चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 17 Suraj Prakash द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 17

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

17

अमेरिका छोड़ते समय मुझे कोई खास अफसोस नहीं हो रहा था, क्योंकि मैंने लौटने का मन बना लिया था। कैसे और कब, मैं नहीं जानता था। इसके बावजूद, मेरा मन अभी से लंदन और अपने छोटे-से सुकून भरे घर में लौटने की राह देखने लगा था। जब से मैं अमरिका के टूर पर था, ये फ्लैट मेरे लिए मंदिर जैसा हो गया था।

सिडनी का समाचार बहुत दिनों से नहीं मिला था। अपने आखिरी खत में उसने लिखा था कि नानाजी फ्लैट में रह रहे थे। लेकिन मेरे लंदन पहुँचने पर, सिडनी मुझे स्टेशन पर मिला और बताया कि उसने शादी कर ली है, फ्लैट छोड़ दिया है और ब्रिक्सटन रोड पर सजे सजाए घर में रह रहा है। ये सोच कर मुझे बड़ा झटका लगा कि खुशियों से भरा वह छोटा-सा स्वर्ग अब नही रहा जिसने मुझे जीवन जीने को एक अर्थ दिया था, और घर पर नाज करना सिखाया था --------। अब मैं बेघर था। ब्रिक्सटन रोड पर मैंने पीछे की ओर एक कमरा लिया। जगह इतनी मनहूस थी कि मैंने जितनी जल्द हो सके, अमेरिका लौटने फैसला कर लिया। किसी खाली स्लॉट मशीन में सिक्का डालने पर जैसे कुछ नहीं होता उस रात लंदन मेरी वापसी पर वैसा ही बेपरवाह लगा।

सिडनी ने चूंकि शादी कर ली थी और हर शाम काम पर रहता, मैं उससे कम ही मिल पाता था; परंतु रविवार को हम मां से मिलने गए। ये बहुत ही हताश करने वाला दिन था क्योंकि मां अभी भी ठीक नहीं हुई थी। वह अभी-अभी भजन कीर्तन के शोरगुल वाले दौर से होकर गुज़री थी और उसे गदद्दार दीवारों वाले कमरे में रखा गया था। नर्स हमें पहले ही ताकीद कर चुकी थी। सिडनी ने उसे देखा, लेकिन मैं उससे मिलने की हिम्मत न कर सका, इसलिए इंतज़ार करना रहा। सिडनी वापिस आया तो परेशान लग रहा था। उसने बताया कि इलाज के तौर पर मां को बर्फ़ीले, ठंडे पानी की धार से शॉक दिया गया था और उसका चेहरा बिल्कुल नीला पड़ गया था। इस पर हम लोगों ने उसे एक प्राइवेट संस्थान में रखने का फैसला किया - खर्च अब हम उठा सकते थे - सो, हम उसे उस जगह पर ले आए पागल खाने में इंगलैण्ड के महान कॉमेडियन स्वर्गीय डान लीओ भर्ती केये गये थे।

हर दिन मैं अपने आपको पहले से कहीं ज्यादा बेगाना और जड़ से कटा हुआ महसूस करता था। मेरी समझ से अगर मैं अपने छोटे से फ्लैट में लौटा होता, तो मेरी भावनाएंं दूसरी होतीं। तब स्वाभाविक रूप से उदासी मुझ पर पूरी तरह से हावी न हो पाती। अमेरिका से आने के बाद पुराना परिचय, रीति-रिवाज और इंगलैण्ड से मेरा रिश्ता सभी मेरे भीतर उथल-पुथल मचा रह थे। इंगलैण्ड की गर्मी का मौसम अपने सबसे अच्छे रूप में था जिसके जोड़ की रूमानी और सुहावनी चीज़ मेरी नज़र में कोई दूसरी नहीं थी।

