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राजपुरा के जंगल ...रहस्य या कोई साजिश? - (भाग 6)

ये क्या माजरा है यहां दिख तो कुछ नही रहा फिर भी न जाने किस अदृश्य शक्ति से टकरा जाती हूँ।कहते हुए अकीरा अपने हाथ को आगे करते हुए बढ़ती है।जहां वो उसे किसी वस्तु के सामने होने का स्पर्श महसूस होता है।वो आगे बढ़ती है और टटोलते हुए एक तरफ हटती चली जाती है।थोड़ा सा एक तरफ हो उसे स्पर्श महसूस होना बंद हो जाता है तो वो उस तरफ से आगे बढ़ जाती है।

जलीय संसार में ---

मान अपने माथे पर हाथ रख बैठा है।वहां घटित होने वाली घटनाएं उसे उसकी समझ से परे होती हुई महसूस हो रही है।ये सब तो मैंने कभी सुना ही नहीं कि कोई व्यक्ति जल के अंदर हो और वो आराम से सांस ले सके चल फिर सके।लेकिन तैर न सके।अब अगर तैर नहीं सकेगा तो जल के उपर कैसे पहुंचेगा।कैसे देखेगा वो जल के उपर स्थित उस अनंत आकाश को।मै कैसे पता लगा पाऊंगा कि मै जलीय संसार के गर्भ में कितनी नीचे हूं।कितने उपर है वो अनंत नीला आकाश और सब का संताप मिटाने वाला सूर्य की वो जीवनदाई रोशनी। ये सच में हैरान कर देने वाला अकल्पित सत्य ही तो है जो मै वास्तविकता में देखता ही जा रहा हूं महसूस भी कर रहा हूं।

लेकिन अब मुझे यहां से बाहर निकलने का मार्ग भी खोजना होगा।लेकिन जल के अंदर मार्ग किस तरह खोजू।कहां से शुरुआत करूं। किस तरफ जाऊ एक तो जल और दूसरा आकाश दोनों में ही रास्ता खोजना बेहद कठिन है।
सोचते हुए वो उठ बैठता है और खुद से कोई दिशा चुन उस तरफ बढ़ जाता है।

खड! खड़!खड़!खड़!ये कैसी आवाज है। मान ने हैरान होते हुए खुद से कहा।और चारो ओर देखने लगता है।लेकिन जल में जलीय जीवों के अलावा उसे कुछ नहीं दिखता है।वो ध्यान से उन्हें देखने लगता है।
रंग बिरंगी मछलियां जल में तैरते हुए विचरण कर रही है जो तैर तो झुंड में रही है लेकिन बीच बीच में तितर बितर हो फिर झुंड में एकत्रित हो जाती है।

जलीय वनस्पतियां भी बीच बीच में ऐसे रिक्त स्थान बना रही है जैसे उस जगह उनके उगने पर प्रतिबंध लगा दिया हो।

कितना विचित्र है ये सब कुछ।ऐसा जैसे जलीय संसार में प्रकृति ने जगह का चुनाव करते हुए भेदभाव करना शुरू कर दिया हो।

सारी बातों को देख कर समझते हुए मान आगे बढ़ता है।जहां वो आगे देखता है उस संसार के एक से एक चकित करने वाले अनगिनत दृश्य..!जलीय संसार की लताएं,बेले किसी अन्य का सहारा लेकर बढ़ने वाले पेड़ पौधे जो कई कई जगह ऐसे बिना किसी सहारे के उपर तक फैली हुई है।उनके बीच रिक्त स्थान इतना है कि कोई अगर चाहे तो उन लताओ बेलो के बीच में आराम से जाकर खड़ा हो जाए।वहीं दूसरी ओर का दृश्य .. पानी में रहने वाले रेंगने वाले कीड़े एक जगह राउंड लगते हुए घूम घूम कर उपर जा रहे हैं।मान वो दृश्य देख फिर से सोच में पड़ जाता है।सामने से आते हुए ऑक्टोपस हो या फिर दाईं से आते हुए केंकड़े सभी तैरते हुए एक ही नियम का पालन कर रहे हैं।

मान (बड़बड़ाते हुए):- ये सब ऐसे कैसे टिके हुए हैं। बिन किसी सहारे के।कुछ तो रहस्य है इसमें..?

