चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 12 Suraj Prakash द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 12

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

12

मैं किशोरावस्था की मुश्किल और अनाकर्षक उम्र के दौर में आ पहुंचा था और उस उम्र के संवेदनशील उतार-चढ़ावों से जूझ रहा था। मैं बुद्धूपने और अतिनाटकीयता का पुजारी था, स्वप्नजीवी भी और उदास भी। मैं ज़िंदगी से खफ़ा भी रहता था और उसे प्यार भी करता था। मेरा दिमाग अविकसित कोष की तरह था फिर भी उसमें अचानक परिपक्वता के सोते से फूट रहे थे। चेहरे बिगाड़ते दर्पणों की इस भूल भुलइयां में मैं इधर उधर डोलता और मेरी महत्त्वाकांक्षाएं रह-रह कर फूट पड़ती थीं। कला शब्द कभी भी मेरे भेजे में या मेरी शब्द सम्पदा में नहीं घुसा। थियेटर मेरे लिए रोज़ी-रोटी का साधन था, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

इस चक्कर और भ्रम के आलम में मैं अकेला ही रहता आया। इस अवधि के दौरान मेरी ज़िंदगी में रंडियों, बेशर्म औरतों और बीच-बीच में एकाध बार शराबखोरी के मौके आते और जाते रहे। लेकिन सुरा, सुंदरी और न ही गाना बजाना देर तक मेरे भीतर दिलचस्पी जगाये रख पाये। मैं सचमुच रोमांस और रोमांच चाहता था।

मैं एडवर्डकालीन कपड़ों में गदबदे बच्चे, टेडी बॉय के मनोवैज्ञानिक नज़रिये को अच्छी तरह से समझ सकता हूं। हम सब की तरह वह भी ध्यान चाहता है, अपनी ज़िंदगी में रोमांस और ड्रामा चाहता है। तब क्यों न प्रदर्शन की भावना के पल और खरमस्ती की कामना उसके मन में आये जिस तरह से पब्लिक स्कूल का लड़का अपनी आवारगर्दी और उदंडता के साथ इस कामना का प्रदर्शन करता है। क्या यह प्राकृतिक और स्वाभाविक नहीं है कि जब वह अपने वर्ग और तथाकथित बेहतर वर्गों को अपनी अकड़फूं दिखाते हुए देखता है तो उसके मन में भी यही कुछ करने की ललक जागती है।

वह जानता है कि मशीन उसके मन की बात मानती है और किसी भी वर्ग की बात मानती है। कि उसके गियर बदलने या बटन दबाने के लिए किसी खास मानसिकता की ज़रूरत नहीं पड़ती। अपनी असंवेदशील उम्र में वह किसी नवाब, अभिजात्य या विद्वान की तरह भयावह नहीं है। उसकी उंगली किसी नेपोलियन सेना की तरह इतनी ताकतवर नहीं है कि किसी शहर को नेस्तनाबूद कर डाले। क्या टेडी बॉय अपराधी शासक वर्ग की राख में से जन्म लेता फिनिक्स नहीं है! उसका व्यवहार शायद अचेतन की इस भावना से प्रेरित है कि आदमी सिर्फ अर्ध पालतू जानवर होता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी दूसरों पर धोखेबाजी, क्रूरता और हिंसा के जरिये ही राज करता रहा है। लेकिन जैसा कि बर्नार्ड शॉ ने कहा है,"मैं आदमी को वैसे ही भटकाता हूं जिस तरह से तकलीफें हमेशा भटकाती हैं।"

