चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 19 Suraj Prakash द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 19

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

19

उस रात मैं स्ट्रीटकार में अपने घर लौटा तो मेरे साथ हमारी कम्पनी में काम करने वाला एक जूनियर कलाकार था। उसने कहा,"दोस्त, आपने कुछ नयी शुरुआत कर दी है। अब तक ऐसा कभी भी नहीं हुआ था कि सेट पर इस तरह की हँसी के मौके आये हों। फोर्ड स्टर्लिंग साहब के लिए भी नहीं। आप ज़रा उनका चेहरा तो देखते, देखने लायक था।"

"अब हम यही उम्मीद करें कि लोग बाग थियेटर में भी इसी तरह से हँसते हैं?" मैंने अपनी खुशी को दबाते हुए कहा।

कुछ ही दिन बाद, एलेक्जेड्रा बार में मैंने अपने कॉमन दोस्त एल्मर एल्सवर्थ को मेरे चरित्र के बारे में फोर्ड साहब को कानाफूसी करते सुना,"जनाब ने बैगी पैंट पहनी थी, सपाट पैर, और उनकी हालत खस्ता थी, आप देखते तो बंदा अच्छा खासा हरामी, धूल-गंदगी में सना लग रहा था। इस तरह के खीझ भरे हाव भाव दिखाता है मानो इसकी बगल में चीटियाँ काट रही हों। अच्छा खासा कार्टून लगता है।"

मेरा चरित्र थोड़ा अलग था और अमेरिकी जनता के लिए अनजाना भी। यहाँ तक कि मैं भी उससे कहाँ परिचित था। लेकिन वे कपड़े पहन लेने के बाद मैं यही महसूस करता था कि मैं एक वास्तविकता हूँ, एक जीवित व्यक्ति हूँ। दरअसल, जब मैं वे कपड़े पहन लेता और ट्रैम्प का बाना धारण कर लेता तो मुझे तरह तरह के मज़ाकिया ख्याल आने लगते जिनके बारे में मैं कभी सोच भी नहीं सकता था।

मैं उस जूनियर कलाकार के बहुत करीब आ गया था और हर रात स्ट्रीटकार में घर वापिस आते समय वह मेरी कामेडी के बारे में दिन भर स्टूड़ियों में हुई प्रतिक्रियाओं के बारे में बताता और बातें करता," वो तो कमाल का ही आइडिया था, दोस्त, तुम्हारा वे फिंगर बॉल में उंगलियां डुबोना और उस बुढ़ऊ की मूंछों से पूछ लेना।...आज तक किसी ने इस तरह की बातों के बारे में सोचा भी नहीं होगा।" और इस तरह से वह ये सारी बातें बताता रहता और मुझे हवा भरे गुब्बारे में ऊपर चढ़ाता रहता।

सेनेट साहब के निर्देशन में मैं सहज महसूस करता था क्योंकि उनके साथ सेट पर सब कुछ सहज स्फूर्त तय होता चला जाता था। चूँकि कोई भी अपने खुद के बारे में पाज़िटिव या अंतिम रूप से पक्का नहीं होता था (यहाँ तक कि निर्देशक भी नहीं,) इसलिए मैं अपने बारे में यह मान कर चलता कि मैं दूसरों से ज्यादा जानता हूँ। मैंने सुझाव देने शुरू कर दिये जिन्हें सेनेट साहब सहर्ष स्वीकार कर लेते। इस तरह से मुझमें यह विश्वास पनपने लगा कि मैं सृजन भी कर सकता हूँ और अपनी खुद की कहानियाँ भी लिख सकता हूँ। सेनेट महोदय ने निश्चय ही इस विश्वास को प्रेरित किया। लेकिन हालांकि मैं सेनेट साहब को खुश कर चुका था, जनता के दरबार में जा कर उसे खुश करना अभी बाकी था।

