जी हाँ, मैं लेखिका हूँ - 13 Neerja Hemendra द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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जी हाँ, मैं लेखिका हूँ - 13

कहानी-13-

’’ पगडंडियाँ ’’

नोरा ने स्टाफ रूम में आ कर मेज पर अपना पर्श रख दिया। तत्पश्चात् कुर्सी पर आराम से बैठते हुए गले में लिपटे ऊनी स्कार्फ को कस कर कानों के इर्द-गिर्द लपेट लिया। स्टाफ रूम की खिड़की के समीप रखी इस कुर्सी पर बैठना उसे अत्यन्त पसन्द है। आज कुर्सी खाली थी, अन्यथा कई बार कोई और इस कुर्सी पर बैठ जाता है तो उसे किसी अन्य स्थान पर बैठना पड़ जाता है। जो उसे पसन्द नही है। यहाँ बैठ कर खिड़की के बाहर देखना उसका पसंदीदा शगल है। आजकल इस खिड़की के दरवाजे बन्द रहते हैं। इसका कारण जनवरी माह की कठोर ठंडक है। उसे लगता है कि देश के अन्य स्थानों की अपेक्षा गोरखपुर में ठंडक कुछ ज्यादा ही होती है। वह गोरखपुर में रहती है इसलिए तो ऐसा सोचती? अन्यथा वह इस तथ्य से अनभिज्ञ नही है कि सर्दी की ऋतु में समस्त उत्तर भारत में ही कठोर ठंड पडती है, न कि मात्र गोरखपुर में।

खिड़कियों के दरवाजे शीशे के होने के कारण वह बन्द खिड़की से भी बाहर देखा जा सकता है। आज भी वह निश्चिन्त हो कर बाहर की तरफ देखने लगी । इस समय सुबह के नौ बजने वाले हैं, किन्तु यह पूरा इलाका कोहरे की सफेद झीनी चादर से ढँका था। सूर्य की रोशनी भी इस ठंड से बचने के लिए जैसे कहीं दुबक कर बैठ गयी थी।

यह मुख्य शहर से दूर स्थित एक छोटा-सा गाँव है। गाँव के चारों तरफ धान के खेत व बाग-बगीचे हैं। यह पूरा क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र है। यहाँ के लोगों की जीविकोपार्जन का मुख्य साधन कृषि ही है। नूर का पूरा नाम नूरा फिलिप है। वह इस छोटे से गाँव के मिशनरी काॅलेज में अध्यापन कार्य करती है। यद्यपि वह मुख्य शहर गोरखपुर के कैंट एरिया में रहती है। जहाँ ईसाई बाहुल्य आबादी निवास करती है। उसके साथ की अनेक अध्यापिकायें भी कैण्ट में ही रहती हैं। इस काॅलेज में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र कैण्ट से यहाँ पढ़ने आते हैं। कुछ छात्र शहर के अन्य हिस्सों से भी यहाँ पढ़ने आते हैं। छात्रों को शहर से विद्यालय लाने व घर छोड़ने के लिए काॅलेज की बसें चलती हैं। नूरा भी काॅलेज की बस से यहाँ आती है। मुख्य शहर से यहाँ आने के लिए कोई अन्य व्यवस्थित साधन नही है, अतः कालेज के छात्र व अधिकांशतः अध्यापिकायें भी यहाँ आने के लिए काॅलेज बस पर ही निर्भर हैं।

इसी बस से पिण्टो भी यहाँ पढ़ने आता है। वह भी कैण्ट में ही रहता है। उसका पूरा नाम पिण्टो पास्कल है। वह ग्यारहवीं कक्षा का छात्र है। गेहुँए रंग का लम्बा, ह्नृष्ट-पुष्ट पिण्टो प्रतिदिन बस में चढ़ते ही सर्वप्रथम नूरा को ’गुड मार्निंग’ कहना नही भूलता। नूरा के पश्चात् अन्य अध्यापिकाओं का अभिवादन करता। नूरा को प्रतीत होता कि वह अन्य अध्यापिकाओं की अपेक्षा उससे बातें करने में अधिक रूचि लेता है। नूरा इसे गुरू-शिष्य की आर्दश परम्परा के आगे की कड़ी मानती है। किन्तु इधर कई दिनों से नूरा को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पिण्टो उसकी तरफ आकर्षित हो रहा है। बस में बैठ कर लगातार उसकी तरफ देखना, बातें करने के अवसर ढूँढना, कोई भी आवश्यकता पड़ने पर नूरा की मदद के लिए तैयार रहना आदि अनेक ऐसी बातें हैं जिनसे नूरा यह सोचने पर विवश है।