और आखिर मुझे एक रंगारंग व्यक्तिचित्र, केसै'ज सर्कस में काम मिल ही गया। मुझे डिक टर्पिन, हाइवे मैन और ड़ॉ वैल्फोर्ड बोडी पर प्रहसन करना था। मुझे सफलता का पूरा इलहाम था क्योंकि ये सिर्फ निचले दर्जे की कॉमेडी के अलावा भी बहुत कुछ था। ये एक प्रोफेसरनुमा, विद्वान, व्यक्ति का चरित्र-चित्रण था और मैंने खुशी-खुशी मन ही मन तय किया कि मैं उन्हें जस का तस पेश करूंगा। मैं कम्पनी में सबकी आंखों का तारा था। हफ्ते में तीन पाउंड कमाता था। इसमें बच्चों का एक ट्रुप शामिल था जो एक सड़क दृश्य में बड़ों की नकल उतारता था। मुझे लगा, ये बहुत ही वाहियात किस्म का शो था लेकिन इसने मुझे एक कॉमेडियन के रूप में खुद को विकसित करने को मौका दिया। जब कैसी'ज सर्कस ने लंदन में प्रदर्शन किये तो हम छ: लोग मिसेज फील्डस् के साथ केनिंगटन रोड पर रहे। वे पैंसठ बरस की एक बूढ़ी विधवा महिला थीं जिनकी तीन बेटियां थीं। फ्रेडेरिका, थेल्मा, और फोबे। फ्रेडेरिका की एक रूसी केबिनेट मेकर के साथ शादी हो रखी थी जो वैसे तो शरीफ आदमी था लेकिन निहायत ही बदसूरत था। उसका चौड़ा-सा तातार चेहरा था, लाल बाल थे, लाल ही मूंछें और आंख में उसकी भेंगापन था। हम छ: के छ: जन रसोई में खाना खाया करते। हम परिवार को बहुत अच्छी तरह से जानने लग गये थे। सिडनी जब भी लंदन में काम कर रहा होता, वहीं ठहरता।

जब मैंने अंतत: कैसी'ज़ सर्कस छोड़ा तो मैं केनिंगटन रोड लौटा और फील्ड्स परिवार के पास ही रहता रहा। बूढ़ी महिला भली, धैर्यवान और मेहनतकश थीं और उनकी कमाई का ज़रिया कमरों से आने वाला किराया ही था। फ्रेडेरिका, यानी शादीशुदा लड़की का खर्चा पानी उसका पति देता था। थेल्मा और फोबे घर के काम-काज में हाथ बंटातीं। फोबे की उम्र पंद्रह बरस की थी और वह खूबसूरत थी। उसकी कद काठी लम्बोतरी और चिड़ियानुमा टेढ़ी थी और वह शारीरिक तथा भावनात्मक रूप से मुझ पर बुरी तरह से आसक्त थी। मैं दूसरी वाली के प्रति अपनी भावनाओं को रोकता क्योंकि मैं अभी सत्रह बरस का भी नहीं हुआ था और लड़कियों के मामले में मेरी नीयत डांवाडोल ही रहती थी। लेकिन वह तो साधवी प्रकृति की थी और हमारे बीच कुछ भी हुआ नहीं। अलबत्ता, वह मेरी दीवानी होती चली गयी और बाद में चल कर हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गये।

फील्ड्स परिवार बहुत ही अधिक संवेदनशील था और कई बार आपस में वे लोग एक-दूसरे से प्यार भरी झड़पों में उलझ जाते। इस तू तू मैं मैं का कारण अक्सर यही होता कि घर का काम करने की बारी किसकी है। थेल्मा, जो लगभग बीस बरस की थी, घर की मालकिन होने का दंभ भरती थी। वह आलसी थी और वह हमेशा यही दावा करती कि काम करने की बारी फ्रेडेरिका या फोबे की है। यह मामूली-सी बात तू तू मैं मैं से बढ़ कर हाथापाई तक जा पहुंचती। तब गड़े मुरदे उखाड़े जाते और पूरे परिवार की बखिया ही उधेड़ी जाती। और उस पर तुर्रा ये कि ये सबकी आंखों के सामने ही होता। मिसेज फील्डस् तब रहस्योद्घाटन करतीं कि चूंकि थेल्मा घर से भाग चुकी है और लिवरपूल में एक युवा वकील के साथ रह चुकी है अत: वह अपने आपको यही मान कर चलती है कि वही घर की सर्वेसर्वा होनी चाहिये और ये बात उसकी हैसियत से नीचे की है कि वह घर का कामकाज करे। मिसेज फील्डस् तब अपना आखिरी हथियार छोड़ती हुई कहतीं,"ठीक है, अगर तुम अपने आपको इस तरह की औरत मानती हो तो यहां से दफ़ा हो जाओ और जा के रहो अपने उसी लीवरपूल वाले वकील के पास, बस देख लेना अगर वो तुम्हें अपने घर में घुसने दे तो।" और दृश्य को अंतिम परिणति पर पहुंचाने के लिए मिसेज फील्डस् चाय की केतली उठा कर जमीन पर दे मारतीं। इस दौरान थेल्मा मेज पर महारानी की तरह बैठी रहती और ज़रा भी विचलित न होती। तब वह आराम से उठती, एक कप उठाती और, और उसे हौले से यह कहते हुए ठीक वैसे ही ज़मीन पर टपका देती,"मुझे भी ताव आ सकता है।" इसके बाद वह एक और कप उठा कर जमीन पर गिराती, एक और कप, फिर एक और कप . . वह तब तक कप गिरा-गिरा कर तोड़ती रहती जब तक सारा फर्श क्रॉकरी की किरचों से भर न जाता,"मैं भी सीन क्रिएट कर सकती हूं।" इस पूरे नज़ारे के दौरान मां और उसकी बहनें असहाय-सी बैठी देखती रहतीं,"जरा देखो तो, देखो तो ज़रा, क्या कर डाला है इसने?" मां घिघियाती।

