Woh aa rhi hai - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

वो आ रही है - भाग 01

राजस्थान एक ऐसा प्रदेश जिसका नाम सुनकर ही चारों तरफ रेत ही रेत महसूस होने लगती है | जिसने कभी राजस्थान नहीं देखा उसकी नज़र में राजस्थान एक बंजर भूमि के अलावा कुछ नहीं | वास्तव में ऐसा नहीं है वास्तव में राजस्थान का एक हिस्सा ही रेतीला है और एक बहुत बड़ा हिस्सा पहाड़ियों से घिरा हुआ है | राजस्थान का जो हिस्सा रेतीला है वह भी बेशक बहुत उपजाऊ ना हो परन्तु इस रेतीले टीलों ने बहुत सरे शूरवीरों पैदा किये है और इन्ही शूरवीरों के माध्यम से इतिहास में अपना बहुत बड़ा स्थान बनाया है | राजस्थान के इन रेतीले टीलों के बीच बहुत सारे ऐसे भूभाग है जहाँ पानी भी मिल जाता है और हरियाली भी ऐसे ही अनेक भूभागों में हज़ारों की संख्या में स्त्री पुरुष निवास करते है | राजस्थान जो बहुतों के लिए बेकार बंजर जमीन है वही इसके निवासियों के लिए गौरव करने लायक पुरखों की ज़मीन इसी जमीन के लिए यह राजपूत जान दे भी सकते है और जान ले भी सकते है | राजस्थान में सिर्फ राजपूत ही नहीं रहते बल्कि यहाँ बहुत सारी जातियों के लोग रहते है परन्तु वर्तमान गाथा राजपूतों के शौर्य एवं बलिदान से सम्बंधित है इसीलिए यहां राजपूतों का जिक्कर ही मह्त्वपूर्ण है | रेत के इन टीलों पर बहुत सारी गाथाएं बिखरी पड़ी है जिनमे से कई गाथाएं आज भी अधूरी है | ऐसी ही एक अधूरी गाथा राणा विजेंद्र सिंह की है |

रेगिस्तान के बीचों बीच एक ऐसी जगह जहाँ पानी और हरियाली दोनों देखी जा सकती है और इसी जगह पर बसा हुआ है एक छोटा सा गांव गुमटी | गुमटी गांव बसा हुआ है एक बहुत ही छोटी सी पहाड़ी की छाया में और इसी पहाड़ी के ऊपर बना है देवी का मंदिर | मंदिर के सामने खड़े होकर चारो तरफ देखा जाये तो दिखाई देती है रेत ही रेत और आँखों में चुबती हुई तेज धुप और मंदिर के पीछे की तरफ है एक झोंपड़ी जिसमे एक बूढ़ा आदमी रहता है | गुमटी गांव से एक रास्ता सीधे राजधानी की तरफ जाता है परन्तु राजधानी इतनी दूर है की गांव वासियों के लिए उसकी उपयोगिता नगण्य है | गुमटी के निवासियों का जीवन गुमटी और उसके आसपास की रेत में ही बीतता है | यह रेगिस्तानी गांव अपनी जरूरतों के लिए एक दूसरे पर निर्भर है इसीलिए आसपास के गांव से किसी का आना अथवा गुमटी के लोगों का किसी नज़दीकी गांव में जाना सामान्य बात है परन्तु राजधानी की तरफ जाने वाली सड़क हमेशा से सुनसान ही रही है | किसी को याद नहीं आखिरी बार कब राजधानी से कोई यात्री आया था अथवा गांव के किसी व्यक्ति ने राजधानी की यात्रा की थी |

रेगिस्तान की दोपहर की चिलचिलाती धुप के कारण सभी काम धंधे बंद हो जाते है और लोग खाने के पश्चात् सूरज ढलने तक सुस्ताने के अलावा कुछ और करना पसंद नहीं करते | ऐसी ही एक दोपहर के खाने के बाद सुस्ताने के लिए जब कुछ नौजवान मंदिर की सीढ़ियों पर इकठा हुए तब उनको गांव की तरफ आती हुई एक ऊंटगाड़ी दिखाई दी | ऊंटगाड़ी राजधानी की तरफ से आ रही थी इसीलिए सबके लिए कोतुहल का कारण थी | एक तो ऊंटगाड़ी और उस पर लम्बा सफर और वह भी चिलचिलाती धुप में , ऊंटगाड़ी को गांव आते आते शाम हो गयी | और ऊंटगाड़ी में सवारी के रूप में मौजूद एक बहुत ही बुजुर्ग आदमी | जब बुजुर्ग की ऊंटगाड़ी गांव में दाखिल हुए तब सूरज अपने घर लौटने की तैयारी कर चूका था बस अँधेरा होने ही वाला था |