वहां सब कुछ उसे रहस्यमय और विचित्र सा महसूस होता है।वो धीरे धीरे उन्हीं जलीय जीवों को फॉलो करता हुआ आगे बढ़ता है।मान कुछ दूर तक ही चल पाया होता है कि उसे महसूस होता है कि वो घूम फिर कर वापस उसी जगह आ गया है। वही बिना किसी सहारे के लिपटी हुई लता पतिकाए,वो छोटे छोटे काई लगे जमे हुए पौधे और उन पौधों पर खिले हुए वो छोटे बड़े विभिन्न तरह के फूल।वो एक बार फिर आगे बढ़ता है तो उसके सामने बड़ी बड़ी मछलियों का संसार आ जाता है।जिन्हें देख एक क्षण को तो वो हतप्रभ हो जाता है।मछलियां मान की और देखती है और वो उसकी तरफ तेजी से चली आती है।मछलियां आक्रमण करना चाह रही है ये सोच वो उल्टे पैर तेजी से दौड़ता है।वो बेतहाशा दौड़ा चला जा रहा है।बीच बीच में वो मुड कर भी देख लेता है लेकिन उन्हें फिर से अपने पीछे देख वो फिर दौड़ लगा देता है।दौड़ते दौड़ते वो थक जाता है लेकिन जीवन के लालच में रुकता नहीं है..

अरे कितना दौड़ाओगी..!तुम जाओ अपने रास्ते और मुझे यहां से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने दो।तुम सब की सब तो मेरे पीछे ही पड़ गई है।अरे जाओ एक तरफ...! बड़बड़ाते हुए मान दौड़ता चला जाता है और अंत में थक के गिर जाता है।मान को नीचे गिरा हुआ देख उस जल में जोर के हंसने की ध्वनि गूंजने लगती है जिसमें कुछ शब्द उभर कर सामने आते हैं..!

इतना आसान नहीं है राजपुरा के जंगलों के मायाजाल से बाहर निकलना।अगर इतना ही आसान होता तो जो सैकड़ों की तादाद में लोग लापता हुए है वो क्यूं होते।।ये जंगल मेरा है और यहां पर वही होता है जो मै चाहती हूं।। हा हा हा हा एक भयानक हंसी वहां गूंजने लगती है।

मान के घर -

मान! बेटे उठ कर अब बाहर भी आ जा।देख सूरज सर पर चढ़ आया है और तुम अभी तक कमरे से ही बाहर नहीं निकले।कितना सोएगा बेटा!दस बजने को आए हैं और तू अभी तक कमरे से नहीं निकला।बेटे तू सुन रहा है न।।आवाज क्यूं नहीं दे रहे हो मान...!मान....! मान की मां रेखा खन्ना जी ने कमरे के बाहर दरवाजे से मान को आवाज देते हुए कहा।
इतना आवाज देने पर भी जब मान कोई जवाब नहीं देता है तो वो चिंतित हो मान के पिता सुरेश खन्ना जी के पास जाकर कहती है --

आप एक बार मेरे साथ चलिए।मान कमरे से कुछ नहीं बोल रहा है।कब से दरवाजे पर खड़ी हो आवाजे लगा रही हूं।लेकिन उसने हां हूं तक नहीं कि।

अरे रेखा ही आप व्यर्थ में चिंता कर रही हैं रात में पढ़ाई की होगी तो अब सो रहा होगा।वैसे भी जिसे जाना था वो तो चली गई।जिसके कारण हमारा तो घर से निकलना तक दूभर हो गया है।बाहर लोग हमें ऐसे हेय दृष्टि से देख रहे है जैसे लड़की को पाल के हमने कोई बहुत भारी गलती कर दी।कहते हुए वो रीना के बिना बताए जाने की वजह का गुसा निकालने लगते हैं।

