर आप लिबर्टी बाँड खरीदेंगे तो हम उन्हें रोक लेंगे। याद रखिये, आपके खरीदे गये एक-एक बाँड से एक-एक सैनिक की जान बचेगी। माँ का एक-एक लाल बचेगा। इससे लड़ाई जल्दी खत्म हो जायेगी और हम जीत जायेंगे।" मैं इतनी तेज़ी से और इतने उत्साह से बोला कि मैं मंच से ही फिसल गया, मैरी ड्रेस्लर को थामा और उसे गोद में लिये दिये अपने उस युवा खूबसूरत नये दोस्त के ऊपर जा गिरा। वह युवक और कोई नहीं, जलसेना के सहायक सचिव फ्रैंकलिन डी रूजावेल्ट थे।

सरकारी रस्म निपट जाने के बाद हमें व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति विल्सन से मिलना था। जिस वक्त हमें ग्रीन रूम में ले जाया गया, हम उत्तेजना और उत्साह से भरे हुए थे। अचानक ही दरवाजा खुला और एक सचिव ने भीतर झांका और फुर्ती से बोला,"आप ज़रा एक कतार में खड़े हो जायें और कृपया एक कदम आगे आ जायें।" इसके बाद राष्ट्रपति महोदय आये।

मैरी पिकफोर्ड ने शुरुआत की,"जनता की दिलचस्पी बहुत संतुष्ट करने वाली थी मिस्टर प्रेसिडेंट, और मुझे विश्वास है कि बाँड की मुहिम नयी ऊंचाइयों को छूएगी।"

"ये सचमुच थी और रहेगी " मैंने पूरी तरह से भ्रमित होते हुए बीच में टंगड़ी मारी।

प्रेसिडेंट ने मेरी तरफ संदेह से देखा और अपने मंत्रिमंडल के एक मंत्री के बारे में एक लतीफा सुनाया कि किस तरह से उसे उनकी व्हिस्की पसंद आती थी। हम सब विनम्रता से हँसे और वहां से रवाना हो गये।

डगलस और मैरी ने बाँड बिक्री की अपनी मुहिम के लिए उत्तरी क्षेत्र चुना जबकि मैंने दक्षिणी क्षेत्र चुना। इसकी वजह ये थी कि मैं उस तरफ कभी नहीं गया था। मैंने लॉस एंंजेल्स से अपने एक मित्र रॉब वैग्नर को अपने मेहमान के रूप में मेरे साथ साथ चलने के लिए बुलवा लिया। वह पोर्ट्रेट पेंटर और लेखक था।

धूमधाम से की गयी विज्ञापनबाजी मज़ेदार थी और मैंने इसे खूब होशियारी से संभाला। हमने लाखों डॉलर के बाँड बेचे।

उत्तरी कैरोलिना के एक शहर में स्वागत समिति का अध्यक्ष एक बड़ा व्यवसायी था। उसने इस बात को स्वीकार किया कि उसने स्टेशन पर दस छोकरे लगा छोड़े थे जो मेरे आगमन पर मुझ पर सड़े अंडे फेंकते लेकिन स्टेशन हम जब उतरे तो हमारी गम्भीर यात्रा के मकसद को देखते हुए उसने अपना इरादा बदल लिया था।

उसी सज्जन ने हमें डिनर पर आमंत्रित किया। उस डिनर में युनाइटेड स्ट्टेस के कई जनरल मौजूद थे। इनमें जनरल स्कॉट भी थे जो जाहिर तौर मेजबान को पसंद नहीं करते थे। डिनर के दौरान जनरल ने अपने मेज़बान के बारे में कहा, "हमारे मेज़बान और केले में क्या फर्क है?" थोड़ा सा तनाव पैदा हो गया। "हां, आप केले को छील सकते हैं।"

दक्षिणी अमेरिका की सजन्नता की मूर्ति के दर्शन किये मैंने आगस्ता, जॉर्जिया में। जज हैन्शॉ, बाँड समिति के अध्यक्ष वाकई सज्जनता की सौम्य मूर्ति थे। उनसे हमें इस आशय का खत मिला था कि चूंकि हम लोग मेरे जन्म दिन के मौके पर आगस्ता में होंगे, उन्होंने कंट्री क्लब मेरे लिए एक पार्टी का आयोजन किया है। मैं ये कल्पना कर रहा था कि मैं एक बहुत बड़ी भीड़ के केन्द्र में होऊंगा और वहां छिटपुट बातचीत चलती रहेगी, और चूंकि मैं थका हुआ था, मैंने यही बेहतर समझा कि मना ही कर दूं और सीधे ही होटल चला जाऊं।

आम तौर पर जब हम स्टेशन पर पहुंचते थे, वहां पर बहुत बड़ी संख्या में लोग हमारी अगवानी के लिए आये होते और स्थानीय ब्रास बैंड बजाया जाता। लेकिन आगस्ता स्टेशन पर कोई भी मौजूद नहीं था, सिवाय न्यायमूर्ति हैन्शॉ के। उन्होंने काला पोंगी कोट पहना हुआ था और पुराना, धूप से रंग उड़ा पैनामा हैट लगाया हुआ था। वे शांत और विनम्र थे। अपना परिचय देने के बाद वे मेरे और रॉब के साथ एक पुरानी सी घोड़ा गाड़ी में होटल की तरफ चले।

