मूर्ति का रहस्य - 6 रामगोपाल तिवारी (भावुक) द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मूर्ति का रहस्य - 6

मूर्ति का रहस्य छः

सेठ रामदास की दूती शान्ति कही चाय के बहाने, कही नाश्ते के बहाने बार बार तलघर में आ जाती और लौट कर चन्द्रावती की स्थिति से सेठ जी को अवगत कराती। पंडित कैलाशनारायण शास्त्री को सेठ रामदास ने अपने विचारों से अवगत कराया-‘‘पंण्डित जी यह फौजी का लडका मुझे विश्वास योग्य नहीं लगता। बहुत ही चतुर चालाक है । ’’

पंडित कैलाशनारायण ने सेठ रामदास के विचार जानने के उद्धेश्य से पूछा-‘‘और आपकी चन्द्रावती ।’’

‘‘ वह भी मुझे बदमाश लग रही है । देख नहीं रह,े हमें कैसे कैसे घुमा रही है।’’ रामदास ने कहा और फिर सहसा उन्होने पूछा-’’तुमको सही सही पता है न कि ये दोनों इस तरह के खजानों और बीजकों के बारे में काफी कुछ जानते हैं ।’’

‘‘ ज्ज...जी ! बिलकुल सही और सच्ची बात है ये ।’’ पं0 कैलाशनारायण सहसा पूछे गये इस प्रश्न से अचकचा उठे । फिर उन्होने बात सभाँली-‘‘लेकिन सेठ जी रमजान और चन्द्रावती ने मिलकर उस शिलालेख को उखड़वाकर एक नया अर्थ ढूँढ़ा हैं। यह आश्चर्य की बात ही है!’’

‘‘ शास्त्री जी, हमें इन दोंनों का अपने स्वार्थ के लिए विश्वास तो करना ही पडेगा। क्यों शान्ति, वह लडकी ब्याह के लिए तैयार हुई या नहीं!’’

यह सुनकर शान्ति ने जबाब दिया- ‘‘साब ! मैं उससे कुछ पूछती हूँ तो कहती है तुम्हारे सेठ से बातंे करना है। ’’

पंडित कैलाशनारायण शास्त्री ने सेठ को सांत्वना दी - ‘‘ सेठ जी अभी उसकी उम्र ही क्या है ? गाँव के सेठ जी की इकलौती बेेटी है खा पीकर मस्त दिखती है । अभी ब्याह लायक भी तो नहीं हुई ।’’

सेठ रामदास क्रोध प्रगट करते हुए बोला - ‘‘क्यों नहीं है ब्याह लायक । ब्याह के लिए क्या उसके सींग निकलेगे।’’

‘‘ सेठ जी, सींग क्यों नहीं निकलेंगे। अरे ! जब ब्याह की उम्र होगी अपने आप दिखेंगी।’’पंडित कैलाशनारायण शास्त्री ने यों चन्द्रावती का पक्ष लिया ।

‘‘ शास्त्री जी इसका बाप ब्याह करने के लिए तैयार है किन्तु वह नकली भैया के चक्कर में फँस गई है । मुझे तो लगता है। दोंनों में कुछ गोलमाल है।’’

‘‘सेठ जी, इस गोलमाल की बात छोड़ें । पहले खजाने की समस्या का कुछ समाधान निकालें, ... फिर तो ऐसी जानें कितनी चन्द्रावती हमारे सेठ जी के लिए आ जाऐंगी ।’’

‘‘ शास्त्री जी आपका परामर्श उचित ही है । मैंने उस लड़के और लड़की पर नजर रखने के लिए चन्दन और इस शान्ति को लगा रखा है ।’’

पंडित कैलाशनारायण ने पूछा-‘‘अपने विश्वनाथ त्यागी नहीं दिख रहे ।’’

‘‘सेठ रामदास बोला-‘‘त्यागी कहीं भाँग छानकर डले होंगे। उसका नाम ही मात्र त्यागी है पर है पूरा भोगी।’’

‘‘सेठ जी आप तो सब पर नाराज दिख रहे हैं।’’

सेठ रामदास ने बात का उत्तर दिया- ‘‘नाराज क्यों नहीं दिखे। इतना पैसा डूब गया। मैं अपने बडे़ भैया सेठ नारायण दास को क्या जबाब दँूगा ?’’

पंडित कैलाशनारायण शास्त्री ने रामदास के क्रोध को शान्त करके लिए एक उक्ती का सहारा लिया, और बोले-‘‘ सेठ जी भीख, बंज और व्यापार ये सब भाग्य से ही फलित होते हैं ।’’

यह सुनकर तो सेठ जी मन ही मन अपने भाग्य को कोसने लगे ।

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छम्म...छम्म...छम्म...।

छम्म...छम्म...छम्म...।।

आवाजें पूरे माहौल में गूँज रही थीं।

’’रमजान भैया उठो, यों कब तक सोते रहोगे । महाराजा बदनसिंह की नृत्यांगनायें नृत्य करने लगीं हैं ।‘‘ चन्द्रावती रमजान को जगा रही थी।

‘‘बहन चन्दा यहाँ हमारे बोलने पर पाबन्दी है । महाराज के सेंवक हमे ताले में बन्द करके रखे हुए हैं ।’’

‘‘ भैया उस शिलालेख का अर्थ सोच पाये ।’’

‘‘ नहीं तो ।’’

‘‘ क्यों ?’’