"ये देख, ये देख, यहां कुछ और भी है जो तू तोड़ सकती है," और वे थेल्मा के हाथ में चीनी दानी थमा देतीं। और थेल्मा आराम से चीनी दानी पकड़ लेती और उसे भी जमीन पर गिरा देती।

ऐसे मौकों पर फोबे की बीच-बचाव कराने वाली की भूमिका होती। वह निष्पक्ष थी, ईमानदार थी और पूरा परिवार उसकी इज़्ज़त करता था। और अक्सर यही होता कि झगड़ा टंटा निपटाने के लिए वह खुद ही काम करने के लिए तैयार हो जाती। थेल्मा उसे ऐसा न करने देती।

मुझे लगभग तीन महीने होने को आये थे कि मेरे पास कोई काम नहीं था और सिडनी ही मेरा खर्चा-पानी जुटा रहा था। वही मेरे रहने-खाने के लिए मिसेज फील्डस् को हर हफ्ते के चौदह शिलिंग दे रहा था। वह अब फ्रेड कार्नो की कम्पनी के साथ मुख्य हास्य कलाकार की भूमिका निभा रहा था और अक्सर फ्रेड के साथ अपने हुनरमंद छोटे भाई की बात छेड़ देता। लेकिन कार्नो उसकी बातों पर कान ही नहीं धरते थे। उनका मानना था कि मैं बहुत छोटा हूं।

उस समय लंदन में यहूदी कामेडियनों की धूम थी। इसलिए मैंने सोचा कि मैं भी मूंछें लगा कर अपनी कम उम्र छुपा लूंगा। सिडनी ने मुझे दो पांउड दिये जिनसे मैं गाने-बजाने का साजो-सामान खरीद लाया और लतीफों की एक अमरीकी किताब मैडिसन बजट में से ढेर-सारे मज़ाकिया संवाद मार लिये। मैं हफ्तों तक प्रैक्टिस करता रहा। फील्डस् परिवार के सामने प्रदर्शन करता रहा। वे ध्यान से मेरा काम देखते और मेरा उत्साह भी बढ़ाते लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं।

मैंने फोरेस्टर म्युजिक हॉल में बिना एक भी धेला दिये एक ट्रायल हफ्ते का जुगाड़ कर लिया था। ये एक छोटा-सा थियेटर था जो यहूदी चौक पर बीचों-बीच माइल एंड रोड से पीछे की तरफ बना हुआ था। मैं वहां पहले भी कैसी'ज सर्कस के साथ अभिनय कर चुका था और मैनेजमेंट ने यह सोचा कि मैं इस लायक तो होऊंगा ही सही कि मुझे एक मौका दिया जाये। मेरी भावी उम्मीदें और मेरे सपने इसी ट्रायल पर टिके हुए थे। फोरेस्टर के यहां प्रदर्शन करने के बाद मैं इंगलैंड के सभी प्रमुख सर्किटों में प्रदर्शन करता। कौन जानता है, हो सकता है मैं एक बरस के भीतर ही रंगारंग कार्यक्रमों के शो का सबसे बड़ा और अखबारों की हैड लाइनों पर छा जाने वाला कलाकार बन जाऊं। मैंने पूरे फील्डस् परिवार के साथ वादा किया था कि मैं उन्हें हफ्ते के आखिरी दिनों के टिकट दिलवा दूंगा। तब तक मैं अपनी भूमिका के साथ भी अच्छी तरह से न्याय कर पाऊंगा।