अगली फिल्म में मुझे फिर से लेहरमैन के हवाले कर दिया गया। वे सेनेट साहब को छोड़ कर स्टर्लिंग के पास जा रहे थे हालांकि वे सेनेट के साथ अपने करार के खत्म होने की तारीख के बाद भी दो हफ़्ते तक रुकने के लिए तैयार हो गये थे। जब मैंने उनके साथ फिर से काम करना शुरू किया तो मैं एक से एक नायाब सुझावों से भरा हुआ था। वे मेरी बात सुनते और मुस्कुरा देते लेकिन उन्हें स्वीकार न करते। वे कहा करते,"हो सकता है इस तरह की बातें थियेटर में चल जाये लेकिन फिल्मों में हमारे पास इन सब बातें के लिए फुर्सत नहीं है। हमें हमेशा गतिशील रहना चाहता हूँ। कॉमेडी पीछा करने के लिए एक बहाना है।"

मैं उनकी इस सपाटबायनी से सहमत नहीं था,"हास्य तो हास्य है।" मैं तर्क देता,"चाहे वह फिल्मों में हो या थियेटर में।" लेकिन वे अपनी ही बातों पर अड़े रहे, वही करने पर तुले रहे जो कीस्टोन में होता आया था। सारे एक्शन तेज गति से होने चाहिये। इसका यही मतलब होता कि लगातार दौड़ते रहो, घरों की छतों पर, स्ट्रीटकारों में कूदो, दौड़ो, नदियों में छलांगें मारो, और खम्भों पर से कूदो। उनकी इस कॉमेडी की थ्योरी के बावजूद मैं किसी न किसी तरह से अकेले की कॉमेडी के लिए एकाध गुंजाइश निकाल ही लेता था, लेकिन हमेशा की तरह, वे उन्हें संपादन कक्ष में कटवा ही लेते।

मैं नहीं समझता कि लेहरमैन ने मेरे बारे में सेनेट साहब को कोई बहुत अच्छी रिपोर्ट दी होगी। लेहरमैन के बाद मुझे एक अन्य निर्देशक को सौंप दिया गया। मिस्टर निकोलस साठ के पेटे में एक अधेड़ आदमी थे जो मोशन फिल्मों की शुरुआत से ही उनसे जुड़े हुए थे। मेरे सामने उनके साथ भी वही दिक्कत थी। उनके पास कुल मिला कर एक ही हँसाने का एक ही तरीका होता था। इसमें वे कॉमेडियन को गर्दन से पकड़ते थे और एक सीन से दूसरे सीन तक उसे घूँसे ही मारते जाते थे। मैं इससे बारीक बातें उन्हें बताना चाहता था, लेकिन वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। "हमारे पास टाइम नहीं है, टाइम नहीं है।" वे चिल्लाते। वे बस किसी तरह से फोर्ड स्टर्लिंग की नकल भर चाहते। हालांकि मैंने मामूली सा ही विरोध जतलाया था लेकिन लगता है, वे जाकर सेनेट साहब के कान भर आये कि मुझ जैसे सुअर के पिल्ले के साथ काम करना उनके बस की बात नहीं।

लगभग इसी समय वह फिल्म जो सेनेट साहब ने निर्देशित की थी, माबेल्स स्ट्रेंज प्रेडिक्टामेट, उप नगरों में दिखायी गयी। भय और घबड़ाहट के मिले जुले भाव के साथ मैंने इसे दर्शकों के बीच बैठ कर देखा। जब फोर्ड स्टर्लिंग पर्दे पर आते तो उनका स्वागत हमेशा उत्साह और हँसी के साथ होता था लेकिन मेरे हिस्से में ठंडा मौन ही आया। वह सब हँसी मज़ाक के सीन जो मैंने होटल लॉबी में किये थे, मुश्किल से एकाध मुस्कुराहट ही जुटा पाये। लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ी, दर्शक पहले दबी हँसी हँसे, फिर खुल कर हँसे, और फिल्म के खत्म होते न होते, एक दो ज़ोर के ठहाके लगे। उस प्रदर्शन में मैंने पाया कि दर्शक नये आगंतुक को एकदम नकार नहीं देते हैं।

