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रहस्यमयी टापू--भाग (१४)

रहस्यमयी टापू--भाग (१४)..!!

सुवर्ण ने सभी लोगों से सलाह ली और सभी लोंग राजा विक्रम की सहायता करने के लिए तैयार हो गए, सुवर्ण ने विक्रम को उठाकर उसे पानी पिलाया और अघोरनाथ जी ने कुछ जंगली जड़ी बूटियां खोजकर विक्रम के घावों पर लगा दीं, जिससे विक्रम अब पहले से खुद को बेहतर महसूस कर रहा था।।
अब सब निकल पड़े उस मैदान की ओर जहां वो राक्षस तहखाने में रहता था, सभी उस मैदान को पार करते जा रहे थे, चलते चलते रात हो गई ,रास्तें मे एक बहुत बड़ा तालाब मिला,उस तालाब के किनारे एक पीपल का बहुत बड़ा पेड़ था,सबने उसी जगह पर विश्राम करने का इरादा किया और सब पेड़ के नीचे सो गए, तभी अचानक रात को बकबक के ऊपर कुछ लिसलिसा सा गरम गरम सा पदार्थ गिरा,वो चटपटा कर उठ बैठा और उसने ऊपर की ओर देखा तो दो चुड़ैलें, पेड़ से उलटी लटकी हुई थीं और उनके मुंह से लार टपक रही थी, उनके सिर के बाल इतने बड़े थे कि उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था,उन भयानक चुड़ैलों को देखकर बकबक की चीख निकल गई,बकबक की चींख सुनकर सब जाग गए, तभी वो चुड़ैलें हवा में गोल गोल घूमती हुई,धम्म की आवाज के साथ नीचे आकर उन सब के सामने खड़ीं हो गई,सब बुरी तरह डर गए।।
लेकिन तभी उस समय सुवर्ण ने अपना दिमाग चलाया,जो जादू उसे आता था उसका इस्तेमाल किया
उसने दोनों चुड़ैलों को जादुई शक्ति से जमीन पर गिरा दिया और फुर्ती के साथ बारी बारी से मुट्ठी में बालों को भरा और काट दिया, दोनों के बाल कट जाने पर वो खूबसूरत पंखों वाली परियों में परिवर्तित हो गई, दोनों से एक सफेंद रोशनी आ रही थीं जिससे आसपास का वातावरण जगमग हो रहा था।।
सुवर्ण ने उन दोनों से पूछा__
कौन हो तुम दोनों?
उनमें से एक ने जवाब दिया__
हम दोनों बहनें हैं,इसका नाम स्वरांजलि और मेरा नाम गीतांजली हैं,हमारा भी एक खुशहाल परिवार था,हमारे परिवार मे हम दोनों जुड़वां बहने ,एक भाई भी हैं, मां पिताजी नहीं रहें, हमें जादूगर शंखनाद ने अपने जादू से चुड़ैल बना दिया था,उसनें कहा था कि अगर कोई तुम्हारे बाल काट देगा तो तुम दोनों अपने असली रूप में आ जाओगी लेकिन मेरी वजह से इधर कोई भी नहीं आ सकता इसलिए तुम लोग सदा के लिए ही चुड़ैले बनी रहोगी और इतना कहकर वो चला गया।।
और तुम्हारा भाई कहां हैं? अघोरनाथ जी ने पूछा।।
उसे शंखनाद ने एक राक्षस बना दिया हैं, उससे जो वो भी कहता है हमारा भाई वही करता है,उसनें उसे गुलाम बनाकर तहखाने मे रखा है, जब भी वो उसे आदेश देता है तो हमारा भाई सुंदर लडकियों को अगवा कर लेता हैं,उनमें से एक ने उत्तर दिया।।
और उन लडकियों को क्यों अगवा किया जाता हैं, कुछ बता सकती हो,क्योंकि मेरी बहन को उसने अगवा किया हैं,राजा विक्रम बोले।।
हां,यकीन के साथ तो नहीं कह सकती लेकिन वो उन लडकियों को मारकर उनकी त्वचा से एक तरह का पदार्थ बनाता हैं जिसे वो अपनी त्वचा पर लगाता हैं तभी इतनी उम्र हो जाने के बाद भी वो बूढ़ा दिखाई नहीं देता,गीतांजलि बोली।।
लेकिन हम उस राक्षस का सामना कैसे करेगें, कुछ ना कुछ उपाय तो होगा आपलोगों के पास,सुवर्ण ने पूछा।।
अभी तो रात हैं,सुबह इस समस्या का समाधान करते हैं, सुबह मैं आप लोगों को कुछ चीज दूंगी जिससे हमारा भाई अपने पहले वाले रूप मे वापस आ जाएगा, स्वरांजलि बोली।।
और फिर सब विश्राम करने लगे लेकिन फिर सारी रात अघोरनाथ जी सो नहीं पाए,उन्हें स्वरांजली और गीतांजली पर भरोसा नहीं था,उन्हेँ ये डर था कि ऐसा ना हो रात को फिर दोनों चुड़ैले बनकर सबको हानि पहुचाएं।