"मेरा ख्याल है कि आप अपनी सफलता के बाद हम लोगों के साथ नहीं रहना चाहेंगे?" फोबे ने पूछा था।

"बेशक, मैं यहीं रहता रहूंगा।"

सोमवार की सुबह बारह बजे बैंड रिहर्सल और संवाद अदायगी आदि की रिहर्सल थी जिसे मैंने व्यावसायिक तरीके से निपटाया। लेकिन मैंने अब तक अपने मेक अप की तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं दिया था। रात के शो से पहले मैं घंटों तक ड्रेसिंग रूम में बैठा माथा-पच्ची करता रहा, नये-नये प्रयोग करता रहा, लेकिन मैं भले ही कितने भी लंबे रेशमी बाल क्यों न लगाऊं, मैं अपनी जवानी छुपा नहीं पा रहा था। हालांकि इस बारे में मैं भोला था लेकिन मेरी कॉमेडी बहुत अधिक यहूदी विरोधी थी और मेरे लतीफे पिटे-पिटाये थे और वाहियात थे। बल्कि मेरे यहूदी उच्चारण की तरह घटिया भी थे। और उस पर तुर्रा यह कि मैं बिल्कुल भी मज़ाकिया नहीं लग रहा था।

पहले दो एक लतीफ़ों पर ही जनता ने सिक्के और संतरे के छिलके फेंकने और जमीन पर धमाधम पैर पटकने शुरू कर दिये। पहले तो मैं समझ ही नहीं पाया कि आखिर ये हो क्या रहा है! तभी इस सब का आतंक मेरे सिर पर चढ़ गया। मैंने फटाफट रेल की गति से बोलना शुरू कर दिया। हुल्लड़बाजी और संतरों तथा सिक्कों की बरसात बढ़ती जा रही थी। जब मैं स्टेज से नीचे उतरा, तो मैं मैनेजमेंट का फैसला सुनने के लिए भी नहीं रुका, मैं सीधे ही ड्रेसिंग रूम में गया, अपना मेक-अप उतारा, थियेटर से बाहर निकला और फिर कभी वहां वापिस नहीं गया। यहां तक कि मैं वहां अपनी संगीत की किताबें उठाने भी नहीं गया।

रात को बहुत देर हो चुकी थी जब मैं वापिस केनिंगटन रोड पहुंचा। फील्डस् परिवार सोने जा चुका था और मैं इसके लिए उनका अहसानमंद ही था कि वे सो चुके थे। सुबह नाश्ते के वक्त मिसेज फील्डस् इस बारे में जानने को चिंतित थीं कि शो कैसा रहा। मैंने उदासीनता दिखायी और कहा,"वैसे तो ठीक रहा लेकिन उसमें कुछ हेर-फेर करने की ज़रूरत पड़ेगी।" उन्होंने बताया कि फोबे नाटक देखने गयी थी लेकिन उसने वापिस आ कर कुछ बताया नहीं क्योंकि वह बहुत थकी हुई थी और सीधे ही सोने चली गयी थी। जब मैंने बाद में फोबे को देखा तो उसने इसका कोई ज़िक्र नहीं किया। मैंने भी कोई ज़िक्र नहीं किया और न ही मिसेज फील्डस् ने या किसी और ने कभी भी इसका कोई ज़िक्र ही किया और न ही इस बात पर हैरानी ही व्यक्त की कि मैं उसे सप्ताह तक जारी क्यों नहीं रख रहा हूं।