कुछ देर तक हम शांत चलते रहे। अचानक ही न्यायमूर्ति ने मौन भंग किया,"आपकी कॉमेडी के बारे में जो सबसे अच्छी बात लगती है, वो ये है कि आप जानते हैं कि मानव शरीर का सबसे अधिक अशोभनीय अंग उसके चूतड़ हैं और आपकी कॉमेडी फिल्में इसे सिद्ध कर देती हैं। जब आप किसी मोटे से शख्स के चूतड़ पर लात जमाते हैं तो आप उसे उसकी सारी मर्यादा से वंचित कर देते हैं। यहां तक कि आप अगर किसी राष्ट्रपति के उद्घाटन कार्यक्रम में भी आ कर राष्ट्रपति के पीछे आयें और आकर उसे पीछे से एक लात जमा दें तो उसकी सारी भव्यता निकाल का हाथ में धर देंगे। हम धूप में ड्राइव कर रहे थे और वे अपना सिर सनक भरे तरीके से हिला रहे थे। अपने आप से बातें करते हुए,"इसके बारे में कोई शक नहीं है कि गांड ही आत्म सजगता का आसन होती है।"

मैंने रॉब कानज किया और फुसफुसाया, "लो शुरू हो गयी जन्मदिन की पार्टी।"

पार्टी उसी दिन थी जिस दिन बैठक थी। हैन्शॉ ने अपने तीन और दोस्तों को आमंत्रित कर रखा था। उन्होंने इस बात के लिए क्षमा मांगी कि पार्टी बहुत ही छोटी है। वे कहने लगे कि वे स्वार्थी हैं और चाहते हैं कि हमारा आनंद अकेले ही भोगें।

गोल्फ क्लब बहुत ही खूबसूरत बना हुआ था। हरे लॉन पर ऊंचे दरख्तों की छायाएं बहुत ही कमनीय नज़ारा पेश कर रही थीं। हम छ: लोग एक टैरेस पर एक गोल मेज पर मोमबत्तियों से सजे जन्म दिन के केक के चारों तरफ बैठे।

न्यायमूर्ति जिस वक्त अजवाइन चुभला रहे थे, उन्होंने रॉब पर और मुझ पर एक निगाह डाली,"मुझे नहीं पता कि आप आगस्ता में बहुत ज्यादा बाँड बेच पायेंगे या नहीं, क्योंकि मैं चीज़ें बेचने में बहुत अच्छा नहीं हूं। अलबत्ता, मेरा ख्याल है कि शहर भर को आपके आने की खबर है।"

मैंने आसपास के सौन्दर्य को भीतर उतारना शुरू कर दिया।

"हां, एक बात है। बस, एक ही चीज़ की कमी है। टकसाली शराब की," वे कहने लगे।

इस जुमले से बातचीत का सिलसिला इस तरफ मुड़ गया कि शराबबंदी होनी चाहिये या नहीं होनी चाहिये। "अगर चिकित्सा संबंधी पत्रिकाओं की बात मानें तो शराबबंदी से लोगों की सेहत पर असर पड़ेगा। ऐसी पत्रिकाओं का यह मानना है कि अगर लोग व्हिस्की पीलर बंद कर दें तो पेट के अल्सर की बीमारियां बहुत कम हो जायेंगी।" रॉब ने अपनी बात रखी।

लगा कि जज महोदय इस टिप्पणी से नाराज़ हो गये,"जहां तक पेट का सवाल है, उस सिलसिले में तो आप व्हिस्की की बात तो करो ही नहीं। व्हिस्की आत्मा की खुराक है।" तब वे मेरी तरफ मुड़े,"चार्ली, ये आपका उनतीसवां जन्म दिन है, और अभी तक आपने शादी नहीं की?"

"नहीं," मैं हँसा,"और आपने भी तो नहीं की।"

"नहीं," वे उत्साह से मुस्कराये,"मैंने बहुत सारे तलाक के मामलों की सुनवायी की है। इसके बावजूद अगर मैं एक बार फिर जवान हो जाता तो ज़रूर शादी कर लेता। कुंवारा रहना अकेलापन देता है। अलबत्ता, मैं तलाक में विश्वास रखता हूं। मेरा ख्याल है कि मैं शायद जॉर्जिया में सबसे ज्यादा नापसंद किया जाने वाला जज हूं। अगर दो लोग एक साथ नहीं रह सकते तो उन्हें एक साथ नहीं रहने दूंगा।"

कुछ पलों के बाद रॉब ने घड़ी देखी और कहा,"अगर बैठक साढ़े आठ बजे शुरू होती है तो, हमें जल्दी करनी चाहिये।"

जज महोदय अभी भी अजवाइन के दाने आराम से चुभला रहे थे,"अभी भी बहुत समय है। मेरे साथ चुहलबाजी करते रहो। मुझे गप्प गोष्ठी अच्छी लगती है।"

बैठक के लिए जाते समय रास्ते में हम एक छोटे से पार्क में से हो कर गुज़रे। वहां पर सेनेटरों की बीसेके मूर्तियां लगी होंगी। ये सारे के सारे बेहद दर्प से भरे लग रहे थे। कुछेक ने अपना हाथ पीछे की तरफ कर रखा था और बाकी अपनी कूल्हे पर टिके हुए थे और हाथ में एक छड़ी थामे थे। मज़ाक ही मज़ाक में मैंने कहा कि वे जिन पैंटों पर पीछे से लात जमाने की बात कर रहे थे, ये सब के सब मेरी कॉमेडी में लात मारे जाने के लिए एक दम सही प्रतिमाएं हैं।

"हां," वे लापरवाही से बोले,"इन सब की गुदा में गू भरा हुआ है और इनके ऊंचे मकसद हैं।"

उन्होंने हमें अपने घर पर आमंत्रित किया। बहुत सुंदर जॉर्जियन घर जहां पर वाशिंगटन "सचमुच सोये" थे। घर में अट्ठारहवीं शताब्दी का एंटीक फर्नीचर लगा हुआ था।