बॉस कार्नो ने मुझे टैग्स आइलैण्ड के अपने हाउस बोट पर सप्ताहांत के लिए बुलाया। काफी लम्बा चौड़ा इंतज़ाम था। सबकुछ बेहद सुव्यवस्थित। महोगनी के पैनल वाले कमरे और मेहमानों के लिए निजी राजसी ठाठ बाठ वाले कमरे। रात में बोट के चारों ओर रंगीन बत्तियों के मनमोहक बंदन का जगमगा उठे। गर्म और सुंदर शाम थी और डिनर के बाद अपनी कॉफी और सिगरेट लेकर ऊपर वाले डेक में जगमगाती रंगीन रोशनियों के नीचे जाकर बैठे गए। यही वो इंगलैण्ड था जो मुझे किसी भी देश से वापस खींच सकता था।

अचानक कहीं से एक बनावटी आवाज ने पागलों की तरह चीखना शुरू कर दिया; "अरे देखो, क्या प्यारी बोट है मेरी, देखो! मेरी मस्त नाव को! और क्या रोशनी! हा! हा! हा!" आवाज़ मज़ाक उड़ाने वाली हँसी में बदल रही थी। हम लोगों ने यह देखने के लिए नज़र दौड़ायी कि कहाँ से यह धारा फूट कर आ रही है। हमने खेनेवाली नाव में सफेद फ्लेनल के कपड़े पहने एक आदमी को देखा जिसके पीछे की सीट पर एक औरत लेटी हुई थी। पूरा दृश्य "पंच" पत्रिका के किसी कार्टून चित्र की तरह था। कोर्नो रेलिंग पर झुके और ज़ोर से आवाज़ लगायी लेकिन उसने अपनी पागलों जैसी हँसी नहीं रोकी।

"अब एक ही चीज़ की जा सकती है," मैंने कहा: "हम भी वैसे अश्लील बन जाएं जैसा वो हमें सोचता है।" फिर तो मैंने चुन-चुन कर ऐसी गालियां सुनायी जो उसके साथ की औरत के झेंपने के लिए काफी थी। वो झटपट खिसक लिया।

ये मूर्ख चिल्ला-चिल्लाकर रुचि की आलोचना नहीं कर रहा था, ये तो अहंकार भरा पूर्वाग्रह था उस चीज के खिलाफ जिसे वह निम्न वर्गीय ठाठ बाठ समझ रहा था। बकिैघम पैलेस के सामने वह कभी अट्टहास करते हुए नहीं चिल्लाएगा कि देखो मैं कितने बड़े घर में रहता हूं, या राज्याभिषेक वाले रथ पर नहीं हँसेगा। हमेशा इस तरह होनेवाले वर्गीकरण का इंगलैण्ड में मुझे तीखा अनुभव मिला। ऐसा लगता है जैसे इस तरह के अंग्रेज सामाजिक तौर पर दूसरों की कमियां बड़ी जल्दी ही मापने तौलने लगते हैं।

हमारी अमेरिकी मंडली काम में लग गयी थी और लंदन के हॉलों में हम लोगों ने चौदह सप्ताह तक प्रदर्शन किया। शो ठीक चले, दर्शक भी अच्छे थे लेकिन हमेशा मैं यह सोचता रहता कि कहीं अमेरिका वापिस जा पाऊँगा या नहीं। इंगलैंड से मुझे प्यार था, पर मेरे लिए वहाँ रहना असंभव था; अपनी पृष्ठभूमि के चलते हमेशा ये बात बेचैन किए रहती कि यहाँ रह कर मैं अपनी तुच्छता के दलदल में धंसता चला जा रहा हूं। इसलिए स्टेट्स के अगले टूर के लिए हमारे बुक हो जाने का समाचार पाकर मैं बड़ा खुश हुआ।