भगवान का शुक्र है कि उन दिनों सिडनी दूसरे प्रदेशों की तरफ गया हुआ था और मैं उसे बताने की इस ज़हमत से बच गया कि आखिर हुआ क्या था। लेकिन ज़रूर उसने अंदाजा लगा लिया हागा या हो सकता है फील्डस् परिवार ने उसे बता दिया हो क्योंकि उसने मुझसे कभी भी इस बारे में कोई पूछताछ नहीं की। मैंने उस रात के दु:स्वप्न को अपनी स्मृति से धो-पोंछ देने की पूरी कोशिश की लेकिन उसने मेरे आत्म-विश्वास पर एक न मिटने वाला धब्बा छोड़ दिया था। उस भुतैले अनुभव ने मुझे यह पाठ पढ़ाया कि मैं खुद को सच्ची रौशनी में देखूं।

मैंने महसूस कर लिया था कि मैं रंगारंग हास्य कलाकार नहीं हूं। मेरे भीतर वह आत्मीय, नज़दीक आने की कला नहीं थी जो आपको दर्शकों के निकट ले जाती है। और मैंने अपने आपको यही तसल्ली दे ली कि मैं चरित्र प्रधान हास्य कलाकार हूं। अलबत्ता, व्यावसायिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने से पहले मुझे दो एक और निराशाओं का सामना करना पड़ा।

सत्रह बरस की उम्र में मैंने द' मेरी मेजर नाम के एक नाटक में किशोर युवक के रूप में मुख्य पात्र का अभिनय किया। ये एक सस्ता, हतोत्साहित करने वाला नाटक था जो सिर्फ एक हफ्ते चला। मुख्य नायिका, जो मेरी बीवी बनी थी, पचास बरस की औरत थी। हर रात जब वह मंच पर आती तो उसके मुंह से जिन की बू आ रही होती, और मुझे उसके पति की भूमिका में, उत्साह से लबरेज हो कर उसे अपनी बाहों में लेना पड़ता, उसे चूमना पड़ता। इस अनुभव ने मेरा इस बात से मन ही खट्टा कर दिया कि मैं कभी मुख्य कलाकार बनूं।

इसके बाद मैंने लेखन पर हाथ आजमाये। मैंने एक कॉमेडी स्कैच लिखा जिसका नाम था ट्वैल्व जस्ट मैन। ये एक हल्के फुल्के प्रहसन वाला मामला था कि किस तरह जूरी वचन भंग के एक मामले में बहस करती है। जूरी के सदस्यों में से एक गूंगा- बहरा था, एक शराबी था और एक अन्य नीम-हकीम था। मैंने ये आइडिया चारकोट को बेच दिया। ये रंगारंग मंच का एक हिप्नोटिस्ट था जो किसी हँसोड़ आदमी को हिप्नोटाइज़ करता और उसे आंखों पर पट्टी बांध कर शहर की गलियों में गाड़ी चलाने के लिए प्रेरित करता जबकि वह खुद पीछे बैठ कर उस पर चुम्बकीय प्रभाव छोड़ता रहता। उसने मुझे पांडुलिपि के लिए तीन पाउंड दिये लेकिन ये शर्त भी जोड़ दी कि मैं ही उसका निर्देशन भी करूंगा। हमने अभिनेताओं आदि का चयन किया और केनिंगटन रोड पर हॉर्नस् पब्लिक हाउस क्लब रूम में रिहर्सल शुरू कर दी। एक खार खाये एक्टर ने कह दिया कि ये स्कैच न केवल अनपढ़ों वाला है बल्कि मूर्खतापूर्ण भी है।

तीसरे दिन जब रिहर्सल चल रहा थी, मुझे चारकोट से एक नोट मिला कि उसने इस स्कैच का निर्माण न करने का फैसला कर लिया है।

अब मैं चूंकि जांबाज टाइप का नहीं था, मैंने नोट अपनी जेब के हवाले किया और रिहर्सल जारी रखी। मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि उन्हें रिहर्सल करने से रोक सकूं। इसके बजाये, मैं लंच के समय सबको अपने कमरे पर लिवा लाया और उनसे कहा कि मेरा भाई उनसे बात करना चाहता है। मैं सिडनी को बेडरूम में ले गया और उसे नोट दिखाया। नोट पढ़ने के बाद सिडनी ने कहा,"ठीक है। तुमने उन्हें इस बारे में बता दिया है ना!"