और उनकी इस शंका को बकबक भलीभांति समझ गया था,तीसरा पहर लगने को था तभी बकबक अघोरनाथ जी से बोला___
बाबा! अब आप थोड़ी देर के लिए विश्राम कर लीजिए,मुझे पता है आप रात भर सोए नही है।।
कैसे सो जाऊ?बकबक बेटा!! जब अपनी ही बेटी गलत राह पर चलकर,दूसरों के खून की प्यासी हो जाए तो इस अभागे बाप को नींद कैसे आ सकती हैं, अघोरनाथ जी बकबक से बोले।।
कोई बात नहीं बाबा!!अब शायद यही नियति थी,पहले आप सारी चिंताएं छोड़कर आराम करने की कोशिश कीजिए, फिर सोचते हैं कि क्या करना है, बकबक ने अघोरनाथ जी से कहा।।
और अघोरनाथ जी ने अपनी बांह की तकिया बनाई और सो गए।।
सुबह हो चुकी थी,सूरज की लाली ने आसमान को घेर लिया था,पीपल के पेड़ पर चिड़ियाँ चहचहा रहीं थीं,सबने देखा की तालाब मे बहुत से कमल के फूल खिले हुए हैं, बकबक और नीलकमल छोटे बच्चों की तरह कमल तोड़ने चल पडे़ लेकिन स्वरांजलि मना करते हुए बोली___
ये एक जादुई तालाब हैं और ये सारें कमल भी जादुई हैं, जो भी इन कमल को हाथ लगाता हैं पत्थर का बन जाता हैं,तभी स्वरांजलि ने ताली बजाई और एक हंस वहां प्रकट हुआ___
स्वरांजलि बोली, मुझे एक कमल चाहिए, एक कमल तोड़कर दो ताकि उसे स्पर्श करके हमारा भाई पुन: अपने रूप मे वापस आ सकें।।
और हंस ने अपनी चोंच के द्वारा एक कमल तोड़कर स्वरांजली को दिया और गायब हो गया, स्वरांजलि वो फूल अघोरनाथ जी को देते हुए बोली, आप इन सबमें सबसे बुजुर्ग हैं और मुझे आशा हैं कि आप अपने कर्तव्य का निर्वहन भलीभाँति करेगें,आप हमारे पिता के समान हैं।।
अघोरनाथ जी ने प्यार से स्वरांजलि के सिर पर हाथ रखते हुए कहा जीती रहो बेटी, काश मेरी बेटी भी तुम दोनों की तरह अच्छी होतीं।।
तब गीतांजलि ने पूछा, ऐसा क्यों कह रहें हैं आप?
तब नीलकमल ने स्वरांजलि और गीतांजलि को सारी कहानी कह सुनाई।।
स्वरांजलि और गीतांजलि अपने परीलोक वापस चली गई और अब सब अपने गंतव्य की ओर निकल पडे़, शाम होते होते सब उस तहखाने तक पहुंच गए जहाँ वो राक्षस रहता था।।
तब बकबक बोला,पहले मैं जाता हूं और अगर सब ठीक रहा तो मैं चिड़िया की आवाज निकालूँगा तब आप सब अंदर आ जाना।।
सब बकबक की बात पर रजामंद हो गए, बकबक तहखाने के अंदर पहुंचकर दो चार कदम चला,फिर उसनें सोचा अब साथियों को बुला लेना चाहिए और उसनें चिड़िया की आवाज़ निकालनी शुरु कर दी।।
चिड़िया की आवाज़ सुनकर, सबने अंदर जाने का सोचा और सब तहखाने के भीतर घुस पडे़, अंदर सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था।।
सब अंदर की ओर धीरे धीरे बढ़ रहे थे, आगे बकबक भी उन्हें मिल गया और सब साथ मे चल पडे़,जैसे जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे, वैसे वैसे अंधेरा और भी बढ़ता जा रहा था,तभी उन सब को किसी के लड़की के कराहने की आवाज़ आई,सब उस ओर गए तब बकबक बौने ने सबसे कहा___
ठहरों,मेरे पास एक नागमणी हैं, जो कभी मेरे पिताजी ने मुझे दी थी,उन्होंने कहा था कि जब तुम किसी की सहायता करना चाहोगे तब इसका इस्तेमाल करना और बकबक ने एक छोटी सी पोटली निकाली,उसके धांगों को जैसे ही सरकाया,पोटली खुली उसमें से एक सफेद रोशनी निकलती हुई दिखी,बकबक ने उसे अपनी हथेली पर रखा तो चारों ओर रोशनी ही रोशनी फैल गई, अब अंधेरा नहीं था और सबको साफ साफ दिखाई दे रहा था,वो सब उस कराहने वाली लड़की के पास पहुंचे, देखा तो वो एक सलाखों वाले कमरें मे बंद थीं__
बकबक ने उससे पूछा___
कौन हो तुम?