रविवार को सिडनी और मैं मां से मिलने गए। उसकी सेहत पहले से बेहतर लगी और सिडनी के प्रदेशों की तरफ जाने से पहले हम लोगों ने साथ खाना खाया। लंदन में अपनी आखिरी रात अपनी भावनाओं से जूझता हुआ, उदासी और कड़वाहट लिए हुए मैं वेस्ट एंड में चहलकदमी कर रहा था और अपने आप से कह रहा था, इन गलियों को आखिरी बार देख रहा हूँ।

इस बार हम ओलंपिक पर सेकंड क्लास में न्यू यॉर्क होते हुए पहुँचे। इंजन की धड़कन धीमी पड़ गयी। उसका मतलब था हम अपनी नियति के करीब पहुँच रहे हैं। इस बार स्टेट्स अपरिचित नहीं लगा। मुझे लगा मैं विदेशियों के बीच विदेशी हूँ, बाकी सबसे जुड़ा हुआ।

न्यू यॉर्क को मैं जितना पसंद करता था, उतनी ही उत्सुकता से मैं वेस्ट की प्रतीक्षा कर रहा था जहाँ फिर उन लोगों से मुलाकात होगी जिन्हें अब मैं अच्छा दोस्त समझता था : मोन्टाना के बट्ट के बार में काम करने वाला आयरिश, मिनेपोलिस का दोस्ताना मेहमाननवाज़ जमीन जायदाद वाला लखपती, सेंट पॉल की सुंदर लड़की जिसके साथ मैंने एक रोमांटिक सप्ताह बिताया था। सॉल्ट लेक सिटी का स्कॉटिश खदान मालिक, टकोमा का मित्रवत डेंटिस्ट और सेन फ्रांसिस्को का ग्रॉमैन्स परिवार।

प्रशांत के तट पर जाने से पहले हमने "स्माल्स" के इर्द गिर्द कार्यक्रम किये। शिकागो और फिलाडेल्फिया के दूरस्थ उपनगरों और फॉल रिवर और ड्यूलुथ जैसे औढ़द्योगिक शहरों के छोटे (स्माल) थिएटरों में।

पहले की तरह मैं अकेले रह रहा था लेकिन इसके लाभ थे, क्योंकि इससे मुझे स्वाध्याय का मौका मिलता था। जिसका संकल्प मैंने महीनों के पहले किया था पर पूरा नहीं कर पाया था।

कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनमें कुछ जानने समझने की प्रचण्ड इच्छा होती है। मैं भी उन्हीं में से एक था। पर मेरा उद्देश्य इतना पवित्र नहीं था। मैं जानचा चाहता था लेकिन मुझे ज्ञान से प्रेम नहीं था, मेरे लिए यह जाहिलों के प्रति दुनिया की घृणा से बचने के लिए ढाल थी। इसलिए जब मुझे समय मिलता था, मैं सेकेंड हैंड किताबों की दुकानों के चक्कर लगाता था।

फिलाडेल्फिया में यूँ ही एक बार मुझे राबर्ट इंगरसोल्स की किताब एसेज़ एंड लेक्चर्स का एक संस्करण हाथ लग गया। बड़ी उत्साहजनक खोज थी यह; उसकी नास्तिकता से मेरे इस विश्वास को बल मिला कि ओल्ड टेस्टामेंट की भयानक क्रूरता मानवता के लिए शर्मनाक बात थी। फिर मुझे इम़र्सन मिले। "सेल्फ रिलाएन्स" ("आत्मनिर्भरता") पर उनका लेख पढ़ कर लगा जैसे मुझे स्वर्गीय जन्मसिद्ध अधिकार सौंप दिया गया हो। फिर आए शापेनहावर। मैंने द वर्ल्ड एज़ विल एंड आइडिया के तीन खंड खरीदे जिसे चालीस सालों से जब तब पढ़ता रहा हूं पर कभी भी शुरू से अंत तक नहीं। वाल्ट व्हिटमैन की लीव्स ऑफ ग्रास से मुझे चिढ़ हुई और ये च़िढ़ आज तक बरकरार है। उसमें प्यार भरा हृदय कुछ ज्यादा ही उमड़ता है और राष्ट्रीय रहस्यवाद की अति है। शो के बीच मिलने वाले समय में अपने ड्रेसिंग रूम में मैंने ट्वेन, पो, हार्थोन, इर्विंग और हैज़लिट को भी पढ़ने का आनंद लिया। दूसरे दौरे में शास्‍त्रीय शिक्षा उतनी भले ही न आत्मसात कर पाया होऊं जितना मैं चाहता था, पर जिस कारोबार में मैं था उसके निचले स्तर के उबाऊपन से मेरा परिचय हो गया था।

