वो आ रही है - 2. राणा विजेंद्र सिंह
मनोहर अपनी झोंपड़ी में जा चूका था और गांव वासियों की उत्कंठा अभी शांत नहीं हुई थी | शाम होने तक इंतज़ार के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं था | दिन गर्म एवं बोझिल लग रहा था लोग बार बार मंदिर की तरफ देख लेते जहाँ उन्हें तपती दोपहरी में भी मनोहर अपना सामान इकठा करते हुए दिखाई देता | आखिर जैसे तैसे शाम हुई और सभी गांव वासी मंदिर के प्रांगण में इकठे हो गए | बुजुर्ग मनोहर अभी तक प्रांगण में नहीं आये था | काफी इंतज़ार के बाद एक नौजवान मनोहर को बुलाने के लिए झोंपड़ी की तरफ गया और जब वह मनोहर के साथ लोटा तब बहुतों की आँखो में अतीत की यादें हिलोरे मरने लगी |
मनोहर बहुत वर्षों से इसी झोंपड़ी में रह रहा था अधिकांश नौजवान उसे एक बुड्ढे आदमी के रूप में ही जानते थे परन्तु हमेशा ऐसा नहीं था बहुत पहले जब मनोहर गांव में आया था उस वक़्त वह एक बहादुर राजपूत योद्दा था और बड़ी मूछों वाले रोबदार चेहरे के अलावा उसकी कमर में लटकी हुई सामान्य से बड़ी तलवार और एक कटार ही उसकी पहचान थी | और आज वर्षों बाद मनोहर एक बार फिर उसी तलवार के साथ सामने मौजूद था | मनोहर ने नज़र भर कर सबको देखा और फिर एक ऊँचे स्थान पर बैठ गया |
आज मनोहर को उसके विषय में बोलना था जो अपने आप में खौफ का दूसरा नाम थी मनोहर आज आखिरी बार अपने लोगों के सामने था और कल उसे लम्बी यात्रा पर निकल जाना था | कुछ समय रूककर मनोहर ने साहस इकठा किया और फिर अपने सामने की भीड़ को सम्बोधित करना आरम्भ किया |
“जैसा की आप सभी ने देखा एक बुजुर्ग कल शाम हमारे गांव में आये और उन्होंने संदेश दिया की वो आ रही है “
“बुजुर्ग कौन थे“
“बुजुर्ग हम सब के माननीय गोपाल दास जी थे”
“क्या वही गोपालदास जो राणा विजेंद्र सिंह के समय राज ज्योतिषी थे “
“हां वही गोपालदास जी परन्तु वह राणा विजेंद्र सिंह के पिता के समय से राज ज्योतिष थे“
“उनके सन्देश का अर्थ क्या है”
“उनका सन्देश उस क़हर की वापसी के बारे में है जो एक बार पहले भी हमारे रेतीले भूमि को दहला चूका है यह वही क़हर है जिसके बारे में सभी ने कभी ना कभी किसी ना किसी रूप में किस्से कहानियों में सुना है“
“वो कौन है”
“राजगोपाल जी ने इसी रहस्य को बता देने का संदेश दिया है और आज रात में उसके बारे में बता कर कल से अपनी यात्रा आरंभ करूंगा इसलिए ध्यान से से सुनिए”
“दादा क्या आप अपने बारे में भी बताएँगे”
“मेरे बारे में जानना महतवपूर्ण नहीं है बल्कि उसके बारे में जानना महतवपूर्ण है जो आ रही है क्योंकि आपको ही उसका सामना करना है | फिर भी उसकी कहानी में मेरा जिक्र आएगा ही इसलिए मैं अपने बारे में जितना आवश्यक है उतना बताऊंगा”
और इतना कहने के बाद मनोहर अपने अतीत की यादों में चला गया और उसी अतीत के बारे में बताना शुरू किया |
