अनकहा अहसास - अध्याय - 34 - अंतिम भाग Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • नज़रिया

    “माँ किधर जा रही हो” 38 साल के युवा ने अपनी 60 वर्षीय वृद्ध...

  • मनस्वी - भाग 1

    पुरोवाक्'मनस्वी' एक शोकगाथा है एक करुण उपन्यासिका (E...

  • गोमती, तुम बहती रहना - 6

                     ज़िंदगी क्या है ? पानी का बुलबुला ?लेखक द्वा...

  • खुशी का सिर्फ अहसास

    1. लालची कुत्ताएक गाँव में एक कुत्ता था । वह बहुत लालची था ।...

  • सनातन - 1

    (1)हम लोग एक व्हाट्सएप समूह के मार्फत आभासी मित्र थे। वह लगभ...

श्रेणी
शेयर करे

अनकहा अहसास - अध्याय - 34 - अंतिम भाग

अध्याय - 34

रमा बेटा तुम ठीक हो। उसके पिता ने पूछा।
हाँ पापा बहुत दर्द हो रहा है। रमा कराहते हुए बोली।
ठीक हो जाएगा बेटा, हम सब यहीं है। तुम सोने की कोशिश करो।
जी पापा। वो कराह रही थी।
एक बात कहूँ बेटा।
जी...............।
मुझे तुम पर गर्व है।
रमा की आँखें भर गई और आँसू की एक बूँद लुढ़क कर आँख के कोने से नीचे गिर गई।
सो जाओ बेटा। और वो सो गई।
सुबह जब आँख खुली तो सामने स्टूल पर अनुज बैठा था। अब वो थोड़ा ठीक महसूस कर रही थी।
अनुज उसे देखकर मुस्कुराया।
रमा ने मुँह फेर लिया।
नाराज हो मुझसे। अनुज ने पूछा।
रमा ने कोई उत्तर नहीं दिया।
अच्छा लो ठीक है दवाई खा लो। वह हांथ में दवाई और पानी लेकर सामने आ गया। रमा ने उसकी ओर देखा। वो अब भी मुस्कुरा रहा था। वो उठने की कोशिश करने लगी पर उसे बहुत दर्द हो रहा था।
अनुज ने उसे सहारा देकर तकिए के सहारे बैठाया, अनुज के छूने से वो एकदम काँप गयी। उसकी सांस गहरी हो गई।
अनुज ने उसे दवाई दी।
तुम तो बड़ी बहादुर लड़की हो यार। तुमने मुझे कभी बताया नहीं कि तुम्हें बंदूक वाली गोली खाने का भी शौक है।
मैं क्यूँ खाऊँगी बंदूक की गोली। तुम्हीं खाओ ?
हाँ तो फिर क्यों आई तुम मेरे सामने।
जाने देती मेरे सीने में गोली को। अनुज बोला।
यूँ ही इंसानियत के नाते। रमा मुँह फेर ली।
और तुम्हें कुछ हो जाता तो। मेरा क्या होता ?
किसके सहारे मैं जीता, कभी सोचा है ?
तो तुम भी क्यों आए थे मुझे बचाने के लिए ? रमा पूछी।
मैं तो तुमसे मोहब्बत करता हूँ इसलिए।
तो मैं भी तो तुमसे मोहब्बत करती.................।
आगे वो बोलने से रूक गई। ये अचानक कैसे निकल गया उसके मुँह से। उसने अपना माथा पीट लिया।
क्या कहा तुमने। फिर से बोलो ?
वो.............मैंने......... कुछ नहीं। वो मारे शर्म के अपनी नजरें नहीं उठा पा रही थी।
नहीं, नहीं, अभी तुमने मुझसे कहा कि तुम मुझसे मोहब्बत करती हो। कहा कि नहीं ? अनुज जोर से बोला।
मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा बोलकर वो पलटने की कोशिश करने लगी, और कराह उठी।
डॉक्टर ने तुमको मना किया है ना हिलने डुलने के लिए। फिर क्यों होशियारी दिखाती हो, चलो सो जाओ।
दो तीन दिन में वो थोड़ी कम्फर्टेबल हो गई थी। तो उसे प्राइवेट रूम में शिफ्ट कर दिया गया था। रात को उसे वाशरूम जाना था। उसने अपनी माँ को आवाज दी पर वो सुनी नहीं, परंतु अनुज उठ गया।
क्या हुआ, कोई प्राबलम है ? अनुज बोला।
कुछ नहीं मुझे बस वो वाशरूम यूज करना है।
थोड़ी मदद करोगे प्लीज। या तो माँ को उठा दो।
उन्हें सोने दो। मैं मदद कर देता हूँ। उसने उसे सहारा देकर उठाया और वाशरूम तक ले गया।
मैं यहीं बाहर हूँ तुम अंदर हो आओ। वो अंदर गई परंतु हॉस्पिटलवाले कपड़े उतारने में अपनी मदद नहीं कर पा रही थी।