ये सस्ते रंगारंग सर्किट्स बड़े ही मनहूस और निराशाजनक थे और अमेरिका में मेरे भविष्य की आशा सप्ताह के हर दिन तीन और कभी तीन और कभी चार शो की चक्की में पिसने लगी। इसकी तुलना में इंगलैंड का रंगारंग जगत स्वर्ग था। कम से कम वहाँ सप्ताह में छ: दिन ही काम करते थे और एक रात में दो ही शो होते थे। अमेरिका में हमें यही सोच कर संतोष कर लेना पड़ता था कि पैसा कुछ ज्यादा बच रहा है।

लगातार पाँच महीनों तक "कड़ी" मेहतन के साथ काम करने की थकान से मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी। इसलिए फिलाडेल्फिया में एक हप़‹ते के आराम का जब मौका मिला तो मैंने इसे सहर्ष स्वीकार किया। मुझे बदलाव चाहिए था। दूसरा परिवेश चाहिये था। अपनी पहचान खोकर कोई और बन जाने के लिए मौका चाहिये था। रोज़-रोज़ की इस घटिया दर्जे की रंगारंग प्रस्तुति से उकता गया था और सोचा एक हफ्ते जम कर ऐश़ की जाय। काफी पैसे जमा हो चुके थे और खूँटे से एक बार जो छूटा, दिल खोल कर खरचने लगा। और क्यों नहीं? मैंने इतना जमा करने के लिए फूंक -फूंक कर खर्च किया था और ये सोचा था कि जब काम नहीं होगा, उस समय भी संभाल कर खरचना है, तो फिर अभी क्यूं नहीं जरा सा खर्च कर लिया जाए?

मैंने एक मँहगा ड्रेसिंग गाउन खरीदा और एक शानदार सूटकेस खरीदा जिसकी कीमत पिचहत्तर डालर पड़ी। दुकानदार तो खुशामद में बिछ गया; "सर, कहिए तो आपके घर पर पहुँचा दिया जाय?" उसके इन थोड़े से शब्दों ने मेरा सिर ऊंचा कर दिया, मुझे कुछ विशिष्ट बना दिया। अब न्यूयार्क जाऊंगा और इस घटिया रंगारंग कार्यक्रम का और इसके पूरे अस्तित्व का चोला अपने पर से उतार फेकूँगा।

मैंने होटल एस्टॉर में एक कमरा लिया। ये होटल उन दिनों बड़ा आलीशान माना जाता था। मैंने अपना नया कोट और डर्बी टोप पहना, छड़ी ली और हाँ, साथ में अपना छोटा सूटकेस भी ले लिया। लॉबी की तड़क-भड़क और वहाँ आते-जाते लोगों का विश्वास देख कर मैं कुछ डगमगाया। घबड़ाहट में ही डेस्क पर जाकर नाम दर्ज कराया।

कमरे का किराया 4.50 डालर प्रतिदिन। डरते हुए मैंरे पूछा कि किराया एडवांस में दे दू। क्लर्क ने बड़ी ही विनम्रता और दिलासा भरे अंदाज में कहा, "अरे नहीं, सर, ऐसी कोई ज़रूरत नहीं है।"