मैं दुविधा में था कि ये पहला प्रयास सेनेट साहब की उम्मीदों पर खरा उतरा या नहीं। मेरा तो यही मानना है कि वे निराश ही हुए थे। वे एकाध दिन के बाद मेरे पास आये और बोले,"सुनो, सब लोगों का कहना है कि तुम्हारे साथ काम करना मुश्किल है।" मैं उन्हें ये समझाना चाहता था कि मैं सतर्क था और सिर्फ फिल्म की बेहतरी के लिए ही काम कर रहा था। "वो तो ठीक है, सेनेट बोले, "तुम सिर्फ वही करो जो तुम्हें करने के लिए कहा जाये। उसी में हमारी तसल्ली हो जायेगी।" लेकिन अगले ही दिन निकोलस के साथ मेरी एक और झड़प हो गयी और मैं फट पड़ा,"आप मुझसे जो कुछ करवाना चाहते हें, वह तीन डॉलर रोज़ कमाने वाला कोई भी एक्स्ट्रा कर सकता है।" मैंने घोषणा कर दी,"मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूँ जिसमें कुछ अक्ल का काम हो, सिर्फ इधर उधर मारा-मारा गिरते पड़ते रहना और स्ट्रीटकार में से गिरना, ये सब मेरे बस का नहीं। मुझे हफ़्ते के एक सौ पचास डॉलर सिर्फ इसी के लिए नहीं मिलते।"

बेचारा "पॉप" निकोलस, जैसा कि हम उसे कहा करते थे, उसकी तो हालत खराब थी। "मैं पिछले दस बरस से इस धंधे में हूँ।" वे कहने लगे, "तुम इन सबके बारे में जानते ही क्या हो?" मैंने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मैंने कास्ट के बाकी कलाकारों को भी समझाने की कोशिश की लेकिन वे सब भी मेरे खिलाफ थे। "ओह, वह जानता है, वही जानता है, वह पिछले कई बरस से इसे लाइन में है," एक बूढ़े कलाकार ने मुझे समझाया।

मैंने कुल मिला कर पाँच फ़िल्में बनायीं और उन सबमें किसी तरह से जोड़-तोड़ करके अपना खुद का कुछ न कुछ कॉमेडी का मसाला डाल ही दिया। बेशक उसका संपादन कक्ष में बैठे कसाई जो भी करते रहे हों। अब चूँकि मैं संपादन कक्ष में उसकी संपादन कला से वाकिफ हो चुका था इसलिए मैं सीन के शुरू में और आखिर में ही अपना हास्य का मसाला डाल देता था ताकि उसे काटने में उन्हें अच्छी खासी तकलीफ हो। मैं सीखने के लिहाज से कोई भी मौका नहीं चूकता था। मैं डेवलपिंग कक्ष से और संपादन कक्ष के अंदर-बाहर होता रहा था और देखता था कि संपादन करने वाला किस तरह से कटे हुए टुकड़ों को आपस में जोड़ता है।

अब मैं इस चिंता में था कि अपनी खुद की फिल्में लिखूँ और उनका निर्देशन भी करूँ। इस लिहाज से मैंने सेनेट साहब से बात की। लेकिन वे तो इस बारे में कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे। इसके बजाये उन्होंने मुझे माबेल नोर्माड के हवाले कर दिया। उन्होंने अभी अभी ही अपनी खुद की फिल्मों का निर्देशन शुरू किया था। इस बात ने मुझे चित्त कर दिया क्योंकि बेशक माबेल बला की खूबसूरत थीं, उनकी निर्देशन क्षमता पर मुझे शक था। इसलिए पहले ही दिन सिर मुंडाते ही ओले पड़े। होनी हो कर रही। हम लॉस एंजेल्स के एक उप नगर में लोकेशन पर थे। एक सीन में माबेल मुझसे चाहती थीं कि मैं सड़क पर एक हौज और पानी ले कर खड़ा होऊं ताकि विलेन की कार उस पर फिसल जाये। मैंने सुझाव दिया कि मैं हौज पाइप पर ही खड़ा हो जाता हूँ ताकि पानी बाहर नहीं आयेगा और जब मैं अनजाने में उसके नोज़ल को देखता हूँ और हौज पाइप के ऊपर से पैर हटाता हूँ तो पानी की बौछार अचानक मेरे चेहरे को भिगो देती है। लेकिन उसने ये कह कर मेरा मुँह बंद कर दिया,"हमारे पास वक्त नहीं है। हमारे पास वक्त नहीं है। वही करो जो आपसे करने को कहा गया है।"

