Hostel Boyz (Hindi) - 15 Kamal Patadiya द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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Hostel Boyz (Hindi) - 15

प्रकरण 21 : P.G.D.A.C.A. College ग्रुप

मैं अपने कॉलेज के ग्रुप की थोड़ी बातें शेयर करना चाहता हूं। हमारा नसीब बहुत ही अच्छा था की हॉस्टल के ग्रुप के जैसा ही मुझे कॉलेज का ग्रुप मिला था। हम लोगो ने साथ में कहीं यादगार लम्हे बिताए थे। हमारे क्लास में 30-32 boys और 8-10 girls थी। हमारे कोलेज के ग्रुप में एक यूनिटी थी। अगर ग्रुप में से किसी एक को भी कोई प्रॉब्लम होती थी तो हम सब एक होकर उस प्रॉब्लम का सामना करते थे। ग्रुप में सूर्यो टको, धमो, पंकज, आशीष, गोटी, भट्टी, मिलिंद, हेमल, अमरीश, मुस्तांशीर आदि मुख्य थे।

सूर्यो टको : सूर्यो टको पालनपुर का प्राणी था। पालनपुर वालो में जन्म से ही लीडरशिप के गुण होते हैं क्योंकि हमारे हॉस्टल का मॉनिटर भी पालनपुर का था। सूर्या टका का पूरा नाम सुरेश था लेकिन english movie में हीरो लोग जैसे टकला रखते थे वैसे ही चमकता टकला सुरेश रखता था इसलिए हम सब ने उसका नाम सूर्यो टको रख दिया था। लीडरशिप के गुणवाला, हमेशा हंसता हुआ चेहरा, स्पष्ट वक्ता, निखालस, ऊर्जा और उत्साह से भरपूर। सूर्या टका कॉलेज के कामों के लिए हमेशा आगे रहता था। वह हमारा engine था और हम सब उसके डिब्बे।
धमो : चेहरे पर हमेशा स्माइल और attitude से भरा हुआ व्यक्तित्व, धमा की फेवरेट गेम वॉलीबॉल थी।

आशीष : आशीष का व्यक्तित्व एकदम सौम्य, शांत एवं समझदार था।

पंकज : होशियार, चतुर, नटखट और चेहरे पर मुस्कान है, यह ही है पंकज की पहचान। धमो, आशीष, पंकज और मिलिंद को जब भी मौका मिलता था तो वह वॉलीबॉल खेलते रहते थे। गोटी, भट्टी, मिलिंद, हेमल, अमरीश, मुस्तांशीर सरल एवं समझदार व्यक्तिए। हमारे क्लास में सब लोग 3-3 4-4 के ग्रुप में फैले हुए थे।

हमारे ग्रुप में धर्म, जात, पात के कारण कभी भी भेदभाव नहीं होता था। गुजरात के अलग-अलग शहरों से आए सब लोग दूध में शक्कर की तरह मिल गये थे। लड़कीयां भी हम लोगों से बहुत घूल मिल गई थी। हमारे ग्रुप में कभी भी झगड़े और लफड़े नहीं हुए थे क्योंकि ग्रुप में ज्यादातर लोग सरल, समझदार और mature थे।

प्रकरण 22 : कॉलेज के शुरुआती दिन

ऐसे देखा जाए तो, कॉलेज के शुरुआती दिन आनंद के दिन होने चाहिए लेकिन हमारे शुरुआत के दिन आंदोलन के दिन थे।
हम जब धोराजी में कॉलेज कर रहे थे तब ग्रेजुएशन कर रहे थे ऐसा कुछ लग ही नहीं रहा था। हमारे कॉलेज के ग्राउंड में भैसे बंधी होती थी। छात्रों को कॉलेज आना हो तो आते थे वरना उसकी हाजरी हो जाती थी। कोई भी चीज फरजियात नहीं थी, ऐसा लगता था कि हम लोग कॉलेज में नहीं 6th या 7th standard में पढ़ रहे थे। notes और assignment लिखने की कोई झंझट नहीं थी। ना तो कोई तपास करने वाला था, ना ही कोई समझाने वाला। वैसे तो हमारे कॉलेज के प्रिंसिपल और प्रोफेसर अच्छे थे लेकिन हम लोगों ने कब ग्रेजुएशन खत्म कर दिया, हमको भी पता नहीं चला।
हम जब post graduation करने के लिए राजकोट की कॉलेज में आए तब हमें अपेक्षाएं थी के कम से कम यहाँ पे कॉलेज जैसा environment हमको मिलेगा लेकिन हमारी अपेक्षाएं विफल हो गई थी।

हमारे PGDACA क्लास की शरुआत हुई तब कॉलेज का बिल्डिंग नया बन रहा था इसलिए हमारे क्लास में बेंच और बोर्ड के अलावा और कोई फैसिलिटी नहीं थी। हमारे क्लास में fan, tube light भी नहीं थी और प्रोफेसर भी पढ़ाने नहीं आते थे। हमने कॉलेज के प्रशासन से इस बारे में बात की लेकिन वह हमारी तरफ ध्यान नहीं दे रहे थे फिर क्या था जैसे शिवजी अपना तीसरा नेत्र खोलते हैं, वैसे ही हम ने गुस्से में अपना तीसरे नेत्र खोल दिया। अजगर जैसे कॉलेज के प्रशासन को जगाने के लिए हमने कॉलेज के क्लास रुम के glasses तोड़ दिए, नोटिस बोर्ड तोड़ दिया, कॉलेज में धमाल मचाना शुरू कर दीया और प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए आंदोलन छेड़ दिया।

कॉलेज प्रशासन की ओर से हमको धमकियां मिलने लगी लेकिन हम लोग पीछे हटने वालो में से नहीं थे। बाद में कॉलेज के प्रशासन ने प्रोफेसरों की नियुक्ति की लेकिन वह प्रोफेसर BCA और MCA में पढ़ते थे तो वह हमको क्या पढ़ा सकते थे? कभी कभी हम उनको प्रोग्राम सिखाते थे। इसलिए हम लोगों ने फिर से क्लास का बहिष्कार कर दिया और हम लोग आपस में एक दूसरे को पढ़ाने लगे। मैं और दो-तीन लोग पहले से ही प्राइवेट क्लासेस में प्रोग्रामींग शीख के आए थे। इसलिए हम को जितना आता था हम सब लोग एक दूसरे से शेयर करने लगे थे। कॉलेज प्रशासन ने हमारे क्लास को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन हम सब लोग उसके सामने झुकने के लिए तैयार नहीं थे। हमारी सिर्फ एक ही मांग थी कि हमको experience प्रोफेसर चाहिए जो हम को पढ़ा सके। बाद में कॉलेज प्रशासन ने experience प्रोफेसरों की नियुक्ति की फिर हमने अपना आंदोलन खत्म किया।

क्रमश: