राजपुरा के जंगल ...रहस्य या कोई साजिश? - (भाग 5) Apoorva Singh द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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राजपुरा के जंगल ...रहस्य या कोई साजिश? - (भाग 5)

मान,टीना,और विशाल तीनो अलग अलग जगह जाकर गिरते हैं।वो जगह देखने मे तो बिल्कुल साधारण लग रही हैं,लेकिन असलियत में अनगिनत माया से रची हुई हैं।

इस घटना को घटित हुए कुछ पल बीत जाते हैं।

मान मूर्छित अवस्था से बाहर आता है।और आंखे खोल अपने चारों ओर देखता है।आसपास का दृश्य देख वो अपनी आंखे मींचता है और फिर खोलता है।ये क्या माजरा है।कहीं ये स्वप्न तो नही है दिवास्वप्न।मैं जल के मध्य इतनी आसानी से श्वांस कैसे ले पा रहा हूँ..!और ये क्या मेरे वस्त्र मुझे इतने हल्के प्रतीत हो रहे है और मेरी पॉकेट में ये काले रंग के मोती की ब्रेसलेट क्या कर रही है।और मेरे वस्त्र ये तो तनिक भी नही भीगे।आखिर कैसे?क्या रहस्य है इसमें।सोचते हुए वो उठता है और आस पास देखता है।चारो ओर केवल जल ही जल भरा हुआ है।जल में जलीय जीव क्रीड़ा कर रहे है।रंग बिरंगी छोटी बड़ी मछलियां,जलीय वनस्पति केकड़े ऑक्टोपस सभी मिल कर समुद्र की तलहटी के रूप के जैसे दिख रहे हैं.! क्या है..और मैं यहां कैसे आया।मैं तो वहां जंगल मे था राजपुरा के जंगलों में।मेरे साथ तो मेरे दोस्त भी थे टीना,विशाल अकीरा विवान् ये सभी कहां है? मैं कहाँ आ गया हूँ..टीना!अकीरा विवान विशाल तुम लोग कहाँ हो अगर मुझे सुन पा रहे हो तो आवाज दो..! कहाँ हो?

अब उसे क्या पता कि वो किसी और ही दुनिया मे पहुंच चुका है।वो दुनिया जिसके बारे में इस जहां का कोई व्यक्ति नही जानता।राजपुरा के जंगलों की मायावी दुनिया..!जिसमे अगर कोई फंस गया तो बमुश्किल ही निकल सकेगा।
टीना!अकीरा विवान, विशाल कहते हुए मान खड़ा हुआ और जल में तैरने की कोशिश करने लगता है।
लेकिन अगले ही क्षण ये देख हैरान हो जाता है कि वो जल में हाथ पैर मार रहा है पानी इधर से उधर भी होता है फिर भी उसमे तैरना संभव ही नही हो पा रहा है।उसका सिर चकरा जाता है और वो सर को पकड़ सोच में डूब जाता है..!

दूसरी तरफ टीना की आंख खुलती है और वो खुद को अजब से प्राणियों की दुनिया के बीच मे पाती है।वो प्राणी जो दिखते तो इंसानों के जैसे है लेकिन उनके हाव भाव सब जंगली जानवरों की तरह है।वो सभी अपने शरीर की सज्जन भी अजब तरीके से किये हुए हैं।आंखों के पूरे हिस्से को लाल रंग से रंगे है जिनको अगर कोई कमजोर ह्रदय वाला व्यक्ति देख भर ले तो डर से ही अधमरा हो जाये।नाक के ऊपर सफेद लाल रंग से विभिन्न तरह की छोटी छोटी डिजाइन बनाई हुई है।शरीर पर वस्त्रों के नाम पर केले के लंबे लंबे पत्तो को डिजाइन कर कई कई परतों में पहने है।और बालों की जटा बना कुछ शेष छोड़ दिये हैं।और हाथों में लकड़ी को नुकीला बना कर पकड़े हुए यहां से वहां घूम रहे है।ये वो प्राणी है जो पूरी तरह से न तो आदिवासी ही प्रतीत हो रहे है और न ही वनमानुष।टीना धीरे धीरे उठती है बैठती है और अपने चारों ओर देखती है।उसे अपने चारों ओर दूर तलक सिर्फ हरियाली ही हरियाली नजर आ रही है।पेड़ पौधे,झरने नदिया, पेड़ो के ऊपर बने इन प्राणियों के घास और लकड़ी के घर।हर डाली पर एक घर।घर क्या झोपड़ी कहना उचित रहेगा।वो बेहद छोटे है इतने की उसमे मुश्किल से दो आदमी एक साथ लेट सकें।

ये मैं कहाँ हूँ।ये जगह देखने से ही राजपुरा की नही लग रही है।जहां तक मुझे याद है मैं मान के साथ रीना को ढूंढने के लिए आई थी जहां वो अकीरा के रूप में वो चुड़ैल मिली थी जिसने घना तूफान सा बुला लिया था।हम सब उसी तूफान में फंस गए थे फिर क्या हुआ मुझे कुछ याद नही..शायद मैं बेहोश हो गयी थी।मतलब अब जाकर मेरी मूर्छा टूटी है।मुझे यहां से निकलना होगा।गॉड जी मेरी मदद करना बुदबुदाते हुए वो अपने गले मे कलावे में पड़े हुए गॉड के लॉकेट को चूमती है।लेकिन किसी और ही स्पर्श से वो एकदम से चौंक जाती है और सोचती है ये कब मैने पहना ये काले रंग के मोतियों वाला हार।कब पहना मैंने मुझे कुछ याद क्यों नही आ रहा है।गॉड जी ये सब क्या हो रहा है कुछ समंझ में नही आ रहा है। ये मेरा सर चकरा जाएगा ऐसे तो..