आज इस सर्द सुबह काॅलेज के स्टाफ रूम की खिड़की के बाहर देखते हुए नूरा पुनः वही सोच रही है, जिसे कई दिनों से उसका मन-मस्तिष्क मंथन कर रहा था। उसे लगता है कि पिण्टो उसकी तरफ आकर्षित हो रहा है तो क्यों पिण्टो को देखते ही उसके हृदय की धड़कन भी असमान्य हो जाती है? क्या वह भी उसे को अच्छा लगने लगा है? जब भी वह नूरा के सामने वाली सीट पर बैठता है नूरा को अपलक देखता रहता है। बीच-बीच में अपनी दृष्टि उठा कर नूरा उसे देख लेती है। जब भी वह उसे देखती है उसे अपनी ओर देखते हुए पाती है। न जाने क्यों? न जाने किस सम्मोहन वश? नूरा से दृष्टि मिलते ही उसके चेहरे पर लालिमा दौड़ जाती है। नूरा उसके मनोभावों को समझती है। ठीक ऐसी ही मनःस्थिति आजकल नूरा की भी होती है। उसे देखते ही नूरा को ये क्या हो जाता है? क्यों उसे भी पिण्टो में आकर्षण दिखता है? पिण्टो नूरा से सम्भवतः दस-बारह वर्ष छोटा है। नूरा तीस बत्तीस वर्ष की महिला है। उफ्फ्! ये कैसा आकर्षण नूरा के हृदय में उत्पन्न हो रहा है। क्या ये ग़लत है। नूरा का मस्तिष्क कहता है ये ग़लत है, किन्तु हृदय......हृदय तो पिण्टो के आकर्षण में बँधता चला जा रहा है। टन.....टन.....टन.....घण्टी की ध्वनियों से नूरा के मस्तिष्क में उठ रहे विचारों का प्रवाह टूट जाता है। वह उठ कर क्लास रूम की तरफ बढ़ जाती है।

क्लास से वापस आ कर नूरा पुनः उसी स्थान पर बैठ जाती है। खिड़की से बाहर देखते हुए उसे विचार पुनः पिण्टो की स्मृतियों में उलझने लगते हैं। नूरा इस आकर्षण से दूर जाना चाहती है। इसीलिए वह आजकल चर्च में अधिक समय व्यतीत करने लगी है। कभी-कभी नन के वस्त्र भी धारण कर लेती है। उसे अपने इर्द-गिर्द एक अजीब से सन्नाटे की अनुभूति होती है। हृदय अकेलेपन का अनुभव करता है। वह इस पीड़ा से उबरना चाहती है। वह जानती है कि यह पीड़ा प्रभु ने उसके भाग्य में उस समय ही लिख दिया था जब वह नवयुवती थी। जीवन के पथ पर जार्ज के साथ आगे बढ़ रही थी। ’’ टन......टन.....टन..... पुनः वही स्वर घंटियों के। ’’

नूरा की तन्द्रा भंग हुई। वह जार्ज को स्मृतियों को दूर करने का असफल प्रयत्न करती है। इस समय नूरा की कक्षायें है। वह उठ कर अपनी कक्षाओं की तरफ चल पड़ती है। कक्षा में बैठ कर भी वह विचलित-सी रहती है। आज पुनः जार्ज उसकी स्मृतियों में आने लगा है बहुधा की भाँति।

नूरा फिलिप अपने बचनप की स्मृतियों को कभी विस्मृत नही कर पायी। वह उन्हें विस्मृत करना भी नही चाहती। उन्हीं बचपन की स्मृतियों में उसकी और जार्ज की यादें समाईं हुई हैं.........’’ वह और जार्ज गोरखपुर के एक मशनरी स्कूल में पढ़ते थे। तब वह सातवीं कक्षा की छात्रा थी। वह भी उसी काॅलेज में कक्षा नौ का छात्र था। उसका पूरा नाम था जार्ज रैम्सन। वह गौर वर्ण का , लम्बा व आर्कषक किशोर था। वो और जार्ज कब एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो गये उसे पता ही न चला। वो महज बचपन का आकर्षण नही था। धीरे-धीरे वे एक अटूट प्रेम के बन्धन में बँधते जा रहे थे। अबोध, मासूम, सरल प्रेम का बन्धन। मित्रों के समूह में खेलते-खेलते वे एक दूसरे के समीप आ गये, खेल में एक दूसरे का पक्ष लेने लगे। साथ पढ़ना, होम वर्क करना, एक दूसरे की सहायता को तत्पर रहना। उन्हंे यह भी नही ज्ञात था कि ये सब क्या है? इस आकर्षण का क्या नाम है? किशोरावस्था में यह उनके समझ से परे की बात थी।