बुजुर्ग की ऊंटगाड़ी को हाकने के लिए एक नौजवान और एक महिला भी थी, सबने रात्रि यात्रा सुरक्षित नहीं जान कर रात वहीँ गुजरने का फैसला किया और कुए के नज़दीक ही खाना बनाने और सोने की तैयारी शुरू कर दी | जिस वक़्त नौजवान महिला अवं पुरुष रात्रि निवास की व्यवस्था कर रहे थे ठीक उसी वक़्त बुजुर्ग अपनी लाठी का सहारा लेकर मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते चले गए | सीढ़ियों पर बैठे गाओं के एक नौजवान ने बुजुर्ग को सहारा देकर मंदिर तक पहुँचाया जहाँ पर बुजुर्ग ने मंदिर के भगवान् की आराधना की और उसके बाद मंदिर के पीछे की तरफ चल दिए | जिस नौजवान ने बुजुर्ग को सहारा दिया था वह इंतज़ार कर रहा था ताकि बुजुर्ग को सहारा देकर सीढ़ियों से नीचे भी पहुंचा सके परन्तु बुजुर्ग तो मंदिर के पीछे की तरफ चल दिए लिहाज़ा नौजवान भी उनके पीछे लपका | बुजुर्ग और नौजवान दोनों मंदिर के पीछे बनी झोंपड़ी के छोटे से दरवाज़े पर एक साथ ही पहुंचे | बुजुर्ग ने अपनी छोटी छोटी आँखें गढ़ा कर झोंपड़ी में चारों तरफ देखा तो एक कोने में एक बुजुर्ग से भी बुड्ढा व्यक्ति उनकी तरफ ही देख रहा था | दोनों की आँखें मिली और आने वाले बुजुर्ग ने झोंपड़ी वाले बुजुर्ग से कहा “वो आ रही है” | झोंपड़ी वाले बुजुर्ग का दुबला पतला शरीर जोर से कांपा और उनकी आँखें खौफ से फ़ैल गयी |

ऊंटगाड़ी वाला बुजुर्ग कुछ देर झोपडी वाले बुजुर्ग के बोलने की प्रतीक्षा करता रहा परन्तु शायद झोपडी वाले बुजुर्ग के होश खौफ के कारण कायम नहीं रह सके और वह कुछ नहीं बोल पाया | कुछ देर इंतज़ार के बाद बुजुर्ग लौट पड़े अपने ठिकाने की तरफ और नौजवान आश्चर्य से कभी सीढ़ियां उतारते बुजुर्ग को देख रहा था और कभी झोंपड़ी वाले बुजुर्ग को | नौजवान ने जो सुना जल्दी ही पुरे गांव में फ़ैल गया और सभी जानना चाहते थी की कौन आ रही है परन्तु सबको एहसास हो चूका था की जो आ रही है वह अपने साथ खौफ की आंधी भी लाएगी |

बहुत पुरानी बात है परन्तु इतनी पुरानी भी नहीं की भुला दी जाए | यादों की टोकरी हिलाने पर कुछ झलक आज भी दिखाई देती है | और वह हलकी सी झलक ही चेहरे की रौनक को सफेदी में बदल सकने में समर्थ है | शायद ऐसा कोई जीवित नहीं जो उसके बारे में पूरी कहानी बता सके परन्तु ऐसे कई है जो उसके ज़िन्दगी के कुछ टुकड़े सुना सकें | शायद टुकड़ों में बिखरी ज़िन्दगी से ही कुछ कहानी बन सके |

गांव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति, वही बुजुर्ग जो मंदिर के पीछे वाली झोंपड़ी में रहते है जिसका नाम शायद मनोहर है, पक्का नहीं पता क्योंकि किसी को उनका नाम लेकर बुलाते कभी नहीं सुना सभी उनको दादा कहते है | दादा की उम्र शायद 130 वर्ष या उससे भी अधिक है कुछ लोग कहते है की दादा ने उसे देखा है परन्तु दादा ने कभी इसका जिक्र किसी से नहीं किया | दादा के सामने किसी ने उसकी बात की तो दादा चुप हो गए | दादा कुछ नहीं बोले बस एकटक पूछने वाले का चेहरा देखते रहे जैसी किसी खौफ ने उनका मुँह बंद कर दिया हो |

रात भर गांव का माहौल तनावपूर्ण रहा और अगली सुबह जब नवयुवक पुरुष और महिला आगे की यात्रा की तैयारी में व्यस्त थे उस वक़्त बुजुर्ग बार बार मंदिर की तरफ देख रहे थे शायद उनको झोपडी वाले बुजुर्ग से कुछ उम्मीद थी और गांव वाले बुजुर्ग को देख रहे थे । आखिर चलने का वक़्त आ गया और बुजुर्ग ने आखिरी बार मंदिर की सीढ़ियों की तरफ देखा और फिर ऊंटगाड़ी में जा बैठा । अभी ऊंटगाड़ी चली ही थी कि नवयुवक ने ऊंटगाड़ी रोक दी झोंपड़ी वाला बुजुर्ग मंदिर की सीढ़ियां उत्तर रहा था ।

