नेहा सामान लौटाकर मायके से ससुराल आती है ।वह रात के नौ बजे घर आकर लगती है।आते ही निखिल और उसकी माँ का वही नाटक शुरू हो जाता है।वह नेहा से कहते हैं"अब उनसे(नेहा के मायके वाले) हमारा रिश्ता खत्म, अब तू वहाँ कभी नहीं जाएगी, चाहे कुछ भी हो जाये"।वह ख़ामोश रही और रात भर रोती रही। सुबह होते ही वह फिर से शुरू हो गए तो अचानक उसे अपने भाई की कसम याद आ गई और वह आत्मविश्वास से भर गई,उस समय उसके दिमाग में एक ही विचार आया "चाहे मुझे आज ही बच्चों को लेकर इस घर से जाना पड़े,में अब और अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं करुँगी"।निखिल के फिर से ये कहने पर कि चाहे कुछ भी हो जाये तू अब वहाँ कभी नहीं जाएगी।वह बोल पड़ी "खरीद लिया है क्या आप लोगों ने मुझे,वह मेरे माँ बाप हैं और उनसे मिलने से मुझे कोई नहीं रोक सकता,तुम्हें तो अपने माँ बाप की जायदाद का घमंड है,लेकिन में अपने दम पर अपने बच्चों को तुमसे अच्छे पालकर दिखा दूँगी ,विश्वास न हो तो आजमाकर देख लो"।उसके ये तेवर देखकर निखिल और उसकी माँ नरम पड़ गए।और जो निखिल जरा जरा सी बात पर रूठता था,अपने आप ही बोलने लगा।शायद वह समझ गए थे कि इससे ज्यादा अगर कुछ तमाशा किया तो बात बिगड़ सकती है ।और शायद रिश्ते को खत्म करना तो वो भी नहीं चाहते थे ।बस इस रिश्ते से ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना चाहते थे। दरअसल शुरू से ही, विवाह में हुई कुछ कमी का फायदा उठाकर वह उसपर इतने हावी रहे कि उनकी हर ज्यादती सहन करती रही थी।उसके बाद करीब एक साल तक न उसके मायके से कोई आया,और न ही वह गई।हाँ उसके मायके वालों ने एक रिश्तेदार को जरूर भेजा, उसका हालचाल जानने के लिये।और जब कभी वह बाहर जाती, पीसीओ से अपने मायके बात कर लिया करती थी। फिर धीरे-धीरे उसके भाई भी आने लगे और वह भी मायके जाने लगी लेकिन अकेली या अपने भाई के साथ।फिर कुछ साल बाद निखिल की माँ का देहांत हो जाता है और फिर उसके कुछ साल बाद पिता का भी।इसके बाद भी नेहा के मायके में कई कार्यक्रम हुए ,छोटे भाई,बहिन की शादी,भतीजे भतीजी का जन्म लेकिन निखिल किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुआ,हाँ पर उसने नेहा को जाने से भी नहीं रोका ,नेहा बच्चों को लेकर अकेली जाती और आती रही ।कुछ समय और गुजरा नेहा निखिल के बच्चे बड़े होने लगे।लेकिन निखिल को अपनी जिम्मेदारियों का जरा भी अहसास नहीं था।घर के आर्थिक हालात खराब हुए तो नेहा ने स्कूल में नौकरी करके तथा घर में ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर गृहस्थी की गाड़ी को खींचने में निखिल की मदद की ।बस किसी तरह धक्के खाते हुए जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ने लगी।लेकिन नहीं बदला तो निखिल का स्वभाव उसका वही छोटी छोटी बातों पर रूठ जाना और फिर नेहा से खुशामद करवाना।नेहा भी इन सब से बहुत थक चुकी थी ,उसे याद नहीं कि निखिल ने कभी उससे पहले से बात की हो।क्या निखिल ही हमेशा सही होता है ?क्या वही (नेहा)गलतियों का पुतला है।क्यों वह हमेशा उसे नीचा दिखाने की कोशिश में रहता है?ढेर सारे प्रश्न उसके दिमाग में चलते, जब वह रूठ जाता।