युवावस्था के आगमन के साथ उन्हें परिवर्तित होती ऋतुएँ, बादल, बारिश, हवायें, चहचहाते पक्षी, वसंत, पुष्प, नवपल्लव सब कुछ.......पूरी प्रकृति भाने लगी थी। इस उम्र में एक अजब-सी अनुभूति का अनुभव वो कर रहे थे। जार्ज के साथ वो सब कुछ उसे और अच्छा लगता था।

उस वर्ष वह बारहवीं कक्षा में थी। मार्च का महीना था। हवाओं में एक खनक-सी व्याप्त हो रही थी। फागुनी बयार सम्पूर्ण सृष्टि में उन्माद का संचार कर रही थी। दिशाओं में अबीर-गुलाल-सा बिखरा पड़ा था। मार्च की एक सतरंगी शाम को उसने व जार्ज ने एक दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करने का संकल्प कर लिया। वह परियों की भाँति पंख लगा कर अंतरिक्ष में उड़ने लगी थी, क्षितिज से भी आगे। जार्ज भी उसका साथ पा कर अत्यन्त प्रसन्न था। दोनों मिल कर भविष्य के सुनहरे स्वप्न बुनने लगे थे। उस स्वप्न में वह जार्ज के साथ हर स्थान पर उपस्थित थी। उनके प्रेम के यह अनछुए स्वप्न सुगन्ध बन कर चारों तरफ फैलने लगे। काॅलेज में उनका प्रेम चर्चा का विषय बन था। उसे और जार्ज को यह बात बुरी भी नही लगती थी। उसने इण्टर की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। जार्ज भी शिक्षा पूरी करने के उपरान्त मिशनरी काॅलेज के कार्यालय में काम करने लगा था। उसे भली-भाँति स्मरण है वो दिन जब जार्ज उसे सायकिल पर बैठा कर अपने माँ-पिता से मिलवाने उसे अपने घर ले कर गया था। उस दिन वह बहुत डरी हुई थी। उसके मन में अनेक प्रश्न थे, अनेक शंकायें थी। सबसे बड़ी शंका तो यह थी कि जार्ज उससे अधिक आकर्षक था। वह साँवली-सी, साधरण दिखने वाली लड़की थी। जार्ज के माता-पिता इस साधारण-सी दिखने वाली लड़की को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करेंगे। जार्ज के मम्मी-पापा ने उसे न केवल पसन्द ही किया बल्कि पुत्रवधू के रूप में स्वीकार भी किया। वे नूरा को देख कर अत्यत प्रसन्न थे। नूरा जानती थी कि वह साँवले वर्ण, सामान्य कद की एक दुबली-पतली युवती है। जिसका व्यक्तित्व बहुत आर्कषक नही है। फिर भी जार्ज उससे प्रेम करता था यह नूरा का सौभाग्य। जार्ज आर्कषक व्यक्तित्व का स्वामी था उसे तो कोई भी लड़की पा कर अपने भाग्य पर गर्व करती, वह ये भी जानती थी कि आजकल के युवा विवाह के लिये लड़कियों के शारीरिक सौन्दर्य को महत्व देते हैं। शारीरिक सौन्दर्य के समक्ष उनके गुणों की अनदेखी करते हैं। जार्ज ने नूरा के गुणों को महत्व देते हुए उससे प्रेम किया व सहचरी के रूप में उसे स्थापित करने को भी तत्पर था। यह जार्ज के परिपक्व समझ का परिचायक था।

जार्ज अत्यन्त साधारण घर का लड़का था। उसके पिता एक छोटे-से चर्च में पादरी थे। उनका घर, उनका जीवन स्तर सब कुछ साधरण था, सरल था। नूरा को जार्ज का घर......उसके मम्मी-पापा......जार्ज से जुड़ी हर चीज पसन्द थी।