लॉबी की चमक-दमक और शानो-शौकत के बीच चलते हुए मेरी भावनाओं को कुछ कुछ होने लगा और कमरे में पहुँच कर मन रोने को करने लगा। कमरे में मैं लगभग एक घंटे तक रहा। बाथरूम में लगे तरह-तरह के आइनों और नलों का मुआयना किया। इसके ठंडे और गर्म पानी के नलों को चलाकर उनका प्रचुर बहाव देखा। नलकों और फव्वारों की बढ़िया किस्में निहारता रहा। कितनी बेहिसाब होती है विलासिता और कितनी आश्वस्त करती है।

मैंने स्नान किया, बालों में कंघी की, नया बाथ रोब पहना। मेरा इरादा था अपने चार डॉलर पचास सेंट की पाई पाई को भोगना। काश, मेरे पास पढ़ने को कुछ होता - अखबार ही सही। लेकिन अखबार मंगाने के लिए फोन करने का आत्मविश्वास नहीं था। सो, कमरे के बीच में एक कुर्सी पर बैठकर अत्यंत उदास मन से हर चीज को निहारने लगा। जितना देखता, उतना ही दु:खी होता जाता।

कुछ देर बाद मैंने कपड़े पहने और नीचे उतरा। मुख्य भोजन कक्ष का रास्ता पूछा। अभी डिनर का समय नहीं हुआ था। जगह खाली-खाली थी। बस, दो एक खाने वाले पहुँचे थे। हेड वेटर मुझे खिड़की के पास वाली एक टेबल की ओर ले गया।

"सर, आप यहाँ बैठना पसंद करेंगे?"

"कहीं भी चलेगा," मैंने अपनी सबसे उम्दा अंग्रेजी आवाज़ में कहा।

अगले ही पल वेटरों की फौज ने मुझे घेर लिया और ठंडा पानी, मेन्यू, मक्खन और ब्रेड पेश करने लगे। भावुकता में मेरी भूख गायब हो चुकी थी। अलबत्ता, मैंने इशारों से काम लिया और शोरबा, रोस्ट किया हुआ चिकेन और मीठी चीज के तौर पर वनीला आइसम का ऑर्डर दिया। शराबों का एक मेन्यू वेटर ने मुझे दिया। मैंने ध्यान से देखने के बाद आधी बोतल शैम्पेन मँगायी। मैं रईस की भूमिका में इतना डूबा हुआ था कि भोजन और शराब का मज़ा क्या ही लेता। खा पी लेने के बाद मैंने वेटर को एक डॉलर का टिप दिया जो उन दिनों के हिसाब से असाधारण रूप से ज्यादा थी। लेकिन बाहर जाते वक्त जो अदब और आदाब मुझ पर बरसाये गये, इतनी टिप देनी बनती थी। अकारण ही, मैं वापस अपने कमरे में गया, दस मिनट तक बैठा, फिर हाथ धोये और बाहर निकल पड़ा।

चुपचाप मुलायम गर्मी की शाम थी। मेरे मूड की तरह। मैं मेट्रोपोलिटन ओपेरा हाउस की ओर जा रहा था। वहाँ "तैन्हॉउज़र" चल रहा था। मैंने कभी भी ग्रैण्ड ओपेरा नहीं देखा था। इसके कुछ अंश रंगारंगा कार्यक्रमों में देखे थे और मुझे भयंकर चिढ़ थी इससे। पर अभी मैं इसके मूड में था। मैंने एक टिकट खरीदा और सेकेंड सर्किल में बैठा। ओपेरा जर्मन में था, जिसका एक भी शब्द अपने पल्ले नहीं पड़ा और न ही मुझे इसकी कहानी मालूम थी। लेकिन रानी के मरने के बाद उसे तीर्थ यात्रियों के सामूहिक गान के संगीत के साथ लाया गया तो मैं फूट-फूट कर रो पड़ा। इसमें मेरी जिंदगी का सारा दर्द सिमट आया लगता था। मैं अपने आपको रोक नहीं पाया। मेरे आस पास बैठे लोगों ने क्या सोचा होगा, मुझे नहीं पता, लेकिन बाहर निकला तो बदन में ताकत नहीं रह गई थी और भावनात्मक रूप से चूर-चूर हो गया था।

