जनजीवन - 8 Rajesh Maheshwari द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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जनजीवन - 8

समय और जीवन

कौन कहता है कि समय

निर्दय होता है,वह तो

तरुणाई की कथा जैसा

होता है मधुर और प्रीतिमय,

वह यौवन के आभास सा

होता है कभी खट्टा और कभी मीठा।

उन मोहब्बत के मारों की सोचो

जिन्हें वक्त और जवानी ने दगा दे दिया।

उनकी भावनायें बन जाती हैं

आंसुओं का दरिया,

उन्हें जीना पड़ता है इसी मजबूरी मे,

समय उन्हें देता है दुखो की अनुभूति

वे जीवन भर भरते हैं आहें

छोड़ते है ठण्डी सांसें।

समय उन्हीं पर मेहरबान होता है

जो समझ लेते हैं समय को समय पर।

ऐसे लोग शहंशाह की तरह जीते हैं।

पर ऐसे खुशनसीब

बहुत कम होते हैं।

सुखी होते हैं वे

जो समय को

मित्र बनाकर रहते हैं

जिन्दगी के फलसफे को

समझकर जीते हैं।

वक्त को समझ सको

तो भी जीना है

न समझ सको तो भी

जीना है।

एक जीवन को जीना है

और दूसरा जीना है

सिर्फ इसलिये जीना है।

हमारी संस्कृति

अनुभूति की अभिव्यक्ति

कविता बनती है।

सुरों की साधना

बन जाती है संगीत।

कविता है भक्ति

और संगीत है

उस भक्ति की अभिव्यक्ति।

एक समय

कविता और संगीत

सकारात्मक सृजन की दिशा में

शिक्षा के रूप में

मील के पत्थर थे।

आधुनिकता और आयातित संस्कृति के बाहुपाश ने

इन्हें जकड़ लिया,

इनकी भावनात्मकता और रचनात्मकता को

मिटा दिया।

इन्हें कर दिया आहत

और बना दिया

उछल-कूद का साधन,

अश्लीलता, फूहड़ता और कामुकता ने

बदल दिया है इनका रूप।

नई पीढ़ी को

समझना होगी

संगीत और कविता की आत्मा

उसका महत्व

और उसे सार्थक करते हुए

समाज में उन्हें

करना होगा स्थापित

तभी निखरेगा इनका स्वरूप

और निखर उठेगी

हमारी संस्कृति।

काश ऐसा हो !

सृष्टि में मानव है

सबसे महत्वपूर्ण और महान

वह है

परमपिता की सर्वोत्तम कृति।

जीवन में

मनसा-वाचा-कर्मणा

सत्यमेव जयते और सत्यम शिवम सुन्दरम का

समन्वय हो,

ऐसे हों प्रयास

यही है परमपिता की

मानव से आस।

हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं

मन को शान्ति

हृदय को संतुष्टि

आत्मा को तृप्ति देती हैं,

हमने सृजन छोड़कर

प्रारम्भ कर दिया विध्वंस।

कुछ पल पहले तक जहाँ

बिखरा हुआ था आनन्द,

अद्भुत और अलौकिक सौन्दर्य

कुछ पल बाद ही

गोलियों की बौछार कर गई

जीवन पर लगा गई

पूर्ण विराम।

हमें विनाश नहीं

सृजन चाहिए।

कोई नहीं समझ रहा

माँ का बेटा

पत्नी का पति

और अनाथ हो रहे

बच्चों का रुदन

किसी को सुनाई नहीं देता।

राजनीतिज्ञ कुर्सी पर बैठकर

चल रहे हैं

शतरंज की चालें

राष्ट्र प्रथम की भावना का

संदेश देकर

त्याग और समर्पण का पाठ पढ़ाकर

भेज रहे हैं सरहद पर

और सेंक रहे हैं

राजनैतिक रोटियाँ।

हम हो जागरूक

नये जीवन का दें संदेश

आर्थिक और सामाजिक तरक्की से

सम्पन्न हो हमारा देश।

मानवीयता हो हमारा धर्म

सदाचार और सद्कर्म

हो हमारा कर्म,

तभी जागृत होगी

एक नयी चेतना

सत्यमेव जयते

शुभम् करोति

अहिंसा परमो धर्मः की कल्पना

हकीकत में हो साकार

हमारे प्यारे देश को

भारत महान

पुकारे सारा संसार।

अहिन्सा परमो धर्मः

अहिन्सा परमो धर्मः

कभी थी हमारी पहचान

आज गरीबी और मंहगाई में

पिस रहा है इन्सान

जैसे कर्म करो

वैसा फल देता है भगवान।

कब, कहाँ, कैसे

नहीं समझ पाता इन्सान।

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च सभी

बन रहे हैं आलीशान,

कैसे रहें यहाँ पर

परेशान हैं भगवान,

वे तो बसते हैं

दरिद्र नारायण के पास,

हम खोजते हैं उन्हें वहाँ

जहाँ है धन का निवास,

पूजा, भक्ति और श्रृद्धा तो

साधन हैं

हम इन्हीं में भटकते हैं।

परहित, जनसेवा और

स्वार्थरहित कर्म की ओर

कभी नहीं फटकते हैं।

काल का चक्र

चलता जा रहा है

समय निरन्तर गुजरता जा रहा है

दीन-दुखियों की सेवा

प्यासे को पानी

भूखे को रोटी

समर्पण की भावना

और घमण्ड से रहित जीवन से

होता है

परमात्मा से मिलन,

अपनी ही अन्तरात्मा में

होते हैं उसके दर्शन,

जीवन होगा धन्य

प्रभु की ऐसी कृपा पाएंगे

एक दिन हंसते हुए

अनन्त में विलीन हो जाएंगे।