"अरे तुम अभी तक तैयार नहीं हुई? पार्टी बस शुरू ही होने वाली है। सब मेहमान आते ही होंगे।" पार्थ ने कमरे के अंदर आकर अंकिता की तरफ देखते हुए बोला।
अंकिता बिना उसकी और मुड़े बस खिड़की के पास रखी कुर्सी पर बैठकर बाहर की तरफ नज़रें टिकाई हुई थी।
"अंकिता, क्या हुआ?" पार्थ ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए प्यार से पूछा।
अंकिता की आँखें भरी हुई थी। उसने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया।
"अंकिता, तुमने मुझसे वादा किया था ना कि तुम आज बिलकुल नहीं रोओगी। चलो अब जल्दी से तैयार हो जाओ। सब आते ही होंगे।" पार्थ ने उसका मन हल्का करने की कोशिश करते हुए कहा।
"क्या तैयार होऊं, पार्थ? अब बचा क्या है तैयार होने के लिए? मैं अब पहले जैसी कभी नहीं लगूंगी।" अंकिता अपने बिना बाल के सर, चेहरे पर काले धब्बे और गर्दन के आस पास स्टीचेस की तरफ देखते हुए चिढ़ कर बोली।
"पार्थ तुमने ये पार्टी क्यों रखी है? क्यों सबको बुलाया? मुझे किसी से नहीं मिलना।" अंकिता उठकर जाने लगी।
पार्थ ने उसका हाथ पकड़कर उसे बैठाया और उसके सामने बैठ गया।
"ओये, तुम मेरी फाइटर शेरनी हो। इतने बड़े बड़े दर्द झेल लिए तुमने और अब इतनी छोटी सी बात से हताश हो रही हो।" पार्थ ने उसकी हिम्मत बढ़ाते हुए कहा।
पार्थ और अंकिता की शादी १० साल पहले आज ही के दिन हुई थी। दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे और फिर दोनों की नौकरी भी एक ही कंपनी में लग गयी। कब दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गयी उन्हें खुद भी नहीं पता चला। बस इस बात का एहसास हुआ की दोनों को एक दूसरे की इतनी आदत हो गयी थी कि एक दूसरे के बिना एक दिन भी बिताने की कल्पना नहीं कर सकते थे। घर वालों ने भी दोनों की खुशी पर अपनी सहमति की मोहर लगा दी और बहुत धूम धाम से दोनों का विवाह संपन्न हुआ।
कुछ साल नौकरी करने के बाद दोनों ने मिलकर अपना एक छोटा सा स्टार्टअप शुरू किया और अपनी मेहनत और अनुभव से उसे काफी आगे बढ़ा दिया। कुल मिलाकर दोनों की ज़िन्दगी किसी सुन्दर सपने से कम नहीं थी। लेकिन वो कहते हैं ना कि कोई भी समय हमेशा के लिए नहीं रहता चाहे सुख का हो या दुःख का। पार्थ और अंकिता के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। एक दिन अचानक अंकिता के गले में बहुत तेज दर्द उठा। खाना पानी कुछ भी गले से नहीं निगला जा रहा था।
पार्थ अंकिता को लेकर तुरंत डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने कुछ टेस्ट कराये और दवाईयां दी जिससे अंकिता को थोड़ी राहत मिली। तीन दिन बाद जब रिपोर्ट आयी तो दोनों के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। डॉक्टर ने बताया कि अंकिता को गले का कैंसर है। वैसे तो कैंसर अपने प्रथम चरण पर ही था इसलिए डॉक्टर ने दोनों को हिम्मत रखने को कहा। ऑपरेशन और उसके बाद कीमोथेरेपी का इलाज़ बताया।