ये बहुत बड़ी बात थी। मैं इसे सहन नहीं कर सकता था और वो भी ऐसी खूबसूरत लड़की से,"माफ करना, मिस नोर्माड, मैं वही नहीं करूंगा जो मुझे करने के लिए कहा गया है। मुझे नहीं लगता कि आप इतनी लियाकत रखती हैं कि मुझे बता सकें कि मुझे क्या करना चाहिये।"

ये दृश्य सड़क के बीचों-बीच फिल्माया जाना था और मैं इसे छोड़ कर चल दिया और एक पुलिया पर जा कर बैठ गया। प्यारी माबेल, उस वक्त बिचारी मात्र बीस बरस की थी, खूबसूरत और आकर्षक, हर दिल अजीज, हर कोई उसे चाहता था, अब वह कैमरे के पास हैरान परेशान बैठी हुई थी। आज तक उससे किसी ने सीधे बात तक नहीं की थी, मैं भी उसकी खूबसूरती, उसके सौन्दर्य और उसके आकर्षण का कायल था, और मेरे भी दिल के किसी कोने में उसके नाम के चिराग जलते थे, लेकिन ये तो मेरा काम था। तत्काल ही पूरा का पूरा स्टाफ माबेल के चारों तरफ झुंड बना कर खड़ा हो गया और सम्मेलन होने लगा। माबेल ने मुझे बाद में बताया था कि एक दो एक्स्ट्रा तो मुझे तभी के तभी रगेदना चाहते थे। लेकिन उसी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया। तब उसने अपने एक सहायक को मेरे पास यह पूछने के लिए भेजा कि क्या मैं काम जारी रखने के लिए इच्छुक हूँ। मैं सड़क पार कर उस तरफ गया जहाँ वह बैठी हुई थी।,"मैं शर्मिंदा हूँ," मैंने माफी सी मांगते हुए कहा, "मुझे नहीं लगता कि ये मज़ाकिया है या नहीं लेकिन अगर आप मुझे एकाध मज़ाकिया दृश्यों के बारे में सुझाव देने की अनुमति दें तो...।"

उसने कोई बहस नहीं की। "ठीक है," उसने कहा,"अगर आप वह नहीं करते जो आपको बताया गया है तो हम स्टूडियो वापिस चले चलते हैं।" हालांकि स्थिति खराब थी, मैंने हार मान ली और मैंने कंधे उचकाये। हमने दिन के काम का ज्यादा नुकसान नहीं किया, क्योंकि हम सुबह नौ बजे से शूटिंग कर रहे थे। अब शाम के पाँच बजने को आये थे, और सूर्य डूबने की तैयारी कर रहा था।

स्टूडियो में मैं अपना ग्रीज़ पेंट उतार रहा था कि सेनेट साहब ड्रेसिंग रूम में दनदनाते हुए आये और एकदम फट पड़े,"ये सब मैं क्या सुन रहा हूँ? क्या लफड़ा है ये सब?"

मैंने समझाने की कोशिश की,"कहानी में एकाध हल्के फुल्के हास्य की ज़रूरत है।" मैंने बताया, "लेकिन मिस नोर्माड तो कुछ सुनने के लिए तैयार ही नहीं है।"

"आप सिर्फ वही कीजिये जो आपको करने के लिए कहा जाता है, नहीं तो यहाँ से दफा हो जाइये, करार होता है या नहीं, भाड़ में जाये करार।" वे बोले।

मैं बहुत ही शांत बना हुआ था,"मिस्टर सेनेट, मैंने जवाब दिया,"मैं यहाँ आने से पहले भी अपनी रोज़ी रोटी कमा रहा था, और अगर मुझे निकाल भी दिया जाता है, तो ठीक है, मैं बाहर हो जाता हूँ। लेकिन मैं विवेकशील हूँ और मैं भी आप ही की तरह फिल्म को बेहतर बनाने की ही उतना ही उत्सुक हूँ।"