सबसे अंधेरे रास्तों से होकर मैं शहर की ओर चलने लगा क्योंकि ब्रॉडवे की घूरती रोशनी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी और मूड ठीक होने तक मैं होटल वाले उस वाहियात कमरे में लौटना भी नहीं चाहता था। ठीक होने पर मेरा सीधा सो जाने का इरादा था। शारीरिक और मानसिक रूप से मैं निढाल हो चुका था।

होटल में घुसने के पहले मैं अचानक हेट्टी के भाई आर्थर केली से टकरा गया। हेट्टी जिस मंडली में थी उसका वह मैनेजर था। उसका भाई होने के नाते हम लोगों में दोस्ती थी। आर्थर को मैंने कई बरसों से नहीं देखा था।

"चार्ली! कहाँ जा रहे हो?" उसने कहा। मैने लापरवाही से एस्टर की दिशा में सिर हिलाया, "सोने जा रहा था।"

आर्थर पर इसका असर पड़ा।

उसके साथ दो दोस्त थे। उनसे मेरा परिचय कराने के बाद उसने प्रस्ताव रखा कि हम सभी मेडिसन एवेन्यू स्थित उसके घर चलें, कॉफी पी जाय और गपशप हो।

फ्लैट आरामदायक था। हम लोगों ने साथ बैठ कर हल्की फुल्की इधर-उधर की बातें कीं। आर्थर इस बात के प्रति सतर्क था कि हमारे अतीत का कोई जिक्र न आने पाए। वैसे, मेरे एस्टर में ठहरने की बात सुनकर वह और जानने को उत्सुक था। लेकिन मैंने कुछ खास बताया नहीं। सिर्फ ये कि मैं दो या तीन दिनों की छुटटी में न्यूयॉर्क आया था।

केंबरवैल में जब आर्थर रह रहा था तब से अब तक उसने लम्बा सफ़र तय कर लिया था। अब वह अमीर व्यवसायी बन गया था और अपने जीजा फ्रेंक जे गॉल्ड के लिए काम करता था। उसकी दुनियावी बातें सुन कर मैं और उदास होता गया। अपने दोस्तों में से एक की ओर इशारा करते हुए केली ने कहा, "अच्छा लड़का है वह। अच्छे परिवार का है, मेरी जानकारी में।" खानदान के बारे में उसकी रुचि देखकर मैं अपने आप पर मुस्कुराया और समझ गया कि आर्थर और मेरा मेल नहीं था।

न्यू यार्क में मैं केवल एक दिन रुका। अगली सुबह मैंने फिलाडेल्फिया लौटने का फैसला किया। उस एक दिन में मुझे जो बदलाव चाहिए था, वह मिला पर ये भावनात्मक अकेलेपन का था। मुझे अब संग-साथ चाहिए था। मुझे सोमवार सुबह वाले कार्यक्रम और मंडली के लोगों से मिलने का इंतज़ार था। पुराने कोल्हू में जुतना कितना भी उबाऊ हो, उस एक दिन के ठाट-बाट से मेरा जी भर गया था।

फिलाडेल्फ़िया लौट कर मैं थिएटर गया। रीव्ज़ साहब के नाम एक तार आया था और उन्होंने जब उसे खोला, मैं वहीं था।

"मुझे लगता है कहीं तुम्हारे लिए तो नहीं," उन्होंने कहा।

लिखा था "आपकी कंपनी में चैक़िन या वैसे ही नाम का कोई व्यक्ति है। यदि हो तो वह कैसेल एंड बावमैन, 24 लॉन्गकेयर बिल्डिंग ब्रॉडवे से संपर्क करे।"

