झंझावात में चिड़िया - 3 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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झंझावात में चिड़िया - 3

शेर की ये क़िस्म और नस्ल किसी ने कभी भी कहीं भी सुनी या देखी न होगी। न किसी ज़ू में और न किसी टाइगर रिजर्व में!
लेकिन उन्हें यही दर्ज़ा दिया गया।
छः फुट एक इंच लंबे प्रकाश को बैडमिंटन कोर्ट पर "जेंटल टाइगर" अर्थात 'विनम्र सिंह' कहा गया। एक ऐसा शेर जो राजा है पर खूंखार नहीं है। संजीदा, सरल और विनम्र।
सातवां दशक बीतते - बीतते प्रकाश को जबलपुर शहर में अपने पसंदीदा, पर बेहद आक्रामक इंडोनेशियाई खिलाड़ी रूडी हर्टोनो के साथ खेलने का अवसर मिला। यहीं प्रकाश को ये एहसास हुआ कि वो ख़ुद काफ़ी रक्षात्मक खेलते हैं। रूडी की आक्रामकता ने उन्हें अपने खेल की शैली में कुछ तब्दीलियां लाने के लिए प्रेरित किया। उन्हें महसूस हुआ कि पिता के संरक्षण में अपने से बड़ी आयु के प्रतिद्वंदियों के साथ खेलते हुए वो जो लिहाज़ बरतते हैं उसे उन्हें छोड़ना होगा।
यहीं से दर्शकों ने एक नया प्रकाश देखा। चपल और बिजली सा फुर्तीला। अपने प्रतिद्वंदी पर आक्रामक!
ये भी उनके खेल का एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ। इसके बाद फ़िर उन्होंने कभी मुड़ कर नहीं देखा।
जब कोई बर्तन जल से पूरी तरह भर जाता है तो वो छलकने लग जाता है और बहती जलधार उसके जल को पात्र से बाहर ले जाती है।
पूरे भारत में प्रकाश की प्रसिद्धि और सफ़लता का यही आलम था।
साल दर साल राष्ट्रीय चैम्पियन का खिताब अपने नाम करते प्रकाश ने सन उन्नीस सौ चौहत्तर में अपना परचम देश के बाहर भी फहरा दिया। उन्नीस साल का फिल्मी सितारों सा ख़ूबसूरत ये गोरा लंबा युवक तेहरान के एशियाई खेलों में खेलते हुए टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीत लाया। इसे इसी साल भारत के अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन दल में शामिल किया गया था।
इसी वर्ष दक्षिण कोरिया के सियोल शहर में खेलते हुए भी इस दल को तीसरा स्थान प्राप्त हुआ। प्रकाश को क्वार्टर फ़ाइनल मुकाबले में पराजय का मुंह देखना पड़ा।
प्रकाश ने बैडमिंटन को देश में एक लोकप्रिय खेल बनाने में ज़बरदस्त योगदान किया। नई पीढ़ी भारतीय हॉकी से जैसे उदासीन हो जाने के बाद अब अकेले क्रिकेट खेल पर ही अपने सपने सजाने की आदी होती जा रही थी। लेकिन हॉकी और क्रिकेट की लंबी - चौड़ी बड़ी टीमों की मांग के चलते अब बच्चों का ध्यान बैडमिंटन पर ही जाने लगा था जो आसानी से छोटी सी टीम सहित इनडोर और आउटडोर दोनों स्थानों पर खेला जा सकता था।
मजे़दार बात ये है कि समाज में आई किसी भी नई लहर को हमारी हिंदी फ़िल्में पहले लपकती हैं।
"वक्त" जैसी मल्टी- स्टारर ब्लॉकबस्टर फ़िल्म में लोकप्रिय अभिनेत्रियों साधना और शर्मिला टैगोर पर बैडमिंटन के कुछ दृश्य फिल्मा लेने के बाद अभिनेता जितेन्द्र और एक्ट्रेस लीना चंदावरकर पर तो एक पूरा का पूरा गीत ही बैडमिंटन कोर्ट पर खेलते हुए चित्रित किया गया जो काफ़ी लोकप्रिय हुआ।
सफ़ेद बगुलों के रंग के शफ्फाक परिधान में हाथ में रैकेट लिए हुए जोड़े शहर - शहर खेलते हुए दिखाई देने लगे। गोल्फ़, बिलियर्ड और टेनिस की अंडे सी बॉल अब किसी हवाई परिंदे सी लहराती शटलकॉक में तब्दील होने लगी।
