एक दूजे के लिए - (भाग 2) Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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एक दूजे के लिए - (भाग 2)

"मै भी यहाँ---- - -उमेश ने भी रचना को अपने बारे में बताया था।
"अभी कहा से आ रहै हो?"
"किराये के मकान की तलाश में गया था,"उमेश अपनी परेशानी रचना से शेयर करते हुए बोला,"कुंवारा हूँ इसलिए कोई मकान ही नही देता।आज भी निराश लौट रहा हूँ"।
"मेरी भी यही समस्या है,"उमेश की बात सुनकर रचना बोली,"अकेली हूँ इसलिए मुझे भी मकान नही मिल रहा।"
उमेश और रचना ने मुंबई आने और जगह जगह किराये के मकान तलाश करने की कहानी एक दूसरे को सुनाई थी।दोनो एक दूसरे की बात सुनकर काफी देर तक मौन बैठे रहे।उस मौन को तोड़ने की पहल उमेश की तरफ से हुई थी।
"एक उपाय है।"
"क्या?"उमेश की बात सुनकर रचना बोली।
"पहले वादा करो मेरी बात सुनकर नाराज नही होओगी"
"प्रॉमिस"रचना,उमेश की बात सुनकर बोली,"मैं तुम्हारी किसी भी बात से नाराज नही होउंगी।"
"हम दोनों की समस्या एक सी है।हम दोनों साथ मिलकर मकान की तलाश करते है।हमे साथ देखकर कोई कुंवारा नही समझेगा और हमे मकान दे देगा,"उमेश बोला,"तुम्हे अगर मुझ पर विश्वास है और मेरे साथ रहने के लिए तैयार हो तो हम ऐसा कर सकते है।"
"तुम्हारा आइडिया सही है।अगर हम दोनों साथ जाए तो हमे मकान मिल सकता है,"उमेश की बात पर विचार करने के बाद रचना बोली,"मुझे तुम्हारे साथ रहने में ऐतराज नही है।"
रचना अकेले मकान ढूंढते हुए परेसान हो चुकी थी।इसलिए वह उमेश के साथ लिव इन रिलेशन में रहने के लिए तैयार हो गई।दोनो साथ मिलकर मकान की तलाश में निकले और पहले प्रयास में ही उन्हें सफलता मिल गई थी।
उमेश विले पारले और रचना अंधेरी में सर्विस करती थी।रोज सुबह दोनो साथ साथ घर से निकलते लेकिन रात को अलग अलग घर लौटते।दोनो खाना बाहर होटल में खाकर ही आते थे।उमेश मर्द था लेकिन रचना को रोज होटल में जाना अटपटा लगता था।एक दिन रचना बोली,"क्यो न हम घर पर ही खाना बनाये"।
"तुम्हारा सुझाव अच्छा है।रोज रोज होटल का खाना नुकसान दायक भी है।"
"तो चलो बाजार से सामान खरीद लाये।"
उमेश,रचना के साथ बाजार जाकर सारा सामान खरीदकर ले आया।रचना दोनो समय घर पर ही खाना बनाने लगी।उमेश उसके साथ काम मे हाथ बटाता।
पहले छुट्टी वाले दिन रचना घर पर ही रहती थी।लेकिन उमेश तैयार होकर निकल जाता और रात को ही लौटता।
"तुम भी साथ चलो"अब उमेश,रचना को अपने साथ ले जाने लगा था।।छुट्टी वाले दिन वे खाना घर पर नही बनाते थे।बाहर होटल में ही खाते।उमेश,रचना के साथ खरीददारी करता।पिक्चर देखता और जुहू चौपाटी पर ठंडी हवाओं का आनद लेता।
मुम्बई की बरसात मशहूर है।भारी बरसात होने पर वंहा का जन जीवन पूरी तरह ठप्प हो जाता है।सब कुछ ठहर जाता है।लोग घरों में कैद हो जाते है।लेकिन हल्की फुल्की बारिश में सब कुछ सामान्य चलता रहता है।
एक दिन आफिस से घर लौटते समय अचानक हुई बारिश में रचना पूरी तरह भीग गयी।उसे छीके आने लगी ।सर्दी लगने से खाँसी और बुखार भी हो गया।उमेश रात भर उसके पास बैठा रहा।सुबह वह रचना को डॉक्टर के पास ले गया।डॉक्टर ने तीन दिन की दवा देने के साथ आराम करने की सलाह दी।
उमेश ने ऑफिस से छुट्टी ले ली।
वह रचना की दवा और खान पान का ध्यान रखने लगा।
ठीक होने पर रचना बोली