कोई कैसे हार सकता है प्रेम में। books and stories free download online pdf in Hindi

कोई कैसे हार सकता है प्रेम में।

मैं एक दिन किताब पढ रही थी, तभी मेरा एक दोस्त मेरे पास आया और बोला की यार एक परेशानी है। मैने कहाँ की अच्छा बताओ क्या तकलीफ है तुम्हें।

बोला की... मैं प्रेेममें हार गया हूँ जिसे चाहा उसने मुझे ठुकराया। मैं पूरी तरह से निरााश हू।
मैने कहाँ क्या में तुम्हें रिलेशनशिप एक्सपर्ट लगती हु?

बोला की मुझे लगता है कि तुम मुझे कुछ ऐसा बताओ जिसे मेरा मन शांत हो जाए। मुझे पता है कि तुझे आज तक मुहब्बत नहीं हुई लेकिन तूम जानती हो कि एक इंसान जब प्यार में होता है तब तक तो ठीक है लेकिन जब दिल तुटता है तब कैसा लगता है। तुम किताबें लिखती हो यब तो तुम इन सारी बातो पर गोर करती होगी।


मैंने कहाँ, हा सारी बातो पर गोर करना जरुरी हैं, लेकिन किताब में और असली दुनिया में बहुत फ़र्क है। मैं तुम्हें जो भी कहूंगी वह मेरा एक्सपिरीयन्स तो नहीं है। वह सिर्फ कल्पना होती है।

लेकिन मुझे तो सब असली लगता है। मतलब जब भी तुम्हारी किताब पढता हू तब लगता है तूम अपना दिल निकाल के रख दिया है। कुछ तो बनाओ ऐसा क्यु होता है की एक टाइम पर वह इंसान जान छीडकता है और दूसरे ही पल......


ठीक है देखो... तुम गलत कह रहे हो। तुम अहंकार से पराजित हुए हो। प्रेम को तुम कैसे जानोगे? और जिसने भी जाना है, ऐसा तो नहीं है कि वह प्रेम में हारे ही नहीं है। क्योंकि प्रेम कोई उपाय नहीं है हराने का। तुमने किसी को प्रेम किया, वह तुम्हारा हक था। उसने स्वीकार किया या नहीं यह उसका हक है। तुम्हारे प्रेम करने को कहाँ रुकावट है?
तूम चाँद को प्रेम करते हो, इसका मतलब यह थोड़ी है, की चाँद को जेब में रखना पड़ेगा तभी प्रेम जाहिर होगा। तुम फूलो को प्रेम करते हो इसका मतलब थोड़ी ही है की उनको तोड़ कर ओर गुलदस्ता बनाना पड़ेगा तभी प्रेम जाहिर होगा।

मतलब की प्रेम कोई व्यवहार नहीं है।

बिलकुल नहीं है। प्रेम तो तुम किसी से भी कर सकते हो। यह तुम्हारा प्रेम है। कोई तुमसे प्यार करने से नहीं रोक सकता। वो तुमसे प्यार करती है या नहीं यह सवाल रहने दो। यह सवाल करो की क्या तुम उसे चाहते हो? अगर हा तो फिर हारने की कोई बात ही नहीं है। समझ लो अगर तुम प्रेम करते हो तुम कभी हार नहीं सकते।

प्रेम दुसरो की आँखों में अपने को देखना है। दूसर कोई उपाय नहीं है। जब किसी की आंखें तुम्हारे लिए आतुरता से भरती है, कोई आंख तुम्हें ऐसे देखती है कि तुम पर सबकुछ न्योछावर कर दे तब तुम प्रेम में हो। तब तुम्हें पहेली बार लगता है कि तुम सार्थक हो। तुम कोई आकस्मिक संयोग नहीं हो। तुम कोई दुर्घटना नहीं हो। तुम्हें पहेली बार प्रेम अर्थ का बोध होता है।

लेकिन ऐसा जरुरी तो नहीं हैं कि यह दोनों तरफ से एक ही जैसी भावनाएं हो?

फिर तो तुम प्रेम को अपने प्रेम से ज्यादा जानते ही नहीं हो। प्रेम तो प्रेम होता है चाहे वह एक तरफा ही क्यों न हो। तुम किसी बच्चे को किस प्रकार प्रेम करते हो, निःस्वार्थ, बेपनाह। क्या वह बच्चा भी तुम्हें इसी प्रकार से प्रेम लौटाता है? नहीं ना। फिर भी तुम उसे प्रेम करते हो ना।

क्या तुम्हें कभी प्रेम नहीं हुआ? वह मेरी ओर मूड के बोला?

तुम्हें क्या लगता है?

मुझे लगता है तूम प्रेम से लथपथ हो।


हा..... हा... हा.....।

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