मैं पुलस्थ राज की रानी सांरन्धा हूं, इस राक्षस ने मुझे कै़द करके रखा हैं और भी लडकियों को कैद़ किया हैं,अभी शायद किसी राजकुमारी को अगवा किया हैं, उसके चीखने की आवाज़ आ रही थी।।
हां...हांं शायद वो मेरी बहन संयोगिता हैं, राजा विक्रम बोले।।
तभी,राजकुमार सुवर्ण ने पूछा, वो राक्षस कहाँ हैं?
वो अभी तहखाने से बाहर गया हैं,रानी सारन्धा बोली।।
तब तो ये बहुत अच्छा मौका है, सारी लड़कियों को छुडा़ने का,मानिक चंद बोला।।
हां,एकदम सही कहा, बकबक भी बोला।।
और सब एक एक करके सारी लड़कियों की सलाखें और बेड़ियां तोड़कर उन्हें बाहर निकालने लगे,तभी विक्रम को अपनी बहन संयोगिता भी मिल गई___
भइया!!आप आ गए, मुझे पता था कि आप जरूर आएंगे, संयोगिता अपने भाई विक्रम के गले लगते हुए बोली।।
सारी लड़कियों को निकालने के बाद सब तहखाने से बाहर आने लगे,सबसे आगे राजा विक्रम और बकबक थे ,बीच मे सारी लडकियाँ और सबसे पीछे राजकुमार सुवर्ण और मानिक थे,जैसे ही सब तहखाने से बाहर निकले,बकबक ने नागमणी पोटली मे रखी और अपनी कमर मे खोंस ली।।
सब थोड़ी दूर चले ही थे कि वहां राक्षस आ पहुंचा, उसने सब पर हमला करना शुरु कर दिया, तभी राजा विक्रम अपनी तलवार लेकर आगे बढ़े लेकिन राक्षस ने उन्हें भी हवा मे उछाल दिया,अब सुवर्ण भी अपनी तलवार लेकर आगे आया लेकिन राक्षस का वार वो भी नहीं सह पाया, तभी बकबक बोला,सुवर्ण उड़ने वाले घोड़े का इस्तेमाल करो,लेकिन जैसे ही सुवर्ण ने वो घोड़े वाला ताबीज हाथों मे लिया,राक्षस ने सुवर्ण पर जोर का वार किया और वो ताबीज सुवर्ण के हाथों से दूर जा गिरा।।
अब बात बेकाबू देखकर अघोरनाथ जी आगे आए,उन्होंने अपनी पोटली मे से जादुई कमल निकाला और कुछ मंत्र पढ़े और हवा में उड़ते हुए, राक्षस के सिर पर वो जादुई कमल गिरा दिया,जिससे वो राक्षस एक मानव में परिवर्तित हो गया।।
सभी को ये देखकर बहुत आश्चर्य हुआ और उस राक्षस से परिवर्तित मानव ने सबसे क्षमा मांगी और बोला__
मै परी देश का राजकुमार सुदर्शनशील हूं,माफ करना, मेरी वजह से आपलोगों को बहुत परेशानी हुई, मैं परीलोक वापस जाना चाहता हूँ,अब लोग मेरी थोड़ी सहायता करें तो आपलोगों की बहुत कृपा होगी।।
बकबक ने कहा, मैं तुम्हें अपने घोड़े पर तुमको छोड़कर आता हूं।।
और बारी बारी से बकबक ने सभी लड़कियों और सुदर्शनशील को उनके निवास स्थान पर पहुंचा दिया,रानी सारन्धा बोली लेकिन मैं तो आप लोगों की सहायता के लिए आप लोगों के साथ चलूँगी,आप लोगों ने भी तो मेरी सहायता की हैं,रानी सारन्धा की बात सुनकर राजा विक्रम भी बोले, कृपया आपलोग मेरी बहन संयोगिता को मेरे राज्य छोड़ आए और बकबक ने विक्रम की बात मानकर संयोगिता को उसके राज्य छोड़ दिया और संयोगिता को बकबक छोड़कर वापस आ गया फिर सभी शाकंभरी की सहायता करने निकल पडे़।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा__


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