बिना एक शब्द और बोले उन्होंने ज़ोर से दरवाजा बंद कर दिया।

उस रात स्ट्रीटकार में घर जाते समय मैंने अपने दोस्त को बताया कि क्या हुआ था।

"बहुत बुरा हुआ। आप तो बहुत ही अच्छा करने जा रहे थे।" उसने कहा।

"क्या ख्याल है, वे मुझे निकाल बाहर करेंगे?" मैंने खुश होते हुए कहा ताकि अपनी चिंता पर परदा डाल सकूं।

"मुझे इस बात पर कोई हैरानी नहीं होगी। जब उन्हें आपके ड्रेसिंग रूम से जाते हुए देखा तो वे अच्छे खासे उखड़े हुए नज़र आ रहे थे।"

"मेरे साथ ये भी चलेगा। मेरे खीसे में पन्द्रह सौ डॉलर हैं और ये मेरे इंगलैंड वापिस जाने के किराये के लिए काफी हैं। अलबत्ता, मैं कल तो आऊंगा ही और अगर उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं है तो यही सही।

अगले दिन सुबह मुझे आठ बजे काम पर हाज़िर होना था, लेकिन मैं तय नहीं कर पा रहा था कि जाऊं या नहीं, इसलिए मैं ड्रेसिंग रूम में बिना कोई मेक-अप किये बैठा रहा। आठ बजने में पाँच मिनट पर सेनेट साहब ने दरवाजे पर अपना चेहरा दिखाया। "चार्ली, मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ। चलो, माबेल के ड्रेसिंग रूम में चलें।" उनकी टोन आश्चर्यजनक रूप से दोस्ताना थी।

"कहिये मिस्टर सेनेट," मैंने उनके पीछे जाते हुए कहा।

माबेल वहाँ पर नहीं थी। उस वक्त वह प्रोजेक्शन रूम में रशेस देख रही थी।

"सुनो, मैक बोले,"माबेल तुम्हारी बहुत बड़ी प्रशंसक है। और हम सब भी तुम्हें बहुत चाहते हैं। हम जानते हैं कि तुम बेहतरीन कलाकार हो।"

मैं इस अचानक हुए परिर्वतन को देख कर हैरान था और मैं तत्काल पिघलने भी लगा,"मेरे मन में भी माबेल के लिए बहुत अधिक सम्मान और प्रशंसा के भाव हैं," मैंने कहा, "लेकिन मुझे नहीं लगता कि उसमें इतनी क्षमता है कि निर्देशन कर सके। आखिर वह एकदम युवा ही तो है।"

"तुम जो भी सोचो, लेकिन भगवान के लिए अपने अहं को पी जाओ और इस पचड़े में से निकलने में हमारी मदद करो।" सेनेट साहब मेरे कंधे पर धौल धप्पा करते हुए बोले।

"..और मैं भी तो यही करने की कोशिश कर रहा हूँ।"

"तो ठीक है। उसके साथ संबंध ठीक रखने के लिए अपनी ओर से पूरी कोशिश करो।"

"सुनिये, अगर मुझे ही निर्देशन करने का भार सौंप देंगे तो आपको किसी भी किस्म की तकलीफ नहीं होगी।" मैंने कह ही दिया।

मैक एक पल के लिए ठिठके,"और अगर हम फिल्म रिलीज़ न कर पाये तो उसका हरजाना कौन भरेगा?"

"मैं उठाऊंगा खर्चा।" मैंने जवाब दिया,"मैं किसी भी बैंक में पन्द्रह सौ डॉलर जमा करवा देता हूँ। और अगर आप फिल्म रिलीज़ न कर पाये तो आप ये पैसे रख सकते हैं।"

मैक एक पल के लिए सोचने लग,"कोई कहानी है तुम्हारे पास?"