जार्ज के घर से लौटने के पश्चात् नूरा की प्रसन्नता कुछ और बढ़ गयी थी। घर आ कर वह इस अवसर की तलाश में रहने लगी कि किस प्रकार वह अपने मम्मी-पापा को स्वंय के व जार्ज के रिश्ते से अवगत् कराये। क्यों कि जार्ज के पापा ने उससे कहा था कि वह अपने घर में बात कर ले तो दोनों पक्ष के लोग आपस में मिल- बैठ कर यह रिश्ता तय कर लेंगे। एक दिन अपने माँ-पिता को प्रसन्नचित्त देख उसने जार्ज से अपने विवाह की इच्छा बता दी। उसकी बात ठीक से पूरी भी नही हो पाई थी कि उसके पापा मि0 सौमित्र फिलिप भड़क गये। कारण जातिगत् भेद-भाव का संकुचित दृष्टिकोण था। दोनों पक्ष ईसाई धर्मावलम्वी होते हुए भी उनमें उच्च और निम्न का भेद। यह सब नूरा फिलिप की समझ से परे था। मि0 फिलिप के अनुसार जार्ज निम्न जाति वर्ग का क्रिश्चयन है, अतः नूरा का विवाह जार्ज के साथ नही हो सकता ।

जार्ज को जब यह बात ज्ञात हुई तो वह सन्नाटे में आ गया। उसके चेहरे पर फैली उदासी से नूरा अनभिज्ञ न रह सकी। उसने इस विषय में अन्तिम निर्णय नूरा की इच्छा पर छोड़ते हुए कह दिया कि वह सदा नूरा के निर्णय में उसके साथ रहेगा। यद्यपि वे चाहती तो अन्य युवतियों की भाँति विद्रोह कर के माता-पिता की इच्छा के विपरीत विवाह का कोई अन्य मार्ग चुन सकती थी। किन्तु साहस की कमी नूरा में थी। नूरा ने ऐसा नही चाहा। नूरा की इच्छा का सम्मान करते हुए जार्ज भी पीछे हट गया। नूरा जार्ज की प्रेरणा व साहस न बन सकी। दोनांेे की इच्छायें, सपने पूर्ण होने से पूर्व ही उनके हृदय के साथ ही टूट गये।

नूरा ने शिक्षा आगे अनवरत् रखते हुए शिक्षिका का प्रशिक्षण पूर्ण कर लिया। समय अपनी ही गति से चलता रहा। ऋतुएँ भी आती-जाती रहीं। एक ऋतु जार्ज की स्मृतियाँ ले कर जाती तो दूसरी जार्ज की स्मृतियाँ ले कर आ जाती। प्रत्येक ऋतु जार्ज की स्मृतियों से ही तो जुड़ी थी। बारिश, बादल, वसंत, पतझण, पलाश प्रकृति का प्रत्येक रूप जार्ज के प्रेम की अनुभूतियों से सराबोर होता। नूरा जार्ज की स्मृतियों में डूबती-उतराती, रोती-सिसकती, पुनः हृदय पर पाषाण-सा बोझ ले कर जीने लगती।

उसके पापा ने अनेक जगहों पर उसके व्याह की बात चलाई, किन्तु बात पक्की न हो सकी। नूरा यह बात समझाती थी कि बात के सकारात्मक निर्णय पर न पहुचने का एक कारण उसका साधरण रंग-रूप का होना भी है।

समय व्यतीत होता जा रहा था। नूरा ने शहर से दूर इस मिशनरी काॅलेज में शिक्षिका की नौकरी कर ली। नूरा उम्र की सीढि़यां चढ़ती आगे बढने लगी थी। यद्यपि उसके पिता उसके विवाह के लिए अब भी प्रयत्नशील थे किन्तु नूरा की इच्छायें समाप्त हो चुकी थीं। शहर से इतनी दूर आ कर यहाँ काम करने का एक कारण यह भी था कि नूरा को वहाँ जार्ज बेहद याद आता था। वहाँ वह जार्ज को एक क्षण के लिए भी विस्मृत नही कर पाती थी। इन्ही कारणों से वह इस ग्रामीण क्षेत्र के मिशनरी काॅलेज में अध्यापन कार्य करने लगी। यह करने में उसे आत्मिक सुख प्राप्त होता। विशेषकर छोटे बच्चों के साथ उसे अवर्णनीय सुखद अनुभूति होती। बच्चे होते ही हैं बहते झरने के जल जैसे निर्मल, स्वच्छ। छल-द्वन्द,ऊँच-नीच के भेद-भाव से रहित। अनाथाश्रम के निर्धन, बेसहारा बच्चों के साथ उसके दिन व्यतीत होने लगे।