"नहीं," मैं फुसफुसाया।

"तो जा कर बता दो।"

"मैं नहीं बता सकता। बिलकुल भी नहीं। वे लोग तीन दिन तक फालतू फंड में रिहर्सल करते रहे हैं।"

"लेकिन इसमे तुम्हारा क्या दोष?" सिडनी ने कहा।

"जाओ और उन्हें बता दो," वह चिल्लाया।

मैं हिम्मत हार बैठा और रोने लगा,"क्या कहूं मैं उनसे?"

"मूरख मत बनो," वह उठा और साथ वाले कमरे में आया और उन सबको चारकोट का नोट दिखाया और समझाया कि क्या हो गया है। तब वह सबको नुक्कड़ के पब तक ले गया और सबको सैंडविच और एक-एक ड्रिंक दिलवाये।

अभिनेता एकदम मौजी आदमी होते हैं। कब क्या कर बैठें, कहा नहीं जा सकता। वह आदमी जो इतना ज्यादा भुनभुना रहा था, एकदम दार्शनिक हो गया और जब उसे सिडनी ने बताया कि मैं किस बुरी हालत में था तो वह हँसा और मेरी पीठ पर धौल जमाते हुए बोला,"इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है पुत्तर, ये सब तो उस हरामी चारकोट का किया धरा है।"

फोरेस्टर्स में अपनी असफलता के बाद मैंने जिस काम में भी हाथ डाला, उसी में मैं धराशायी हुआ और मुझे एक बार फिर असफलता का मुंह देखना पड़ा। अलबत्ता, आशावादी बने रहना जवानी का सबसे बड़ा गुण होता है, क्योंकि इसी जवानी में आदमी स्वभावत: यह मान कर चलता है कि प्रतिकूल परिस्थितियां भी अल्पकालिक ही होती हैं और बदकिस्मती का लगातार दौर भी सही होने के सीधे और संकरे रास्ते की तरह संदिग्ध होता है। दोनों ही निश्चित ही समय के साथ-साथ बदलते हैं।
मेरी किस्मत ने पलटा खाया। एक दिन सिडनी ने बताया कि मिस्टर कार्नो मुझे मिलना चाहते हैं। ऐसा लगा कि वे अपने किसी कामेडियन से नाखुश थे जो फुटबाल नाटक में मिस्टर हैरी वेल्डन के साथ भूमिका कर रहा था। ये स्कैच कार्नो साहब का अत्यंत सफल नाटक था। वेल्डन अत्यंत लोकप्रिय हास्य कलाकार थे जो तीसरे दशक में अपनी मृत्यु तक उसी तरह से लोकप्रिय बने रहे।

मिस्टर कार्नो थोड़े मोटे, तांबई रंग के आदमी थे। उनकी अंाखों में चमक थी और जिनमें हमेशा नापने जोखने के भाव होते। उन्होंने कभी अपना कैरियर आड़े डंडों पर काम करने वाले एक्रोबैट के रूप में शुरू किया था और इसके बाद उन्होंने अपने साथ तीन धमाकेदार कामेडियनों की चौकड़ी बनायी। ये चौकड़ी मूकाभिनय स्केचों का केन्द्र थी। वे खुद बहुत ही उत्कृष्ट हास्य अभिनेता थे और उन्होंने कई कॉमेडी भूमिकाओं की शुरुआत की थी। वे उस वक्त तक भी हास्य भूमिकाएं करते रहे जब उनकी दूसरी पांच-पांच कम्पनियां एक साथ चल रही थीं।

उनके मूल सदस्यों में से एक उनकी सेवा निवृत्ति का मज़ेदार किस्सा यूं बताया करता था: एक रात मानचेस्टर में प्रदर्शन के बाद, मंडली ने शिकायत की कि कार्नो की टाइमिंग गड़बड़ायी थी और उन्होंने सारे लतीफों के मज़े पर पानी फेर दिया। कार्नो, जिन्होंने तब तक अपने पांच प्रदर्शनों से 50,000 पाउंड जुटा लिये थे, कहा,"ठीक है मेरे दोस्तो, अगर आप लोगों को ऐसा लगता है तो यही सही। मैं छोड़ देता हूं।" और तब अपनी विग उतारते हुए उन्होंने उसे ड्रेसिंग टेबल पर पटका और हँसते हुए बोले,"इसे आप लोग मेरा इस्तीफा समझ लो।"