"बेशक, आप जितनी मर्जी कहानियां चाहें।"

"तो ठीक है।" मैक बोले,"माबेल के साथ ये फिल्म पूरी कर लो फिर हम देखते हैं।"

हम दोनों ने निहायत ही दोस्ताना लहजे में हाथ मिलाये। बाद में मैं मोबेल के पास गया और उससे क्षमा याचना की। और उसी शाम मैक हम दोनों को डिनर पर बाहर ले गये। अगले दिन माबेल जितनी मधुरता बिखेर रही थी, उससे ज्यादा प्रिय नहीं हो सकती थी। यहाँ तक कि उसने मेरे सुझाव भी माँगे और विचार भी पूछे। इस तरह, पूरी कैमरा टीम और बाकी की कास्ट को हैरान छोड़ते हुए हमने खुशी-खुशी फिल्म पूरी की। सेनेट साहब के नज़रिये में अचानक आये इस परिवर्तन से मैं हैरान था। अलबत्ता, ये तो महीनों के बाद मुझे जा कर इसके पीछे का एक कारण पता चला। ऐसे लगता है कि हफ़्ते के आखिर में सेनेट मुझे नौकरी से निकालना चाहते थे, लेकिन जिस सुबह माबेल के साथ मेरी झड़प हुई थी, मैक को न्यू यार्क कार्यालय से एक तार मिला था कि वे फटाफट चैप्लिन की और फिल्में बनायें क्योंकि वहाँ उनकी बहुत अधिक माँग हो गयी थी।

कीस्टोन द्वारा रिलीज की जाने वाली कॉमेडी फिल्मों के आम तौर पर बीस प्रिंट बनाये जाते थे। तीस की संख्या काफी सफल मानी जाती थी। पिछली फ़िल्म, जो क्रम से चौथी थी, पैंतालिस प्रिंट की संख्या तक जा पहुँची थी तथा अतिरिक्त प्रतियों की माँग बढ़ती ही जा रही थी। मैक साब के दोस्ताना व्यवहार के पीछे ये तार ही काम कर रहा था।

उन दिनों निर्देशन का अंक गणित बहुत ही सीधा सादा हुआ करता था। मुझे सिर्फ यही देखना होता था कि आने और बाहर जाने के लिए दिशा दायीं तरफ थी या बायीं तरफ। यदि कोई कलाकार बाहर जाते समय कैमरे की तरफ पीठ करके गया तो वापसी में उसका चेहरा कैमरे की तरफ होगा। अलबत्ता, ये बेसिक नियम थे।

लेकिन और अधिक अनुभव के साथ मैंने पाया कि कैमरा के रखने की जगह का न केवल मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है बल्कि इससे सीन भी बनता बिगड़ता है। दरअसल, यही सिनेमाई शैली का आधार था। यदि कैमरा बहुत नज़दीक या बहुत दूर रख दिया जाये तो इससे पूरा का पूरा दृश्य बन भी सकता है और पूरा प्रभाव बिगड़ भी सकता है। अब चूँकि गति की किफायत आपके लिए महत्त्वपूर्ण होती है, अत: आप नहीं चाहते कि अभिनेता बिना किसी वजह के कई कदम चले, हाँ, जब तक इसके लिए कोई खास कारण न हो। इसका कारण यह है कि चलने में कुछ भी ड्रामाई नहीं है। इसलिए कैमरे को रखने का मतलब कम्पोजिशन होना चाहिये और ये अभिनेता के लिए गरिमामय होना चाहिये। कैमरे को कहां रखना है, ये बात सिनेमाई अर्थ संयोजन की होती है। इस बात के कोई तय नियम नहीं है कि क्लोज़ अप से अधिक अच्छे परिणाम मिलते हैं या लांग शॉट से बेहतर प्रभाव पैदा किया जा सकता है। क्लोज अप महसूस करने की चीज़ है। कुछेक मामलों में लाँग शॉट से बहुत अच्छे प्रभाव पैदा किये जा सकते हैं।