सुनो अनुज मैं ये कपड़े उतार नहीं पा रही हूँ, क्या तुम माँ को जगा दोगे।
अरे यार मैं खोल देता हूँ ना। इसमें क्या दिक्कत है।
तुम ? ? ?
हाँ मैं भई। तुम्हारा होने वाला पति हूँ।
किसने कहा। मुझे नहीं करनी तुमसे शादी-वादी,अकड़ू कहीं के। रमा बोली।
अच्छा ठीक है मत करना। अभी तो मदद करने दो मैं अपनी आँखे बंद रखूँगा।
मुझे तुम पर भरोसा नहीं है। रमा बोली।
भरोसा जाए चूल्हे में। वो अंदर आ गया।
बाथरूम कर लो नहीं तो कपड़े भी खराब कर दोगी। कहकर उसने रमा का पैंट खोल दिया। रमा हिचकिचाते हुए रिलैक्स हुई।
अनुज ने फिर से पैंट चढ़ाया और सहारा देकर उसे बिस्तर पर ले आया।
अब बताओ भरोसा हुआ कि नहीं।
मैंने कहा ना मुझे नहीं करनी तुमसे शादी।
देखो अगर नहीं मानोगी तो उठाकर ले जाऊँगा, बता रहा हूँ।
हिम्मत है तुममें। बड़े बहादुर बनते हो। मुझे छूकर तो दिखाओ।
यह सुनते ही अनुज उठा ओर उसके होंठों पर अपने होठ रख दिया।
रमा उसको पुश करने की कोशिश की पर वो पीछे हटने के लिए तैयार ही नहीं हुआ, हारकर रमा ने अपने आप को ढीला कर दिया। वो एकदम खो गई। फिर जब उसने अपनी आँखे खोली तो अनुज कमरे से जा चुका था। वो मुस्कुराकर सो गई।
अगले दो तीन दिन अनुज नहीं आया। पूरा काम उसकी माँ ही करती थी।
उसे अनुज की थोड़ी चिंता होने लगी। फिर एक दिन शाम को अचानक मधु आई। आते ही वो बोली।
हेलो रमा। अब कैसी है तबियत तुम्हारी ?
ठीक हूँ मधु। अनुज कहाँ है अचानक दो तीन दिन से आना बंद कर दिया है। रमा ने पूछा।
चिंता हो रही है भैया की ? मधु छेड़ते हुए बोली।
अरे नहीं। ऐसी कोई बात नहीं है। वो शर्माते हुए बोली।
देखो आज डिस्चार्ज होकर तुम मेरे साथ चलोगी। आँख बंद करके और वो भी बिना पूछे। बस मेरे कहने पर ये साड़ी पहनोगी ?
ये वही साड़ी थी जो अनुज ने उसे दी थी। रमा ने देखकर मुस्कुरा दिया।
ठीक है।
चलो फिर मैं तैयार कर देती हूँ तुमको। मधु बोली और उसको तैयार करने लगी।
तैयार होकर सभी लोग गाड़ी में आकर बैठ गए। मधु ने उसकी आँखों में पट्टी बाँध दी थी।
गाड़ी रूकी तो मधु ने रमा को ऊतारकर एक जगह पर बिठाया, और जैसे ही मधु ने उसकी
पट्टी हटाई, वो एकदम चैंक गई। ये एक भव्य शादी का मंडप था। हाँल खचाखच भरा हुआ था। अनुज की माँ, रमा के मम्मी पापा, शेखर, आभा, माला, कॉलेज का पूरा स्टाफ, रिलेटिव्स सभी लोग ताली बजाने लगे। शांत माहौल अचानक गूंज गया। बगल में उसने देखा, अनुज मुस्कुराते हुए दूल्हे के ड्रेस में बैठा हुआ था। मैंने कहा था उठाकर ले जाऊँगा। देखा तुमको ले आया ना ? अब बताओ शादी करोगी कि नहीं मुझसे।
रमा मुस्कुराकर हाँ में सिर हिलाई और नजरें नीची कर ली।
पंडित जी मंत्र शुरू करिए।
पंडित जी ने चालू किया और चारों ओर से फूल बरसते ही फिजा महक गई। अब हर जगह सिर्फ खुशबू बिखर रही थी।

00000000000000000
00000000000000000

समाप्त।।।।

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपयासि पढ़कर समीक्षस अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप।



भूपेन्द्र कुलदीप राज्य विश्वविद्यालयीन सेवा के प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी हैं। वे शिक्षा विभाग, छत्तीसगढ़ शासन के अंतर्गत उपकुलसचिव के पद पर वर्तमान में हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग में पदस्थ हैं। यह कृति बोलचाल की भाषा में लिखी गई है। अतः आप अपना मूल्यवान सुझाव व समीक्षा उन्हें bhupendrakuldeep76@gmail.com पर प्रेषित कर सकते हैं। जिससे अगली कृति को बेहतर ढंग से लिखने में सहयोग मिले।