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शहज़ादे की शहज़ादी

बच्चे जैसे नाजुक मन की उस लड़की को नही पता था कि जड़ों से उखड़ना क्या होता है ।एक छोटे से आशियाने में नन्ही नन्ही सीपियों से गमलों को सजाते में करेले बैंगन टमाटर मिर्ची के बीज बोते उसके दिन बीत जाते थे ।पौधों के बड़े होते पत्तो पर वो अपने मन की जादुई कलम से प्रेमगीत लिखा करती थी ।

काशनी आँखों वाली लड़की की काली पुतलियों में उस वक़्त चमक आजाती थी जब उसका शहज़ादा सप्ताहांत में दरवाजे पर दस्तक देता और वो अपने नन्हे राजकुमारों की किलकारियों से लेकर पौधे में उग आयी नन्ही कोंपल तक की बात प्रवेशद्वार पर ही सुनाना चाहती थी । लेकिन थकामांदा मुसाफ़िर अपने राजकुमारों को आलिंगन में समेटे आगे बढ़ जाता और उसके पौधों की बातें अधूरी रह जाती ।पलटकर मुस्कुराती वो लड़की गुलाबी फूलों को कहती 'मैँ हूँ न,सोमवारसे हम दोनों फिर से पहले की तरह प्रेम के विरह गीत लिखेंगे ।

शनिवार का इंतज़ार करती लड़की अपने नन्हे कबूतरों के अपनी उड़ान पर जाने के बाद एकदम अकेली हो गयी । उसने अब शहजादे के डेरे पर जाने की सोची ओर लावलश्कर तैयार करना शुरू किया । कितने आँसूं बहे कितनी यादों ने हाथ थामे,कितनी ही कड़वी बातों ने दुत्कारा लेकिन शहजादे का प्यार मनुहार दुलार सब से आगे रहकर अपने साथ चाँदी की रातों ओर सोने के दिन दिखाने के लिए दूर रेगिस्तान में अपने साथ ले गया।

काली आँखों वाली लड़की को अपने शहर की बारिशें बहुत याद आती ।रेगिस्तान की पीली सुनहरी रेत में वो निखर तो रही थी लेकिन उसकी तृप्ति उसी हरियाली में थी ।

धीरे धीरे उसको रेगिस्तान से प्यार होने लगा । उसका अपना वजूद दिखने लगा। नन्हे नन्हे सपने रेत से भरी आँखों मे झर झर जन्म लेने लगे । अपने सपनो को पोइर करने के लिए उसने रेत में घरौंदे बनाने शुरू किए ।एक सुबह घरौंदा बनाती शाम को तूफान आकर सब तहसनहस कर जाता । यह तूफान भी उसी रेगिस्तान का बाशिंदा था ।कैसे बर्दाश्त करता अपने सीने पर किसी का उभरता वजूद। आखिर एक दिन लड़की अपना छोटा सा घरौंदा बनाकर अपनी नाम पट्टिका लगा खड़ी हुई ।आते जाते कैक्टस औऱ फूल उसको दुआ सलाम करने लगे। शहज़ादा हमेशा की तरह व्यस्त लेकिन मौका लगते ही उस लड़की को प्रेमरस से आकण्ठ डुबो देता था ।उसका प्यार ही था जो लड़की थार में भी प्यार से जीवित थी ।

अचानक एक दिन शहज़ादा फिर से बारिशों के शहर चला गया। रेगिस्तान में लड़की फिर से सूखने लगी लेकिन कैक्टस की भांति सख्त कंटीली दिखती भीतर पर मुलायम हो चुकी थी । अपने उस वजूद को छोड़ कर उसको बारिश शहर हमेशा के लिय नही लौटना था । बहुत जद्दोजहद से उसने बिंदु जितना ही सही अपना वजूद बनाया था ।अपने गमलों पौधों से बाहर निकल कर बियाबान जंगल देखा था ।

अब अपने मन के जंगल मे पौधे लगाए रही लड़की को वापिस बारिश शहर लौटा ले जाने की कवायद शुरू हुई ।लड़की ने बहुत कोशिश की लेकिन खुद को ही नही समझा पा रही थी कि सको तो बारिशें बहुत पसंद थी यह रेगिस्तान मे उसका वजूद तो है लेकिन आत्मिक तृप्ति नही है ।

अरसे से वो बारिशों से खेलती खेलती अब बवंडरों से मोहब्बत कर बैठी थी ।अब हर कोई उसको बवंडरों की बुराई बताता ओर खामोश चुप्पी सङ्ग बोलती आंखों से आँसूं बहाती थी ।

धीरे धीरे व्व शहजादे सङ्ग बारिश शहर आने को राजी हो गयी आखिर शहज़ादे बिना उसकी साँसे ही नही थी ।बेइंतहा मोहब्बत जो थी । उसके जिक्र मात्र से उनके लब थरथरा उठते थे । बारिश शहर आकर उसने फिर से गमले में गलाबी सपनो जैसे फूल लगाए । हरी पत्तियों जैसी सुबह उगाई । नीले आसमान पर उड़ते सफेद बAदलों जैसी छत्त रंग दी और लाल ईंटो वाला आगंन अपने ही स्वागत के लिए रंग डाला।

हर तरफ झूमती लड़की ने इस बारिशों में तन के साथ मन को तृप्त करने के सब सपने देख लिए थे।छतरी को पकड़ कर खुली छत्त पर छपाक कर पानी मे कूदने के ।मोरी पर कपड़ा लगाकर तालाब बनाकर उसमें बैठ जाने के , तेज बारिश में कार की खिड़की खोल कर लांग ड्राइव पर जाने के , फिर किसी घने हरे जंगल गुजरती सड़क किनारे भुट्टे खाने के सपने । अब लड़की फिर से बारिश शहर में पानी पानी होकर भीतर की रेत को धोने को आतुर थी ।

आज लड़की खामोश स्तब्ध निःशब्द खड़ी है । शहजादे को फिर से रेगिस्तान में जंग जे लिए जाने का फ़रमान आया है । लड़की की एक आंख से बेमौसम बरसात हो रही है और एक आँख में रेतीला तूफान अपने पूरे वेग के साथ ।

लड़की पछाड़खा कर गिर गयी है शहज़ादा उझको बाहों में उठाये सड़क पर खड़ा है कहाँ जाए.......#nivia

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