गंगा किनारे स्नान करते गुरु और उसके चेलों ने देखा की एक परिवार वाले गुस्से में एक-दूसरे पर चीख चिल्ला रहे थे। एक चेले ने अन्य चेलो से पूछा, 'लोग गुस्से में होते है तभी एक-दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं? ' कुछ सोचने के बाद उनमें से एक बोला, 'हम अपना आपा खो देते हैं, इसलिए हमारी आवाज़ तेज हो जाती है।'
शिष्यों की बात सुन रहे गुरु ने कहा, 'लेकिन जब आपके बगल में ही खड़ा हो, तब चिल्लाने में क्या तुक?' शिष्यो ने इसका उत्तर दे ने की कोशिश की,
अपने जवाब वे खुद संतुष्ट न हुए।
अंततः गुरु ने कहना शुरू किया, जब दो लोग एक दूसरे पर नाराज़ होते हैं, तो उनके दिलो के बीच दूरी बढ जाती है। इसलिए उन्हें चिखना पड़ता है, ताकि अगला सुन सके। वे जितने ज्यादा गुस्से में होंगे, दिलो की दूरी को पार करने के लिए एक-दूसरे पर उतने ही अधिक गरजेंगे। प्रेम में ठीक उसका उल्टा होता है। वे चिखने के बजाय, एक-दूसरे से बहोत धीरे धीरे से बातें करते हैं। कारण यह है कि तब उनके दिल करीब होते है। जब प्यार और बठ जाता है, तो वे बोलने की जगह फुसफुसाने लगते है और अंत में तो एक-दूसरे की आँखों में देखकर ही वे सारी बाते कह सून लेते हैं।
यही है प्यार की निकटता।
मुझे हंमेशा से कुछ नया और दिलचस्प कहानीया पढने की तलब रहती हैं। मैं हंमेशा कुछ नया ढूँढती हूँ। और एक ऐसी ही कहानी जो मैने पढी और मुझे लगता है कि इसे लोगों में शेर करनी चाहिए ताकि हम इसमें से कुछ ग्रहण करे।
कितनी आसानी से समझ लिया कि कोई भी रीएक्शन होता है तो हम अपने मुताबिक गुस्सा और प्यार को नाप लेते हैं। हालाकि आज की जेनरेशन गुस्से में भी चिखती है और प्रेम में भी।
प्रेम की परिभाषा बदल गई है। किसी को दो मिनट में हो जाता है प्रेम तो किसी को दो साल लगते हैं।
प्रेम और गुस्से का जोड नहीं बनता, क्योंकि प्रेम के लिए जितनी आवाज़ चाहिए उतना गुस्सा बरदाश्त नहीं कर सकता। जीवन पर गुस्सा मत करो। यह जीवन नहीं है जो आपको निराशा देता है। यह आप हैं जो जीवन को समझ नहीं पाते।
गुस्से में इंसान बिना कुछ सोचे बस जो मन में आए वह बोल देता है और बाद में अफसोस करता है। जब की प्रेम में कोई मांग नहीं होती बस देना जानता है। प्रेम तो सिर्फ़ आँखों से भी हो सकता है। इसमें बोलने की जरुरत भी नहीं है।
जब मनुष्य के सारे अंहकार, सारे विचार, गुस्सा, सब शांत हो जाता है तब इंसान हो जाता है, तो उस मौन के भीतर सन्नाटे में जो ध्वनि सुनाई देती है उसका नाम है प्रेम है।
अगर प्रेम के साथ स्वयं को लयबद्ध करने की क्षमता आ जाए, और ऐसा क्षण आ जाए कि मनुष्य स्वयं मिट जाए और भीतर सिर्फ प्रेम ही जाएतब लोग मौन हो जाते है। सबकुछ शांत, सरल और स्वीकार्य है।
गुस्सा हंमेशा किसी कारण से होता है। जब हम किसी बात से बहोत परेशान होते है। कोई हमे समझ नहीं रहा हैं। हम अकेले हो जाते है। जब की प्रेम तो सदा ही अकारण होता है। यह इसकी रहस्यता हैं, यह इसकी पवित्रता है। अकारण होने के कारण ही प्रेम दिव्य है।