अंकिता को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उसे ये बीमारी हो गयी है। उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी लेकिन पार्थ के प्यार और प्रोत्साहन ने उसे टूटने नहीं दिया। पार्थ हमेशा उसके सामने सकारात्मक रहता और उसे भी खुश रखने की हर संभव कोशिश करता था। अंकिता का ऑपरेशन सफल हुआ और उसके बाद कीमोथेरेपी के सेशन्स चालू हुए जो बहुत ही कठिन थे। थेरेपी की वजह से अंकिता को कई साइड इफेक्ट्स का सामना करना पड़ा। खुद के ऐसे चेहरे, रंग रूप को देखकर उसका मन बहुत ही खिन्न हो गया था। उसने बाहर आना जाना, लोगों से मिलना जुलना सब छोड़ दिया था। इस बीमारी ने उसे ना सिर्फ शारीरिक अपितु मानसकि रूप से भी कमजोर कर दिया था।
आज पार्थ ने अपने कुछ दोस्तों को अपनी शादी की सालगिरह की पार्टी पर घर बुलाया था। उसे लगा लोगों से मिलकर अंकिता कुछ समय के लिए यह सब भूल कर थोड़ा अच्छा महसूस करेगी। लेकिन अंकिता को किसी के सामने जाने में हिचकिचाहट हो रही थी। उसके मन में हीन भावना ने घर कर लिया था।
"अंकिता आज हमारी शादी की सालगिरह है। तुम्हें याद है उस दिन तुम कितनी खुश थी। मैं वही ख़ुशी आज फिर से तुम्हारे चेहरे पर देखना चाहता हूँ। बताओ मैं ऐसा क्या करुँ कि तुम्हारी वही मुस्कान वापस आ जाए।" पार्थ बस उसकी खुशी चाहता था।
अंकिता खुद को रोक नहीं पायी और उसकी आँखों से आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। "पार्थ, तुम इतने अच्छे क्यों हो? तुमने मेरे इस मुश्किल समय में एक पल के लिए भी मेरा साथ नहीं छोड़ा। पर अब मैं पहले जैसी नहीं रही। और शायद अब हमारा प्यार भी वैसा नहीं रह पायेगा।"
"कैसी बात कर रही हो अंकिता। हमारा प्यार क्या इतना कमजोर है जो ऐसी कुछ कठिन परिस्थितियों के सामने घुटने टेक देगा। मैंने तुमसे प्यार किया है, तुम्हारे रंग रूप से नहीं। क्या हो गया अगर तुम्हारा चेहरा अब पहले जैसा नहीं रहा, तुम मेरे लिए अभी भी वही अंकिता हो और हमेशा रहोगी जो मेरी दोस्त, मेरी हमसफ़र, मेरी ज़िन्दगी सब कुछ है। मान लो कि मैं तुम्हारी जगह होता तो क्या तुम्हारा प्यार मेरे लिए खत्म हो जाता?" पार्थ का मन आहत हो गया।
"नहीं पार्थ। मैं एक बार खुद को भूल सकती हूँ पर तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती।" अंकिता ने पार्थ का हाथ थामते हुए कहा।
"बस तो फिर अब ये सब रोना, दुःखी होना बहुत हुआ। मुझसे वादा करो की आज के बाद तुम अपने मन से ये हीन भावना निकाल दोगी। तुम खूबसूरत थी, हो और हमेशा रहोगी क्योंकि तुम्हारी सुंदरता तुम्हारे चेहरे या बालों से नहीं, तुम्हारे मन से है जो बहुत ही निश्छल और सुन्दर है।" पार्थ ने अंकिता की आँखों में झांकते हुए कहा।
अंकिता की आँखें खुशी से चमक उठी। पार्थ ने अपने प्यार और आत्मीयता से एक बार फिर अंकिता का दिल जीत लिया।
अंकिता को अपना खोया हुआ आत्मविश्वास वापस मिल गया। पार्थ के असीम प्यार और अपनेपन से उसकी ज़िन्दगी में खोयी हुई खुशियाँ लौट आयी। और इस बार जो निखार उसके चेहरे पर आया था वो उनके रिश्ते की ही तरह अटूट था।