सुरेश जी की बातें सुन रेखा जी वहां से तुरंत ही मान के कमरे में चली आती है और फिर से दरवाजा पीटते हुए मान को आवाजे देने लगती हैं।जब उन्हें कोई आवाज नहीं मिलती तो वो खुद ही दरवाजा तोड़ने की कोशिश करने लगती हैं।

जरूर कुछ तो बात हुई है मान के साथ तभी तो वो दरवाजा नहीं खोल रहा है।नहीं तो इतनी आवाज में तो पूरा मुहल्ला इकट्ठा हो जाता है फिर ये मेरा बेटा मान है जिसकी नींद हवा के तेज शोर से भी खुल जाए।।मान बेटे कहते हुए रेखा दरवाजा तोड़ देती है और फौरन सामने जा देखती है।वहां बिस्तर पर कोई नहीं होता है।पूरा कमरा बिल्कुल खाली खाली सा शांत होता है।बस खुली खिड़की से आती हुई हवा के कारण मान की टेबल पर रखी हुई रेखा जी के लिए लिखी गई चिट्ठी फड़फड़ा रही थी जिसकी आवाज उस कमरे की खामोशी को तोड़ रही थी।

रेखा जी घबराकर बाथरूम बालकनी दोनों चेक करती है शायद मान वहां हो लेकिन वो वहां हो तब न मिले।रेखा जी परेशान हो जाती है और उनकी आंखो से आंसू झरने लगते हैं।

वो उसी टेबल के पास बैठ जाती है तभी उनकी नजर उस चिट्ठी पर पड़ती है वो हड़बड़ा के जल्दी में पेपरवेट हटा चिट्ठी उठाती है और उसे पढ़ती है।

मां,
मै अपने दोस्तो अकीरा विवान विशाल और टीना के साथ राजपुरा के जंगलों में जा रहा हूं।अकीरा विवान और विशाल तो वहां घूमने जा रहे है लेकिन मै और टीना दोनों रीना को ढूंढने जा रहे हैं।हां मां,मुझे किसी ने बताया कि रीना उसकी एक दोस्त के साथ राजपुरा के जंगलों में गई थी।तभी वो लापता हो गई।आप ज्यादा पैनिक नहीं होना।आपके आशीर्वाद से मैं बिल्कुल सुरक्षित रहूंगा।और जल्द ही अपनी बहन को साथ लेकर भी लाऊंगा।बस आप भरोसे के साथ धैर्य रखना।मेरी सबसे अच्छी मां..आपका मान।।

चिट्ठी पढ़ वो रोते हुए चीख पड़ती है।उनकी चीखने की आवाज सुन सुरेश जी उठ कर उनके पास आते हैं।और कहते है..

क्या हुआ रेखा!तुम इतनी जोर से क्यूं चीखी।रेखा मान कहां है..? तुम कमरे के अंदर हो और मान यहां नहीं है कहां गया वो रेखा...?

सुरेश की बात सुन कर रेखा ने कुछ नहीं कहा बल्कि उनके आगे वो खत कर दिया।जिसे पढ़ सुरेश ग्लानि से भर कहता है इसका मतलब हमारी रीना किसी के साथ भाग कर लापता नहीं हुई बल्कि वो राजपुरा के जंगलों में जाकर उसकी मायावी दुनिया में कैद हो गई है।

सुरेश जी बात समाप्त होने पर रेखा जवाब देते हुए लगती है कैद हो गई है क्या हुआ है ये मुझे तो क्या किसी को नहीं पता।बस मैंने तो इतना सुना है कि राजपुरा के जंगल वो भुलभुलैया है जिनमे गाइड भी गच्चा खा जाते हैं।उस रास्ते गया हुआ व्यक्ति कभी लौट कर नहीं आया।

सुरेश मन ही मन तो घबरा जाता है लेकिन मजबूत दिखने के दवाब की वजह से रेखा को जताता नहीं है।वो रेखा की हिम्मत बढ़ा कहता है तुम चिंता न करो रेखा हमारा मान बिल्कुल ठीक होगा।याद नही उस पर देवी की असीम कृपा है।और जिस पर साक्षात शक्ति का हाथ हो उसे कभी कोई हानि नहीं पहुंचा सकता।