इसका एक उदाहरण मेरी शुरुआती कॉमेडी फिल्म स्केटिंग में देखा जा सकता है। ट्रैम्प रिंग में प्रवेश करता है और एक पैर ऊपर करके स्केट करता है। वह गिरता है, लड़खड़ाता है और आस-पास के सब लोगों को गिराता, लुढ़काता जाता है और तरह तरह की शरारतें करता रहता है। आखिर, वह सबको धराशायी करके दूर वाले कोने की तरफ जा कर दर्शकों के बीच यह देखने के लिए भोला बन के बैठ जाता है कि उसने क्या हंगामा बरपा दिया है। यहाँ पर ट्रैम्प की ये छोटी सी आकृति ही बहुत कुछ कह जाती है जो शायद क्लोज अप में उतनी मजेदार न बन पाती।

जब मैंने अपनी पहली फिल्म का निर्देशन किया तो मुझमें इतना आत्म विश्वास नहीं था जितना होना चाहिये था। दरअसल, मुझे अफरा-तफ़री का दौरा सा पड़ गया था। लेकिन जब सेनेट साहब ने पहले दिन का काम देख लिया तो में आश्वस्त हो गया। फिल्म का नाम था "कॉट इन द रेन"। हालांकि ये विश्व स्तरीय फिल्म नहीं थी लेकिन ये मजेदार थी और काफी सफल भी रही। जब मैंने इस पूरा कर लिया तो सेनेट साहब की प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक था। प्रोजेक्शन रूम से उनके बाहर आने तक मैं उनकी राह देखता रहा।

"तो, बंधुवर, एक और फिल्म शुरू करने के लिए तैयार हो?" पूछा उन्होंने। उसके बाद से तो मैंने अपनी सभी कॉमेडी फिल्में खुद ही लिखीं और निर्देशित भी कीं। एक प्रोत्साहन के रूप में सेनेट साहब ने प्रत्येक फिल्म के लिए पच्चीस डॉलर का बोनस दिया।

अब उन्होंने मुझे मानो गोद ही ले लिया था। वे रोज़ रात को मुझे खाने पर बाहर ले जाते। वे मेरे साथ दूसरी कम्पनियों के लिए कहानियाँ पर चर्चा करते। और मैं उनके साथ ऐसे-ऐसे पागलपन से भरे ख्यालात के बारे में बात करता जो कई बार इतने निजी होते कि जनता उन्हें समझ ही न पाती। लेकिन सेनेट उन्हें सुनते और उन्हें स्वीकार कर लेते।

अब जब मैंने आम जनता के बीच बैठ कर अपनी फिल्में देखीं तो उनकी प्रतिक्रिया अलग ही थी। कीस्टोन कॉमेडी की घोषणा होते ही हलचल और उत्तेजना, मेरे पहले-पहले आगमन के साथ ही, मेरे कुछ करने से पहले ही खुशी भरी चीखें मेरे लिए बेहद सुकून भरी होतीं। मैं दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय होता जा रहा था। अगर मैं अपने जीवन को इसी तरह से चलाता रह पाता तो मेरे लिए यही संतोष की बात थी। अपने बोनस के साथ मैं दो सौ डॉलर हर हफ्ते के कमा रहा था।

अब चूँकि मैं अपने काम में उलझा हुआ था अब मेरे पास एलैक्ज़ेंड्रिया बार या अपने ताना मारने वाले दोस्त एल्मर एल्सवर्थ के पास जाने का वक्त ही नहीं मिलता था। अलबत्ता, मैं उसे हफ्तों बाद एक दिन सड़क पर ही मिल गया। वह कहने लगा,"अरे भई, सुनो तो, मैं कुछ अरसे से तुम्हारी फिल्में देखता आ रहा हूँ। और भगवान की कसम, तुम काफी अच्छे हो। तुम्हारे पास जो क्वालिटी है, वह यहाँ औरों से बिलकुल ही अलग है। तुमने पहली ही बार में अपने बारे में ये सब क्यों नही बता दिया था।" हाँ, हम बाद में जा कर बहुत अच्छे दोस्त बन गये थे।