राणा विजेंद्र सिंह के पिता ने राजसभा में राणा विजेंद्र सिंह को राजा बनाये जाने की घोषणा की उस वक़्त में वही राजा साहब के मुख्य अंगरक्षक के रूप में मौजूद था | राजा साहब की घोषणा अभी सिर्फ औपचारिकता मात्र थी क्योंकि राजसभा का कोई भी सदस्य इस घोषणा का विरोध कर सकने का अधिकार रखता था | इसके अलावा राजपरिवार का कोई सदस्य भी राजगद्दी पर अपना अधिकार साबित करने का अधिकार रखता था | राजसभा एवं राजपरिवार के सदस्यों को मिलकर लगभर 120 व्यक्ति उस समय मौजूद थे | क्योंकि राणा विजेंद्र सिंह के नाम की घोषणा की गयी थी जोकि राजसभा एवं राजपरिवार के सबसे योग्य एवं सर्वप्रिय व्यक्ति थे इसीलिए इस घोषणा का राजयसभा ने जोरदार स्वागत किया और स्वागत के इस शोर में वह एक आवाज़ दब कर रह गयी जो शायद घोषणा का विरोध करना चाहती थी | राजज्योतिषी गोपालदास जी इस घोषणा के विरोध में थे परन्तु राजा साहब एवं राणा विजेंद्र सिंह के अलावा किसी अन्य का ध्यान उस तरफ नहीं गया |
राणा विजेंद्र सिंह को राजा बनाया जाना की घोषणा अपना पहला पड़ाव पार कर चुकी थी | अभी इस घोषणा को चुनौती देना का अधिकार रखने वाले कई व्यक्ति मौजूद थे और इस कार्य के लिए राज ज्योतिषी के निर्देशन में राज समारोह का आयोजन किया जाना बाकि था |
उसी शाम राजा साहब अपने कक्ष में राज ज्योतिषी गोपाल दास जी का इंतज़ार कर रहे थे उन्हें राज समारोह के सम्बन्ध में आवश्यक निर्देश एवं अधिकार दिए जाने थे | जिस वक़्त गोपालदास जी राजा साहब से आवश्यक निर्देश प्राप्त कर रहे थे उस वक़्त भी में वहां मौजूद थे
“प्रणाम राजा साहब”
“आइये गोपालदास जी मुझे आपका ही इंतज़ार था”
“क्या कुछ विशेष कारण से”
“गोपालदास जी हमारे वंश में ज्योतिष विद्या का कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता हम राजपूत अपनी तलवार पर भरोसा करते है”
“मुझे इस विषय में ज्ञान है राजा साहब”
“आपके पिता का हमारे दरबार में बहुत सम्मान था परन्तु इसका कारण उनकी ज्योतिष विद्या नहीं थी | और उनके बाद आपकी आयु कम होने के बावजूद आपको भी उतना ही सम्मान प्राप्त है”
“यह मेरा सौभाग्य है राजा साहब”
“आपने आज राज्यसभा में राणा विजेंद्र सिंह के राजा बनाए जाने का विरोध किया निश्चय ही इसके पीछे कोई ना कोई कारण होगा |”
“राजा साहब मेरा विरोध अकारण नहीं है“
“और हमें उम्मीद थी की आप उस कारण को स्पष्ट करने के लिए अवश्य ही आएंगे”
“राजा साहब यह मेरा कर्तव्य है”
“नहीं गोपाल दास जी जैसा की मैंने कहा हम राजपूत अपनी तलवार पर भरोसा करते है इसलिए आपका कर्तव्य भविष्यवाणियां करना नहीं बल्कि धार्मिक एवं राजकीय आयोजन में हमारा मार्गदर्शन करना है”
“मैं आपसे सहमत हूँ राजा साहब”
“तो आप यह भी समझ सकते है की राणा विजेंद्र सिंह को राजा बनाये जाने सम्बन्धी अपने निश्चय को बदलने का कारण क्या हो सकता है”
“राजा साहब सिर्फ प्रजा का हित ही आपका निश्चय बदलने का कारण हो सकता है”
“तो क्या आपके पास ऐसा कोई कारण है”
“नहीं राजा साहब मेरी विद्या के अनुसार राणा विजेंद्र सिंह प्रजा पालक राजा के रूप में अपना नाम करेंगे”
“तो फिर हमारा निश्चय बदलने का कोई कारण दिखाई नहीं देता”
“नहीं राजा साहब परन्तु मुझे अपना कर्तव्य पालन करने की आज्ञा प्रदान करें”
“अवश्य आप जो कहना चाहे कह सकते है”