‘‘ यह काम महाराज बदनसिंह की पूर्व जन्म की पत्नि चन्द्रावती का है ।’’

‘‘ भैया, यह समय हँसी का नहीं है। सेठ से मैं स्वयं मिलने के लिए कह कर आयी हूँ फिर भी श्रीमान अभी तक पधारे नहीं है।’’

‘‘ चन्दा, मेरी यह समझ में नहीं आया, तुमने उसे यहाँ क्यों बुलाया हैं ?’’

चन्द्रावती को व्यंग्य सूझा, बोली-‘‘ब्याह करने।...हमारे परम श्रद्धेय पिता श्री की भी यही इच्छा है।’’

रमजान उसके भाव को समझते हुए बोला-‘‘बेचारे रामदास की, किस्मत खुल जायेगी।’’

चन्द्रावती अपने विषय पर आते हुए बोली-‘‘उसकी किस्मत खोलेगी मेरी जूती। फिर मेरा आप से एक निवेदन है।’’

‘‘कैसा निवेदन ?’’

‘‘यही मेरे पीछे आप अपनी जिन्दगी को खतरे में न डालें ।’’

‘‘ चन्दा तू मेरी जिन्दगी की चिन्ता न कर। इस समय दरवाजा खड़क रहा है। शायद कोई आ रहा है। ’’ दोनों दरवाजे की ओर देखने लगे।

मुस्कराते सेठ रामदास ने तलघर में प्रवेश किया। दोनों के सामने आते ही बोला - ‘‘आप लोगों को हमारी वजह से बडा कष्ट झेलना पड रहा है। बस एक दो दिन की बात है । रमजान भाई अब उस शिलालेख का अर्थ तो समझा देते ।’’

रमजान ने उत्तर दिया - ’’ सेठ जी, मैं उस शिलालेख के बारे में पूर्व जन्मों से ही जानता हूँ मैं तुम्हें सब कुछ बतला दूँगा । पहले मेरी ... ।’’

‘‘कहो-कहो...रूक क्यों गये।’’ सेठ रामदास ने पूछा ।

‘‘पहले मेरी बहन के चरण छूकर कहो कि मैं तुम्हें जिन्दगी भर लड़की की तरह मानता रहूँगा तथा तुम्हारा विवाह मैं ही करूँगा ।’’

‘‘ आप ये कैसी बातंे करते हैं रमजान जी ।’’

‘‘सेठ जी पहले चन्द्रा के पैर पकड़कर उससे क्षमा माँगो, फिर उस शिलालेख को अर्थ पूछो ।’’

सेठ रामदास धर्म संकट में पड़ गया ।

कुछ सोचते हुए खडा रहा ।

बच्चो की तरह डाँटते हुए रमजान चिल्लाया - ‘‘मैने जो बात कही है वह पहले.....।’’

‘‘ कहता हूँ ... कहता हूँ...’’

यह कहते हुये उसने चन्दा के चरण छूये और कहा-‘‘आज से तुम मेरी धर्म की बेटी हो तुम्हारे विवाह के समय मैं ही तुम्हारा अर्पण कर विवाह करूँगा।’’

‘‘धन्यवाद सेठ जी! अब तुम शिलालेख का अर्थ जानने के पात्र बन गये हो। भई सेठ जी, पुण्य धर्म व्यर्थ नहीं जाता, अब आपको निश्चय ही इस कन्यादान के संकल्प का फल शीघ्र ही मिलेगा ।’’

सेठ रामदास मिमियाते हुए बोला-’’रमजान भाई अब देर क्यों कर रहे हो उस शिलालेख का मतलब तो बतला देते।’’

‘‘तो सुनो, उस शिलालेख में साफ साफ तो लिखा है ।’’

‘‘ क्या लिखा है रमजान भाई ?’’

‘‘यही, कि इस किले के दक्षिण पश्चिम कोने में जो पत्थर का किला यानी पुराने गुंबदों के खंडहरों वाला चबूतरा सा बना हैं ना, उसकी तत्काल खुदाई करायें। कोई रास्ता जरूर मिलेगा।’’

‘‘ठीक है रमजान जी । मैं चलता हूँ तत्काल उस चबूतरे की खुदाई शुरू करवाता हूँ।’’

‘‘सेठ जी, अब आपकी कन्या चन्द्रावती का यहाँ क्या काम ?’’

‘‘ काम तो कुछ नहीं है ।’’

‘‘तो त्यागी से कह कर इसे अपने घर पहुँचा दें। यह वहाँ पहुँचकर गाँव के लोगों केा बहलाती रहेगी ।’’

‘‘रमजान भाई, आप ठीक सोच रहे हैं ।’’

‘‘तो त्यागी से कहना, मैंने कहा है ।’’

‘‘जी रमजान भाई मैं उनसे कह दूँगा । वे इन्हे गाँव में आज रात को ही भेज देंगे ।’’

‘‘ठीक हैं, हम जैसा कह रहे हैं वैसा करते चलें सब ठीक होगा ।’’

‘‘रमजान भाई हमें तो तुम्हारा ही भरोसा है । हम इस चक्कर में कभी न पड़ते । वह तो चन्द्रवती के पिता जी की बातों में आ गये । आज रात हमारे बड़े भैया सेठ नारायण दास भी यहाँ आने वाले है ।’’

यह कहते हुए वह धीर- धीरे सीढ़ियों पर चढ़ते हुए तलघर से निकल गया ।

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