ऐसा बहुत कुछ था जो मैंने कीस्टोन से सीखा और बदले में बहुत कुछ कीस्टोन कम्पनी को सिखाया भी। उन दिनों वे लोग तकनीक, स्टेज क्राफ़्ट या मूवमेंट के बारे में बहुत कम जानते थे। मैं उनके लिए ये चीजें थियेटर से ले कर आया। वे प्राकृतिक मूक अभिनय पेंटोमाइम के बारे में भी बहुत कम जानते थे। किसी सीन को ब्लॉक करने के लिए निर्देशक तीन या चार अभिनेताओं को कैमरे की तरफ मुँह करके सपाट खड़ा करवा देता और उनमें से एक बहुत खुले हावभाव के साथ अपनी ओर इशारा करते हुए मूक अभिनय करता, तब वह अपनी अंगूठी वाली उंगली की तरफ इशारा करता, और फिर लड़की की तरफ इशारा करता," मैं तुम्हारी लड़की से शादी करना चाहता हूँ।" उनके मूक अभिनय से बारीकी या प्रभाव डालने की जरा भी गुंजाइश न बचती। इसलिए मैं उनकी तुलना में बीस ठहरता। उन शुरुआती फ़िल्मों में मुझे पता था कि मेरे पक्ष में कई बातें हैं। और एक भूगर्भशास्‍त्री की तरह मैं एक नये, समृद्ध और अब तक अछूते क्षेत्र में प्रवेश कर रहा हूँ। मेरा ख्याल है, वह मेरे कैरियर का सबसे अधिक रोमांचक काल था, क्योंकि मैं कुछ आश्चर्यजनक करने की दहलीज पर था।

सफलता आपको प्यारा बना देती है और मैं स्टूडियो में सबका परिचित दोस्त बन गया। मैं एक्स्ट्रा लोगों के लिए, स्टेज पर काम करने वालों के लिए और वार्डरोब विभाग के लिए और कैमरामेन के लिए चार्ली था। हालांकि मैं चने के झाड़ पर चढ़ने वालों में से नहीं हूँ, फिर भी सच में ये बातें मुझे खुश करती ही थीं क्योंकि मैं जानता था कि इस अंतरंगता का मतलब ही यही है कि मैं सफल हो रहा हूँ।

अब मुझे अपने विचारों में आत्मविश्वास नज़र आने लगा था। और मैं सोच सकता हूँ कि सेनेट बेशक मेरी तरह काला अक्षर भैंस बराबर ही थे, उन्हें अपनी पसंद पर भरोसा था और यही भरोसा उन्होंने मुझमें भी पैदा किया। उनके काम करने के तरीके ने मुझे आत्म विश्वास बढ़ाया। स्टूडियो में उनकी पहले दिन की टिप्पणी,"हमारे पास कोई सिनेरियो नहीं होता, हम एक आइडिया पकड़ लेते हैं। और फिर उसी की लीक पर स्वाभाविक परिणति पर चल देते हैं।" इससे मेरी कल्पना शक्ति को नये पंख लगे थे।

इस तरह से फिल्में बनाना बहुत उत्तेजनापूर्ण काम था। थियेटर में मैं रात दर रात वही बंधी बंधायी लीक पर वह सब कुछ जड़, बंधी-बंधायी दिनचर्या दोहराने को मजबूर था। एक बार स्टेज का कारोबार देख लिये जाने और तय कर लिये जाने के बाद उनमें कुछ नया डालने की कोई कभी सोचता भी नहीं था। थियेटर में काम करने की एक ही प्रेरित करने वाली वजह होती थी और वह यह थी कि अच्छा काम या बुरा काम। लेकिन फिल्मों में ज्यादा आज़ादी थी। उनमें मुझे रोमांच का अनुभव होता था।"इस आइडिया के बारे में तुम क्या सोचते हो?" सेनेट कहते या फिर "पता है शहर में मुख्य बाज़ार में बाढ़ आयी हुई है!" इस तरह की टिप्पणी से ही कीस्टोन की कामेडी की शुरुआत होती थी। ये एक बांध लेने वाली मोहक खुली हवा थी जो शानदार थी...व्यक्ति की सृजनात्मकता के लिए चुनौती।