प्रकाश को अपनी आयु के इक्कीसवें साल में हैदराबाद में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में खेलने का मौका मिला। इस प्रतियोगिता में उन्हें एक बार फ़िर कांस्य पदक प्राप्त हुआ। यहां उनकी राह लीम स्वी किंग जैसे दक्ष खिलाड़ी ने रोकी, जिसकी शैली और लोकप्रियता तब खेल के हलकों में चरम पर थी।
दस जून उन्नीस सौ पचपन को कर्नाटक के बैंगलोर शहर में जन्मे प्रकाश के लिए हैदराबाद में खेलना एक साधारण सी बात थी क्योंकि कर्नाटक राज्य चैंपियन रहते हुए उनकी धाक यहां बखूबी जमी हुई थी लेकिन ये स्पर्धा आसान नहीं थी क्योंकि मुकाबला तो अंतरराष्ट्रीय ही था। प्रकाश इस बात को भूले नहीं कि किंग ने उन्हें उनके अपने देश में हराया है।
वर्ष उन्नीस सौ अठत्तर आते - आते प्रकाश का जादू सारी दुनिया के सर चढ़ कर बोलने लगा जब उन्हें देश से बाहर किसी प्रतिष्ठित महामुकाबले में एकल स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीतने का अवसर मिला। वे एडमोंटन, कनाडा में आयोजित राष्ट्रमंडलीय खेलों में एकल मुकाबले में गोल्डमेडल अपने नाम करके लौटे।
इस सफ़लता से तहलका सा मच गया और प्रकाश पादुकोण ने अपने हस्ताक्षर मानो विश्व बैडमिंटन के आसमान पर अपने हस्ताक्षर सुनहरे अक्षरों में कर दिए। उनकी सफलताओं की झड़ी सी लग गई और उनकी शौहरत दुनिया के बैडमिंटन कोर्ट पर किसी मचलते हुए समंदर की तरह हहराने लगी।
उन्होंने वो करिश्मा कर दिखाया जो भारत में अब तक कभी किसी ने नहीं किया था।
वे उन्नीस सौ उन्यासी के विश्व ग्रां प्री मुकाबले में एकल स्वर्ण पदक लेकर आए। कोपेनहेगन, डेनमार्क से उनके नाम का डंका सारी दुनिया में बज गया जब उन्होंने डेनिश ओपन का खिताब अपने नाम किया। इसी वर्ष उन्होंने लंडन के रॉयल एलबर्ट हॉल में ईवनिंग ऑफ़ चैंप्स में जीत दर्ज की।
उन्होंने डेनिश ओपन के साथ - साथ स्वीडिश ओपन में भी जीत दर्ज की। प्रकाश राष्ट्रमंडलीय स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने के साथ इंडिया ओपन में भी उपविजेता रहे।
भारत के परंपरागत दर्शकों को अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में विकसित देशों के उम्दा खिलाडि़यों की भांति अपने क्रीड़ा नायकों की इतनी बड़ी सफलताएं देखने का ऐसा अभ्यास नहीं था जो बैडमिंटन स्टार प्रकाश ने पहली बार उन्हें कराया।
दशक के बीतते - बीतते ऑल इंग्लैंड ओपन की एकल जीत दर्ज़ करने वाले वे पहले और अकेले भारतीय खिलाड़ी बने। यहां उन्होंने अपने इंडोनेशियाई प्रतिद्वंदी लियेम राजा को हरा कर सनसनी फैलाई।
उन्नीस सौ इक्यासी की विश्वकप स्पर्धा के एकल विजेता बनने के समय वे वर्ड रैंकिंग में सिरमौर बन चुके थे। उनकी विश्व रैंकिंग पहली हो चुकी थी।
ये भारत के लिए एक ऐसा सपना था जिसकी बराबरी इससे पूर्व न पहले कोई कर सका था और न बाद में आज तक कोई और कर सका। भारत की उड़ती चिड़िया का ये बैडमिंटन के आसमान में मानो अश्वमेघ यज्ञ था।
भारतीय बल्ले का ये यशोगान खेल इतिहास में अमर हो गया और इसकी सनद का जश्न भारत सरकार ने इस तिलिस्मी खिलाड़ी को अगले वर्ष "पद्मश्री" देकर मनाया।
कोंकणी मातृभाषा वाले इस संकोची युवक के मित्र, शुभचिंतक और स्पर्धी भारत ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में थे।
हान जियान जैसे अनुभवी और जादुई खिलाडि़यों को पराजित करने और उनकी सी ऊर्जा में खेलने के गुर और तेवर अपने देश को प्रकाश ने दिखाए।