विशाल खुद को जानवरों के संसार मे पाता है।वो संसार जहां सभी तरह के जंगली जीव मौजूद है।हाथी,घोड़ा, शेर, गीदड़, भालू,बाघ, सियार,और भी जंगली जानवर।जिन्हें देख विशाल की सिट्टी पिट्टी गुल हो जाती है।वो सभी जानवर उसकी तरफ ध्यान नही दिए है लेकिन उसे घेर कर ही बैठे हैं।वो अपना सर पकड़ता है और बुदबुदाता है ओह गॉड!इसे कहते है खुद के पैरों पर बम फेंकना।
अब कुल्हाड़ी इसिलए नही क्योंकि उससे केवल खुद को ही चोट लगती बॉम्ब से तो मेरे साथ साथ सारे दोस्त ही लापता हो गए।अब इतने खतरनाक जानवरो से बच कर मैं अपने दोस्तों तक कैसे पहुंचूंगा।... और ये मेरा हाथ इतना भारी क्यों महसूस हो रहा है बड़बड़ाते हुए वो हाथ उठा कर देखता है जिसमे उसे काले रंग के मोतियों से सजी हुई एक ब्रेसलेट दिखाई देती है।जिसे देख वो भी सोच में पड़ जाता है आखिर ये उसके हाथ मे पहुंची कैसे?

एक लंबी सी घूमती हुई सतरंगी रंगों से प्रकाशमान सुरंग जो घूमती जा रही है,घूमती जा रही है एक अंतहीन कुएं की गहराई के समान...न न न नहीं...!एक चीख गूंजती है।इसी चीख के साथ ही अपनी मूर्छा अवस्था से बाहर आती है अकीरा..!

धौंकनी सी छूटती आती साँसों की आवाज जो उस सन्नाटे को तोड़ रही है।ये ...कौन सी जगह है।ये देखने मे तो कोई महल का एक शाही कमरा सा लग रहा है।अब यहां पर्याप्त रोशनी भी नही है जो साफ साफ पता लगाया जा सके।लेकिन मैं महल में कैसे?मैं तो विवान् के साथ वहां थी राजपुरा के जंगल मे?उसके साथ एक डेट पर आई थी।फिर मैं महल कब पहुंच गई?

उस जंगल मे भी तो कुछ अजीब ही घटित हुआ था..हां हुआ था वो आई थी वहां वो एक चुड़ैल..!और वो जो शायद डायन भी थी..!काले सियाह कपड़ो में बिखरे लेकिन लंबे बाल जो सिरे तक गुंथे हुए थे।और उसी ने विवान् को गायब किया था...और फिर मुझे भी..!अगर मैं यहां हूँ तो विवान भी यहीं कहीं होना चाहिए..!लेकिन ये जगह है कौन सी?सोचते हुए अकीरा उठती है तो उसे अपने एक पैर में काले मोती की एंकलेट्स दिखाई देती है जिसे देख वो सोच में पड़ जाती है -

ये एंकलेट् पहले तो कभी नही थी मेरे पैरों में तो अब कहाँ से आ गयी।मैं इसे निकाल देती हूं कहीं ऐसा न हो कि आगे चलकर ये मेरे लिए ही मुसीबत बन जाये कह अकीरा उन मोतियों को स्पर्श करती है लेकिन एक जोर का झटका महसूस कर रुक जाती है।

ओह गॉड!इसका मतलब ये हुआ कि मैं इसे नही निकाल सकती।क्या मामला है उन मोतियों का।ऊपर से इनका रंग भी काला जो मुझे अंदर ही अंदर और डरा रहा है।इन् सब बातों पर अब तो विश्वास न करने की कोई गुंजाइश ही नही बची।पिछले कुछ समय मे इतना कुछ देख लिया कि अब नकारने का प्रश्न ही नही सामने खड़ा है।अब सामने खड़ा है तो केवल यहां से बाहर कैसे निकले ये प्रश्न..!बाहर निकलकर मुझे विवान, मान टीना विशाल सभी से मिलना है।। सोचते हुए अकीरा खड़ी होती है।
और चलते हुए बाहर निकलने की कोशिश करने लगती है।
खड़...खड़..!ये क्या...ये क्या है कैसी आवाज है ये अकीरा ने आवाज पर ध्यान देते हुए खुद से कहा।.ये आवाज कैसी आ रही है..?पत्तो के सरकने जैसी।ऐसे जैसे कोई पत्तो पर चल रहा हो।चलते हुए ऐसा लग रहा है जैसे मैं इस महल के फर्श पर नही जंगल में चल रही हूं।थोड़ा आगे चलती है और वो किसी अदृश्य चीज से टकरा जाती है।आउच्च..!ये क्या हुआ...?क्या था ये..?माथे को सहलाते हुए वो आने चारो ओर देखती है..!सब कुछ तो सामान्य दिख रहा है।कोई खंभा,कोई रुकावट नही है कुछ समझ ही नही पाती है।

शायद मेरा वहम होगा कहते हुए वो एक बार फिर आगे बढ़ती है.. आउच ..!और उसका माथा फिर से उसी अदृश्य से टकरा जाता है एवम इस बारे उसे चोट ज्यादा लगती है..!

क्रमशः...!