मिस्टर कार्नो का घर कोल्ड हारबर लेन, कैम्बरवैल में था और इससे सटा हुआ एक गोदाम था जिसमें वे अपनी बीस प्रस्तुतियों के लिए सीन सिनरी रखा करते थे। उनका अपना ऑफिस भी वहीं पर था। जब मैं वहां पहुंचा तो वे बहुत प्यार से मिले, "सिडनी मुझे बताता रहा है कि तुम कितने अच्छे हो," उन्होंने कहा,"क्या तुम्हें लगता है कि तुम द' फुटबाल मैच में हैरी वेल्डन के सामने अभिनय कर पाओगे?"

हेरी वेल्डन को खास तौर पर बहुत ऊंची पगार पर रखा गया था। उनकी पगार चौंतीस पाउंड प्रति सप्ताह थी।

"मुझे सिर्फ मौका चाहिये," मैंने आत्मविश्वास पूर्ण तरीके से कहा।

वे मुस्कुराये,"सत्रह बरस की उम्र बहुत कम होती है और तुम तो और भी छोटे लगते हो!"

मैं यूं ही कंधे उचकाये,"ये सब मेक अप से किया जा सकता है।"

कार्नो हंसे। इस कंधे उचकाने ने ही मुझे काम दिलवाया था, बाद में सिडनी ने मुझे बताया था।

"ठीक है, ठीक है, हम देख लेंगे कि तुम क्या कर सकते हो।"

ये काम मुझे तीन सप्ताह तक ट्रायल के रूप में करना था जिसके एवज में मुझे प्रति सप्ताह तीन पाउंड और दस शिलिंग मिलते और अगर मैं संतोषजनक पाया जाता तो मुझे एक बरस के लिए करार पर रख लिया जाता।

लंदन कोलेसियम में प्रदर्शन शुरू होने से पहले मेरे पास अपनी भूमिका का अध्ययन करने के लिए एक सप्ताह का समय था। कार्नो साहब ने मुझे बताया कि मैं जा कर शेफर्ड बुश एम्पायर में द' फुटबाल मैच देखूं और उस आदमी का अध्ययन करूं जिसकी भूमिका मुझे करनी है। मुझे ये मानने में कोई शक नहीं कि वह सुस्त और आत्म सजग था और ये कहने में भी कोई झूठी शेखी नहीं है कि मैं जानता था कि मैं उससे आगे निकल जाऊंगा। भूमिका में थोड़े और कैरिकेचर, और ज्यादा स्वांग की ज़रूरत थी। मैं अपना मन बना चुका था कि मैं उसे ठीक वैसे ही पेश करूंगा।

मुझे मात्र दो ही रिहर्सलें दी गयीं, क्योंकि इससे ज्यादा के लिए मिस्टर वेल्डन उपलब्ध नहीं थे। दरअसल वे इस बात के लिए भी खफा थे कि उन्हें अपना गोल्फ का खेल छोड़ कर सिर्फ इसी के लिए आना पड़ा।

रिहर्सलों के दौरान मैं प्रभाव न जमा सका। चूंकि मैं धीमे पढ़ता था अत: मुझे ऐसा लगा कि वेल्डन साहब मेरी क्षमता के बारे में कुछ संदेह करते थे। सिडनी भी चूंकि यही भूमिका अदा कर चुका था, अगर वह लंदन में होता तो ज़रूर मेरी मदद करता, लेकिन वह तो दूसरे हास्य नाटक में अन्य प्रदेशों में काम कर रहा था।

हालांकि द' फुटबाल मैच स्वांग वाला मामला था, फिर भी जब तक मिस्टर वेल्डन साहब सामने न आ जाते, कहीं से भी हंसी की आवाज़ नहीं फूटती थी। सब कुछ उनकी एंट्री के साथ ही जुड़ा हुआ था। और इसमें कोई शक नहीं कि वे बहुत ही शानदार किस्म के हास्य कलाकार थे और उनके आने से हँसी का जो सिलसिला शुरू होता था, वह आखिर तक थमता नहीं था।