कंपनी में उस नाम का कोई नहीं था, लेकिन रीव्ज़ का मानना था कि उस नाम का मतलब चैप्लिन हो सकता है। फिर तो मैं आनंदित हो उठा क्योंकि मुझे, जैसा कि पता चला, लॉन्गकेयर बिल्डिंग ब्रॉडवे के बीचों-बीच पड़ती थी और इसमें वकीलों के दफ्तर भरे पड़े थे; ये याद करके कि स्टेट्स में कहीं मेरी एक अमीर चाची हुआ करती थी, मेरी कल्पना को पंख लग गए; गुज़रने से पहले वो ज़रूर अच्छा-खासा पैसा छोड़ गयी होगी। सो मैंने झटपट केसल एंड बावमैन को तार दिया कि कंपनी में चैप्लिन नामक एक व्यक्ति है और वे शायद उसी के बारे में बात कर रहे हैं। मैं उत्सुकता से जवाब की प्रतीक्षा करने लगा। उसी दिन जवाब मिला। मैंने झट से तार फाड़ा और खोलकर पढ़ा।

लिखा था: "क्या आप चैप्लिन को जल्द से जल्द दफ्तर में मिलने को कह सकते हैं।"

उत्साहित होकर बड़ी आशा से मैंने न्यू यार्क के लिए एकदम सुबह की गाड़ी पकड़ी। फिलाडेल्फ़िया से ढाई घंटे का रास्ता था। क्या होगा मुझे नहीं पता था - मैंने कल्पना की कि किसी वकील के दफ्तर में बैठा हूं और मुझे कोई वसीयत पढ़कर सुनायी जा रही है।

पहुँचने पर कुछ निराशा हुई क्योंकि केसल एंड बावमैन वकील नहीं थे, चलचित्र निर्माता थे। अलबत्ता, ये मामला रोमांचक होने जा रहा था।

चार्ल्स केसल कीस्टोन कंपनी के मालिकों में से एक थे। उन्होंने कहा कि मिस्टर मैक सेनेट ने मुझे फोर्टी सेकेण्ड स्ट्रीट वाले अमेरिकी म्यूज़िक हॉल में पियक्कड़ की भूमिका में देखा था और यदि मैं वही आदमी हूँ तो वो मुझे फोर्ड स्टर्लिंग की जगह रखना चाहेंगे। मेरे मन में कई बार फिल्मों में काम करने का ख्याल आया था, और अपने मैनेजर रीव्ज़ के सामने मैंने प्रस्ताव भी रखा था कि हम लोग मिलकर साझेदारी में कार्नो के स्केचेज के सर्वाधिकार खरीद लें और उनकी फिल्में बनाएं। लेकिन रीव्ज़ को पूरा भरोसा नहीं था, और बात सही भी थी, क्योंकि हम फिल्मों बनाने के बारे में कुछ जानते नहीं थे।

"क्या मैंने कीस्टोन की कोई कॉमेडी देखी है?" केसल साहब ने पूछा। देखी तो मैंने कई थी, लेकिन मैंने ये नहीं बताया कि मुझे वो कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा जोड़ के बनायी लगती थी। अलबत्ता, माबेल नार्मेड नामक खूबसूरत लड़की, जो बीच बीच में उन फिल्मों में आती जाती रहती थी, की मौजूदगी के कारण वे अब तक टिके हुए थे। कीस्टोन ढर्रे की कॉमेडी को लेकर मैं कुछ खास उत्साहित नहीं था, लेकिन मुझे इसकी लोकप्रियता का भान था।

इस लाइन में एक साल बिताकर रंगारंग कार्यक्रमों की दुनिया में लौटने पर मैं अंतर्राष्ट्रीय सितारा बन जाऊंगा। इसके अलावा, इसमें एक नयी ज़िंदगी और अच्छा माहौल भी था। कैसल का कहना था कि करार के अनुसार मुझे प्रति सप्ताह तीन फिल्मों में काम करना होगा और वेतन होगा डेढ़ सौ डालर। कार्नो की कंपनी से जितना मिलता था, उससे यह दुगुना था। फिर भी मैंने ना नुकुर करते हुए कहा कि प्रति सप्ताह दो सौ डॉलर से कम नहीं लूँगा। कैसल साहब ने कहा अब ये सेनेट साहब पर है; वो उन्हें केलिफोर्निया में बता देंगे। फिर मुझे सूचना मिल जाएगी।