मनोहर यानी कि झोपड़ी वाले बुजुर्ग को पिछले कई सालों से किसी ने मंदिर से नीचे आते नहीं देखा था इसीलिए उत्सुकतावश लगभग पूरा गांव ही उनके चारो तरफ इकट्ठा हो गया । मनोहर को देख कर बुजुर्ग भी ऊंटगाड़ी से नीचे उतार आया ।


मनोहर : वो आ रही है ?

बुजुर्ग : हा वो आ रही है

मनोहर : क्या वो जाग गयी है

बुजुर्ग : नहीं उसे जल्दी ही जगाया जाएगा

मनोहर : उसे कौन जगायेगा

बुजुर्ग : राजा साहब के आदेश पर उसे जगाया जाएगा

मनोहर : परंतु वो भयानक अपराधी है

बुजुर्ग : हा वो है

मनोहर : फिर राजा साहब उसे क्यों जगा रहे है

बुजुर्ग : वक़्त बदल गया है अब वो अपराधी नहीं एक भोली भाली महिला है जिसे सालों से बंदी बनाकर उस पर अत्याचार किया जा रहा है

मनोहर : ऐसा कैसे हो सकता है क्या राजा साहब ने उसके अपराधों की लिस्ट नहीं देखी

बुजुर्ग : राजा साहब को लिस्ट दिखाई गई थी परंतु मानवता के आधार पर उस रिकॉर्ड को नष्ट कर दिया गया

मनोहर : उस पर मानवता के नियम कैसे लागू किये जा सकते है

बुजुर्ग : राजा साहब आदेश दे चुके है

मनोहर : जब वो जागेगी तो उसके साथ वो भी तो जागेगा

बुजुर्ग : हा वो भी जागेगा

मनोहर : तो फिर वो भी आएगा ?

बुजुर्ग : नही वो नहीं आ पायेगा

मनोहर : क्यों

बुजुर्ग : उसे राजा साहब नहीं आने देंगे

मनोहर : क्यों क्या उसे मानवता के आधार पर रिहा नहीं किया जाएगा

बुजुर्ग : नहीं वो भयानक अपराधी है और उसे कड़ी सुरक्षा में रखा जाए ऐसा आदेश दिया गया है

मनोहर : परंतु वो तो हीरो है

बुजुर्ग : हा वो हीरो था परंतु बदले वक़्त में वो एक अपराधी है जिसने एक भोली भाली महिला को तकरीबन 100 सालो तक कैदी बना कर रखा

मनोहर : तो हम दोनों क्या है

बुजुर्ग : हम लोगों ने उसे कैदी बनाने में सहयोग दिया इसलिए हम भी अपराधी है और जल्दी ही हमको भी उसके साथ कैद कर दिया जाएगा

मनोहर : क्या इसीलिए तुम राजधानी छोड़ आये हो

बुजुर्ग : नहीं हमारा वक़्त गुजर चुका है जब वो आएगी तब उससे लड़ने का काम हम नहीं कर सकते इसीलिए इससे फर्क नहीं पड़ता की हम आजाद रहे या जेल में | मैं सिर्फ संदेश लेकर जा रहा हूँ ताकि सभी गांव सावधान हो जाये और अपना बचाव कर सकें ।

मनोहर : तो क्या तुम वापस आओगे

बुजुर्ग : नहीं में रेगिस्तान के आखिर तक संदेश लेकर जाऊंगा और उसके बाद रेगिस्तान पार करके वही बस जाऊंगा ।

मनोहर : जब वो आएगी तब क्या तुम लड़ने नहीं आओगी

बुजुर्ग : नहीं हम गुजरा वक़्त है

मनोहर : मुझे क्या करने को कहते हो

बुजुर्ग : अपनी खामोशी तोड़ो गांव वालों को सावधान करो और फिर यात्रा आरम्भ करो अगले गांव की यात्रा करो और यात्रा जारी रखो जब तक कि पूरे प्रदेश में खबर न पहुंच दो

मनोहर : ठीक है में ऐसा ही करूंगा

बुजुर्ग : में उत्तर दिशा में यात्रा कर रहा हूँ तुम पूर्व को तरफ जाओ

मनोहर : ठीक है


और उसके बाद बुजुर्ग ऊंटगाड़ी में बैठ कर रवाना हो गए और मनोहर ने सभी गांव वालों से शाम के वक़्त इकठा होने के लिए कहकर मंदिर की सीढ़ियों से होते हुए अपनी झोंपड़ी की तरफ चल दिए ।

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