“राजा साहब राणा विजेंद्र सिंह का राजा बनाना प्रजा के हित में है परन्तु राजपरिवार के हित में नहीं है”
“क्या आपकी विद्या प्रजा के कष्ट का कोई संकेत देती है”
“राजा साहब प्रजा का कष्ट अवश्य है परन्तु राणा विजेंद्र सिंह अपना सर्वोच्च बलिदान देकर भी प्रजा की रक्षा करने में समर्थ है परन्तु राणा विजेंद्र सिंह की नियति राजा बनाना नहीं है”
“वक़्त आने पर यह फैसला राणा विजेंद्र सिंह की तलवार को करने दीजिये”
“अवश्य राजा साहब”
“क्या आपको कुछ और भी कहना है”
“जैसा की आने वाले महीने में राणा विजेंद्र सिंह को राजगद्दी सौंपे जाने का निश्चय हुआ है और इससे सम्बन्धी सभी इंतज़ाम करना मेरा कर्तव्य में शामिल है तो मुझे मार्गदर्शन करने की अनुमति प्रदान की जाये”
“गोपाल दास जी राज ज्योतिषी ही इस कार्यक्रम का निर्धारण करता है और आपको भी इस कार्य के लिए समस्त अधिकार प्राप्त है”
“मुझे भविष्य को ध्यान में रखते हुए समारोह के पारम्परिक आयोजन में कुछ बदलाव करने की आज्ञा चाहिए”
“आप जैसा आयोजन करना आवश्यक समझे कर सकते है परन्तु प्रजा पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ नहीं डाला जाए और किसी भी अतिथि का अपमान नहीं होना चाहिए”
“जो आज्ञा राजा साहब”
परंपरा के अनुसार राजा विजेंद्र सिंह की राजगद्दी वाले दिन सभी भील एवं राजपूत कबीलों को आमंत्रित किया जाना था | इसके अलावा अन्य जाति के कबीलों को भी सूचना भिजवाई जानी थी | और यदि कोई भील अथवा राजपूत युवक राणा विजेंद्र सिंह को चुनौती दे तो दोनों के बीच तलवार बाजी अथ्वा अन्य आवश्यक प्रतियोगिता का आयोजन भी करना था | यह भारी भरकम आयोजन था जिसे राजज्योतिषी के निर्देशन में सेनापति को अंजाम देना था | सेनापति ने ही लिखित निमंत्रण सभी कबीलों तक पहुँचाने थे इसलिए सेनापति ने अपने चुनिंदा सिपाहियों को अलग कर रखा था ताकि जैसे ही राज ज्योतिष का निर्देश प्राप्त हो आमंत्रण पत्र रवाना कर दिए जाये | परन्तु सेनापति को आमंत्रण पत्र प्राप्त नहीं हुए बल्कि गोपालदास जी स्वयं यात्रा की तैयारी के साथ सेनापति के सामने उपस्थित हुए और उनको एक मौखिक संदेश दिया जिसे उन्हें निमंत्रण पत्र के साथ सभी राजपूत एवं भील कबीलों तक पहुंचाना था | सन्देश के मुताबिक सभी राजपूत कबीलों के सरदारों को एवं सभी भील कबीले के सरदारों को नज़दीकी गांव के पास इकठा होना था जहां पर उनके साथ महतवपूर्ण मंत्रणा की जानी थी |
राजधानी के उत्तर-पश्चिम की तरफ रेतीला इलाका था जबकि दक्षिण-पूर्व की तरफ दूर दूर तक फैली दुर्गम पहाड़ियां | जिस वक़्त सेनापति गोपालदास का सन्देश लेकर यात्रा पर निकल रहा था ठीक उसी समय गोपालदास ने कुछ सिपाहियों के साथ इन दुर्गम पहाड़ी इलाकों में कदम रखा | इन दुर्गम इलाकों में कई कबीले रहते थे और उनको भी सन्देश दिया जाना था परन्तु स्वयं राजज्योतिष सन्देश लेकर जाएँ यह अपराम्परिक था | अगले 20 दिन राजज्योतिष इन दुर्गम इलाकों की यात्रा करते रहे उन्होंने उन कबीलों से भी संपर्क स्थापित किया जिनसे कभी किसी ने संपर्क रखना आवश्यक नहीं समझा था | इनमे से सबसे प्रमुख कबीला था सिम्हद्री कबीला | यह लोग स्वयं को शिव के वंशज कहते थे और इनका ज्यादातर वक़्त शिव आराधना में ही व्यतीत होता था | इस कबीले के नागरिक बाहरी सभ्यता से सम्बन्ध नहीं रखते थे इसीलिए कभी किसी आयोजन में शामिल नहीं हुए | लिहाज़ा धीरे धीरे राजपरिवार इस कबीले को भूल गया | जब गोपालदास कबीले में पहुंचे और कबीला प्रमुख को राजकीय आयोजन में शामिल होने का निमंत्रण दिया तब कबीला प्रमुख ने बड़े गौर से राज ज्योतिष को देखा और लगभग तुरंत ही आमंत्रण को स्वीकार कर लिया |
सिम्हाद्रि कबीले के द्वारा आमंत्रण स्वीकार करना जहाँ राज ज्योतिष को संतोषप्रद लग रहा था वहीँ कइयों के माथे पर चिंता की लकीर भी छोड़ गया | चिंतित लोगो में प्रमुख थे सेनापति और राजा साहब | 20 दिन की कठिन यात्रा से वापिस लोटे राज ज्योतिष को सभी आमंत्रित अतिथियों का स्वागत का कार्य भी देखना था इसीलिए उनके पास आराम का वक़्त नहीं था | परन्तु उनके सामने सबसे विकट समस्या था राजपूत एवं भील कबीले के प्रमुख एवं अन्य कबीला प्रमुखों में सामजस्य बनाये रखना | इसीकारण गोपालदास जी ने राजपूत एवं भील सरदारों समारोह से 2 दिन पूर्व निकटवर्ती गांव में आने का निमंत्रण दिया था | गोपालदास जी का मानना था की सिर्फ सच ही संभावित अवरोध को दूर करने में समर्थ है | सेनापति राज ज्योतिष से सहमत नहीं थे सेनापति का विश्वास था की सिर्फ कूटनीति ही एकमात्र सहारा है |
“सेनापति जी राजकीय समारोह में राजपूत एवं भील कबीले वालों के अलावा कई अन्य सरदार भी आ रहे है | इससे किसी किस्म की समस्या पैदा हो सकती है इसका समाधान कैसे किया जाये |”
“गोपालदास जी हमे राजपूत एवं भील कबीले के सरदारों को अपने विश्वास में लेना होगा वैसे आपकी कार्यनीति क्या है”
“सेनापति जी सच के साथ रहना ही उत्तम कार्यनीति है”
“राजपूत एवं भील अपने शौर्य एवं हथियारों पर विश्वास करते है आपकी विद्या अथ्वा आपका सच उनके लिए महत्व नहीं रखता”
“तब आपका क्या सुझाव है”
“कूटनीति का इस्तेमाल किया जाना चाहिए”
“कैसे“
“सिम्हाद्री कबीले का आना महत्वपूर्ण है और जिस तरह सिम्हाद्रि कबीले ने निमंत्रण स्वीकार किया वह भी महत्वपूर्ण है इस घटना के बारे में सभी सरदारों को बताया जाए तो हो सकता है की सहमति बन सके”
“क्या हमें खुद बनाना होगा”
“हा हमे खुद ही बताना होगा परन्तु पहले हम सैनिकों के माध्यम से शिविर में बात फैला देंगे ताकि उत्सुकता पैदा हो और फिर हम उसका लाभ उठा सकें”
“ठीक है आप ऐसा ही कीजिए”
और इस तरह जो सैनिक राज ज्योतिष के साथ यात्रा पर गए थे उन्हें राजपूत एवं भील सरदारों के स्वागत का कार्य दिया गया और जब राज ज्योतिष भील सरदारों के सामने मंत्रणा के लिए पहुंचे तब उत्सुकता चरम पर पहुँच चुकी थी | अधिकांश राजपूत राज ज्योतिष की गणना में विश्वास नहीं करते थे परन्तु उन्हें ज्ञात था की सिम्हाद्रि कबीला बाहरी व्यक्तियों अथवा राजकीय कार्यो से संपर्क नहीं रखता परन्तु जब समाज को आवश्यकता होती है या यूं कहा जाये की जब कोई भयानक खतरा सामने हो सिम्हाद्रि समाज पहाड़ों और जंगलों से बहार आकर सहायता अवश्य करते है और सिम्हाद्रि कबीले के सरदार द्वारा निमंत्रण स्वीकार करना इस बात का प्रतीक था की जल्द ही कोई विपत्ति आने वाली है | इस भावना के कारण राज ज्योतिष का कार्य सरल हो सका और राजकीय समारोह में किसी किस्म का विवाद पैदा नहीं हुआ |
