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अंतर्द्वन्द - 5

अंतर्द्वन्द -5
अभी तक आपने पढ़ा कि नेहा एक बेटी की माँ बन जाती है।अब आगे पढिये :-
वह बहुत खुश है कि चलो पराये से लगने वाले इस घर में कोई तो ऐसा आया, जिसे वह अपना कह सकती है।उसके मासूम चेहरे को देखकर, वह सारी मानसिक पीड़ा भूल जाती है। लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा दिन तक कायम नहीं रहती ।बेटी होने के चौदहवे दिन, एक दिन वह अपनी बेटी को लेकर अपने कमरे में बैठी हुई थी, कि तभी निखिल दनदनाता हुआ कमरे में आता है और उससे कहता है "सारा दिन बिस्तर पर पड़ी रहती है ।कुछ काम काज नहीं कर सकती"।जिस नेहा को वो लोग दौड़ाते रहते थे,उसका इस तरह आराम करना उनको नागवार गुजरा था।कहाँ तो वह उनके इशारे पर नाचती रहती थी ।उनको हाथों में सब चीजें पकड़ाती थी।वहीं अब वह इतने दिनों से पड़ी हुई थी। नामकरण के अगले दिन ही वह उठकर झाड़ू लगाने लगी थी, तो निखिल की बहिन, जो कि भतीजी के होने में आईं थी ,ने मना कर दिया था कि अभी दो चार दिन रुक जाओ ,फिर सब काम तुम्ही को करना है।फिर वह क्या करती ,बापिस अपने कमरे में आ गई थी।निखिल की कड़वी बातें ,और उसका बोलने का अंदाज नेहा को बुरा लगा।यही बात कायदे से भी तो कही जा सकती थी। मजाल है कि वह काम के लिये मना करती ,पर नहीं। उसने भी गुस्से से कह दिया ,"ऐसे वक्त पर भी क्यों आराम करने दिया ,काम ही करवा लेते"।नेहा का इतना कहना था कि निखिल ने रौद्र रूप धारण कर लिया ,उससे बात करना बंद कर दिया,यहाँ तक कि उसके कमरे में आना भी।जब काफी दिन निखिल ने नेहा से बात नहीं की। तब निखिल की मम्मी और दीदी बोली "निखिल को मना ले,पैर पकड़ ले उसके"।वह सोचने लगी कि ऐसा कौनसा अपराध किया है मैंने, जो पैर पकड़ूँ ।फिर भी न चाहते हुए भी उसने निखिल के पैर पकड़े। इस पर भी निखिल उसको खूब खरी खोटी सुनाता रहा। आज फिर उसे, अपने व्यवहार से, निखिल और उसके परिवार वालों ने जता दिया कि उसकी हैसियत अब भी इस घर में कुछ भी नहीं है ।कल भी वह इस घर के लिये पराये घर की थी और आज भी।अब जब कभी मायके से बुलावा आता,निखिल बता देता कि किस दिन उसे बापस आना है।उसका भाई लेने भी आता और छोड़ने भी।इसी तरह दो साल गुजरे और उसके भाई का भी रिश्ता तय हो गया।शादी का वक्त भी करीब आ पँहुचा।नेहा अब दूसरे बच्चे की 'माँ' बनने वाली थी ।नेहा के माता पिता दोनों आये और उसके ससुराल वालों को शादी का निमंत्रण दे गए।पर शादी की सारी रस्में हो जाने पर भी, न तो निखिल ने नेहा को भेजा, न खुद गया।जबकि हर रोज करीब तीन घंटे का सफर करके, नेहा के मायके से, कोई न कोई आता और खाली लौट जाता। इस वक्त नेहा जिस मानसिक पीड़ा से गुजरी वही जानती थी, जिस भाई के साथ वह पलकर बढ़ी हुई, हँसी खेली उस भाई को दूल्हा बने देखने को वह तरस गई थी।वह अकेले में रोती रहती और फिर अपने अजन्मे बच्चे का ख्याल आते ही आँसू पोछकर कुछ खा पी लेती। लेकिन इस समय उसकी तकलीफ से उसकी सास और पति निखिल को कोई मतलब न था।इंसान इतना निष्ठुर कैसे हो जाता कि एक पवित्र रिश्ते में बंधकर उसी रिश्ते का ही इस्तेमाल करने में भी संकोच नहीं करता।निखिल और उसके ससुराल वाले नेहा के जरिये नेहा के पिता को अपने कदमों में झुकाना चाहते थे।जबकि निखिल खुद भी दो बहिनों का भाई था। शादी से एक दिन पहले नेहा के चाचा चाची आये और उन्होंने उसके सास ससुर और निखिल की बहुत मिन्नतें की, जब जाके नेहा को उनके साथ भेजा।और खुद सीधे बारात में आया और वहाँ भी अपने तेवर दिखाता रहा।शादी तो किसी तरह हो गई लेकिन नेहा की, मानसिक तनाव और क्लेश के चलते समय से पूर्व डिलीवरी हो गई।उसने एक बेटे को जन्म दिया लेकिन वह चार दिन से ज्यादा जीवित न रहा। अपने साथ हुए इस हादसे से नेहा बुरी तरह टूट जाती है।उसे लगता है कि यहाँ से कहीं दूर चली जाए।उसके माता पिता आते हैं और नेहा को उनके साथ कुछ दिनों के लिये भेजने के लिये कहते हैं ताकि नेहा का मन कुछ हल्का हो जाये।लेकिन अब भी निखिल ने नेहा को उनके साथ भेजने से इनकार कर दिया।क्योंकि अब भी उसे अपनी माँ की ही फिक्र थी कि उनकी देखभाल कौन करेगा,और बेटी पूर्वी के बिना उनका मन नहीं लगेगा।उसे ऐसी हालत में भी अपनी पत्नी की और उसकी मानसिक पीड़ा की कोई परवाह नहीं थी ।इसी तरह जिंदगी की गाड़ी हिचकोले खाती हुई आगे बढ़ती रही।इस रिश्ते को बनाये रखने के लिये, उसने न जाने कितनी बार अपने आत्म सम्मान से समझौता किया ,कितनी बार वह टूटी बिखरी।कभी कभी तो उसे लगता जैसे उसकी शादी न हुई हो कोई सजा मिली हो। एक ऐसी सजा जिसमें बाहर से तो सब ठीक ही लगता लेकिन वह भीतर ही भीतर मानसिक यंत्रणा से गुजर रही थी ।कई बार उसे लगता कि इस तरह आत्म सम्मान की कीमत पर इस रिश्ते को बनाये रखने का क्या औचित्य ,और कब तक।वह सोचती "क्यों एक औरत को अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिये इतना संघर्ष करना पड़ता है ?क्यों उसे सुख चैन से जीने का अधिकार नहीं है? उसका दिल दुखाकर उसको नीचा दिखाकर निखिल और उसके परिवारवालों को कौनसी खुशी मिलती है।जो लोग किसी की बेटी को प्रेम और सम्मान से अपना नहीं सकते तो उन्हें क्या हक है, उसे ब्याह कर लाने का और अपना घर बसाने का।एक लड़की के माता पिता से क्यों उम्मीद की जाती है कि वह जिंदगी भर देता भी रहे और उनकी गुलामी भी करता रहे। एक औरत के भाग्य का फैसला क्यों हमेशा दूसरों के हाथ में होता है ?"नेहा धीरे -धीरे इस दुख से भी बाहर निकल आती है और इसी तरह मानसिक अंतर्द्वन्द के साथ उसकी जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ती है।

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