और जब नेहा उसे किसी तरह मना लेती तो कुछ दिन के बाद निखिल के लिये सब नार्मल हो जाता।पर इस दौरान नेहा काफी मानसिक यंत्रणा से गुजरती।निखिल की तो जैसे ये आदत बन चुकी थी।एक दिन निखिल और नेहा बैठे बात कर रहे थे ,हँसी मजाक चल रहा था,फिर पता नहीं निखिल को कौनसी बात लग गई कि अगले दिन से उसका मुँह फूल गया।फिर किसी बात पर नेहा पर बरस पड़ा।नेहा बोली ठीक से भी तो बात कर सकते हो,फिर क्या था वह जहर उगलने लगा "तुझे कभी खुशी नहीं मिल सकती" नेहा सुनकर हतप्रद रह गई।जिस आदमी ने उसे छोटी छोटी खुशियों के लिये उसे जिंदगी भर तरसाया, वह इतने साल गुजर जाने के बाद भी नहीं चाहता कि उसे कोई खुशी मिले।उसने भी कह दिया "जिसकी जिंदगी में तुम जैसा इंसान होगा, उसे खुशी कहाँ से मिलेगी"।फिर क्या था निखिल ने पहले की तरह बेरुखा व्यवहार शुरू कर दिया ।उससे बात करना बंद कर दिया ।वह कोई बात कहती तो उसका जबाब हाथ हिलाकर या सिर हिलाकर देता ,मुँह से नहीं बोलता।नेहा भी निखिल के इस रोज रोज के नाटक से थक चुकी थी।उसने मन ही मन फैसला किया कि अब और नहीं ,जिस आदमी ने 25 साल साथ रहने के बाद भी अपने दिल में कोई स्थान नहीं दिया उस इंसान के लिये वह अब और दुखी नहीं रहेगी।जिसे रिश्तों की कोई कद्र नहीं, उसके लिये वह अपनी और बेकद्री नहीं करेगी ।नहीं करेगी अब और उसकी खुशामदें,वह भी जियेगी अपनी जिंदगी,नहीं करेगी वह अब और अपने आत्मसम्मान से समझौता।वह नहीं बात करता है तो न सही,वैसे भी जबरदस्ती किसी रिश्ते को कब तक घसीटा जा सकता है।और इस तरह निखिल और नेहा एक ही घर, एक ही कमरे में रहते हुए एक दूसरे के लिये अजनबी से हो गए।शुरू शुरू में नेहा को बहुत तकलीफ होती, वह रातों को आँसू बहाती ।फिर धीरे धीरे उसने हालात से समझौता कर लिया । उसने सारा ध्यान बच्चों पर देना शुरू कर दिया ।उसे लिखने का शौक़ था,लेकिन जिम्मेदारियों के कारण उसने लिखना छोड़ दिया था।उसने फिर से लिखना शुरू किया, जिससे उसे आत्मसन्तुष्टि मिलने लगी।अब उसने अपनी जिंदगी का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया ।उसने वो हर काम किया जो उसे पसंद था, उसने ज्योतिष का ऑनलाइन कोर्स किया।साथ ही घर परिवार व बच्चों की जिम्मेदारी भी अच्छे से निभाई।उसी की पूजा प्रार्थना का नतीजा था कि बच्चे भी सरकारी नौकरी में निकल गए ।लेकिन निखिल का अहंकार ज्यों का त्यों रहा ।निखिल के व्यवहार से उसे अब कुछ खास फर्क भी नहीं पड़ता था, क्योंकि वह अब खुद की कद्र करना सीख गई थी।हम जब तक खुद से ज्यादा दूसरों को अहमियत देते हैं,अपनी खुशियों के लिये दूसरों पर निर्भर रहते हैं,दुखी रहते हैं। और जिस दिन खुद को पहचान जाते हैं,और खुद की कद्र करना शुरू कर देते हैं, तो कोई हमारे बारे में क्या सोचता है, ये सब बेमानी हो जाता।शादी के 25 साल बाद ही सही उसे अपनी अहमियत पता चली।और वह खुद अपनी ही नजरों में ऊँची उठ गई ,उसने प्रण किया ईश्वर के दिये इस अनमोल जीवन का अब और निरादर नहीं होने देगी। और अपनी बची खुची जिंदगी आत्मसम्मान के साथ बिना किसी अंतर्द्वन्द के व्यतीत करेगी।
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