कैसल के जवाब का इंतज़ार मैंने बड़ी बेचैनी से किया। शायद मैं बहुत ज्यादा मांग बैठा था। आखिरकार खत आया कि वे लोग पहले तीन महीनों के लिए डेढ़ सौ डॉलर और बाकी के नौ महीनों के लिए एक सौ पचहत्तर डॉलर - जिंदगी में अब तक इससे बड़ा ऑफर नहीं मिला था - के हिसाब से साल भर के करार के लिए तैयार थे। सलिवन एंडं कंसिडाइन टूर के समाप्त होते ही काम शुरू होना था।

ईश्वर की कृपा से लॉस एंजेल्स में हम लोग एम्प्रेस में खूब चले थे। यह एक कॉमेडी थी। नाम था "ए नाइट एट द क्लब"। मैं एक कमज़ोर बूढ़े पियक्कड़ की भूमिका में था और दिखने में कम से कम पचास बरस का लग रहा था। नाटक समाप्त होने पर सेनेट साहब खुश होकर मुझे बधाई देने आए थे। उस छोटी-सी मुलाकात में मेरा साबका घनी भौंह, भारी अनाकर्षक मुंह, और मजबूत जबड़े वाले एक भारी-भरकम इन्सान से पड़ा था और इस चेहरे मोहरे से मैं प्रभावित हुआ। पर मैं इस उधेड़बुन में था कि अपने भविष्य के रिश्ते में वह कितनी सहृदयता से पेश आएंगे। उस साक्षात्कार में लगातार मैं बेहद नर्वस था और समझ नहीं पा रहा था कि बंदा मुझसे खुश है या नहीं।

मैं कब उन्हें ज्वाइन करूँगा, उन्होंने चलताऊ ढंग से पूछा। मैने बताया सितंबर के पहले हफ्ते में शुरू करूँगा, जब कार्नो कंपनी से मेरा करार खत्म हो रहा है। कन्सास सिटी छोड़ने को लेकर मेरे मन में कुछ खटका था। कंपनी वापस इंग्लैंड जा रही थी और मैं लॉस एंजेल्स, जहाँ मैं अकेला होऊंगा और बात कुछ जम नहीं रही थी। अंतिम कार्यक्रम के पहले मैंने सबके लिए ड्रिंक मंगाया और सबसे विदा लेने के विचार से मैं कुछ ग़मगीन हो गया।

अपनी मंडली के आर्थर डेन्डो, जिसकी मुझसे किसी कारण वश पटती नहीं थी, को मज़ाक सूझा और मुझे कुछ उपहासात्मक ढंग से कसमसा कर बताया कि कंपनी की ओर मुझे तोहफ़ा मिलेगा। ये कबूल करता हूँ कि ये बात मेरे दिल को छू गयी थी। अलबत्ता, कुछ हुआ नहीं। ड्रेसिंग रूम से जब सब जा चुके थे, फ्रेड कार्नो जूनियर ने स्वीकार किया कि डैंडो ने वास्तव में एक विदाई भाषण तैयार किया था और मुझे एक भेंट देने की व्यवस्था की थी, लेकिन ये देखकर कि मैंने सबके लिए पीने का इंतजाम किया है, उसकी वो सब करने की हिम्मत नहीं हुई और वह तथाकथित "उपहार" ड्रेसिंग टेबल के आइने के पीछे छोड़ गया था। टीन की पन्नी में लिपटी हुई तंबाकू की खाली डिबिया थी जिसमें चिकनाई वाले रोगन की पुरानी खुरचन रखी हुई थी।