नूरा को यहाँ कार्य करते हुए चार वर्ष हो गये थे। तब उस वर्ष यहाँ के चर्च में राष्ट्रीय स्तर के धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम सप्ताह भर का था। उस कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिये देश-विदेश से अतिथि आए थे। इनमें पादरी, धार्मिक वक्ता, संगीतज्ञ इत्यादि लोगों के कार्यक्रम थे। नूरा इन कार्यक्रमसें में अपना पर्याप्त समय व सहभागिता दे रही थी। अचानक उसे कार्यक्रम में तीसरे दिन जार्ज दिखई दिया। वह जार्ज को अन्तराल के पश्चात् देख रही थी। जार्ज के साथ उसकी पत्नी भी थी। जार्ज को देखते ही नूरा की आखों से अश्रु बहने लगे। शरीर निर्जीव-सा हो गया। नूरा दिन भर रोती रही। जार्ज अपनी पत्नी संग कार्यक्रम में पूरे समय उपस्थित रहा। कितना आकर्षक लग रहा था वह। उसने नूरा से कुछ भी न पूछा, न ही नूरा ने उससे कोई बात की । नूरा सोचती रही कि काश! समय का पहिया पीछे की तरफ चलता। बीता समय वापस आ जाता। वह जार्ज को किसी और के पास न जाने देती। वह समाज के सभी बन्धनों को तोड़ कर जार्ज के साथ चल देती। आज उसमें इतना साहस है, किन्तु जब साहस की आवश्यकता थी, तब वह क्यों कमजोर पड़ गयी थी? यह अनुत्तरित प्रश्न उसका सर्वस्व ले कर चला गया। समय का पहिया पीछ की आर कब चला है भला....? चर्च के सभी कार्यक्रम सम्पन्न हो गये। जार्ज अपनी पत्नी संग प्रतिदिन उपस्थित होता रहा। कार्यक्रम समाप्त हुए जार्ज भी चला गया। नूरा वहीं खड़ी रह गयी जहाँ जार्ज उसे छोड़ कर गया था।

नूरा अब तीस-पैंतिस वर्ष की महिला है। वह जानती है कि प्रेम की यह अधूरी परिणति ही उसे पिण्टो या किसी अन्य के सांसारिक आर्कषणों में सम्मोहित करती है। है। मन की और कदाचित् शरीर की भी आदिम भूख उसे सदैव पथभ्रमित करते रहेंगे। वह उम्र की सीढि़या दर सीढि़या चढ़ती जा रही है, किन्तु जार्ज को इस जन्म में विस्मृत कर पाना असंभव है।

घड़ी ने समय को आगे बढ़ाते हुए घंटा बजाया है। इस समय नूरा की कक्षायें हैं। वह स्टाफ रूम की खिड़की के पास से उठ कर कक्षाओं की तरफ चल पड़ती है। क्लास में पहुच कर नूरा का हृदय विचलित-सा रहता है। वह जानती है कि उसके जीवन में जार्ज का स्थान कोई नही ले सकता। अब तो यौवन का आकर्षण भी चुक रहा है। सौन्दर्य व युवा शरीर की इच्छा रखने वाले समाज में ऐसा कौन होगा जो उसका हाथ थाम सकेगा? वह जानती है कि पिण्टो के प्रति उसका आकर्षण संसार की दृष्टि में अनैतिक और शरीर की आदिम भूख मिटाने के अतिरिक्त और कुछ भी नही। किन्तु नूरा इतनी निकृष्ट और स्वार्थी नही होगी। वह पिण्टो को समझा कर उसे स्वंय से दूर कर देगी। उससे कहेगी कि वह भी अपनी दुनिया बसा ले जार्ज की भाँति। वह जीवित रह लेगी। अपना जीवन चर्च के अनाथाश्रम में पलने वाले अनाथ बच्चों की सेवा में समर्पित कर देगी। प्रभु के बताये परोपकार के मार्ग पर चलेगी। वह जार्ज और पिण्टो को विस्मृत कर देना चाहती है। वह नन बनना चाहती है। वह मात्र नन के वस्त्र ही धारण नही करेगी, बल्कि हृदय से भी नन बनेगी। त्याग व सेवा की प्रतिमूर्ति नन...। समस्त जगत् उसका अपना होगा।

इस समय कक्षा में बैठ कर उसका विचलित हृदय असीम शान्ति का अनुभव कर रहा है। उसने अपने दोनों नेत्र बन्द कर लिए है। हृदय में प्रभु प्रेम का प्रकाश फैलता जा रहा है......समस्त सृष्टि उसमें आलोकित हो रही है। नूरा उस प्रकाश में डूबती जा रही है......समाती जा रही है......।

नीरजा हेमेन्द्र