रेखा रोते रोते कहती है इसी बात की तो चिंता है न जाने क्यूं वो उनसे रूठ कर बैठा है।उनसे इतना विमुख हो गया कि अब उनके नाम से ही चिढ़ जाता है।

रेखा क्या तुमने सुना नहीं है कि पुत्र माता से विमुख हो सकता है किन्तु माता कभी भी अपने पुत्र से विमुख नहीं होती।इसी विश्वास के आधार पर देख लेना वहां भी वो किसी न किसी को मदद के लिए अवश्य ही भेज देंगी।सुरेश ने कहा तो उनकी बातो से रेखा को हिम्मत मिलती है और वो रोना बंद कर देती है।दोनों पति पत्नी उठकर मान के दोस्तो के घर इस बारे में सूचित कर देते है ताकि उन्हें लेकर कोई भी भ्रम में न रहे।

उधर जंगल में मान पुन होश में आता है तो उसे अपने पास फिर से वही जैस्मीन की सुगंध का अनुभव होने लगता है।उस सुगंध को महसूस कर को एक बार फिर से हैरत में पड़ जाता है पानी में किसी सुगंध का महसूस होना।ये कैसे संभव है कैसे...! मान ये सोच ही रहा होता है कि वो सुगंध उसे थोड़ा दूर होती हुई प्रतीत होती है तो मान कुछ सोचते हुए उठ जाता है और चलने लगता है।चलते हुए वो चारों ओर देखता भी जाता है।

मान :- इस बार मै बिल्कुल नए रास्ते पर आगे बढ़ रहा हूं।पानी के अंदर ये निर्मित छोटे छोटे रेत के घर तो मैंने पहले देखे हो नहीं थे और न ही मैंने पहले ये लहराती बेले देखी थी।कितनी सुंदर है ये हरी भरी कहते हुए वो उन्हें छूने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाता है कि तभी उसे गुर्राने की आवाज सुनाई देने लगती है।वो एक झटके में अपना हाथ पीछे खींच लेता है।आवाज बंद हो जाती है तो मान आगे देख चलने लगता है।

खुशबू को सूंघते सूंघते वो एक ऐसी जगह पहुंचता है जहां दो एक जैसे स्तंभ होते है और उन स्तंभों पर इतिहास की कुछ विशेष घटनाओं की आकृति उकेरी हुई होती है।मान उन आकृतियों को देखता है जो दोनों स्तंभों पर हूबहू दिख रही है।उन्हें देख मान सोच में पड़ जाता है।वो दोनों आकृतियों को ध्यान से देखने लगता है दोनों में ही एक पुरुष और एक स्त्री की छवि स्पष्ट नजर आ रही है।उनमें स्त्री आगे हाथ कर दौड़ रही है और उसके पीछे दौड़ता हुआ पुरुष हाथ बढ़ा उसे पकड़ रहा है।वहीं उन दोनों के पैरो तले सीधी आडी रेखाएं है जो थोड़ा आगे जाकर गोल गोल गोल गोल होते हुए एक गहरा गोले का निर्माण कर रही हैं।वो दोनों आकृतियों को देखते हुए उसे एक छोटा सा अंतर नजर आता है दोनों स्तंभों में एक जगह हाथ रखने के निशान है।कुछ सोच कर वो अपना हाथ उसके अंदर रख देता है तो उसे एक झुरझुरा हट महसूस होती है वो रेखाएं बिल्कुल सजीव हो जाती है और उसकी आंखो के सामने उन रेखाओं से काले रंग का प्रकाश सा निकलता है जो उसे रेखाओं के उन गोल चक्कर में खींचता है और क्षण भर में ही मान पूरा का पूरा उसके अंदर विलुप्त हो जाता है।......
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आह ये मेरा सर इतना घूम रहा है लगता है कि मै अभी गश खाकर यहीं गिर पड़ूंगा।मेरा सर..!
वो घने जंगल में उसी चट्टान के नीचे सर पकड़ बैठा है जहां से उसके सभी दोस्त विलुप्त हुए थे..!वही चट्टान जिस पर अकीरा रूपी वो चुड़ैल बैठी हुई थी.....

हम्म.. ह्म्म..हूं...हूं..धीमे स्वर में आवाज उस जगह गूंजने लगती है जैसे किसी को अच्छा नहीं लगा हो मान के उस मायाजाल को तोड़कर बाहर आने का।हूं...हूं..हंहू हूं हूं नहीं..!गुस्से भरी ये गुर्राहट मान सुनता है तो उसके रोंए खड़े हो जाते हैं।वो घबराकर अपना सर छोड़ चारों ओर देखता है खुद को जंगल में उसी जगह देख वो चौंक जाता है.. वो सोचता है कि मै तो पानी के अंदर था वो मैंने उस स्तंभ पर अपना हाथ रखा था तभी वो अंधेरा सा...और अब मै यहां..!क्या सच में वो एक मायाजाल था या फिर राजपुरा के जंगल की कोई भुलभुलैया..!और मेरे दोस्त वो यहां क्यूं नहीं है यहां नहीं है तो कहां है....?

इतने सारे सवाल और जवाब किसी का भी नहीं।कहां जाकर ढूंढूं उन्हें।सब यहीं लापता हुए थे।उन तक पहुंचने का कोई तो जरिया होगा मुझे हिम्मत कर यहीं आसपास ही देखना चाहिए।सोचते हुए वो उठ खड़ा होता है और वहां आसपास कुछ खोजने लगता है।

उधर विशाल डर के मारे चुपचाप भीगी बिल्ली बन बैठा है।उसके जेहन में कॉलेज में कही गई अनगिनत बातें गूंज रही है जो उन पांचों दोस्तो ने हंसी हंसी में कई बार कही थी।

भूत प्रेत वगैरह कुछ नहीं होता ये अब कहने की बाते है।ये बातें वही लोग मानते है जो अंधेरे में,सुनसान जगह पर जरा सी आहट से ही खुद को असुरक्षित देख डर जाते हैं।और इस डर को वो लोग भूत प्रेत चुड़ैल,और भी न जाने क्या क्या नाम दे देते हैं।अरे इस संसार में दो ही तो शक्तियां होती है एक पॉजिटिव और एक नेगेटिव।। बस और कुछ नहीं होता..!

कहां तो मै अपने दोस्तो के साथ कॉलेज के गार्ड न की बेंच पर बैठ हंसी मजाक किया करता था और कहां आज साक्षात चुड़ैल देवी से मेरा सामना ही हो गया और उन देवी ने ऐसी कृपा की मुझ पर कि मुझे इन अतृप्त जीवों का भोजन बनने के लिए यहां डाल दिया जो कभी भी मुझ पर एक साथ टूट सकते हैं......!विशाल का इतना सोचना भर होता है कि वो सभी जीव अचानक से उसकी तरफ मुड़ते है और उसे गुस्से में देखने लगते हैं....!

ओह गॉड..!प्लीज़ हेल्प विशाल चिल्लाता है और वो डर कर चारों ओर देखने लगता है कि कहीं से उसे जरा सा रास्ता मिल जाए और वो इन जानवरों से अपना पीछा छुड़ा कर भाग सके..!

काश इन हाथियों के बीच से भागने के लिए जगह मिल जाए।हाथी मोटा होता है से थोड़ा धीरे धीरे दौड़ पाएगा सोचते हुए विशाल हाथियों की ओर देखता है तो उसे वहां दौड़ कर बच कर निकलने की जगह दिख जाती है वो खुद को सतर्क करता है और उन सब की ओर देखते हुए सीधा हाथियों की ओर दौड़ लगा देता है।उसे दौड़ता देख सभी जानवर अपनी अपनी आवाज में शोर करते हुए दौड़ लगा देते हैं।विशाल सीधा दौड़ता है और फुर्ती से उन जानवरों की कैद से निकल बेतहाशा बिना सोचे समझे भागने लगता है और थोड़ा आगे जा एक गड्ढे में जा पड़ता है।...... कुछ ही देर में वो सभी जानवर वहां उसके चारो ओर आकर पहले की तरह खड़े हो जाते हैं।...........जिन्हें देख विशाल की सांसे अटक जाती है।

क्रमशः.....!


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