राजकीय समारोह वाले दिन राणा विजेंद्र सिंह के राजा बनाए जाने की घोषणा राजा साहब ने की जिसके जवाब में राणा विजेंद्र सिंह ने राजा साहब को धन्यवाद दिया एवं आशीर्वाद प्राप्त किया और साथ ही उपस्थित सरदारों से भी प्रार्थना की |
“उपस्थित बंधुओं में राणा विजेंद्र सिंह जिसे राजा साहब ने राजगद्दी सौंपने का निश्चय किया है | मैं इस राजगद्दी पर आप सभी के आशीर्वाद से ही बैठना चाहता हूँ इसलिए आप सभी से आशीर्वाद की कामना करता हूँ | यदि आपमें से कोई मुझे चुनौती देना चाहे तो निसंकोच दे सकता है”
“मैं अपनी बात कहना चाहता हूँ”
“क्या सिम्हाद्रि कबीला राणा विजेंद्र सिंह को चुनौती दे रहा है”
“नहीं राजा साहब सिम्हाद्रि कबीला पहाड़ों एवं जंगलों में रहता है हमे राजगद्दी से कोई मोह नहीं है परन्तु में अपनी तरफ से कुछ कहना अवश्य चाहता हूँ“
“आप अपनी आपत्ति अवश्य रख सकते है”
“सिम्हाद्रि कबीले के नागरिक सभ्य समाज में नहीं रहते परन्तु हमारा पास प्राचीन ज्ञान का विशाल भण्डार है इसी ज्ञान के आधार पर में यह कहना चाहता हूँ की राणा विजेंद्र सिंह की नियति राज गद्दी नहीं है राणा विजेंद्र सिंह को अंत में राजगद्दी का त्याग करना पड़ेगा इसीलिए राणा विजेंद्र सिंह को तय करना है की वह आज राजगद्दी का त्याग करे और स्वयं को अपनी नियति के लिए तैयार करें अथ्वा कुछ वर्षों पश्चात तैयारी शुरू करें”
“क्या राणा विजेंद्र सिंह प्रजा के लिए उत्तम राजा साबित होंगे”
“बेशक”
“तब ऐसा कोई कारण दिखाई नहीं देता जिसके कारण राणा विजेंद्र सिंह राजगद्दी का त्याग करें और जहाँ तक किसी विपत्ति का सम्बन्ध है राजपूत विपत्ति का सामना करने के लिए सदैव तैयार रहते है”
“सिम्हाद्रि कबीले का सरदार होने के नाते यह आश्वासन देता हूँ की जब भी राणा विजेंद्र सिंह राजगद्दी का त्याग करके हमसे सहायता की अपेक्षा करेंगे हम उनकी सहायता करेंगे”
राणा विजेंद्र सिंह का राजतिलक बिना किसी समस्या के हो गया | और मुझे राणा विजेंद्र सिंह का अंगरक्षक बनने का सौभाग्य हासिल हुआ | राणा विजेंद्र सिंह एक कुशल प्रशासक एवं प्रजापालक राजा साबित हुए | उन्होंने अपने राज्य के अधिकांश कबीलों की भलाई एवं उन्नति के लिए बहुत सारे कार्य किये | वक़्त बहुत तेज़ी से चलता रहा और कब पांच वर्ष बीत गए पता ही नहीं चला |
उस वक़्त राणा विजेंद्र सिंह की आयु 30 वर्ष थी जब उन्होंने राजकार्य से कुछ दिन अवकाश लेने का निश्चय किया | बल्कि अवकाश सिर्फ एक माध्यम था अपने राज्य के दूर दराज़ के इलाको की यात्रा करने का | राणा विजेंद्र सिंह ने अपने अंगरक्षकों एवं कुछ अन्य महतवपूर्ण सरदारों के साथ यात्रा आरम्भ की | यात्रा का मकसद था उन कबीलों से संपर्क स्थापित करना जो दुर्गम पहाड़ियों में रहते है और दुर्गम पहाड़ियों में अपनी सीमाओं की पहचान सुनिश्चित करना |