मृत्यु का मध्यांतर - 3 Vijay Raval द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मृत्यु का मध्यांतर - 3

अंक - तीसरा/३

रुक रुक कर बोलने का प्रयास करते हुए इशिता पूछा,

'आदि.. आदि ये.. क्यूं?'

'इशिता.... तीन दिन पहले ही अजीत ने शादी कर ली है।'

थोड़ी देर तक आदित्य के गोद में सिर रखकर हिचकियां लेकर रोने के बाद इशिता को सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो जल्दी से कार का डोर ओपन करके कार के बाहर निकल गई। आदित्य ने उसके सिर पर हाथ फेरकर पानी पिलाया। दिलासा देते हुए समझकर थोड़ी देर बाद कार में बिठाया। आदित्य को लगा कि इस सिचुएशन में जी भरकर रो लेना बेहतर है। बीच बीच में आदित्य के समझाने के पंद्रह मिनट बाद इशिता शांत हुई।

'इशिता, पहले तुम अपना चेहरा ठीक से वॉश कर लो, फ़िर बात करते हैं।'
आदित्य ने बोला इसलिए बाहर जाकर चेहरा फ्रेश दिखे इस तरह धोकर कार में बैठकर भीगी आंखों से इशिता ने पूछा,

'आदि, तुम्हें येे बात कैसे और कब पता चली?'
थोड़ी देर इशिता की देखकर आदित्य बोला।

'थोड़ी देर पहले के, तुम्हारे पक्ष में, तुम दोनों के बरकरार संबंध के द्वार तो जब अजीत के अमेरिका जाने की बात मुझे पता चली, तब से ही बंध हाे गए थे ऐसा ही समझो। तुम्हें याद है? जब तुम अजीत के साथ प्रेम संबंधों में बंधी उसके ऑफिशियल न्यूज़ मुझे मिले तब मेरे टेलीफोनिक संवाद के स्वाद में तुम्हें कड़वाहट का अनुभव हुआ होगा, कारण? क्योंकि उस दिन मेरी बोली की कड़वाहट में मेरे आंसुओं का खारापन भी शामिल था। इशिता तुमने मुझे सिर्फ़ एक हल्की झलक भी दी होती कि, तुम अजीत को अपना जीवनसाथी बनाने जा रही हो, तो.. तुम्हारे घर पर आकर तुम्हें एक थप्पड़ लगा दी होती। औैर तुमने वाे निर्णय सिर्फ़ दो दिनों के कम समय में लिया और ओस्कर मिलने की खुशी के जैसे ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह डिक्लेयर किया। औैर उन्हीं दो दिन मैं शहर में नहीं था। औैर मुझे पता चले तब तक तो तुम अपने मनमंदिर में उस दानव को देव समझकर उसकी प्रेममूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करके उसकी प्रेम पूजारिन बन चुकी थी। सॉरी इशिता अभी मुझे ऐसे शब्द नहीं बोलने चाहिए, वो भी...' इतना बोलते हुए आदित्य की आंखों के कोने भीग गए।

इतना सुनते ही इशिता के हाथ औैर पैर एकदम सुन्न पड़ गए।
आंसु पोंछते हुए बोली,

'तो, आदि, तुमने मुझे उस समय क्यूं कोर्इ बात नहीं करी? औैर आज १३ महीनों के बाद...?'

'अजीत इस हद तक गिर जायेगा उसका तो मुझे सपने में भी अंदाज़ा नहीं था। मैं जिस हद तक अजीत को पहचान पाया था उस नज़रिए से कहूं तो उसके बहुत सारे मोहरे थे। उस सेंस में कि मेरी भाषा में कहूं तो चालाक ही नहीं बल्कि चतुर और बेवफ़ा था। वो अपने स्वार्थ के लिए कब किसको पाश में ले ले कोर्इ ठीक नहीं। इसलिए उस दिन मुझे तुम्हारे घर पर लेकर आया था, तुम्हारे मम्मी पापा को कन्वींस करने, क्योंकि तुम्हारी सात्विकता के सामने उसके मन की मलीनता का सिक्का चलने वाला नहीं था उसका उसे पता था। लेकिन... इशिता तुम इतनी भोली हाे कि... तुम्हें अजीत में तुम्हारे प्रेम की जीत के सिवाय कुछ भी नज़र नहीं आया।'

'आदि, येे बात सच में सही है..?' थोड़ा सुबकते हुए इशिता ने पूछा।

'इशिता, अजीत अमेरिका गया उसके बाद तुम मुझे उसकी जो कोई भी बात या इनफॉरमेशन देती गई, मिन्स कि उसका निवास, उसकी कॉलेज... वाे सब मैटर अजीत के फ़ूल प्रोफ़ाइल के साथ मैंने मेरे पंजाबी फ्रेंड मनजीत को सेंड कर के एकदम से धमकाकर हक से हुकुम देकर कह दिया था कि.. इस आदमी की हर एक मूवमेंट की मुझे रेगुलर अपडेट चाहिए। धीरे धीरे उसके कॉल्स आने कम हो गए तभी मेरी कुशंका की चिनगारी भड़कने की बात को हवा मिल गई थी। अजीत ने जिस लड़की के साथ शादी करी उस लड़की का बाप उसकी कॉलेज का हेड है, औैर जहां जॉब करता है वाे स्टोर इस लड़की के रिलेटिव्स का है। येे सब देखकर नाम के साथ साथ विलेन के गुण भी रखने वाले इस रोमियो ने चारे के साथ जाल बिछाते ही एकसाथ बहुत सारे पक्षियों को फंसाया है या,.. खुद फंस गया है, येे तो आनेवाला वक़्त ही बतायेगा।'

अपनी हथेलियों में चेहरा छुपाकर इशिता रोने लगी तो आदित्य आगे बोला,

'इशिता इस तरह रो कर तुम अपने शुद्ध सोने जैसे स्वाभिमान का अपमान कर रही हो। तुम किसको रो रही हो? उस प्रेम को कि जो तुम्हारा था ही नहीं। उस मृगजल जैसी माया के लिए? अजीत ने अगर तुम्हें कभी भी एक पल के लिए भी प्रेम किया होता तो आज कम से कम वो तुम्हारी मांगने लायक तो होता ही। लेकिन अब वाे तुम्हारे नफ़रत के लायक भी नहीं है इशिता।'

'तो.. तो मैंने उसकी आंखों में देखा वो क्या था, आदि?'इशिता ने आदित्य के सामने देखकर पूछा।

'वाे मुग्धावस्था ही ऐसी होती है कि आपको पत्थर में भी प्रेमी की सूरत ही दिखाई देती है। अजीत ने तुम्हें कभी बोला कि उसे तुम्हारी आंखों में प प्रेम दिखाई देता है? वो बहुत बड़ा नौटंकीबाज है कलाकार नहीं। औैर ऐसे शॉकिंग न्यूज़ देने का शौकीन है।'

'इशिता तुम्हें जितना रोना हो उतना आज रो लो, आज के बाद उस आदमी के लिए एक भी आंसू बहाया है तो.. तुम मुझे खो बैठोगी। औैर इस बात से हम दोनों अनजान है, औैर हमे किसीको भी नहीं बताना है।'

'लेकिन.. आदि मम्मी, पापा को तो...'

'इशिता इस आघात के समाचार सुनने के बाद उनके जो प्रत्याघात औैर परिणाम के बाद जो परिस्थिति खड़ी होगी, वाे तुम हैंडल कर पाओगी? औैर तुम सामने से बोलने जाओगी तो बिना बात तुम पर गुस्सा होंगे वो अलग से। आज अभी इसी समय हम अजीत का बारहवीं, तेरहवीं औैर तर्पण करने के बाद ही घर जाना है। औैर घर जाकर तुम्हारी बातों औैर व्यवहार अजीत के अग्निसंस्कार की जरा भी भनक भी नहीं आनी चाहिए।

'आदि, अपने आप को निचोड़कर सींचा हुआ प्रेमांकुर खिलकर अभी परिपूर्ण होकर पुष्प में तब्दील हो उससे पहले परमेश्वर ने पूर्णविराम रख दिया, क्यूं आदि? निःसंदेह सजदा की येे सज़ा? ईश्वर औैर अजीत की आराधना में कहां कच्ची साबित हुई? आदि.. आदि येे आघात मेरे लिए प्राणघातक साबित होगा। इस पीड़ा को हजम करने की शक्ति मुझमें नहीं है।'

'इशिता अब हमें घर चलना चाहिए। मैं समझता हूं इस वज्राघात से उबारना बहुत मुश्किल है। आग लग गई है.. जाे ख़ाक होना था वो हो गया। अब येे आग आगे बढ़कर ज्यादा कुछ ख़ाक न करें उसका ध्यान रखना है। मुझ पर भरोसा है न?'

इतना बोलकर आदित्य ने कार इशिता के घर की ओर भगा दी।

'आदि, आज तुम न होते तो?'आंखें भर आते ही इशिता बोली।
'तो.. क्या तुम्हारा महादेव तो है न?' आदित्य बोला।
'महादेव.., वाे होते तो क्या येे सब होता?' विडम्बना के साथ हंसते हुए इशिता ने पूछा।
'येे सवाल अभी सही है.. समय आने पर उसका भी जवाब दूंगा।'
इशिता के घर के पास कार रोकते हुए आदित्य बोला।

इशिता कार में से उतरे उससे पहले कार के एफ. एम. पर गाना बज उठा..
'बना के क्यूं बिगाड़ा रे.. बिगाड़ा रे नसीबा...'

इशिता एक भी शब्द बोले बिना चुपचाप अपने घर की ओर चल दी।

घर में दाखिल होने तक इशिता ने अपना चेहरा औैर मन स्वस्थ कर लिए थे।

अजीत के साथ प्रथाम से लेकर अंतिम मुलाकात तक की निःसंदेह स्नेह सफ़र के संस्मरण के एक एक संवादों का उसके स्मृतिपटल पर देर रात तक पुनरावृत्ति करके, अजीत को पहचानने में कहां गलती हुई वाे उलझन सुलझाने की कोशिश करते हुए थकहार कर करीब आधी रात के बाद मानसिक थकान की वजह से सो गई।

लेकिन इस तरफ़ आदित्य की मेंटल सिचुएशन इशिता से भी ज्यादा पेनफुल थी।
आखिर में इशिता के भविष्य को लेकर आदित्य को जो डर था वही होकर रहा। आदित्य को ज्यादा अफ़सोस इस बात का था कि उसने अजीत को अंडरएस्टीमेट किया था। उसे येे भी सुनिश्चित तौर पर पता था कि इशिता को इस आघात के माहौल में से बाहर आने मेें काफ़ी समय लगेगा। उसके लिए आदित्य बहुत देर तक सोचता रहा।

तीन दिन बाद सुबह में करीब ग्यारह बजे इशिता पर कॉल आया।
'हेल्लो '
'पार्श्वनाथ पब्लिकेशन में से हर्षदभाई बोल रहा हूं। इशिता दीक्षित के साथ बात हो सकती है?'
'हां, जी बोलिए, मैं इशिता दीक्षित ही बोल रही हूं।'
'मुझे सोशल मीडिया पर से आपका कॉन्टैक्ट नंबर मिला है। आप लैंग्वेज ट्रांसलेशन का जॉब वर्क करते हाे?
'जी।'अपने पसंदीदा विषय पर बात होते ही इशिता में थोड़ा उमंग आ गया।

'मेरे पास एक बिग प्रोजेक्ट की ऑफर आई है, लेकिन पार्टी को कम समय में काम करके देना है, अगर आपके पास समय हो तो,... औैर काम करने के लिए इच्छुक हो तो हम बात कर सकते हैं।'

इतना सुनते ही इशिता एकदम खुश हो गई। खुशी को काबू में रखते हुए बोली, 'जी, आई थिंक डीटेल्स में डिस्कसन के रूबरू मिले तो ठीक रहेगा। आप अपना पता औैर कौनसा समय आपको अनुकूल रहेगा वाे कहेंगे?'
उत्साह से इशिता ने पूछा।

'जी, जरूर। वाे मैं आपको टेक्स्ट मैसेज करके भेजता हूं।'
'थैंक यू सर।' बोलकर खुश होकर इशिता ने कॉल कट किया औैर दूसरे ही पल कॉल लगाया आदित्य को।

'हेल्लो... आदि।'
'हां बोलो, इशिता।'
बाद में इशिता ने खुशी के टोन में थोड़ी देर पहले की टेलीफोनिक बात आदित्य को कही।
इशिता के काम की ऑफर से ज्यादा इशिता की आवाज़ में आनंद की अनुभूति सुनकर आदित्य मन ही मन खुश होते हुए बोला,
'अब ऐसा मत बोलना कि.. महादेव कहां है?'
'उस टॉपिक पर तो तुम बात की मत करना। उसका जवाब तो महादेव को देना ही पड़ेगा। चल आदि, मैं इस पब्लिशर से मिलकर आऊ, बाद में बात करते है।'

इशिता मैसेज में बताए गए जगह पर समय अनुसार पहुंच गई। ओनर हर्षदभाई की केबिन में करीब एक घंटे जैसा समय बिताया। समय, काम औैर पेमेंट हर एक मामले की टर्म एण्ड कंडीशंस क्लीयर होने के बाद घर आकर कॉल लगाया आदित्य को।

'हेल्लो.. आदि.. तुम्हें कब समय मिलेगा?'
'अभी तो डैड के साथ हूं ऑफिस में.. लेकिन बोलो क्या कुछ अर्जेंट है?'

'आदि, यू कांट बिलीव.. मैंने इतने बड़े काम की ऑफर एक्सेप्ट करी है कि.. शायद साल दो साल तक तो सिर उठाने का समय ही नहीं मिलेगा ऐसा समझ लो। मोर थेन वन हंड्रेड नोवेल्स का मैक्सिमम लैंग्वेजेस में ट्रांसलेशन करने की चैलेंज ली है यार। आई गोन मेड। इसलिए मैं सोचती हूं कि.. तुम्हें टाईम हाे तब हम महादेव के मंदिर में मत्था टेकने जाए तो?'
पूरी बात की प्रस्तुति इशिता ने इतनी अदम्य खुशी से भावविभोर होकर करी कि.. आदित्य की आंखें गीली हो गई, बाद में वो हंसते हंसते बोला..

'कौन महादेव?'
'बस करो अब, बोलो कब जायेंगे?'
'ठीक है, शाम को जायेंगे। मैं मैसेज दूंगा तुम्हें, चल बाय।'

जैसे ही आदित्य ने कॉल कट किया औैर दो ही मिनट में कॉल आया।
'हेल्लो.. सर, हर्षदभाई बोल रहा हूं.. आपकी सूचना अनुसार सब काम हो गया है।'

आगे अगले अंक में....

© विजय रावल

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