कोलिसियम में अपने नाटक की शुरुआत की रात मेरी नसें रस्सी की तरह तनी हुई थीं। उस रात का मतलब फिर से मेरे खोये हुए आत्म विश्वास को वापिस पाना और फोरेस्टर में उस रात जो कुछ हुआ था, उसके दु:स्वप्न से खुद को मुक्त करना था। उस विशालकाय स्टेज पर मैं आगे-पीछे हो रहा था। मेरे डर के ऊपर चिंता कुंडली मारे बैठी थी और मैं अपने लिए प्रार्थना कर रहा था।

तभी संगीत बजा। पर्दा उठा। स्टेज पर एक्सरसाइज़ करते कलाकारों का एक कोरस चल रहा था। आखिरकार वे चले गये और स्टेज खाली हो गया। ये मेरे लिए संकेत था। भावनात्मक हा हा कार के बीच मैं चला। या तो मैं मौके के अनुरूप खरा उतरूंगा या फिर मुंह के बल गिरूंगा। स्टेज पर पैर रखते ही मैं राहत महसूस करने लगा। सब कुछ मेरे सामने साफ था। दर्शकों की तरफ पीठ करके मैंने मंच पर प्रवेश किया था। ये मेरा खुद का आइडिया था। पीछे की तरफ से मैं टिप टॉप लग रहा था। फ्रॉक कोट पहने हुए, टॉप हैट, हाथ में छड़ी और मोजे। हू ब हू एडवर्डकालीन विलेन। तब मैं मुड़ा। और अपनी लाल नाक दिखलायी। हंसी का फव्वारा। इससे मैं दर्शकों का कृपापात्र बन गया। मैंने उत्तेजनापूर्ण तरीके से कंधे उचकाये, अपनी उंगलियां चटकायीं और स्टेज पर इधर उधर चला। एक मुगदर पर ठोकर खायी। इसके बाद मेरी छड़ी सीधे जा कर पंचिंग बैग के साथ अटक गयी और वह उछल कर वापिस मेरे मुंह पर आ लगा। मैं अकड़ कर चला और घूमा, अपने ही सिर की तरफ बार बार छड़ी से वार करता। दर्शक हँसी के मारे दोहरे हो गये।

अब मैं पूरी तरह से सहज था और नयी नयी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं। मैं स्टेज को पांच मिनट तक भी बांधे रख सकता था और एक शब्द भी बोले बिना उन्हें लगातार हँसा सकता था। अपनी विलेनमुमा चाल के बीच मेरी पैंट नीचे सरकने लगी। मेरा एक बटन टूट गया था। मैं बटन की तलाश करने लगा। मैंने यूं ही कुछ उठाने का नाटक सा किया और हिकारत से परे फेंक दिया,"ये करमजले खरगोश!!!" एक और ठहाका।

हैरी वेल्डन का चेहरा पूरे चांद की तरह विंग्स में नज़र आने लगा था। उनके मंच पर आने से पहले कभी भी ठहाके नहीं लगे थे।

ज्यों ही उन्होंने स्टेज पर अपनी एंट्री ली मैंने लपक कर ड्रामाई अंदाज में उनकी बांह थाम ली और फुसफुसाया,"जल्दी कीजिये, मेरी पैंट खिसकी जा रही है। एक पिन का सवाल है।" ये सब उसी वक्त के सोच हुए का कमाल था और इसके लिए कोई रिहर्सल नहीं की गयी थी। मैंने हैरी साहब के लिए दर्शकों को पहले ही तैयार कर दिया था। उस शाम उन्हें जो सफलता मिली, वह आशातीत थी और हम दोनों ने मिल कर दर्शकों से कई अतिरिक्त ठहाके लगवाये। जब पर्दा नीचे आया तो मुझे पता था, मैं किला फतह कर चुका हूं। मंडली के कई सदस्यों ने हाथ मिलाये और मुझे बधाई दी। ड्रेसिंग रूम की तरफ जाते समय वैल्डन साहब ने अपने पीछे मुड़ कर देखा और शुष्क स्वर में बोले,"अच्छा रहा। बहुत बढ़िया रहा।"